अंजो दीदी(Anjo Didi Natak)

💐💐 अंजो दीदी 💐💐

◆  नाटककार  :- उपेंद्रनाथ अश्क

◆ प्रकाशन :- 1955 ई.

◆  अंक :- दो अंक

◆ दृश्य :- 4 दृश्य (3+1)

◆ सामाजिक और मनौवैज्ञानिक नाटक

◆  उपेंद्रनाथ अश्क का सर्वाधिक प्रौढ़ नाटक

◆ नाटक के पात्र :-

★ पुरुष पात्र :-

1. श्रीपत (अंजो का भाई)
2. इन्द्रनारायण (वकील) – अंजली का पति
3. राधू (नौकर)
4.  नीरज(नीरू) – अंजो का बेटा
5. नीलम (नीरज का बेटा,अंजली और इन्द्रनारायण का पोता)
6. नजीर (नीरज का मित्र)

★  स्त्री पात्र :-

1. अंजो दीदी (अंजली)
2. अनिमा (अंजो की सहेली)
3. मुन्नी (नौकरानी)
4. ओमी (नीरज की पत्नी,अंजली और इन्द्रनारायण की बहु)

◆ नाटक का विषय :-

★ उच्च वर्ग के लोगों का यांत्रिक जीवन दिखाया गया है।

★अंहकारवादिता व प्राचीन संस्कारों के दुष्प्रभावों का चित्रण

★ मानसिक रोग से ग्रस्त महिला का चित्रण

★ अभिजात वर्गीय महिला

★ अनुशासन प्रिय महिला

★ यांत्रिक ढाँचे को डालने की प्रवृत्ति

◆ नाटक का सारांश :-

★नाटक की शुरुआत अंजो दीदी के डायनिंग रम से होती है।

★वह अपनी नौकरानी को फटकारती है कि तुम्हने आठ बजे नास्ता क्यों नहीं हुआ। नास्ता
मेज पर लगाने को कहती है।

★ अंजो को बचपन से ही नाना ने गोद में लेने के कारण उस पर नाना के विचार हावी हो गई है।

★ अंजली को नाना जी से कुछ आदर्श विरासत में दूसरों पर छा जाने का स्वभाव मिला था।

★ अंजली भी इसी स्वभाव दमन की अमूर्त प्रतीक रूप में नाटक में आई है।

★ अंजली के विचारों का प्रभाव नाटक में आरंभ से अंत तक दिखायी देता है।

★ नानाजी से विरासत में मिले हुए गुणों के कारण अंजों में वह जिद्द है, जिससे वह दूसरों को पराजित कर देती है।

★ वह कहती है, हमारे नानाजी कहा करते थे, वक्त की पाबंदी सभ्यता की पहली निशानी है।

★  सुबह उठने से लेकर रात में वह सभी को अपने वर्चस्व में रखती है।

★ अंजो ने दिनभर का पूरा कार्यक्रम बना लिया है।

★ सब समय पर होना चाहिए। उसने कठोर नियम भी लिया है।

★ ठीक आठ बजे सारा परिवार नास्ता होना चाहिए, दिन बजे दोपहर का भोजन करेंगे, तीन बजे फिर नास्ता और रात के भोजन होना ही चाहिए इसतरह की दिनचर्या उसके हिसाब से होनी।

★ अंजो का बेटा नीरज माँ की सारी बातें मानता है।

★  उसके नियम का पालन करता है। समय  आराम, समय पर खाना, खेलना इस वजह से वह नीरज खुश है।

★ नीरज की तारीफ अनिमा से करती है।

★  परिवार के ही सदस्य नहीं घर के अन्य सदस्य, नौकर और वस्तुएं भी अपने आप को अंजो के हवाले कर देती है।

★ अंजो का पति इंद्रनारायण एक वकील है।

★ वे पहले हंसमुख रहते थे।

★  जैसे ही अंजो से शादी की और घर में अंजो का वर्चस्व और दमन के कारण उनका हंसमुख स्वभाव कहीं खो गया है।

★ अब वकील साहब सिर्फ कठपुतली जैसे बन गए है। अपनी मज़बूरी के चलते अंजो के इशारों पर नाचते रहते हैं।

★अपने पति में हुआ परिवर्तन अंजो को गर्व जैसा महसूस होने लगता है।

★ उसे लगता है कि वकील साहब पहले ज्यादा अब अच्छे रहते है। एक तरफ से अंजो का अपने पति पर जुल्म ही हो रहा है। उनकी खुशियों को दबोचा गया है।

★ वे अपनी पति की भावनाओं को समझ ही नहीं पायी है।

★ नाटक में उनके विवाह पूर्व जीवन और बाद का जीवन इसमें काफी अंतर दिखाई देता है।

★  पति द्वारा किया गया समझौता अंजो को अपना वर्चस्व चलाने का हत्यार मिलता है।

★ एक दिन अचानक अंजो का भाई और नीरज का मामा श्रीपत उनके घर आता है।
दोनों भाई-बहन बिल्कुल एक दूसरे के विपरीत है।

★ श्रीपत को भी अपने बहन का यह व्यवहार पसंद नहीं है।

★ उसे लगता है कि परिवार के बाकि सदस्यों पर अन्याय हो रहा है।

★ श्रीपत अंजो के इस जुल्म को मिटाना चाहता है।

★ श्रीपत परिवार के अनुशासन को अस्त-व्यस्त कर देना है।

★ श्रीपत अपने जीजाजी तथा नीरज को साथ लेकर वही के बड़े मुंगी के लड्डू कुल्फी का मजा लेता है।

★  शाम को श्रीपत और उसके जीजाजी मनसोक्त होटल शराब पीते है।

★  तभी से इंद्रनारायण की शराब की आदत बढ़ जाती है।

★ श्रीपत अंजो दीदी के आदतों को तोड़ता है। अब अपनी बहन अंजो को समझाता भी है कि उसके कड़े स्वभाव के कारण सारे परिवार का भविष्य समस्यामुलक हो जाएगा।

★ श्रीपत का कहना है, हर एक व्यक्ति का अपना नैसर्गिक स्वभाव होता है वह उसने नहीं छोड़ना नहीं चाहिए।

★ धीरे-धीरे श्रीपत के कहने घर के सारे सदस्य अपनी आदतों के अनुसार जीवन बिताने लगते है ।

★ जो बेटा अंजली से ऊँची आवाज में बात नहीं करता था।माँ के घर नियम का पालन करता था। एक दिन वह निसंकोच अपनी माँ से कहता है, मुझे डिप्टी कमीशनर नहीं बनना मैं क्रिकेटर का कप्तान बनूँगा।

★  जब श्रीपत अपने घर लौटने लगता है तो नीरज उसे क्रिकेट का सामान भिजवाने सिफारिश भी करता है।

★ अंजली को मालुम पड़ता है कि श्रीपत के कारण ही घर का वातावरण खराब हुआ है।

★  श्रीपत के चले जाने के बाद वह फिर एक बार के सभी लोगों को अपने अनुशासन में लाने की नाकामयाब कोशिश करती है। लेकिन असमर्थ हो जाती है।

★  मानसिक रोग से पीड़ित हो जाती है और अपनी ऊपरी आक्रमण के कारण वह आत्महत्या करती है।

★ नाटक के दूसरे अंक का पर्दा उठने पर बैठक तथा डाइनिंग रूम का वर्णन लेखक ने किया  है।

★ अंजो जाकर अभी तीन साल हो गए। अंजो प्रतिनिधि के रूप में बहु ओमी को छोड़ दिया है

★ उसका बेटा नीरज बनावटी स्वभावन के पीछे चलने लगता है।

★ अंजो का पति इंद्रनारायण पत्नी के आदर्शों पर चलने लगता है।

★ इस प्रकार मरने के बाद भी का दमन जारी रहता है।

★  नीरज जिसे अंजो डिप्टी कमिशनर बनाना चाहती थी, लेकिन वह न डिप्टी कमिशनर बना और न ही क्रिकेटर बल्कि वह सिटी मजिस्ट्रेट बनकर रहता है।

★  नीरज तो अपनी मम्मी के कठोर अनुशासन का साक्षात्  प्रतिक्रिया का उभरता रूप है।

★  वह भी अपना मामा श्रीपत की भांति मनमौजी बन जाता है।

★ नीरज और अपने बेटे नीलम को क्रिकेट का कप्तान तो नीरज की पत्नी ओमी बेटे को आई.सी.एस बनाना चाहती है।

★  लेकिन स्वयं नीलम कवि बनना चाहता परिवार की विडंबना दूर करने के लिए बीस वर्ष बाद श्रीपत अंजो दीदी के आत्महत्या करने पर कहता है कि, अंजो सख्त मॉर्बिड (जालिम) थी।

★ श्रीपत नीलम को कवि बनने की सलाह देता है, जैसे उसने पहले कभी नीरज को भी क्रिकेटर बनने की सलाह दी थी।

★ नाटक का अंत करुण भावों में होता है। क्योंकि अंजो दीदी स्वयं जीते-जी न कर सकी, वह उसने मरने के बाद कर दिखाया।

★ उसके पति इंद्रनारायण अब वकील से जज बन गए है, वे अंजो के बाद बिल्कुल तन्हा और गंभीर जीवन बिताते है और अंजो के चित्र की तरफ देखते हुए कहते है, जरा-सी गलती पर अपनी सनक में तुमने मेरे पाँच बरस रेगिस्थान बना डाले, अंजो मैं तुम्हें क्या कहूँ?’ सचमुच वकील साहब का जीवन अब तक हृदयद्रावक करुणकथा जैसा था।

★   जब श्रीपत उन्हें बताता है कि अंजो दौरे से नहीं बल्कि जहर खाकर मरी थी और उसने यह सब अपनी शराब की आदत छुडाने के लिए किया था।

★  नीलम कवि बनना चाहता है लेकिन माँ के नियन्त्रण के कारण नहीं बन सका।

★  इस नाटक की ट्रेजेडी आनुवंशिक प्रवृत्ति पर निर्भर है।

★ इस नाटक से अंत: इतना ही कहा जा सकता है कि, जो जैसा हो वह वैसा ही रहे जब कोई आदमी अपनी वास्तविक मनोवृत्ति को छोड़ता है तो वह जीवन में असफल होता है ।

◆ महत्वपूर्ण कथन :-

(1.) “मै तो चकित रह गयी मुन्नी को देख कर । नौकरानी लगती ही नहीं। मै तो समझी जीजा जी की बहिन..”(अनिमा ने अंजली से कहा)
★ यहां मुन्नी (अंजली की नौकरानी) को अनिमा अंजली की ननद समझी।

(2.) “वह आया तो मै समझी तुम्हारे श्वसुर …”.(अनिमा ने अंजली से कहा)
★ यहां राधू(अंजली के नौकर) को अनिमा अंजली का श्वसुर समझी।

(3.) “सभ्यता और शिष्टाचार का तनिक भी अभाव तुम उसमें न पाओगी।” (अंजली ने अनिमा को नीरज के लिए कहा)

(4.) “स्वर्गीय नाना जी कहा करते थे – बच्चों को आरम्भ ही से अच्छा स्वभाव डालना चाहिए। इतना बड़ा हो गया है नीरज, कभी कान उमेठने या डाँटने की नौबत नहीं।” (अंजली ने अनिमा से कहा)

(5. )”वक्त की पाबंदी सभ्यता की पहली निशानी है।”(अंजली  ने अनिमा से कहा)

(6.) “बच्चो को अपनी मदद आप करने की आदत डालनी चाहिए।”(अंजली ने अनिमा से कहा)

(7.) “स्वर्गीय नाना जी कहा करते थे-सुघड़ापा नारी का आभूषण है और सदाचार पुरुष का।”(अंजली ने अनिमा से कहा)

(8.) “जीवन स्वयं एक महान घड़ी है। प्रातः संध्या उसकी सूइयाँ है। नियमबद्ध एक दूसरी के पीछे घूमती रहती है। मैं चाहती हूँ मेरा घर भी घड़ी ही की भाँति चले। हम सब उसके पुर्जे बन जाये और नियम पूर्वक अपना –  अपना काम करते जायें।”(अंजली ने अनिमा से कहा)

(9.) “संसार मे दो प्रकार के प्राणी होते है-एक वे, जो आप भी चलते है और दूसरों को भी चलाते है-इंजन की भाँति – अंजो उनमे से है। दूसरे वे, जो आप नहीं चल पाते, पर दूसरा कोई चलाये तो उसके पीछे –  पीछे चले जाते हैं  गाडी के डिब्बों की भाँति ! तो भई हम तो इस दूसरी श्रेणी के लोगों में से हैं।”(इन्द्रनारायण ने अनिमा  से कहा)

★ इन्द्रनारायण के अनुसार :-
• इंजन की भाँति – अंजली/अंजो,
• गाडी के डिब्बों की भाँति – स्वयं इन्द्रनारायण

(10.) ” समय-निष्ठा, स्वच्छता, नीति-रीति, सभ्य समाज के आचार-व्यवहार प्रत्येक बात का ध्यान रखते है।”(इन्द्रनारायण ने अनिमा  से कहा)

(11.) “अंजो के साथ विवाह करने के बाद, लगता है, जैसे हम तो अछूत थे, अंजो ने आकर हमारा उद्धार किया है।”(इन्द्रनारायण ने अनिमा  से कहा)

(12.) “भूषण अलकार स्त्रियों की चीज़ समझ कर वे इसे पास भी नहीं फटकने देते है। सदैव अश्लील बातें करने मे उन्हें रस मिलता है और गंदे इतने होते हैं कि निकट बैठना कठिन हो जाता है।”(इन्द्रनारायण का कथन)

(13.) “वह घुमक्कड आदमी है। सदा बाहर दौरों पर रहा है।” (इन्द्रनारायण ने अंजली से श्री पत के लिए कहा )

(14.)  “तुम तो व्यर्थ मे गृहस्थी की चक्की से अपना माथा फोड़ रही हो। तुम्हे किसी सैनिक कोर मे छोटी – मोटी जूनियर या सीनियर कमांडर हो जाना चाहिए।” (श्रीपत ने अंजली से कहा)

(15.) “कहा करते थे कि श्रीपत बेहद गँवार आदमी है। खाने की मेज पर बैठ कर पसीना सुखाता है। मैं कहता हूँ दीदी, मैं इतनी मुद्दत के बाद यहाँ आया हूँ।”(श्रीपत ने अंजली से कहा)

(16.) “श्रीपत मै कहता हूँ, ब्रह्मा का वाक्य और मेरा वाक्य एक बराबर है। मैंने कहा न कि एक पल के लिए भी आप लोगों को अपनी दृष्टि से ओझल न होने दूंगा।”(श्रीपत ने अंजली से कहा)

(17.) “आचार व्यवहार के सभी कानून कायदे शादीशुदा लोगो के अधेड़ दिमागों की उपज है।”(श्रीपत ने अनिमा से कहा)

(18.) “वकील तो यौवन प्रतीक है  और जज बुढ़ापे का ।” (श्रीपत का कथन)

(19.) श्रीपत के द्वारा गुनगुना हुये गीत :-

  √भरी बम में राज़ की बात कह दी
  बडा बेअदब हॅू, सज़ा चाहता हूँ।

√लट उलझी सुलझा जा रे बालम !
माथे की बिंदिया बिसर गयी है मोरी,
अपने हाथ लगा जा रे बालम ।
लट उलझी सुलझा जा रे बालम।।

√ यह दस्तूरे – जबाँ-बन्दी है कैसा तेरी महफल में
   यहाँ तो बात करने को तरसती है जबाँ मेरी !

√ उम्मीद तो बॅध जाती, तस्कीन तो हो जाती,
   वादा न वफा करते, वादा तो किया होता।

√ नाकामे – तमन्ना दिल इस सोच मे रहता है। यों होता तो क्या होता, यो होता तो क्या होता !

(20. ) “शिष्टाचार विवाह का, यों कह लो कि बंधन का प्रतीक है। उधर आपका विवाह हुआ और इधर आपके गले में शिष्टाचार का जुआ पड़ा। ये आपकी सास है- इनके सामने सिर नीचा किये शिष्टता से यों मुस्कराओ मानो आपकेसब दांत झड़ गये हैं। ये आपकी सलहज हैं इनके सामने विनम्रता से मो मानो आपकी बतीसी मोतियों की है।” (श्रीपत का कथन)

(21. ) ” आचार व्यवहार, सदाचार और शिष्टता की मौसी।” (श्रीपत ने अंजली को कहा है।)

(22.)  और हमारे घर में किसी प्रकार का बन्धन नहीं। वास्तव में स्वर्गीय नानाजी ने अंजी दीदी के मस्तिष्क को जकड़ रखा है। वे थे भी डिक्टेटर सदा अपनी राय दूसरों पर लादा करते थे….हमारे घर में ऐसा करना महापाप समझा जाता है।”( श्रीपत ने मुन्नी से कहा)

(23.) ” स्वर्गीय नाना जी कहा करते थे कि नींद न आय तो भी खाना खाने के बाद कुछ देर लेटना चाहिए।” (अंजली ने नीरज से कहा)

(24.) ” स्वर्गीय नाना जी कहा करते थे- संसार मे तीन प्रकार के जीव होते हैं। एक वे जो आप भी चलते है और दूसरों को भी चलाते है इंजन की भाँति ; दूसरे वे, जो आप नही चलते, पर चलाओं तो चले जाते है गाड़ी के डिब्बों की भाँति और तीसरे वे, जो न आप चलते है, न दूसरो को चलने देते है – ब्रेक की भाँति ! स्वर्गीय नाना जी कहा, करते थे –  श्रीपत ब्रेक है, ब्रेक !! (अंजली ने श्रीपत के लिए कहा)

(25.) ” भिन्नता जीवन का रस है।” (श्रीपत  ने इन्द्र नारायण से कहा)

(26.) “जब इंसान मशीन बन जायेगा तो वह दिन दुनिया के लिए सबसे बड़े खतरे का दिन होगा। इंसान का मशीन बनना सनक का ही दूसरा रूप है। ” (श्रीपत ‘इन्द्र नारायण से कहा)

(27.) “मुझे कीचड़ में फेक दो और आशा रखो कि मैं अपने कपड़ो को उसके छीटों से बचाये रखूँ, यह कैसे संभव है।”(नीरज अपनी पत्नी ओमी से कहा)

(28.)“कोई भला आदमी सफल मैजिस्ट्रेट या कलेक्टर हो ही नहीं सकता।”(नीरज अपनी पत्नी ओमी से कहा)

◆ महत्वपूर्ण बिंदु :-

★  रंगमंचीय दृष्टि से सफल नाटक है।

★ उच्च मध्य वर्ग ने कुछ खोखले अभिज्यात संस्कारों के ओट कर जीवन को यांत्रिक बना दिया है। यह यांत्रिकता एक प्रकार के मानसिक रोग का रूप ले चूका है।

★ ‘अंजो दीदी’ नाटक में  शिष्टाचार, सभ्यता और समय-निष्ठा से पीड़ित नारी की भावनाएँ दिखाते हैं।

★ अंजो दीदी नाटक का कथानक आभिजात्य वर्ग के परिवार से सम्बद्ध है।

★ अंजली दुबले-पतले इकहरे शरीरवाली अभिजात कुल की स्त्री है।

★ ‘अंजो दीदी ‘ मनोविकारों के घात- प्रतिघात और उनकी प्रतिक्रिया की कहानी है । कोई दैवी घटना वहाँ नहीं है आकस्मिक रूप से बदलनेवाली परिस्थितियाँ वहाँ नहीं हैं जो जीवन को अँधेरे या उजेले मोड पर डाल देती है। उसकी कथा की प्रेरक शक्ति है – मनोविज्ञान जो उस विशिष्ट परिवार की वास्तविक स्थिति से प्रभावित होकर निरंतर विकसित होता जाता है और नाटकीय सूत्र को बढ़ाता जाता है। केवल व्यक्तियों और मान्यताओं के संघर्ष से वर्गीय
यथार्थ की आत्मा जैसे मुखर हो उठी है और उनके रहन-सहन अतिशय पाबंदी, नियंत्रण और मशीनी-सोच की सारी विषमता साकार हो उठती है।”(कमलेश्वर का कथन)

★  अंजली अपने वर्चस्व, दमन, अहं के कारण पारिवारिक जीवन को नष्ट कर देती है।

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