अक्क महादेवी का जीवन परिचय (Akka Mahadevi ka jeevan parichay)
अक्क महादेवी का जीवन परिचय
◆ जन्म :- 1130 ई में, शिवमोग्गा जिले के उडुतरी गाँव में (कर्नाटक)
◆ पिता का नाम :- निर्मल शेट्टी
◆ माता का नाम :- सुमति
◆ इनके माता- पिता शिव भक्त थे।
◆ दस वर्ष की आयु में महादेवी ने शिवमंत्र की दीक्षा प्राप्त की।
◆ इन्होंने अपने द्वारा रचित अनेक कविताओं में भगवान शिव का सजीव चित्रण किया है।
◆ यह प्रभु की सगुण भक्ति करती।
◆ महादेवी जी की अपने इष्ट के प्रति माधुर्य भक्ति थी।
◆ यह भगवान शिव को “चेन्नमल्लिकार्जुन” अर्थात “सुन्दर चमेली के फूल के समान श्वेत, सुन्दर प्रभु !” कहकर संबोधित करतीं।
◆ इन्होंने भगवान शिव को ही अपना पति माना। जैसे मीराबाई ने कृष्ण को अपना पति माना।
◆ “अक्का” कन्नड भाषा का शब्द है जिसका अर्थ बहिन या बडी दीदी। (यह संबोधन उसके संतो ने दिया )
◆ बारहवीं शताब्दी की प्रख्यात कन्नड़ कवियत्री अक्का महादेवी परम शिव भक्त थी।
◆ इनके समकालीन कन्नड़ संत कवि :- बसवन्ना, अल्लामाप्रभु
◆ विवाह :-
★ युवावस्था में महादेवी अत्यन्त सौंदर्यवती थीं। स्थानीय जैन राजा कौशिक इनके रुप पर मुग्ध हो गये। उन्होंने इनसे विवाह का प्रस्ताव रखा।
★ माता पिता महादेवी जी को भक्ति-मार्ग पर ही बढ़ाना चाहते थे और वे इनका विवाह नहीं करना चाहते थे।
★ राजा की धमकियों से डरकर व विवश होकर, वे इनका विवाह राजा कौशिक से करा देते हैं।
★ अक्का महादेवी का पूरा मन तो सिर्फ अपने “चेन्नमल्लिकार्जुन” की आराधना में ही रहता, जिनको यह अपना पति मान चुकी थीं।
★ राजा कौशिक तरह तरह के प्रयास करके महादेवी जी से अपना प्रेम प्रकट करते, किन्तु उनका हर प्रयास विफल होता और महादेवी जी राजा को अपने पास ना आने देतीं और यही कहतीं रहतीं कि मेरे पति तो “चेन्नमल्लिकार्जुन” हैं।
★ महादेवी जी का यह आचरण राजा को बिल्कुल पसंद नहीं आता। अपनी पत्नी के मुख से किसी और को पति का सम्बोधन उनको क्रोधित कर देता।
★ उस समयकाल में ऐसे आचार-विचार अपराधजनक थे।
★ इस विषय पर निर्णय करने के लिये राज्य-सभा बुलायी गई।
★ महादेवी जी यही कहतीं रहतीं कि “मेरे पति तो चेन्नमल्लिकार्जुन ही हैं।
★ राजा ने क्रोध में आकर उनका परित्याग करते हुए महादेवी जी को राज्य छोड़कर चले जाने को कहा।
★ महादेवी जी को बड़ी सहजता से इस निर्णय को स्वीकारता देखकर राजा को और क्रोध आ गया।
★ उसने उनको सभी वस्त्र-आभूषण जो कि राजा के दिये थे- वे सब उतारने के बाद राजमहल छोड़कर जाने को कहा।
★ महादेवी जी ने अपने प्रभु का ध्यान करके पूरे शांत भाव से राजा का कहा माना और फिर उस दिन के पश्चात् कभी कोई भी वस्त्र-आभूषण धारण न किये।
★ अपने चेन्नमल्लिकार्जुन की प्रिया महादेवी ने देह को लम्बे केशों से ढका और राजमहल से चल दीं।
◆ आध्यात्मिक यात्रा :-
★ निर्वस्त्र महादेवी को समाज से बहुत दुत्कार मिली।
★ लोगों ने बहुत प्रकार से इनको समझाने की कोशिश करी, पर ये ना डिगीं और यही कहतीं कि भगवान से मिलन में वस्त्रों की क्या आवश्यकता।
★ जंगलों से गुजरते हुए, अनेक प्रकार के संघर्ष करते हुए, समाज का निर्भीकता व दृढ़ता से सामना करते हुए, ये कल्याण पहुँची।
★ कर्नाटक के बिदार जिले का यह नगर शिव-भक्ति का प्रसिद्ध गढ़ था।
★ “अनुभव-मण्डप” की गोष्ठि में इन्होनें बहुत दृढ़ता से अपने विचार रखे।
★ बारहवीं सदी में महादेवी जी निर्वस्त्र सन्यासी होकर आध्यात्मिक ज्ञान की गोष्ठि में चर्चा करने का प्रयास कर रही थीं।
★ इनकी आध्यात्मिक विचारधारा को सराहना मिली।
★ बसवन्ना, अल्लामाप्रभु, आदि अन्य सन्त जो पहले महादेवी जी को समर्थन नहीं दे पा रहे थे और इनकी निर्वस्त्र अवस्था से परेशान थे।
★ महादेवी जी की विचारधारा से प्रभावित होकर उन सभी ने इनको आध्यात्मिक पथ पर सहमति दी और “अनुभव-मण्डप” में प्रवेश दिया।
★ इनकी सादगी, ईश्वर-निष्ठा , प्रेम, दृढ़ता व नम्रता ने सबको प्रभावित किया और इनको नये सम्बोधन- “अक्का” अर्थात “बड़ी दीदी” से सम्मानित किया गया। इस प्रकार इनका नाम हुआ- “अक्का महादेवी”।
★ बहुत तपस्या के बाद भी जब इनका भगवान “चेन्नमल्लिकार्जुन” के साथ एकाकार नहीं हुआ तो यह अल्लामाप्रभु जी की आज्ञा पाकर श्रीशैल चली जाती है।
★ श्रीशैल में भगवान चेन्नमल्लिकार्जुन का मंदिर था।
★ श्रीशैल के घने जंगलों के बीच कदली नामक स्थान पर एक गुफा थी।
★ अक्का महादेवी इस गुफा की शरण लेती हैं और एकाग्रचित होकर तप करती हैं।
★ तप के प्रभाव से इनके अंतर्मन में निर्गुण-भाव प्रकट हो जाता है और इनको सब में एक भगवान का ही अनुभव होता है। अल्पायु में ही इनको आत्म-अनुभव हो जाता है और यह “लिंगैक्य” अर्थात भगवान चेन्नमल्लिकार्जुन के लिंग से इनका एकाकार हो जाता है।
◆ कन्नड साहित्य :-
★ अक्का महादेवी एक महान कन्नड़ कवियत्री हुई हैं।
★ अक्का महादेवी कविताएँ भगवान चेन्नमल्लिकार्जुन से प्रेम व आध्यात्मिक कल्याण पर रचित हैं।
★ अक्का महादेवी ने अपनी कविताओं को “वचनों” के रुप में लिखा जिसकी सरल भाषा और विचारों की गहनशीलता से आज भी लोग लाभान्वित हो रहे हैं।
★ इन्होंने कुछ 130 वचनों को लिखा है, जिनका कन्नड़ साहित्य में विशेष महत्त्व माना जाता है।
★ इनकी रचनायें कन्नड़ भाषा में हैं जो कुछ साहित्यकारों द्वारा अन्य भाषाओं में अनुवादित हैं।
√ हिंदी में वचन सौरभ नाम से
अंग्रेजी में स्पीकिंग ऑफ शिवा (संपादक ए.के. रामानुज)
◆ अक्का महादेवी के प्रमुख वचन ;-
(1.) ” बिना संग होती नहीं उत्पन्न अग्नि’
बिना संग बीज होता नहीं अंकुरित,
बिना संग खिलते नहीं फूल,
बिना संग मिलता नहीं सर्वसुख,
चेन्नमल्लिकार्जुनय्या,
तुम्हारे महानुभवियों के संग से,
मैं परमसुखी बनी। “(सतपुरुषों के संग संबंध में)
(2.) जैसे रेशम का कीड़ा
बुनता है अपना घर
सप्रेम अपनी ही मज्जा से
और मर जाता है
अपनी देह से लिपटे
( 3.) वैसे मैं जलती हूँ
अपनी देह की इच्छा में
चीर डालो, ओ प्रभु
कामना से भरा मेरा हृदय
(4.) चिंगारी उड़ेगी अगर
तो समझ लूँगी
मिट गई है मेरी भूख-प्यास
फटेगा अगर आसमान
समझ लूँगी
मेरे नहाने को है बह आया
फिसल पड़ेगी अगर पहाड़ी मुझ पर
समझ लूँगी
मेरे बालों का फूल है
जिस दिन गिरेगा मेरा सिर
कंधों से छिटक कर
समझूँगी तुम्हारी भेंट चढ़ा,
ओ मल्लिकार्जुन!
(5.) भेजो मुझे दर-दर
हाथ फैलाए
भीख मांगने को
और अगर माँगूँ भीख
तो मत देने देना उन्हें
और अगर वे दें
तो गिरा देना उसे धरती पर
और अगर वह गिर जाए
तो मेरे उठाने से पहले
ले जाने देना उसे कुत्ते को,
ओ मल्लिकार्जुन!
(6.) किसे परवाह है
कौन तोड़ता है पेड़ से पत्ती
एक बार फल टूट जाने के बाद?
किसे परवाह है
कौन जोतता है जमीन
त्याग दी जो तुमने?
किसे परवाह है
कौन सोता है उस स्त्री के साथ
जिसे छोड़ दिया तुमने?
एक बार प्रभु को जान लेने के बाद
किसे परवाह है,
कुत्ते खाते हैं इस देह को
या गलती है यह पानी में?
( 7.) दूसरे पुरुष कांटा हैं
कोमल पत्ती में छिपे
मैं उन्हें छू नहीं सकती
न जा सकती हूँ उनके पास, न कर सकती हूँ भरोसा
न कह सकती हूँ मन की कोई बात
माँ,
सब के सीने में हैं शूल
मैं नहीं भर सकती उन्हें बाँहों में
सिवाय मेरे मल्लिकार्जुन के
( 8.) चार पहर दिन के
मैं तुम्हारे शोक में रहती हूँ
चार पहर रात के
तुम्हारे लिए बौराई
पड़ी रहती हूँ दिन-रात
खोई और बीमार
ओ मल्लिकार्जुन,
जब से पनपा
तुम्हारा प्रेम
भूल गई मैं
भूख, नींद और प्यास
(9.) घर में पति
बाहर प्रेमी
मुझ से नहीं निभते दोनों
ये संसार
और दूसरा संसार
मुझ से नहीं निभते दोनों
ओ मल्लिकार्जुन,
मुझ से नहीं बन पड़ता
पकड़े रहूँ
एक हाथ में बेल फल
दूसरे में धनुष
( 10.)यदि कोई निकाल पाता
सांपों के दांत
और नचा पाता उन्हें बीन पर
कितना अच्छा होता सांपों को रखना
यदि कोई निकाल पाता
देह में से व्यसन
कितना अच्छा था देह संग रहना
देह के व्यसन
जैसे माँ बन गई हो राक्षसी
मत कहो, ओ मल्लिकार्जुन,
देह है उनके पास
जिनके पास है तुम्हारा प्रेम
(11.)झेंप जाते हैं लोग
पुरुष हों या स्त्री
खिसक जाए यदि
शर्म को ढंके उनका अधोवस्त्र
व्याप्त हो जब जीव जगत में
बिना मुख का प्रभु
किससे करोगे तुम शर्म?
समस्त जगत जब
आँख है प्रभु की
देखती हुई सबकुछ
छिपाओगे क्या, ढँकोगे क्या?
(12.) भूख के लिए
गाँव का दिया भिक्षा का अन्न
प्यास के लिए
नदियां, तालाब, कुएं
सोने के लिए
मंदिरों के खंडहर
आत्मा के संग को
तुम मेरे पास
ओ मल्लिकार्जुन!
(13.) वह सुंदर मेरा प्रेम
न उसे मृत्यु, न जरा
न आकार
न स्थान, न दिशा
न अंत, न जन्मचिह्न
वही मेरा प्रेम, सुन री, ओ माँ
वह सुदर्शन मेरा प्रेम
न उसे बंधन, न भय
न कुल, न देश
न सीमाचिह्न कोई
उसके रूप के
वही मेरा प्रभु
मेरा पति, मल्लिकार्जुन
ये ले पति, मेरी माँ,
जो मरणशील, जरा-जर्जर
झोंक इन्हें चूल्हे की आग में!
(14.) ओ प्रभु
नीले पर्वतों के वासी
पैरों में पहने चंद्रमणि
लंबी तुरही बजाते
मैं कब फोड़ूँगी
अपने स्तनों के घड़े तुम पर?
ओ मल्लिकार्जुन,
मुक्त हो कर
देह की लज्जा
ह्रदय के शील से
मैं कब मिलूँगी तुमसे
“अक्का” कन्नड भाषा का शब्द है जिसका अर्थ बहिन या बडी दीदी। (यह संबोधन उसके संतो ने दिया ) Akka Mahadevi Akka Mahadevi ka jeevan parichay https://hindibestnotes.com/?p=1210&preview=true www.hindibestnotes.com अक्क महादेवी अक्क महादेवी का जीवन परिचय (Akka Mahadevi ka jeevan parichay) इनके माता- पिता शिव भक्त थे। इन्होंने भगवान शिव को ही अपना पति माना। जैसे मीराबाई ने कृष्ण को अपना पति माना। जन्म :- 1130 ई में शिवमोग्गा जिले के उडुतरी गाँव में (कर्नाटक) दस वर्ष की आयु में महादेवी ने शिवमंत्र की दीक्षा प्राप्त की। इन्होंने अपने द्वारा रचित अनेक कविताओं में भगवान शिव का सजीव चित्रण किया है। पिता का नाम :- निर्मल शेट्टी महादेवी जी की अपने इष्ट के प्रति माधुर्य भक्ति थी। माता का नाम :- सुमति यह प्रभु की सगुण भक्ति करती। यह भगवान शिव को “चेन्नमल्लिकार्जुन” अर्थात “सुन्दर चमेली के फूल के समान श्वेत सुन्दर प्रभु !” कहकर संबोधित करतीं हिंदी साहित्य के नोट्स By PURAN MAL KUMHAR https://t.me/hindibestnotes 2022-04-02
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