🌺अक्षर अनन्य का परिचय 🌺
★ संवत् 1710 में इनके वर्तमान रहने का पता लगता है।
★ ये दतिया रियासत के अंतर्गत सेनुहरा के कायस्थ थे और कुछ दिनों तक दतिया के राजा पृथ्वीचंद के दीवान थे। पीछे ये विरक्त होकर पन्ना में रहने लगे।
★प्रसिद्ध छत्रसाल इनके शिष्य हुए। एक बार ये छत्रसाल से किसी बात पर अप्रसन्न होकर जंगल में चले गए।
◆ दादूदयाल की शिष्य परंपरा में जगजीवनदास या जगजीवन साहब हुए, जो संवत् 1818 के लगभग वर्तमान थे।
★ ये चंदेल ठाकुर थे और कोटवा (बाराबंकी) के निवासी थे।
★ इन्होंने अपना एक अलग ‘सत्यनामी’ संप्रदाय चलाया।
◆ सुरति’, ‘निरति’ शब्द योगियों की बानियों से आए हैं वैष्णवों से उनका कोई संबंध नहीं