💐अपना-अपना भाग्य कहानी💐
【जैनेंद्र कुमार]
◆ प्रकाशन :- 1931 ई.
◆ वातायन कहानी संग्रह से
◆ प्रमुख पात्र :-
● कथावाचक
● कथावाचक का मित्र
● दस वर्षीय बेघर पहाड़ी बच्चा
◆ रूई के रेशे-से भाप से बादल हमारे सिरों को छू-छूकर बेरोक-टोक घूम रहे थे। हल्के प्रकाश और अंधियारी से रंगकर कभी वे नीले दीखते, कभी सफेद और फिर देर में अरुण पड़ जाते। वे जैसे हमारे साथ खेलना चाह रहे थे।
◆ लेखक नैनीताल जहां रूके उस होटल का नाम :- होटल डी पब
◆ लेखक के होटल पीछे :- पोलो वाला मैदान फैला (बच्चे किलकारियां मारते हुए हॉकी खेल)
◆ लेखक के होटल के सामने:- अंग्रेजों का एक प्रमोदगृह था, जहां सुहावना, रसीला बाजा बज रहा था ।
◆ लेखक के होटल के पार्श्व में (बगल में) :– सुरम्य अनुपम नैनीताल।
★ नैनीताल में किश्तियां अपने सफेद पाल उड़ाती हुई एक-दो अंग्रेज यात्रियों को लेकर खेल रही थीं।
★ कहीं कुछ अंग्रेज एक-एक देवी सामने प्रतिस्थापित कर, अपनी सुई-सी शक्ल की डोंगियों को, मानो शर्त दौड़ रहे थे।
★ कहीं किनारे पर कुछ साहब अपनी बंसी डाले, सधैर्य, एकाग्र, एकस्थ, एकनिष्ठ मछली- चिन्तन कर रहे थे। पीछे पोलो- लान में रहे थे।
◆ पोलो के मैदान हॉकी खेलने वाले बालक अपना सारा मन, सारी देह, समग्र बल और समूची विधा लगाकर मानो खत्म कर देना चाहते थे। उन्हें आगे की चिन्ता न थी, बीते का ख्याल न था। वे शुद्ध तत्काल के प्राणी थे। वे शब्द की सम्पूर्ण सच्चाई के साथ जीवित थे।
◆ सड़क पर से नर-नारियों का अविरल प्रवाह आ रहा था और जा रहा था। सब उम्र के, सब तरह के लोग उसमें थे। मानो मनुष्यता के नमूनों का बाजार सजकर सामने से इठलाता निकला चला जा रहा हो।
◆ नैनीताल की सड़क पर से नर-नारियों का अविरल प्रवाह कौन -कौन थे? :-
★ अधिकार- गर्व में तने अंग्रेज उसमें थे।
★ चिथड़ों से सजे घोड़ों की बाग थामे पहाड़ी थे, जिन्होंने अपनी प्रतिष्ठा और सम्मान को कुचलकर शून्य बना लिया है और जो बड़ी तत्परता से दुम हिलाना सीख गए हैं।
★ भागते, खेलते, हंसते, शरारत करते लाल-लाल अंग्रेज बच्चे थे ।
★ पीली-पीली आंखें फाड़े, पिता की उंगली पकड़कर चलते हुए अपने हिन्दुस्तानी नौनिहाल(छोटे बच्चे) थे।
★ अंग्रेज पिता थे,जो अपने बच्चों के साथ भाग ,हंस और खेल रहे थे।
★ भारतीय पितृदेव भी थे, जो बुजुर्गी को अपने चारों तरफ लपेटे धन-संपन्नता के लक्षणों का प्रर्दशन करते हुए चल रहे थे।
★ अंग्रेज रमणियां थीं,जो धीरे-धीरे नहीं चलती थीं, तेज चलती थीं।( कसरत के नाम पर घोड़े पर भी बैठ सकती थीं )
◆ हमारी भारत की कुललक्ष्मी, सड़क के बिल्कुल किनारे दामन बचाती और संभालती हुई, साड़ी की कई तहों में सिमट – सिमटकर, लोक-लाज, स्त्रीत्व और भारतीय गरिमा के आदर्श को अपने परिवेष्टनों में छिपाकर सहमी-सहमी धरती में आंख गाड़े, कदम-कदम बढ़ रही थीं।
(कुल लक्ष्मी :- लेखक की पत्नी)
◆ लेखक की पत्नी के साथ चलने वाले व्यक्ति की विशेषता :-
★ भारतीयता का एक और नमूना था।
★ अपने कालेपन को खुरच खुरचकर बहा देने की इच्छा करनेवाला अंग्रेजीदां पुरुषोत्तम भी थे।
★ जो नेटिवों को देखकर मुंह फेर लेते थे। ★ अंग्रेज को देखकर आंखे बिछा देते थे और दुम हिलाने लगते थे।
★ वे अकड़कर चलते थे मानो भारतभूमि को इसी अकड़ के साथ कुचल-कुचलकर चलने का उन्हें अधिकार मिला है।
◆ ऐसा घना कुहरा हमने कभी न देखा था। वह टप टप टपक रहा था। मार्ग अब बिल्कुल निर्जन चुप था। वह प्रवाह न जाने किन घोंसलों में जा छिपा था। उस वृहदाकार शुभ्र शून्य में कहीं से, ग्यारह बार टन टन हो उठा। जैसे कहीं दूर कब्र में से आवाज आ रही हो।
◆ रास्ते में दो मित्रों का होटल मिला।
(यह दो मित्र :- वकील थे।)
◆ रास्ते में नैनीताल के बिलकुल किनारे पर बेंच पड़ी थी। मैं जी में बेचैन हो रहा था। झटपट होटल पहुंचकर इन भीगे कपड़ों से छुट्टी पा, गरम बिस्तर में छिपकर सोना चाहता था
★ लेखक के मित्रों ने कहा- “आओ, जरा यहां बैठें।” (यहां :-नैनीताल के बिलकुल किनारे पर लोहे की बेंच पर ) समय :- कुहरे में रात के एक बजे
◆ सनक से छुटकारा आसान न था, और यह जरा बैठना जरा न था, बहुत था ।
◆ कुहरे की सफेदी में कुछ ही हाथ दूर से एक काली सी सूरत हमारी तरफ बढ़ी आ रही थी।( एक काली सी सूरत :- एक लड़का की )
◆ वह लड़का उस कुहरे में तीन गज की दूरी से दिखाई पड़ा ।
◆ इस लड़के की विशेषताएं :-
★एक लड़का सिर के बड़े-बड़े बालों को खुजलाता चला आ रहा है।
★ नंगे पैर है,
★ नंगा सिर।
★ एक मैली-सी कमीज लटकाए है।
★ उम्र :- दस बरस
★ रंग :- गोरा (लेकिन मैल से काला पड़ गया है।)
★ आंखें अच्छी बड़ी पर रूखी हैं।
★ माथा जैसे अभी से झुर्रियां खा गया है।
◆ दुनिया सो गई, तू ही क्यों घूम रहा है?”
(तू :- बालक के लिए)
◆ बालक कल कहां सोया था? :- दुकान पर
◆ बालक आज दुकान क्यों नहीं सोया ?:-
क्योंकि उसे आज नौकरी से हटा दिया गया।
◆ बालक दुकान पर क्या काम करता था ?:- एक रुपया और जूठा खाना
◆ बालक के मां-बाप कहां रहते थे? :-
नैनीताल से पन्द्रह कोस दूर गांव में।
◆ बालक के कई छोटे भाई-बहिन हैं।
◆ बालक का बाप भूखा रहता था और मारता था मां भूखी रहती थी और रोती थी।
◆ बालक के साथ एक साथी और था। उसी गांव का। मुझसे बड़ा था। दोनों साथ यहां आए। वह अब नहीं हैं। मर गया।(साहब ने मारा)
◆ कश्मीरी दुशाला लेपेटे थे, मोजे चढ़े पैरों में चप्पल थी। स्वर में हल्की सी झुंझलाहट थी, कुछ लापरवाही थी। (वकील मित्र )
◆ वकील मित्र को नौकर की जरूरत थी ।
◆ जानता हूं यह बेईमान नहीं हो सकता।(यह :- बालक के लिए)
◆ अजी, ये पहाड़ी बड़े शैतान होते हैं। बच्चे-बच्चे में गुल छिपे रहते हैं। आप भी क्या अजीब हैं। उठा लाए कहीं से लो।”(वकील मित्र का कथन)
◆ वकील मित्र चार रुपये रोज के किराये वाले कमरे में सजी मसहरी पर सोने झटपट चले गए।
◆ अंग्रेजी में मित्र ने कहा- “मगर, दस-दस के नोट हैं।”
◆ लेखक ने कहा- “दस का नोट ही दे दो ।” सकपकाकर मित्र मेरा मुंह देखने लगे-“अरे यार ! बजट बिगड़ जाएगा। हृदय में जितनी दया है, पास में उतने पैसे तो नहीं हैं।”
◆ “तो जाने दो, यह दया ही इस जमाने में बहुत है।” मैंने कहा ।
◆ लेखक और उसके मित्रों ने उस लड़के किस होटल में दस बजे के लिए मिलने के लिए बोला?:- होटल डी पब
◆ सिकुड़ते हुए मित्र ने कहा- “भयानक शीत है। उसके पास कम – बहुत कम कपड़े…”
◆ मैंने स्वार्थ की फिलासफी सुनाई – “चलो, पहले बिस्तर में गर्म हो लो, फिर किसी और की चिन्ता करना।”
◆ उदास होकर मित्र ने कहा-“स्वार्थ! जो कहो, लाचारी कहो, निष्ठुरता कहो, या बेहयाई !”
◆ दूसरे दिन नैनीताल- स्वर्ग के किसी काले गुलाम पशु के दुलारे का वह बेटा- वह बालक, निश्चित समय पर हमारे ‘होटल डी पब’ में नहीं आया।
◆ मोटर में सवार होते ही थे कि यह समाचार मिला कि पिछली रात, एक पहाड़ी बालक सड़क के किनारे, पेड़ के नीचे, ठिठुरकर मर गया!
◆ आदमियों की दुनिया ने बस यही उपहार उसके पास छोड़ा था।(यही उपहार :- काले चिथड़ों की कमीज )
◆ पर बताने वालों ने बताया कि गरीब के मुंह पर, छाती मुट्ठी और पैरों पर बरफ की हल्की-सी चादर चिपक गई थी।
◆ मानो दुनिया की बेहयाई ढकने के लिए प्रकृति ने शव के लिए सफेद और ठण्डे कफन का प्रबन्ध कर दिया था।
◆ सब सुना और सोचा, अपना-अपना भाग्य ।
चन्द्रदेव से मेरी बाते
दुलाई वाली
एक टोकरी भर मिट्टी
राही
दुनिया का सबसे अनमोल रत्न
गैग्रीन
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