• जन्म 1255ई. मृत्यु – 1324ई.
• जन्म स्थान – एट जिला पटयाली गाँव(उत्तरप्रदेश)
• अमीर खुसरो के पूर्वज तुर्की थे और बलखट देश से भारत आए थे।
• 13वीं शताब्दी में जब दिल्ली पर गुलाम वंश का शासन था तब अमीर खुसरो के पिता बलख हजारा (बैक्ट्रिया) से भागकर भारत आ गए तथा एटा जिला के पटियाली नामक ग्राम में गंगा – किनारे रहने लगे।
• अमीर खुसरो के पिता का नाम :- सैफुद्दीन महमूद (लाचन जाति के तुर्क)
• अमीर खुसरो के पिता सम्राट इल्लुमिश के नौकरी करते थे।
• पिता की मृत्यु के बाद इनका लालन – पालन और शिक्षा इनके नाना इमादुल मुल्क ने की।
• इनके एक पुत्री और तीन पुत्र थे।
• उपनाम – हिन्द का तोता
• अमीर खुसरो का वास्तविक नाम – अबुल हसन
• अमीर खुसरो का खुसरो उपनाम था एवं अमीर का खिताब जलालुद्दीन खिलजी ने उनकी एक कविता पर प्रसन्न होकर उन्हें प्रदान किया था।
• गुरु – निजामुद्दीन औलिया(मृत्यु 1324 मे)
• अमीर खुसरो के प्रथम आश्रयदाता :-गयासुद्दीन बलबन
अंतिम आश्रयदाता :- गयासुद्दीन तुगलक
(अमीर खुसरो ने दिल्ली पर 11 बादशाहों का शासन देखा था)
• आम जनता के मनोरंजन कवि
• खडी बोली का प्रयोग करने वाले सर्वप्रथम कवि
• खडी बोली और ब्रज भाषा के मनोरंजन लोक साहित्य के प्रथम निर्माता
• आदिकाल के अंतिम सीमा के कवि
• अमीर खुसरो ने सेहतार (सितार),तबला और ढोल का आविष्कार किया।
• अमीर खुसरो ने भारतीय संगीत में कौव्वाली विकसित की।
• डॉ .रामकुमार वर्मा ने हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास मे अवधी का प्रथम कवि अमीर खुसरो को माना है।
• ब्रज और अवधी को मिलाकर काव्य रचना करने का आरम्भ खुसरो ने किया।
• ध्रुपद के स्थान पर कौव या कव्वाली बनाकर इन्होने बहुत से नये राग निकाले।
• हिन्दी खड़ी बोली का पहला कवि अमीर खुसरो को माना गया है।
• हिन्दी साहित्य मे पहेलियाँ और मुकरियाँ को प्रचलित करने का श्रेय अमीर खुसरो को है।
• काव्य रूप – पहेलियाँ एवं मुकरियाँ,दो सखुने,ढकोसला
• अमीर खुसरो की रचनाओं का सर्वप्रथम हिंदी में संकलन एवं संपादन करने वाले:- श्री बृज रतन दास
• ब्रजरत्न दास ने अमीर खुसरो की 22 रचनाओं का उल्लेख किया है।
• खुसरो ने अपनी पुस्तक ‘नुहसिपहर’ में भारतीय बोलियो के सम्बन्ध में बहुत विस्तार से लिखा है।
• “खुसरो ने अपनी आंखों से गुलाम वंश का पतन, खिलजी वंश का उत्थान और पतन,तथा तुगलक वंश का आरंभ देखा । इनके समय में दिल्ली के तख्त पर 11 सुल्तान बैठे जिनमें सात की इन्होंने सेवा की थी।” (ब्रज रतन दास का कथन)
• “अमीर खुसरो फारसी के बहुत अच्छे ग्रंथकार और अपने समय के नामी व्यक्ति थे …इनकी पहेलियों और मुकरियाँ प्रसिद्ध है।” (आ. रामचंद्र शुक्ल का कथन)
• “जन- जीवन के साथ घुल – मिलकर काव्य – रचना करने वाले कवियों में खुसरो का महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने जनता के मनोरंजन के लिए पहेलियां और मुकरियाँ लिखी थी।आदिकाल में खड़ी बोली को काव्य की भाषा बनाने वाले वे पहले कवि है।“ (डॉ.नगेंद्र का कथन)
• अमीर खुसरो ने गुरु निजामुद्दीन औलिया की मृत्यु(1324ई.) का समाचार पाते ही कब्र के पास पहुचे तब यह दोहा पढकर बेहोश होकर गिर पडे।
“गोरी सोभे सेज पर , मुख पर डोरे केस।
चल खुसरो पर आपने,रैन भईचहुँ केस।।”
• गुरु निजामुद्दीन औलिया की मृत्यु(1324ई.) हुई उसी वर्ष के अन्त मे खुसरो की भी मृत्यु हो गई।अपने गुरु की कब्र के नीचे की और पास ही गाड़े गये।
• अमीर खुसरो मकबरा बनवाया-ताहिर बेरा नामक अमीर व्यक्ति(1606ई.)
• इनकी रचना के कुछ उदाहरणः-
◆ अमीर खुसरो की पहेलियां दो प्रकार की है :
1. अंतर्लापिका (बुझ पहेलियां):– जिसका उत्तर पहेली के अंदर हो।
2. बहिर्लापिका (बिन बुझ पहेलियां):– जिसका उत्तर पहेली के बाहर हो।
उदाहरणः –
(¡) बुझ पहेली (अंतर्लापिका):-
√ हाड़ की देही उज्जर रंग।
लिपटा रहे नारी के संग।
चोरी की,ना खून किया ।
वाका सिर क्यों काट लिया।।
-(नाखून)
√ नारी से तू नर भई और श्याम बरन भई सोय।
गली-गली कूकत फिरे कोईलो कोईलो लोय।।
– (कोयला)
लकडी – नारी, कोयला – नर ( लकड़ी से कोयला
बना ,इसलिए कोयले को नारी से नर होना मना है।)
(¡¡) बिन बूझ पहेली(बहिर्लापिका):-
√ एक पुरुष ने ऐसी करी ।
खूँटी ऊपर खेती करी।
खेती बारी दई जलाय।
पाई के ऊपर बैठा खाय।।
– (कुम्हार)
√ पानी में निस दिन रहे।
जापे हाड़ न मांस ।
काम करै तलवार का।
फिर पानी में वास।।
– ( चाक पर कच्ची मिट्टी को काटने वाला धागा)
◆ दो सखुन:-
• सखुन शब्द फारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है :- कथन या उक्ति
• दो सखुन का अर्थ :- दो कथनों का एक ही उत्तर हो।
• उदाहरणः-
√ पंडित क्यों न नहाया, धोबिन क्यों मारी गई?
√ दीवार क्यों टुटी, राह क्यों लूटी ?
– राज न था
◆ मुकरियाँ :-
• मुकरियाँ एक प्रकार की पहेलियाँ होती है।
• इसमें तीन पंक्तियों में पहेलियाँ होती है अंतिम पंक्ति में खुसरो ए सखी, साजन के रूप में पहेली का उत्तर देता है।
• उदाहरणः-
वह आये तब शादी होय।
उस बिन दूजा और न कोय।
मीठे लागै वाके बोल ।
ऐ सखी साजन न सखी ढोल।।
◆ ढकोसला :-