?अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’का जीवन परिचय?
* जन्म :– 15 अप्रैल,1865 ई., निजामाबाद, आजमगढ़, उत्तरप्रदेश
* निधन :- 16 मार्च 1947 ई.(होली के दिन)
* पिता का नाम :– भोलासिंह उपाध्याय
* माता का नाम :– रुक्मिणी देवी
* इनके पूर्वज शुक्ल यजुर्वेदी ब्राह्मण थे जो कालान्तर में सिक्ख हो गये ।
* 17 वर्ष की अवस्था में इनका विवाह आनंदी कुमारी से हुआ ।
◆ शिक्षा: –
* 1879 ई. में मिडिल की परीक्षा पास की। फिर काशी के क्वींस कॉलेज में अध्ययन।
• 1887 ई. में नार्मल की परीक्षा और 1889 ई. में कानूनगो की परीक्षा पास की।
◆ आजीविका :-
• पढ़ाई के साथ ही 1884 ई. में निजामाबाद के मिडिल स्कूल में अध्यापन-कार्य शुरू। 1923 ई. में सरकारी कार्य से अवकाश।
◆ साहित्यिक जीवन का आरम्भ :-
* 1899 ई. में ‘रसिकरहस्य’ नामक पहले काव्य का प्रकाशन खड्गविलास, प्रेस, पटना से।
◆ आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास में हरिऔध जी का परिचय देते हुए लिखा है- “यद्यपि उपाध्याय जी इस समय खड़ी बोली के और आधुनिक विषयों के ही कवि प्रसिद्ध हैं, पर प्रारंभकाल में ये भी पुराने ढंग की श्रृंगारी कविता बहुत सुंदर और सरस करते थे।”
● प्रमुख कृतियाँ :-
◆ काव्य :-
1. प्रियप्रवास
2. बोलचाल
3. चोखे चौपदे
4. चुभते चौपदे
5. रसकलस
6. वैदेही वनवास
7. पारिजात
8. कल्पलता
9. मर्मस्पर्श
10. पवित्रा
11. पर्व
12. दिव्य दोहावली
13. हरिऔध सतसई
◆ “प्रियप्रवास” (1914) ◆
★ रचयिता :- हरिऔध
★ हिंदी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य
★ प्रियप्रवास राधा कृष्ण प्रेम की परंपरा को अनूठे ढंग से प्रस्तुत करने वाला एक प्रसिद्ध महाकाव्य है।
★ कंस के निमंत्रण पर कृष्ण अक्रूर के साथ मथुरा चले जाते हैं और फिर लौट कर नहीं आते हैं। उनके इस प्रवास का वर्णन ही प्रिय प्रवास का विषय है इसकी कथावस्तु भागवत पुराण पर आधारित है इसके अनेक प्रसंगों में नवीनता परिलक्षित होती है जैसे-
1. राधा ने पवन के माध्यम से संदेश प्रेषित किया है।
2. राधा के परंपरागत और सामाजिक एवं नीति विरुद्ध प्रणय व्यापार को स्वस्थ एवं दिव्य रूप प्रदान करने का प्रयास किया गया है।
3. राधा का परकिया रूप अलग होकर देश सेविका के रूप में ढल गया है ।
“वे छाया थी सूजन सिर की शासिका थी खलों की। कंगालो की परमनिधि थी औषधि पीड़ितों की।।
4. प्रियप्रवास में श्री कृष्ण को महापुरुष के रूप में चित्रित किया गया है ब्रह्मा के रूप में नहीं
◆ पारिजात (1927 ई.)
★पारिजात को हरिऔध जी ने जी ने स्वयं महा काव्य की संज्ञा दी है ।
★ इसमें विभिन्न आध्यात्मिक विषयों का 15 सर्गों में प्रस्तुतीकरण किया गया है।
★ इस काव्य ग्रंथ में आधुनिक नेताओं एवं समाज सुधारकों की प्रतिष्ठा अवतार के रूप में की गई है।
◆ गद्य :-
1. रुक्मिणी परिणय (नाटक)
2. ठेठ हिन्दी का ठाट (उपन्यास)
3. अधाखिला फूल (उपन्यास)
4. हिन्दी भाषा और साहित्य का विकास(आलोचना)
5. विभूतिमती ब्रजभाषा(आलोचना)
6. संदर्भ सर्वस्व (आलोचना)
7. कबीर वचनावली (संपादन)
◆ सम्मान :-
* मार्च 1924 ई. से 1941 ई. तक (हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी में हिन्दी के अवैतनिक अध्यापक।)
* 1922 ई. में हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति।
• 1934 ई. में दिल्ली में होनेवाले हिन्दी साहित्य सम्मेलन के चौबीसवें अधिवेशन के सभापति।
• 12 सितम्बर, 1937 ई. को नागरी प्रचारिणी सभा, आरा की ओर से राजेन्द्र बाबू के करकमलाें द्वारा अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट।
* 1938 ई. में ‘प्रियप्रवास’ पर मंगला प्रसाद पुरस्कार।
◆ पंक्तियाँ :-
आँख का आँसू ढलकता देख कर।
जी तड़प करके हमारा रह गया।
क्या गया मोती किसी का है बिखर।
या हुआ पैदा रतन कोई नया।।
ओस की बूँदें कमल से हैं कढ़ी।
या उगलती बूँद हैं दो मछलियाँ।
या अनूठी गोलियाँ चाँदी मढ़ी।
खेलती हैं खंजनों की लड़कियाँ।।