🌺 आत्मकथा की विशेषताएं 🌺
● इसका नायक स्वयं लेखक होता है।
● ईमानदारी का महत्वपूर्ण स्थान
● दुराव-छिपाव या जोड़-तोड़ का कोई स्थान नहीं ।
● लेखक के लिए तटस्थता की महत्वपूर्ण
● रचना प्रधानतः स्मृतियों पर निर्भर
● कल्पना के पंखों पर सवार होना निषिद्ध
● आत्मकथा के प्राण तत्व :- वैयक्तिकता, आत्मोद्घाटन, आत्मविश्लेषण तथा आत्मगोपन
● आत्मकथा का विरोधी गुण :- अतिशयोक्ति या आत्म प्रशंसा
● सच्चाई एवं गंभीर आत्मपरीक्षण होना
● गहनता और पारदर्शिता की माँग
● यश-अपयश दोनों के लिए समान जगह
● जीवन के जिए हुए एक-एक पल का ब्यौरा
● कथाकार का स्वलिखित इतिहास
● सत्य एवं यथार्थ का होना आवश्यक ।
● आत्मकथा की लिखने की शैली व्यक्तिगत और अनौपचारिक
●सत्यता और निष्पक्षता:- आत्मकथा में लेखक को अपने जीवन के बारे में सत्य और निष्पक्षता से लिखना चाहिए। उसे अपनी गलतियों, कमजोरियों और विफलताओं को भी स्वीकार करना चाहिए।
● क्रमबद्धता:- आत्मकथा में घटनाओं को क्रमबद्ध तरीके से प्रस्तुत किया जाना चाहिए। लेखक को घटनाओं का समय, स्थान और कारण स्पष्ट रूप से बताना चाहिए।
● प्रथम पुरुष में लेखन: – आत्मकथा आमतौर पर प्रथम पुरुष (मैं) में लिखी जाती है, जिससे पाठक को लेखक के दृष्टिकोण और भावनाओं का सीधा अनुभव होता है। यह शैली आत्मकथा को अधिक व्यक्तिगत और अंतरंग बनाती है।
● आत्मविश्लेषण और आत्मनिरीक्षण:- आत्मकथा में लेखक आत्मविश्लेषण और आत्मनिरीक्षण करता है, जिससे उसके व्यक्तित्व, विचारों, और भावनाओं का गहन चित्रण होता है। यह आत्मनिरीक्षण पाठकों को लेखक के मानसिक और भावनात्मक संसार को समझने में मदद करता है।
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