• आदिकालीन साहित्य मे गद्य का प्राचीनम् ग्रन्थ उद्योतन सूरि कृति कुवलयनमाल कहा(कथा) है।
• अंतस्साधनात्मक अनुभूतियो का संकेत करने वाली संधा या संध्या भाषा कहलाती है।
• अद्वयव्रज तथा मुनि दन्त ने सिद्धो की भाषा को संधा या संध्या भाषा कहा था।
• राजस्थानी बोलियो से मिश्रित ब्रजभाषा के रूप को पिंगल कहते है।
• डॉ. मोती लाल मेनारिया के अनुसार डिंगल का सबसे पहले प्रयोग जोधपुर के कविराज बॉकीदास की कुकवि बतीसी मे हुआ।
• आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने आदिकाल के तृतीय प्रकरण को वीरगाथा काल कहा है।
• पृथ्वीराज रासो के उत्तरार्द्ध भाग के रचयिता चदंबरदाई के पुत्र जल्हण है।
• कयमास वध एवं पद्मावती समय प्रसंग पृथ्वीराज रासो रचना के अन्तगर्त आता है।
• पृथ्वीराज रासो की जानकरी सर्वप्रथम कर्नल टॉड विद्वान ने दी।
• जैन मत का प्रचार भारत के गुजरात राज्य मे सर्वाधिक था।
• खुमान रासो की प्रामाणिक प्रति पुणे संग्रहालय मे संग्रहित की गई है।
• “यह गुंज मात्र है मूल शब्द नही” आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की टिप्पणी परमाल रासो काव्य के लिए की है।
• उर्दू साहित्य के जन्मदाता – बली साहब
• ‘महासुखवाद’ का सम्बन्ध है – सिद्धो से
• “गोरखनाथ अपने युग के सबसे बडे नेता थे ”यह कथन आ. हजारी प्रसाद द्विवेदी का।
• राहुल सांकृत्यायन ने हिन्दी काव्यधारा शीर्षक से सम्पादन(चर्यापदो व दोहो का) किया।
• राहुल सांकृत्यायन तथा आ.हजारी प्रसाद द्विवेदी गोरखनाथ को 10वी सदी का मानते है जबकि आ.रामचन्द्र शुक्ल 13वी सदी मानते है।
• डॉ.पीताम्बर दत्त बडथ्वाल ने गोरखनाथ की 40 रचनाएं मानी है । जिनमे प्रमुख – सबदी, पद,प्राणसंकली
• डॉ.पीताम्बर दत्त बडथ्वाल ने सर्वप्रथम गोरख की बानियो का संग्रह गोरखबानी(1930ई.)नाम से छपवाया।
• कर्नड टॉड ने पृथ्वीराज रासो के सौदर्य पर रीझकर इसके अनेक छन्दों का अंग्रेजी मे अनुवाद किया था।
• सन्1875ई. में सर्वप्रथम डॉ.वूलर ने पृथ्वीराज विजय(रचनाकार – जयानक कवि) ग्रन्थ की प्राप्त अधुरी प्रति के साक्ष्य से पृथ्वीराज रासो को जाली घोषित कर दिया।
• पृथ्वीराज रासो को मूलतः काव्य मानने वाले – नरोत्तम स्वामी
• गोरक्षसिद्धान्त संग्रह के सम्पादक – गोपीनाथ कविराज
• पृथ्वीराज रासो मे आनन्द संवत् की कल्पना मोहन लाल विष्णु लाल पाण्ड्या ने की है।
• नेमिनाथ रास (रचयिता – सुमति गणि) मे छन्दों की संख्या -58
• स्थूलिभद्र रास मे स्थूलिभद्र के साथ कोशा वेश्या की कथा कही गयी है।
• मुनि जिनविजय ने पुरातन प्रबन्ध संग्रह संकलन से चार छप्पय उद्धृत करके पृथ्वीराज रासो की मूलभाषा अपभ्रंश ठहराई है।
• गोरखपंथ के ग्रन्थ – सिद्ध सिद्धान्त पद्धति,शक्ति संगम तन्त्र,विराट पुराण
• आतूरास रचना – पल्हण की ।
• कच्छुलीरास रचना – प्रज्ञातिलक की।
• चन्दनबाला रास रचना – आसुग की।
• मणिभद्र की गणना नाथो मे नही की जाती है।
• आदिकाल मे चरित काव्य सर्वाधिक जैन साहित्य मे लिखे गये।
• संवत् सहस तिहत्तर जानि किस रचना की पंक्ति है? बीसलदेव रासो की
• जे हाल मिसकी मकुन तगाफुल दुराय नैना बनाय बतियाँ किसकी पंक्ति है? अमीर खुसरो की
• माधव,हम परिनाम निरासा पंक्ति है, – विद्यापति की
• चण्ड जिन्होने अपभ्रंश भाषा का नामोल्लेख किया क्या थे? – वैयाकरण
• गीत शैली सिद्धो की देन है।
• तिलक मंजरी के रचयिता – घनपाल
• आ.रामचन्द्र शुक्ल ने अपभ्रंश का पहला कवि माना है – देवसेन
• रामकुमार वर्मा ने अपभ्रंश का पहला कवि माना है – स्वयंभू
• आशाधर किसके दाबारी कवि थे ? – पृथ्वीराज चौहान के
• हिन्दी का उद्भव काल सातवीं सदी मानते थे – शिवसिंह सेगर,मिश्रबन्धु, आ.रामचन्द्र शुक्ल
• रासो काव्य का प्रथम ग्रन्थ उपदेश रसायण रास माना जाता है।
• फागु काव्य गुजरात और राजस्थान में रचे गये।
• राहुल सांकृत्यायन ने स्वयंभू को 8 वी शती का सबसे बड़ा कवि माना है।
• अपभ्रंश या प्राकृताभास हिन्दी के पदो के उदाहरण पहले मिलते है – बौद्ध में
• हिन्दी साहित्य की दीर्घकालीन गाथा को सूत्रबद्ध रूप से स्पष्ट करने का सबसे पहला प्रयास गार्सा द तासी ने किया।
• हिन्दी साहित्य के इतिहास का प्रस्थान बिन्दु शिवसिंह सेंगर कृत “शिवसिंह सरोज”है।
हिन्दी भाषा मे लिखा गया हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहास ग्रन्थ।
• प्रो. नलिन विलोचन शर्मा के अनुसार “हिन्दी साहित्य का पहला इतिहास लेखक गार्सा द तासी था”निर्विवाद है।
• प्रो. नलिन विलोचन शर्मा ने अपने हिन्दी साहित्य का इतिहास दर्शन मे लिखा है – “हिन्दी के विधेयवादी साहित्येतिहास के आदि प्रवर्तक आ.रामचन्द्र शुक्ल नही प्रत्युत ग्रियर्सन है।”
• जार्ज ग्रियर्सन ने हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन मे सर्वाधिक सहायता ‘शिवसिंह सरोज’से ली।
• मौलवी करीमुद्दीन कृत ‘तजकिरा ई शुअराई हिन्दी ’मे हिन्दी कालक्रम का ध्यान रखा गया है किन्तु नामकरण का प्रयास नही किया गया है।
• शिव सिंह सेंगर तथा ग्रियर्सन और विशेषतः मिश्रबन्धुओ के साहित्येतिहास ग्रन्थों के लिए आ.रामचन्द्र शुक्ल ने ‘वृत्त संग्रह’ शब्द का प्रयोग किया।
• गौरी शंकर सत्येन्द्र द्वारा लिखे गए सात निबन्धों का संग्रह “साहित्य की झाँकी” नाम से प्रकाशित हुआ है।
• आ.रामचन्द्र शुक्ल ने काल विभाजन का प्रधान आधार जनता की चित्तवृति के परिवर्तन को बनाया है।
• डॉ. माता प्रसाद गुप्त कृत ‘हिन्दी पुस्तक साहित्य ’को आधुनिक साहित्य सम्पति का ‘बीजक ’कहा गया है।
• आ. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने अपने ‘वाड़्मय विमर्श मे आधुनिक काल ’को ‘प्रेमकाल’ कहना औचित्यपूर्ण माना है।
• आ.रामचन्द्र शुक्ल कृत हिन्दी साहित्य के इतिहास मे आधुनिक काल के अंतर्गत द्वितीय उत्थान को“द्विवेदी युग”कहा जाता है।
• हिन्दी साहित्य इतिहास मे दोहरे नामकरण की प्रवृत्ति का आरम्भ आ.रामचन्द्र शुक्ल ने किया।(कालगत एवं प्रवृत्तिगत नामकरण)
• आ.रामचन्द्र शुक्ल ने आदिकालीन जिन 12 ग्रन्थो का उल्लेख किया है,उनमें से ‘परमाल रासो ’और ‘पृथ्वीराज रासो’का मूलरूप सुरक्षित नही है।
• भोगवाद की प्रधानता सिद्धो का प्रमुख विषय था।
• सिद्धो की वाममार्गी भोग प्रधान साधना की प्रतिक्रिया मे नाथ सम्प्रदाय का प्रारम्भ हुआ।
• आदिकाल की प्रधान साहित्यिक प्रवृत्ति :– वीरगाथात्मक
• पृथ्वीराज रासो के कुछ पद पुरातन प्रबन्ध संग्रह मे संग्रहित है जिससे इस ग्रन्थ की प्राचीनता प्रमाणित होती है।
• हिन्दी में सर्वप्रथम चंदबरदाई कृत पृथ्वीराज रासो के मंगलाचरण में विष्णु के दशावतारों के अन्तर्गत 48 पद्यों मे राम कथा संक्षेप में वर्णन हुआ है।
• आज तक उपलब्ध फागु काव्यो मे सबसे प्राचीन जिनचन्दसुरि फागु है।
• अपभ्रंश मे दोहा काव्य का आरम्भ जोइन्दु कृत् परमात्म प्रकाश तथा योगसार से माना जाता है।
• राउरवेलि की श्रृंगार भावना को वसंत विलास ने चरम सीमा पर पहुँचाया।
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