🌺उमाशंकर जोशी जीवन परिचय 🌺
◆ जन्म :- 21 जुलाई, 1911,बामना ग्राम ,साबरकांठा जिला, गुजरात में
◆ निधन :- 19 दिसम्बर 1988
◆ पिता का नाम :- जेठालाल कमलजी(मृत्यु-1934)
◆ माता का नाम :- नवलबाई
◆ पत्नी का नाम.:- ज्योत्सना जोशी(विवाह -1937) 【निधन – 1964】
◆ उपनाम :- वासुकी
◆ गुजराती काव्य के प्रमुख कवि एवं निबंधकार
💐 प्रमुख रचनाएँ :-
◆ काव्य संग्रह :-
● विश्व शांति (6 खंण्डों में,1931 में प्रकाशित)
● गंगोत्री
● निशीथ
● प्राचीना
● आतिथ्य और वसंत वर्षा
● महाप्रस्थान
◆ एकांकी :- अभिज्ञा
◆ कहानी :-
● सापनाभारा
● शहीद
◆ उपन्यास :-
● श्रावणी मेणो
● विसामो
◆ निबंध :- पारं काजण्या
◆ संपादन :-
● गोष्ठी
● उघाड़ीबारी
● क्लांतकवि
● म्हारासॉनेट
● स्वप्नप्रयाण
● बुद्धिप्रकाश
● संस्कृति (मासिक पत्रिका, जन.1947 से 1974 तक सम्पादन )
◆ अनुवाद :- अभिज्ञान शाकुंतलम् व उत्तररामचरित का गुजराती भाषा में अनुवाद।
◆ पुरस्कार:-
● साहित्य अकादमी पुरस्कार (1973)
● ज्ञानपीठ पुरस्कार (1987)
◆ छोटा मेरा खेत◆
छोटा मेरा खेत चौकोना
काग़ज़ का एक पन्ना,
कोई अंधड़ कहीं से आया
क्षण का बीज वहाँ बोया गया।
कल्पना के रसायनों को पी
बीज गल गया निःशेष;
शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।
झूमने लगे फल,
रस अलौकिक,
अमृत धाराएँ फूटतीं।
रोपाई क्षण की,
कटाई अनंतता की
लुटते रहने से ज़रा भी नहीं कम होती।
रस का अक्षय पात्र सदा का
छोटा मेरा खेत चौकोना।
★ छोटा मेरा खेत’ कविता उमाशंकर जोशी द्वारा रचित उनके काव्य-संग्रह ‘निशीथ’ से संकलित है।
★ छोटा मेरा खेत’ कविता का गुजराती से हिंदी रूपांतरण रघुवीर चौधरी और भोलाभाई पटेल ने किया है।
★ प्रस्तुत कविता छोटा मेरा खेत खेती के रूपक में कवि कर्म के हर चरण को बाँधने की कोशिश के रूप में पढ़ी जा सकती है। कागज का पन्ना, जिस पर रचना शब्दबद्ध होती है, कवि को एक चौकोर खेत की तरह लगता है। इस खेत में किसी अंधड़ (आशय भावनात्मक आँधी से होगा) के प्रभाव से किसी क्षण एक बीज बोया जाता है। यह बीज-रचना विचार और अभिव्यक्ति का हो सकता है। यह मूल रूप कल्पना का सहारा लेकर विकसित होता है और इस प्रक्रिया में स्वयं विगलित हो जाता है।
◆ बगुलों के पंख ◆
नभ में पाँती – बँधे बगुलों के पंख,
चुराए लिए जातीं वे मेरी आँखें।
कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,
तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया ।
हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से।
उसे कोई तनिक रोक रक्खो ।
वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखें
नभ में पाँती – बँधी बगुलों की पाँखें ।
★ ‘ बगुलों के पंख’ कविता उमाशंकर जोशी द्वारा रचित उनके काव्य-संग्रह ‘निशीथ’ से संकलित है।
★ बगुलों के पंख’ कविता का गुजराती से हिंदी रूपांतरण रघुवीर चौधरी और भोलाभाई पटेल ने किया है।
★ बगुलों के पंख कविता एक सुंदर दृश्य की कविता है। सौंदर्य का अपेक्षित प्रभाव उत्पन्न करने के लिए कवियों ने कई युक्तियाँ अपनाई हैं, जिसमें से सबसे प्रचलित युक्ति है-सौंदर्य के ब्यौरों के चित्रात्मक वर्णन के साथ अपने मन पर पड़ने वाले उसके प्रभाव का वर्णन।