एक और द्रोणाचार्य नाटक( Ek Aur Dronacharya Natak)

💐💐 एक और द्रोणाचार्य 💐💐

◆  नाटककार :- शंकर शेष

◆ प्रकाशन :- 1977ई.

◆ अंक :-  2 अंक

◆ कुल दृश्य :-  11 दृश्य

◆  कुल पात्र :- 26 (आधुनिक पात्र -11 – पौराणिक पात्र- 11, अप्रत्यक्ष पात्र -4)

◆ प्रस्तुत नाटक दो भागों में विभाजित किया गया है।

★ पूर्वार्ध (चार दृश्य)

★ उत्तरार्ध (सात दृश्य)

◆ कलकत्ता की ‘अनामिका’ नाट्य संस्था ने इसे सन् 1975 में श्रेष्ठ नाट्यकृति घोषित किया।

◆ इसमें दो कथाएँ समानान्तर चलती है :-
द्रोणाचार्य और एकलव्य की कथा

◆ नाटक के पात्र :-

★ आधुनिक पात्र :-

√ पुरुष पात्र:-

1. अरविन्द (महाविद्याल का प्रोफेसर , आधुनिक द्रोणाचार्य)
2. यदु  (अरविन्द मित्र,जूनियर प्रोसेसर)
3. प्रिंसिपल (कॉलेज का प्राचार्य,60 वर्ष)
4. प्रेसिडेंट (कॉलेज के मालिक ,राजकुमार का पिता)
5.  विमलेन्दु (पुराना शिक्षक जो नाटक में मरा हुआ पात्र है, लेकिन विमलेंदु प्रेत के रुप में अरविन्द से संवाद करता है।)
6. राजकुमार (छात्र और प्रेसिडेंट का बेटा)
7.  चन्दु (समझदार और सच्चरित्र छात्र,अरविन्द का प्रिय शिष्य,20 वर्ष)
8. जज
9. वकील

√ स्त्री पात्र :-

1. लीला (अरविन्द की पत्नी)
2. अनुराधा (चंदु की प्रियसी और अरविंद के कॉलेज की छात्रा,20 वर्ष)

★ पौराणिक पात्र :-

√ पुरुष पात्र :-

1. द्रोणाचार्य गुरु
2. अश्वत्थामा(द्रोणाचार्य का पुत्र)
3. भीष्म
4. अर्जुन
5. एकलव्य
6.  युधिष्ठिर
7. सैनिक

√ स्त्री पात्र :- कृपी(द्रोणाचार्य की पत्नी)

◆ नाटक का विषय:-

★ गुरु और शिष्य के रिश्तों में टकराव

★ द्रोणाचार्य के रूप में वर्तमान विसंगति का चित्रण

★ अध्यापक के अस्तित्व की समस्या ।

★ शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त अनाचार

★ भ्रष्टाचारी शिक्षण व्यवस्था

★ पौराणिक और आधुनिक कथा का समन्वय

◆ नाटक का उद्देश्य :-

★ इस नाटक के द्वारा वर्तमान शिक्षा जगत में व्याप्त भ्रष्टाचार, पक्षपात, राजनीतिक घुसपैठ, आर्थिक एवं सामाजिक दबावों के चलते निम्न मध्यवर्गीय व्यक्ति के असहाय, बेबस चरित्र को उद्घाटित करना।

◆  इस नाटक का उद्देश्य केवल पौराणिक गाथा को दोहराना नहीं रहा है किन्तु उसके माध्यम से किसी सूक्ष्म से सूक्ष्मतर मानवीय सत्य को खोजना है। मानव के अंतस में गहन अंधेरे में पैठकर उस बिंदु को छूकर एक ऐसी हलचल मचा देना है जिस से व्यक्ति उन पौराणिक घटनाओं को नये संदर्भों में देखने, समझने और स्वीकार करने की कोशिश करें।

◆  नाटक में मूलतः दो समस्याओं को उठाया गया है :-

★ शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त अनाचार की समस्या

★  वेतनभोगी मध्यवर्गीय में जीवन जीनेवाले अध्यापक के अस्तित्व की समस्या है।

◆ नाटक में देश-काल :-

●  नाटक का आरंभ एक संध्या से होता है, यह लीला द्वारा लाइट जलाने से पता चलता है।

● ‘उत्तरार्द्ध का आरम्भ दिन में ही घटित होता है क्योंकि फोन पर श्रीमती लीला श्रीमती शुक्ला के घर आम का आचार लेने के लिए अपने चपरासी को भेजने की बात करती है।

● तीसरा-चौथा दृश्य भी दिन का ही है।

● ‘उत्तरार्द्ध’ के दूसरे दृश्यारम्भ में चारों ओर सन्नाटा’ और ‘रहस्यमय संगीत के साथ विमलेन्दु की शरीराकृति उभरने से ।

●  तीसरे दृश्य की योजना से जुड़ी हैं और चौथा दृश्य पुनः रात्रिकाल का है, क्योंकि यहां भी विमलेन्द्र प्रेत का अरविंद के साथ जेल में वार्तालाप आयोजित हुआ है।

● पाँचवें दृश्य में अदालत हैं, जो दिन में ही सम्भव है।

● छटा दृश्य पुनः जेल में रात्रि-काल का ही है।

● सातवें दृश्य दिवस कालीन ही है क्योंकि महाभारत युद्ध संध्योपरान्त नहीं चला करता था।

● अंतिम दृश्य भी जेल में रात्रि काल का ही है।

◆ नाटक का मंचन :-

★ इप्टा ने उद्देश्यगत समानता के कारण डॉ. शंकर शेष के ‘एक और द्रोणाचार्य’ का मंचन 79 बार किया है।

★ 28 अक्टूबर के डॉ. शंकर शेष की पुण्यतिथि पर इप्टा ने पुन: उनके नाटक ‘एक और द्रोणाचार्य’ का मंचन किया।

★ बम्बई की ‘इप्टा’ नाट्य संस्था ने 28 अक्टूबर 1993 को बम्बई मंत्रालय में ‘यशवंतराव चव्हाण केंद्र’ में ‘एक और द्रोणाचार्य’ एक अलग प्रकार का सफल प्रयोग हुआ।

★डॉ. शंकर शेष के ‘स्मृति समारोह’ के अवसर पर ‘ एक और द्रोणाचार्य’ नाटक प्रस्तुत किया गया।

◆ नाटक का सारांश :-

★ परिवार के भाई-बहनों के दायित्व और भी स्थितियाँ, प्रो० अरविंद के माध्यम से एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार  की आर्थिक स्थितियों का खुलासा करती हैं।

★ प्रो० अरविंद का साथी अध्यापक इन्हीं आर्थिक स्थितियों का वास्ता दे कर प्रो० अरविंद से आदर्श का थोथा दंभ ढोने को मना करता है, “माँ कैंसर से अस्पताल में पड़ी है। विधवा बहन हर पहली तारीख को तुम्हारे मनीआर्डर का इंतजार करती हैं लड़के को मेडीकल कालेज भेजना है। इनकी तरफ देखो, छोडो यह सिद्धांत-उद्धांत की मूर्खता।”

★ प्रेसीडेंट का पुत्र राजकुमार चाकू रख कर अपनी पूरी धोंस नकल करता है प्रो० अरविंद उसे पकड़ तो लेते हैं किंतु उसका केस यूनिवर्सिटी को रिपोर्ट करें या न करें, इसी द्वन्द्व में नाटक की मुख्य समस्या आगे बढ़ती है प्रो० अरविंद पर जिस तरह के दबाव पड़ते हैं, वे सब इस समस्या के दूसरे पहलू हैं।

★ प्रसीडेंट का लड़का है इस कारण उसके इस हरकत से उसे छोड़ दिया जाता है।

★ उसके पास ही अरविन्द का छात्र जो अत्यंत मेधावी है उसने नकल भी नहीं की है। फिर भी उसे पकड़ा जाता है क्योंकि उसके पास अंतिम समय में वह नकल मिली थी। चंदु के पास वह उड़कर नकल आई थी।

★  वह नकल की चिट्टी शिक्षक को देना ही चाहता था लेकिन उसके पहले ही उसे पकड़ लिया जाता है।

★ जिसने नकल की है उसे न पकड़ते हुए दूसरे लडके को उस नकल के अपराध में रेस्टिकेट करके उसकी रिपोर्ट यूनिवर्सिटी भेजी जाती है।

★ इस घटना से अरविन्द पूरी तरह आहत हो जाता है। उसे लगता है सच का साथ देना चाहिए अर्थात चंदु का साथ देना चाहिए चंदु जो दूसरे छात्रों के साथ मिलकर न्याय माँगता है।

★  प्रो० अरविंद का साथ नहीं देते कि उन्हें तरह-तरह से प्रेसीडेंट की प्रताड़ना सहनी पड़ेगी।

★प्रेसीडेंट इस बात का लाभ उठा कर सभी अध्यापकों को किसी न किसी तरह अपना निशाना बनाएगा।

★प्रिंसीपल इसीलिए प्रो० अरविंद और उसकी पत्नी पर दबाव डालता है कि वह प्रेसीडेंट को खुश रख कर स्टाफ को डी-ए की किस्त दिलवाना चाहता है।

★ नकल को पकड़ना अध्यापक के लिए खासा चुनौती भरा काम हो गया है। नकल को पकड़ने के कारण ही प्रो० विमलेन्दु की हत्या कर दी जाती है जिससे उसके सभी साथियों में नकल को पकड़ने का हौसला नहीं रह गया है।

★ हर बार विमलेन्दु अरविन्द के यादों में आता है और उसे समझता है कि तुम सच्चाई का साथ मत दो नहीं तो तुम्हारी और तुम्हारे परिवार की भी यही हालत होगी। झूठ का सहारा लेकर अपनी प्रगति करो।दोस्त सब अरविन्द को यही समझाते हैं कि उसे झूठ का साथ देना चाहिए।

★ प्रिंसीपल प्रो० अरविंद को अगला प्रिंसीपल बनवाने का भी लालच देता है।

★ इस लोभवश वह चंदु का साथ न देते हुए प्रसीडेंट के बेटे का साथ देता है। लेकिन उसका मन बार-बार उसे कचोटता है।

★ चदूं बडे शातिर ढंग से कहता है, आप चाहे जो समझे। यह लड़ाई हमारे लिए जीवन मरण का प्रश्न हैं, जो हमारे साथ नहीं है, उसे अपने विरुद्ध मानते हैं।

★ दूसरी कथा द्रोणाचार्य की नाटक में चलती है जो विमलेन्दु अरविन्द को कह रहा है। द्रोणाचार्य ने किस तरह अर्जुन को विश्व का सबसे बड़ा धनुर्धर बना दिया था। एकलव्य का गुरुदक्षिणा में अंगूठा लिया था। ताकि एकलव्य अर्जुन से में बढकर धनुर्धर विद्या में पारंगत न बन सके। इस व्यवस्था ने किसतरह चंदु जैसे, एकलव्य जैसे मेधावी छात्रों को पीछे धकेल दिया है।

★  राजकुमार अनुराधा नामक उसी कॉलेज की एक छात्रा का बलात्कार करने की कोशिश करता है। वह अरविन्द अपने आँखों से देखा है। उस घटना का गवाह अरविन्द है।

★  अरविन्द लगता है कि इस बार तो कम-से-कम मैं अनुराधा का साथ दूंगा अनुराधा अपने घरवालों के विरोध में जाकर न्याय माँग रही है। उसे लगता अरविन्द सर साथ देंगे।

★ अनुराधा का प्रेमी चंदु है जो अनुराधा को न्याय माँगने के लिए प्रेरित करता है।

★ अनुराधा को तो पहले अरविन्द कहता है कि, मैं सच्चाई का साथ दूंगा किन्तु जैसे ही फोन की घटी बजती है और प्रसीडेंट उसे बताता है कि, अनुराधा के पिता ने पाँच हजार देकर पूरा मामला रफादफा कर दिया है।

★ अनुराधा के पिता घटना को बढ़ाना नहीं चाहते और प्रसीडेंट बढ़ा देना नहीं चाहते।

★ इसी घटना के विचारों में खोया हुआ अरविन्द सोच रहा है। फिर उसके यादों में विमलेन्दु आता है।

★ विमलेन्दु फिर अरविन्द को झूठ का साथ देने के लिए कहता है क्योंकि वह अपने जैसी हालत अरविन्द या उसके परिवार की होने देना नहीं चाहता।

★  अनुराधा बात को समझकर अरविन्द के घर से चली जाती है। उसे अब यह समझ आया है कि अरविन्द सर  अब उसका साथ नहीं देनेवाले है।

★  जिस तरह चंदु का साथ नहीं दिया था उसी तरह अनुराधा का भी साथ वह नहीं दे पाते है।

★ अरविन्द के घर पर दूसरी घंटी बजती है, जिसमें कहाँ जाता है कि अनुराधा ने एक गाड़ी के नीचे आकर आत्महत्या की है।

★  अरविन्द इस घटना से बहुत दुःखी हो जाता है अनुराधा के मृत्यु का जिम्मेदार स्वयं का मानता है।

★ अरविन्द की अंतरात्मा भी यही कहती है कि अनुराधा के आत्महत्या के पीछे तुम लोग हो ।

★  अरविन्द की अंतरात्मा यह कहती है कि तुम आधुनिक काल के द्रोणाचार्य हो अनुराधा चंदु जैसे शिष्यों के गुरु दक्षिणा में अंगूठा ले रहे हो।

★ प्रेसिडेंट की पहाड़ी से गिर कर मृत्यु हो गई। इस केस में अरविन्द को दोषी माना गया है क्योंकि प्रेसिडेंट के अंतिम में वह उसे साथ था।

★ प्रेसिडेंट के मृत्यु का केस बनकर अदालत में गया है अरविन्द को हाजिर किया जाता है। गवाह बनकर चंदु उपस्थित है। चंदु सच बोलता है।

★ नाटक के चंदु कही पर भी झूठ का सहारा नहीं लेता है वह कहता है कि, अरविन्द सर वही थे लेकिन उन्होंने नहीं धकेला है।

★ दूसरी द्रोणाचार्य की घटना में जिसमें अश्वत्थामा अपने माता-पिता से पूछ रहा है कि आपने मुझ पर ऐसे संस्कार क्यों नहीं किये है? क्योंकि द्रोपदी का वस्त्रहरण हो रहा था तो मैं चुप क्यों बैठा रहा। मैंने क्यों कुछ नहीं क्या? सब लोग चुप क्यों रहे?

★ माता कहती है तुम क्यों चुप रहे? तब अश्वत्थामा कहता है कि, आप लोगों ने संस्कार ही ऐसे दिए है कि मैं दरबार में सबसे विद्रोह न कर सका।

★ गुरु चुप रहेंगे तो शिष्य भी उसी तरह का व्यवहार करनेवाले है गुरु का दायित्व बनता है कि अपने शिष्य को अच्छी शिक्षा दे ।

★ प्रश्न यह है कि प्रो० अरविंद सब कुछ जानते हुए भी अपने आदर्शों की बलि क्यों दे देता है, क्यों वह इस मक्कार व्यवस्था का अंग बन जाता है। वस्तुतः वह और उसका परिवार जिस ऐशो आराम की जिन्दगी का अभ्यस्त हो चुका है उसके छिन जाने का भय उसे सालता रहता है। वह उन सब सुविधाओं के छिन जाने की कल्पना मात्र से घबरा जाता है, जब उसकी पत्नी लीला उससे पूछती है नौकरी छूटने का मतलब समझते हो ?” तब अरविंद का उत्तर इसी वस्तु-स्थिति का चित्रण करता है, हाँ, समझता हूँ। तुम्हारा बंगला छिन जायेगा। टेलीफोन कट जाएगा, मुफ्त के चपरासी नहीं रहेंगे। तुम प्रिंसीपल की औरत नहीं कहलाओगी। इन्हीं सब स्थितियों के चलते प्रो० अरविंद व्यवस्था से समझौता कर लेते हैं।

★  वह इस व्यवस्था के सच को सामने लाती है। चन्दू न अपने नकल न करने को तर्क द्वारा सिद्ध कर पाता है और न अनुराधा के बलात्कार – प्रसंग में अरविंद की निर्दोषता। यह प्रसंग आधुनिक न्याय–व्यवस्था की विसंगति को दर्शाता है।

★ प्रो० अरविंद को यह व्यथा सालती है कि जब चन्दू जानता था कि “मैं अपराधी नहीं हूँ, खूनी नहीं हूँ, मैंने प्रेसीडेंट की हत्या नहीं की है तो उसके शिष्य चन्दू ने झूठ क्यों बोला ?” विमलेन्दु का तर्क है कि चदूं ने तुम्हें दोषी नहीं बताया, केवल इतना कहा – “हो सकता है।” यह ठीक वैसा ही है जैसा द्रोणाचार्य के साथ हुआ था, जब युधिष्ठिर ने अश्वत्थामा की मृत्यु के सम्बंध में “नरो वा कुंजरो” कहा के था। युधिष्ठिर ने भी तो यही कहा था अब मैं कैसे बता सकता हूँ कि अश्वत्थामा नाम का हाथी मरा या आपका पुत्र “

◆ महत्वपूर्ण बिन्दु :-

★ पूर्वार्द्ध के पहले दोनों दृश्य वर्तमानकालीन कथा से जुड़े है जबकी तीसरा और चौथा  दोनों दृश्य ‘पूर्वादीप्त पद्धति’ (Flash Back System) से महाभारत कालीन द्रोणाचार्य सम्बन्धी कथा को प्रक्षेपित करते है।

★ ‘उत्तरार्ध’ में पहले, दूसरे, चौथे, पाँचवें, छठवें और आठवें दृश्य का कथा फलक वर्तमान काल से जोड़ा जबकि शेष दृश्य (तीसरा और सातवां दृश्य ) द्रोणा कथा ”पूर्वादीप्त” को प्रक्षेपित करते हैं।

★  महाकवि व्यास द्वारा रचित प्राचीनतम पौराणिक ग्रंथ महाभारत अपने आप में भारतीय संस्कृति का ज्वलंत उदाहरण है।

★नाटककार शंकर शेष की सर्वाधिक श्रेष्ठ कृति ‘एक और द्रोणाचार्य में महाभारत कालीन प्रसिद्ध पात्र द्रोणाचार्य के जीवन प्रसंगों को आधार बनाकर वर्तमान विसंगति को रुपाधित किया गया है।

★एक और द्रोणाचार्य समानान्तर स्थितियों का सुसम्बद्ध नाटक है।

★ दोहरे कथाप्रसंगों को लेकर चलनेवाला आधुनिक चेतना का प्रभावशाली प्रयोगशील
नाटक :- एक और द्रोणाचार्य’ है।

★ इस प्रकार अरविंद और द्रोणाचार्य के समस्या एवं संघर्ष के धरातल पर समानता दिखाई देती है। यहाँ नाटककार ने अरविंद को ‘एक और द्रोणाचार्य’ साबित किया है तू किस बात का प्रोफेसर ? तू द्रोणाचार्य है। व्यवस्था और सत्ता के – कोड़ो से पिटा हुआ द्रोणाचार्य – इतिहास की धार में लकडी को ढूँठ की तरह बहता हुआ, वर्तमान के कगार से लगा हाँ, तू द्रोणाचार्य है। एक और द्रोणाचार्य ।”

◆  शिक्षा व्यवस्था में परीक्षा प्रणाली कितनी दोषपूर्ण और बेमानी हो चली है, इसकी अभिव्यक्ति  नाटक में की गई है।

★ इस नाटक के माध्यम से वर्तमान युगीन व्यवस्था से पीड़ित शिक्षक की विडम्बना को दर्शाते हुए उसकी नपुंसक बुद्धिवादिता का यथोचित चित्रण किया है।

★ डॉ. सुनीलकुमार लवटे जी लिखते है,” एक और द्रोणाचार्य’ कथ्य एवं शिल्प की नवीनता को लेकर उपस्थित होनेवाला ऐसा प्रगतिशील नाटक है, जिसमें मंचन की  संभावनाएं निहित है। निर्देशक के लिए अनेक सुप्त संकेतों से युक्त यह नाटक स्वातंत्र्योत्तर नाटक के इतिहास में शिल्प और शैली वैचित्र्य के कारण एक अलग व्यक्तित्व धारण करता है । “

★ वैचारिक तथा सामाजिक नाट्य  लेखकों में डॉ. शंकर शेष का नाम से लिया जाता है।

चन्द्रगुप्त नाटक

स्कन्दगुप्त नाटक

ध्रुवस्वामिनी नाटक

अंधायुग नाटक

👉 पढ़ना जारी रखने के लिए यहाँ क्लिक करे।

👉 Pdf नोट्स लेने के लिए टेलीग्राम ज्वांइन कीजिए।

👉 प्रतिदिन Quiz के लिए Facebook ज्वांइन कीजिए।

3 comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

error: Content is protected !!