एक टोकरी भर मिट्टी कहानी(ek dokari bhar mittee kahani)

      💐एक टोकरी भर मिट्टी 💐

◆ प्रकाशन :- 1901,छत्तीसगढ़ मित्र पत्रिका में

◆कहानीकार :- माधवराव सप्रे

◆ गरीब अनाथ विधवा की झोंपड़ी कहां थी?:-  जमींदार के महल के पास

◆ जमींदार ने विधवा से बहुत बार  झोपड़ी हटाने के लिए कहा।

◆ गरीब अनाथ विधवा का प्रिय पति और इकलौता पुत्र इसी झोंपड़ी में मर गया था।

◆  पतोहू( पुत्र वधु) भी एक पाँच बरस की कन्या को छोड़कर चल बसी थी।

◆  विधवा के वृद्धाकाल में एकमात्र आधार कौन थी? :-  उसकी पोती

◆  विधवा ने अपने श्रीमान् पड़ोसी की इच्छा का हाल सुना, तब से वह मृतप्राय हो गई थी। ( श्रीमान् पड़ोसी:- महल का जमींदार )
(श्रीमान् पड़ोसी की इच्छा :- महल के पास से झोपड़ी को हटाना)

◆ बाल की खाल निकालने वाले वकीलों की थैली गरम कर उन्होंने अदालत से झोंपड़ी पर अपना कब्जा करा लिया और विधवा को वहाँ से निकाल दिया।

◆ विधवा हाथ में एक टोकरी लेकर झोपड़ी के पास क्या लेने गयी थी? :- एक टोकरी  मिट्टी लेने

◆ विधवा का कथन “महाराज, अब तो यह झोंपड़ी तुम्हारी ही हो गई है। मैं उसे लेने नहीं आई हूँ। महाराज क्षमा करें तो एक विनती है ।”

◆ जमींदार साहब के सिर हिलाने पर विधवा ने कहा, “जब से यह झोंपड़ी छूटी है, तब से मेरी पोती ने खाना- पीना छोड़ दिया है। मैंने बहुत कुछ समझाया पर वह एक नहीं मानती । यही कहा करती है कि अपने घर चला वहीं रोटी खाऊँगी। अब मैंने यह सोचा कि इस झोंपड़ी में से एक टोकरी भर मिट्टी लेकर उसी का चूल्हा बनाकर रोटी पकाऊँगी। इससे भरोसा है कि वह रोटी खाने लगेगी। महाराज कृपा करके आज्ञा दीजिए तो इस टोकरी में मिट्टी ले आऊँ!”

◆ विधवा का कथन :- “महाराज, कृपा करके इस टोकरी को जरा हाथ लगाइए जिससे कि मैं उसे अपने सिर पर धर लूँ।”
(महाराज :- महल का जमींदार)

◆ जमींदार साहब  लज्जित होकर कहने लगे, “नहीं, यह टोकरी हमसे न उठाई जाएगी।”

◆ यह सुनकर विधवा ने कहा, “महाराज, नाराज न हों, आपसे एक टोकरी भर मिट्टी नहीं उठाई जाती और इस झोंपड़ी में तो हजारों टोकरियाँ मिट्टी पड़ी है। उसका भार आप जन्म-भर क्योंकर उठा सकेंगे? आप ही इस बात पर विचार कीजिए।”

◆ विधवा के उपर्युक्त वचन सुनते ही  जमींदार साहब की आँखें खुल गयीं। कृतकर्म का पश्चाताप कर जमींदार साहब ने विधवा से क्षमा माँगी और उसकी झोंपड़ी वापिस दे दी।

चन्द्रदेव से मेरी बाते
दुलाई वाली

 

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