कण्हपा का परिचय(Kanhapa ka parichay)

🌺कण्हपा का परिचय🌺

* कण्हपा का समय :- संवत् 900 के उपरांत (आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार)

* कण्हपा का समय :- 820 ईस्वी में , कर्नाटक के ब्राह्मण वंश में (डॉ. नगेंद्र के अनुसार)

* कहण्पा का समय :- 1199 ई.( डॉ. बच्चन सिंह के अनुसार )

* कण्हपा का जन्म :- उड़ीसा में ( तारा नाथ के अनुसार)

* कण्हपा का जन्म ब्रह्मा के वीर्य का हाथी के कान में स्थित हो जाने के कारण बताया गया है ओर इनका नाम कारिणपा बताया है ।(योगि सम्प्रदायाविष्कृतिः के अनुसार)

* विहार के सोनपुरी स्थान पर रहते थे।

* हजारीप्रसाद द्विवेदी ने इन्हें जुलाहा बताया गया है किंतु वास्तव में इनके शिष्य तन्तिपा जुलाहे थे।

* कण्हपा चोटी के विद्वान और पंडित थे ।

* पांडित्य और कवित्व मे बेजोड़ थे। (राहुल सांस्कृत्यायन के अनुसार)

* कण्हपा के अन्य नाम :- कृष्णाचार्य,कृष्ण वज्र

* कण्हपा के गुरु :- जालंधरपा

* कण्हपा के 8 शिष्य महासिद्ध हुए।

* कण्हपा के द्वारा लिखे गए ग्रंथों की संख्या :- 74

* तंजूर में कण्हपा के 74 ग्रंथ मिलते है जिनमें 6अपभ्रंश में थे।

* कण्हपा के अधिकांश ग्रंथ दार्शनिक विषयों पर है।

* कण्हपा को राहुल सांस्कृत्यायन विद्या और कवित्व में सबसे बड़ा मानते है।

* रहस्यात्मक भावनाओं से परिपूर्ण गीतों की रचना करके हिंदी के कवियों में प्रसिद्ध हुये ।

* कण्हपा ने शास्त्रीय रूढ़ियों का खंडन किया ।

* कण्हपा ने असम, उड़ीसा ,तिब्बत ,लंका आदि की यात्राएं की। तिब्बत मे उनका बहुत मान था।

* इनके पद में जालंधरिपा का नाम भी गुरु के रूप में मिलता है।

* कण्हपा की कविता की पंक्तियां:-
“आगम वेअ पुराणे,पण्डित मान बंहति”

* सिद्ध कण्हपा डोमिनो का आह्वान गीत :-
” नगर बाहिरे डोंबी तोहरि कुडिया छन्द। छोइ जाइ सो बाह्म नाडिया।”

* चर्याचर्य – विनिश्चय में भी कण्हपा के पद सबसे अधिक संख्या में मिलते हैं जिसमें ज्ञात होता है कि वह बहुत महान आचार्य हुए है।

* शैव संप्रदायों के बहुत निकट थे क्योंकि तारा नाथ ने इन्हें अन्दर से बौद्ध बताया है किंतु बाहरी जीवन में शैवों के बहुत निकट थे ।

* नाना पुराण निगमागम के आच्छादन के विरुद्ध थे।

* इनके जंजाल से मुक्त होकर ही व्यक्ति जीवन के भीतर प्रवेश कर सकता है ।

* सिद्धों को विवाह प्रथा में अनास्था किंतु गार्हस्थ्य जीवन में आस्था थी। यह एक विचित्र विरोधाभास था कण्हपा लिखते है :-
“जिमि लोण विलिज्जइ पाणिएहि तिम धरिणी लई चित्त। समरस जाई लक्खणे जइ पुणु ते सम णिन्त।।
जिस तरह पानी में नमक विलीन हो जाता है उसी प्रकार गृहिणी में चित्त लगाकर सामस्य को प्राप्त किया जाता है।”

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