कबीरदास का जीवन परिचय(Kabirdas ka jeevan parichay)

? कबीरदास का जीवन परिचय ?

जन्म  :- 1398 ई. में,काशी में

 

मृत्यु :-  1518 ई. मगहर में

 

◆  किंवदन्ती के अनुसार स्वामी रामानन्द के वरदानस्वरूप एक विधवा ब्राह्मण कन्या को पुत्र प्राप्ति हुई, लोक-लाज के कारण वह पुत्र को लहरतारा के ताल पर फैंक आयी। अली या नीरू नामक जुलाहा उस बालक को अपने घर उठा लाया। (भक्तमाल के अनुसार)

 

जाति :- जुलाहा

 

◆ कबीर का पालन-पोषण करने वाले :- नीरू – नीमा(पति- पत्नी)

 

◆  पत्नी का नाम :- लोई

 

◆  पुत्र का नाम :- कमाल

 

पुत्री का नाम :-  कमाली

 

◆  सिकन्दर लोदी के समकालीन

 

कबीर के गुरु :- रामानन्द
शेख तकी(मुसलमानों के अनुसार)

 

◆  कबीर के शिष्य :- धर्मदास

 

 

◆ सिकन्दर लोदी (सं. 1545-1574) के अत्याचारों का वर्णन :- भक्तमाल की टीका (प्रियादास)

 

कबीर की रचनाओं का संकलन  :- ‘बीजक’ (1464 ई. में) 【संकलनकर्ता – धर्मदास 】

 

बीजक के तीन भाग :-

1. रमैनी (चौपाई और दोहा )

2. सबद (गेय पद )

3. साखी (दोहा)

 

हिन्दी भक्ति काव्य का प्रथम क्रान्तिकारी पुरस्कर्ता :- कबीर (डाॅ. बच्चन सिंह ने कहा)

 

कबीर की भाषा के विषय में विभिन्न मत

 

1. पंचमेल खिचड़ी :– श्यामसुंदर दास

2. सधुक्कडी :– आ. रामचंद्र शुक्ल, गोविंद त्रिगुणायत

3. वाणी डिक्टेटर :– हजारीप्रसाद द्विवेदी

4. ब्रज भाषा :– सुनीति कुमार

5. संत भाषा :– डॉ. बच्चन सिंह

6. अवधी भाषा :– बाबू राम सक्सेना

 

◆ आ.  रामचंद्र शुक्ल  के कथन :-

 

?कबीर बारे  में कथन :-

 

* “कबीर ने अपनी झाड़-फटकर के द्वारा हिन्दुओं और मुसलमानों के कट्टरपन को दूर करने का जो प्रयास किया वह अधिकतर चिढ़ाने वाला सिद्ध हुआ,  हृदय को स्पर्श करने वाला नहीं।”

 

* “ज्ञानमार्ग की बातें  कबीर ने हिंदू साधु, संन्यासियों से ग्रहण की जिनमें सूफियों के सत्संग से उन्होंने प्रेम तत्वों का मिश्रण किया।”

 

* “कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे पर उनकी प्रतिभा बड़ी प्रखर थी जिससे उनके मुंह से बड़ी चुटीली और  व्यंग्य –  चमत्कार पूर्ण बातें निकलती थी।”

 

* “कबीर तथा अन्य निर्गुण पंथी संतों के द्वारा अंतस्साधना में रागात्मिकता भक्ति और ज्ञान का योग तो हुआ है पर कर्म की दिशा वही रही जो नाथ पंथियों के यहाँ थी।”

 

* “कबीर की भाषा सधुक्कड़ी अर्थात् राजस्थानी पंजाबी मिली खड़ी बोली है।”

 

कबीरदास प्रमुख दोहे :-

1. सुखिया सब संसार है खावे अरु सोवे,
दुखिया दास कबीर है जागे अरु रोवै।

 

2. नारी नसावे तीन गुन, जो नर पासे होय।
भक्ति मुक्ति नित ध्यान में, पैठि सकै नहीं कोय।।

 

3. पांणी ही तैं हिम भया, हिम हवै गया बिलाई।
जो कुछ था सोई भया, अब कछु कहया न जाइ।।

 

4. एक जोति थैं सब उपजा, कौन ब्राह्मण कौन सूदा।

 

5. एक कहै तो है नहीं, दोइ कहै तो गारी।
है जैसा तैसा रहे कहे कबीर उचारि।।

 

6.सतगुरु है रंगरेज मन की चुनरी रंग डारी

 

7.संसकिरत (संस्कृत) है कूप जल भाषा बहता नीर

 

8.अवधु मेरा मन मतवारा।
गुड़ करि ज्ञान, ध्यान करि महुआ, पीवै पीवनहारा।।

 

9.पंडित मुल्ला जो कह दिया।
झाड़ि चले हम कुछ नहीं लिया।।

 

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