कविप्रिया रचना का परिचय[kavipriya rachana ka parichay]
◆कविप्रिया रचना का परिचय◆
◆ कविप्रिया नाम का मतलब एक नदी होता है।
? कविप्रिया (काव्य, 1601ई. ):-
★ रीतिकाल के प्रमुख आचार्य और कवि केशवदास की रचना
★ कविप्रिया के ग्रंथ पर लिखित पंक्ति:-
सगुन पदारथ अर्थयुत, सुबरनमय सुभसाज । कंठमाल ज्यो कविप्रिया, कंठ करो कविराज ।।
★ इस ग्रंथ प्रारंभ में केशवदास ने पहले श्री गणेश-वन्दना और फिर सरस्वती की वन्दना की है।
गजमुख सनमुख होत ही, विघन विमुख है जात । ज्यो पग परत प्रयाग-मग, पाप-पहार बिलात ॥
वाणी जू के वर्ण युग सुवर्ण-कण परमान।
सुकवि सुमुख कुरुखेत परि, होत सुमेरु समान ।
★ कविप्रिया का प्रेमालंकार दंडी के प्रेयस का ही नामांतर है।
★ केशवदास की रामचन्द्रिका एवं कविप्रिया दोनो का रचनाकाल का कवि ने 1601ई. दिया है।केवल मास(महिने) का अन्तर है।
★ कविप्रिया की रचना केशव ने अपने आश्रयदाता राजा इन्द्रजीत सिंह की राजनर्तकी ‘रायप्रवीन’को काव्य शिक्षा देने के उद्देश्य से की थी।
★ यह वस्तुतः रीतिग्रंथ है जिसमें अलंकार निरूपण के साथ-साथ काव्य रीति तथा काव्य दोषादि का विवेचन है ।
★ इस ग्रंथ को कवियों का मार्गदर्शक ग्रंथ कहा जा सकता है।
★ आचार्य केशवदास ने ‘कविप्रिया’ के पाँचवें प्रभाव में काव्यालंकार के अन्तर्गत सामान्यालंकार में प्रस्तुत विषय का उल्लेख किया है।
★ केशवदास के पूर्वज संस्कृत साहित्य के प्रकाण्ड पण्डित थे. इसका उल्लेख स्वयं केशवदास ने ‘कविप्रिया’ में किया है-
भाषा बोलि न जानहीं जिन के कुल के दास ।
भाषा कवि भो मंदमति, तेहि कुल केशवदास ।।
? कविप्रिया(कहानी ):-
★प्रकाशित :- इलाहाबाद, जून 1949
★ कहानीकार :- अज्ञेय
★ जयदोल (1951 ई.) कहानी संग्रह में
★ यह विशुद्ध एकांकी नाटक की शैली पर आधारित
★ नायिका प्रधान कहानी
★ स्त्री को कुंठित और असहाय बनाने वाले संदर्भ में
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