कृष्ण नाथ का जीवन परिचय (Krishna Nath ka jeevan parichay)
💐 कृष्ण नाथ का जीवन परिचय 💐
◆ जन्म :1934, वाराणसी (उत्तरप्रदेश)
◆ मृत्यु :- 2016
◆ प्रमुख रचनाएं :-
1. लद्दाख में राग- विराग 2. किन्नर धर्मलोक 3. स्पीति में बारिश 4. पृथ्वी परिक्रमा 5. हिमालय यात्रा 6. अरुणाचल मात्रा 7. बौद्ध निबंधावली
◆ सम्पादक पत्रिकाएं :-
1. कल्पना ( हिन्दी भाषा की साहित्यिक पत्रिका) 2. मैनकाइंड (अंग्रेजी पत्रिका)
◆ सम्मान :- लोहिया सम्मान
◆ कृष्ण नाथ जी के संबंध महत्वपूर्ण बिन्दु :-
★ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र से एम.ए किया।
★ इसके बाद उनका सुझाव समाजवादी आंदोलन और बौद्ध दर्शन की ओर हो गया।
★ यह अर्थशास्त्र के विद्वान है और काशी विद्यापीठ में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर भी रहे।
★ भारतीय और तिब्बती आचार्यों के साथ बैठकर उन्होने नागार्जुन के दर्शन और वज्रयानी परंपरा का अध्ययन शुरू किया।
★ भारतीय चिंतक जी कृष्णमूर्ति ने जब बौद्ध विद्वानों के साथ चिंतन मनन शुरू किया तो कृष्णनाथ भी उसमे शामिल थे।
★ यह यायावर हो गए। (जैसे हिंदी साहित्य में प्रसिद्ध यायावर प्रवृत्ति के कवि – राहुल सांकृत्यायन और नागार्जुन है।)
★ एक यायावरी तो उन्होंने वैचारिक धरातल पर की थी, दूसरी सांसारिक अर्थ में ।
★ उन्होंने हिमालय की यात्रा शुरू की और उन स्थलों को खोजना और खंगालना शुरू किया जो बौद्ध धर्म और भारतीय मिथकों से जुड़े हैं।
★ कृष्णनाथ जहाँ की यात्रा करते है वहाँ ये सिर्फ पर्यटक नहीं होते बल्कि एक तत्ववेत्ता की तरह वहाँ का अध्ययन करते चलते हैं।
★ यह शुष्क अध्ययन नहीं करते बल्कि उस स्थान विशेष से जुड़ी स्मृतियों को उघाड़ते हैं। ये वे स्मृतियां होती है जो इतिहास के प्रवाह में से सिर्फ स्थानीय होकर रह गई है लेकिन जिनका भारतीय लोकमान से गहरा रिश्ता रहा है।
★ पहाड़ के किसी छोटे- बड़े शिखर पर दुखकर बैठी वह विस्मृत – सी – स्मृति मानो कृष्णनाथ की प्रतीक्षा कर रही हो कि वे आएं, उसे देखे और उसके बारे में लिखकर उसे जनमानस के पास ले जाएं ।
◆ ” बौधिसत्वों, डाक डाकिनियों के सामने हाथ जोड़ कर बारम्बार प्रणाम नहीं कर सकता। मुझ में वह भक्ति नहीं है. शरणागति नहीं है। इसलिए मेरे दुःखों की सद्यः निवृत्ति नहीं है। मैं तो इन दुखों को दुख व्यवस्था के मूल को जानना चाहता हूं। यह बुद्धत्व क्या है? मैं इस खोज में हूं।” ( कृष्णनाथ का कथन, स्पीति में बारिश )
◆ ” परस्पर विरुद्धों की एकता है। देवता-गोनपा परस्पर विरुद्ध है लेकिन यहां देवता गोनपा को प्रणाम करता है, लामा देवता को प्रणाम करता है….इसका आदिम या बौद्ध या हिन्दू या आधुनिक दृष्टि में हल नहीं है… यह किन्नौर के लिए अस्तित्व का प्रश्न है। जीने के लिए जहां से शक्ति मिलती है उसे कण-कण से संजोकर किन्नर-किन्नरी इस महाशीत प्राय प्रदेश में जीवनयापन करते हैं।” (कृष्णनाथ का कथन, स्पीति में बारिश )