? ‘कफ़न’ कहानी ?
◆ कहानीकार :- मुंशी प्रेमचंद
◆ प्रकाशन :- दिसंबर, 1935
◆ तीन परिच्छेद (खण्ड)
◆ नग्न यर्थाथवाद का चरित्र
◆ प्रमुख पात्र:-
● घीसू
● माधव
◆ दो रंगमंच (कहानी की प्रमुख घटनाएं गांव और मधुशाला में घटित होती हैं)
◆ तीन परिच्छेद (खण्ड) विभाजित :-
( 1.) घीसू-माधव अलाव में आलू भूनकर खाते हैं और वहीं अजगर की तरह गेंडुलिया मारकर सो जाते हैं। इधर बुधिया तड़प-तड़पकर अपने अजन्मे बच्चे सहित मर जाती है।
( 2.) घीसू और माधव रोने-धोने का नाटक करते हुए ‘कफन’ के लिए भीख माँगते हैं और पाँच हजार रुपए की ‘अच्छी रकम’ लेकर बाजार चले जाते हैं।
( 3.) घीसू और माधव बाजार की अनेक दुकानों पर ‘कफन’ देखते हैं किन्तु पसन्द नहीं करते और अन्ततः किसी अज्ञात प्रेरणा से मधुशाला पहुँचकर शराब पीते हैं, पूड़ियाँ खाते हैं और तृप्त होकर उछलते-कूदते, गाते हुए गिर पड़ते हैं।
◆ ‘कफन’ कहानी में समाज के नग्न यथार्थ को दर्शाते हुए घीसू के माध्यम से कहते हैं “कैसा बुरा रिवाज है कि जिसे जीते जी तन ढंकने को चीथड़ा भी न मिले उसे मरने पर नया कफ़न चाहिए।
◆ घीसू-माधव ‘कफ़न’ कहानी के अन्त में नशे में बदमस्त होकर गाते हैं- ‘ठगिनी! क्यों नैना झमकावै! ठगिनी’!
◆ यह पद संत कबीरदास का है
◆ ‘‘ठगनियां क्या नैना झमकावै।’’- संत कबीर ने माया को ठगने वाली कहकर सम्बोधित किया है। यह कब सफल होती है- इसका ज्ञान साधक को तब होता है जब वह पतित हो जाता है। किन्तु साधन के उन्नत होने पर एक स्तर ऐसा आता है कि साधक माया की चाल पहले ही समझकर सतर्क हो जाता है। माया की छाया से पृथक् रहने की पदार्थ भावनी अवस्था का चित्रण इस पद में है।
◆ “घीसू-माधव ही दोनों स्थलों पर कथा का विकास करते हैं, लेकिन उनकी मनस्थिति, परिवेश और क्रिया-व्यवहार भिन्न-भिन्न हैं. गांव में चीख है, मौत है, अमानुषीय व्यवहार है और कफ़न एकत्र करने की भाग-दौड़ है. और मधुशाला में जीवन की जगह मौत को सम्मान देने पर आपत्ति है, मदिरा है, चिर अभिलाषित भोजन है, गौरव-आनन्द-उल्लास है, परलोक-बैकुंठ-आत्मा-परमात्मा में विश्वास है. नशे में अस्थिरता, विस्मृति और कृतज्ञता है. और अंत में कबीर का एक पद है जो धार्मिक कर्मकांड को असत्य कहता है।”(डॉ. कमल किशोर गोयनका ने कहा)
◆ डॉ. कमल किशोर गोयनका के अनुसार इस कहानी स्थापना के दो आधार हैं:-
(1.) आलू खाने के लालच में घीसू और माधव का बुधिया को मरने देना
(2.) दोनों का कफ़न के पैसे से शराब पीना और मस्ती में झूमना-नाचना
● ये दोनों ही अमानवीय एवं संवेदन शून्यता की घटनाएं हैं।
◆ “यह हमारी सामाजिक-धार्मिक व्यवस्था की विडम्बना पर गहरा व्यंग्य है. यह कहानी में पहला बौद्धिक हस्तक्षेप है जो विचार के लिए एक नया सूत्र देता है. यह वाक्य जीवन और मृत्यु के संबंध में हमारी सामाजिक-धार्मिक धारणाओं पर आघात करता है. जीवन से अधिक समाज मृत्यु को सम्मान देता है. तभी मृतक को नया कफ़न दिया जाता है और जीवित को फटा वस्त्र भी उपलब्ध नहीं कराता है।”(डॉ. कमल किशोर गोयनका ने कहा)
◆ “प्रेमचंद चाहते तो कहानी का अन्त यहीं कर सकते थे, क्योंकि मृत्यु पर जीवन की विजय का उत्सव अन्तिम परिणति पर पहुंचकर मूर्छित होकर गिर पड़ता है. यह आनन्दानुभूति की चरम अवस्था है, जब अस्तित्व की संज्ञा भी शून्य हो जाती है. घीसू-माधव के लिए यह लोक में लोकोत्तर आनन्द जैसा ही है, जो बुधिया की लोक से बैकुंठ यात्रा से कहीं श्रेष्ठ और अनुभूतिजन्य है. घीसू-माधव का आनन्द वास्तविक जगत का आनन्द है और बुधिया का बैकुंठ कहां है, इसे कोई नहीं जानता है।”(डॉ. कमल किशोर गोयनका ने कहा)
◆ “दो हिन्दुस्तानी पियक्कड़ों का श्मशान की छाया में हुआ यह मुक्ति-समारोह है. वे जैसी ही कफ़न के पैसों से शराब का कुल्लड़ मुंह से लगाते हैं, उसी क्षण हिन्दी साहित्य में व्यक्ति अपनी स्वतन्त्रता का स्वाद चखता है. उन्हें यह मुक्ति और स्वतन्त्रता बौद्धिक कौशल एवं आत्म-छल से मिलती है।”(निर्मल वर्मा ने कहा )
◆ ‘कफन’ में किसानों की तुलना जिस घीसू-माधव से की गई है वे नकारात्मक चरित्र हैं और यहीं पर प्रेमचन्द चूक गए हैं।… उनका आदर्शोन्मुख यथार्थवाद यहाँ नग्न- यथार्थवाद की तरफ झुकता हुआ दिखाई देने लगता है।… दुनिया के किसी भी साहित्य में से कोई भी अच्छी कहानी उठाकर देख लीजिए, यदि कोई कलात्मक संरचना सही है, तो कहानी अपने द्वारा उठाए गए प्रश्नों के उत्तर स्वयं देती है। स्पष्ट रूप में नहीं तो सांकेतिक रूप में, लेकिन प्रश्नों के उत्तर या समस्याओं के समाधान उसमें अन्तर्निहित रहते हैं।… प्रेमचन्द की ज्यादातर कहानियाँ ऐसी ही हैं और उन्हीं कहानियों की वजह से प्रेमचन्द महान लेखक हैं। लेकिन ‘कफन’ के साथ दिक्कत यह है कि वह किसानों की मुक्ति की समस्या तो उठाती है, उसका कोई समाधान नहीं सुझाती ।…
आधुनिकतावादी-कलावादी लोग अच्छी कहानी उसे मानते हैं जो केवल प्रश्न उठाए, उनके उत्तर न दे। उत्तर देनेवाली कहानी को वे सुधारवादी, आदर्शवादी, प्रचारवादी आदि कहते हैं। लेकिन कलात्मकता की उनकी यह कसौटी कला को नष्ट करनेवाली कसौटी है। क्योंकि वह रचना से पूर्णता की नहीं, उद्देश्यहीनता की माँग करती है-जिम्मेदारी की नहीं, गैरजिम्मेदारी की माँग करती है।”(रमेश उपाध्याय,’सारिका’ के फरवरी 1987 अंक में)
? प्रमुख पात्र :-
1. घीसू (माधव का पिता) :-
● उम्र – 60 वर्ष
● चमारों के कुनबे रहता है।
● बुद्धिमान
● तर्कशील
● विचारवान
● अपने हित में निर्णय करने की क्षमता रखनेवाला
● उच्चवर्गीय समाज की पाखंडी, रूढ़िवादी और धूर्त मनोवृत्ति को जानने वाला
● घीसू अपनी जाति-वर्ग के लोगों की कमजोरियों-दुर्बलताओं को अच्छी तरह जानता है।
● एक दिन काम करता तो दिन में आराम।
● पर्याप्त अनुभवी
● सारे गांव में बदनाम।
● घर में मुट्ठी भर भी अनाज है तो काम नही।
● पेड़ से लकड़ियां तोड़कर लाता।
● घर में मिट्टी के दो – चार बर्तनों के सिवा कुछ नहीं
कोई संपत्ति नहीं।
● घीसू ठाकुर की बरात में 20 साल पहले गया था
● घीसू ठाकुर की बरात में या दावत में तृप्ति मिली थी।( घीसू ने 50 पुड़िया से अधिक खाई)
● घीसू की पत्नी का बहुत दिन पहले ही देहांत
हो गया था।
● घीसू के नौ लड़के हुए थे जिनमें केवल एक माधव बचा है।
● घीसू और माधव किस प्रकार आलू खाकर सो रहे थे- जैसे दो बड़े-बड़े अजगर गेडुलियॉ मारे पड़े हो।
● घीसू के घर में पैसा किस तरह गायब था? जैसे चील के घोसले में मांस।
● घीसू पर दया करना :- काले कंबल पर रंग चढ़ाना।
● घीसू ने एक घंटे में कफ़न लाने के लिए कितने रूपये इकट्ठे कर लिये :- 5 रूपये
● एक शराब बोतल और 20 सेर पुरिया के डेढ़ रुपये खर्च हो गये।
● जीवन की बाधाएं शराब की दुकान पर खींच लाती थी।
● घीसू और माधव किस शान से बैठे हुए पूरियां खा रहे थे? जैसे :- जंगल में कोई शेर अपना शिकार उड़ा रहा हो।
● माधव एवं घीसू को कौन देख रहा था- पियक्कड़ो की आंखें।
2. माधव( बुधिया का पति और घीसू का पुत्र)
● चमारों के कुनबे रहता है।
● सारे गांव में बदनाम।
● माधव अपने पिता घीसू को ‘दादा’ कहता था।
● कामचोर(आधे घंटे काम करता तो घंटे भर
चिलम पीता )
● घर में मुट्ठी भर भी अनाज है तो काम नही।
● घीसू के पदचिह्नों पर चल रहा था।
● लकड़ियां बाजार में बेच कर आता।
● माधव का विवाह पिछले साल हुआ था।
● माधव ने जीवन पहली बार किसी को चीज दी है। माधव ने बची हुई पूरिया एक भिखारी को दे दी जिसके कारण पहली बार देने से गौरव, आनंद और उल्लास का अनुभव जीवन में पहली बार हुआ है।
? घीसू और माधव के चरित्र में समानता :-
◆ दोनों आलसी हैं, निकम्मे हैं, कामचोर और चोर भी।
◆ दोनों की एकमात्र महत्त्वाकांक्षा – ‘भरपेट अच्छा भोजन’।
◆ दोनों संवेदनाहीन-पशुवत, अमानवी जैविक रिश्तेदार ।
? गौण पात्र :-
1. बुधिया (माधव की पत्नी और घीसू की पुत्रवधू)
● बुधिया ने खानदान में व्यवस्था की नींव डाली
थी।
● बुधिया पिसाई करके या घास छीलकर वह
सेर- भर आटे का इंतजाम कर लेती थी।
2. गांव का जमींदार :-
● जमींदार ने घीसू को ‘घिसुया’ नाम से संबोधित किया।
● जमींदार को घीसू ने यह संबोधित करके कहा:- सरकार, मालिक
● जमींदार ने घीसू को 2 रूपये दिए ।
● जमींदार घीसू और माधव को पिटाई कर चुका था, चोरी करने के लिए , वादे पर काम पर न जाने के लिए।
3. साहू :-
● मधुशाला(शराब की दुकान) का मालिक
● साहू जी, एक बोतल हमें भी देना।(घीसू का कथन)
● शराब खाने के लिए के सामने पूरिया वाले की दुकान थी।
● अस्थिरता नशे की खासियत है।
● शराब का नशा कम होने पर दुःख और निराशा का दौर शुरू हुआ।
? महत्वपूर्ण कथन :-
◆ घीसू ने कहा “मालूम होता है कि बचेगी नहीं। सारा दिन दौड़ते ही गया जा देखो तो आ।”
◆ माधव चिढ़ कर बोला “मरना ही है तो जल्दी मर क्यों नहीं जाती, देख कर क्या करूं।
◆ तू बड़ा बेदर्द है …………………इतनी बेवफाई (घीसू का कथन ) यहाँ तू :- माधव के लिए आया है।
◆ जाकर देख तो क्या दशा है उसकी ? चुड़ैल का फिसाद होगा और क्या? यहां तो आझो भी एक रूपये मांगता है। घीसू ने आलू निकाल कर का छीलते हूये कहा।)
★ घीसू आलुओं का बड़ा भाग जाने के भय से माधव अपनी पत्नी से मिलने नहीं जा रहा था।
◆ ” मेरी औरत जब मरी थी तो मैं तीन दिन तक उसके पास से हिला तक नहीं था और मुझसे लजाएगी कि नहीं ? (घीसू का कथन)
◆ घीसू के अनुसार दिल दरिया था :- ठाकुर का
शादी- ब्याह में मत खर्च करो, क्रिया – क्रम में मत खर्च करो।(घीसू का कथन)
◆ ” क्या है वे घिसूआ, रोता क्यों है? अब तो तू कहीं दिखाई भी नहीं देता ! मालूम होता है, इस गांव में रहना नहीं चाहता।” (जमींदार ने घीसू से कहा)
◆ सरकार बड़ी विपत्ति में हूं। माधव की घरवाली रात को गुजर गई। (घीसू ने जमींदार से कहा)
◆ दुनिया का दस्तूर है, नहीं लोग बामनो को हजारों रुपए क्यों दे देते हैं कौन देखता है, परलोक में मिलता है या नहीं।(माधव आसमान की तरफ देखकर बोला)
◆ “अबे कहे दे देंगे कि रुपये कमर से खिसक गए थे बहुत ढूंढा मिले नहीं।लोगों ने विश्वास तो न आएगा लेकिन फिर वही रूपये देंगे।(घीसू का कथन)
◆ ” हमारी आत्मा प्रसन्न हो रही है,तो क्या उसे पुन्न न होगा ?( घीसू दार्शनिक भाव से बोला)
◆ “जरूर से जरूर होगा।भगवान तुम अंतर्यामी हो। उसे बैकुंठ ले जाना। हम दोनों को हृदय से आशीर्वाद दे रहे । आज जो भोजन मिला है वह कमी उम्र भर नहीं मिली था।(माधव ने घीसू से कहा )
【 ‘उसे’ – माधव की पत्नी के लिए , ‘दोनों’ – माधव और घीसू के लिए।】
◆ ” क्यों दादा, हम लोग भी तो एक – न – एक दिन वहां जाएंगे ही।” ( माधव शंका का भाव से घीसू को कहा) 【 ‘वहां ‘ – परलोक के लिए 】
◆ “जो वहां वह हम लोगों से पूछे कि तुमने कफन क्यों नहीं दिया तो क्या कहेंगे।” (माधव ने घीसू को कहा)
【’वहां’ – परलोक क लिए, ‘वह’ – बुधिया की आत्मा के लिए】
◆ “तु मुझे गधा समझता है।” – (घीसू ने माधव से कहा)
◆ “कौन देगा ? रुपए तो तुमने चट कर दिए । वह तो मुझसे पूछेगी। उसकी मांग में सिंदूर तो मैंने ही डाला था।” (माधव का कथन)
◆ “ले,जा खूब खा और आशीर्वाद दें जिसकी कमाई है, वह तो मर गई पर तेरा आशीर्वाद उसे जरूर पहुंचेगा। रोये – रोये से आशीर्वाद दे बड़ी गाढ़ी कमाई के पैसे हैं। “( घीसू ने भिखारी से कहा )
◆ ” वह बैकुंठ में जायेगी दादा,वह बैकुण्ठ की रानी बनेगी।( माधव ने आसमान की तरफ देखकर घीसू को कहा)
【 ‘वह’ – बुधिया के लिए, ‘बैकुंठी रानी’ – बुधिया के लिए ।】
◆ ” मगर दादा, बेचारी ने जिंदगी में बड़ा दु:ख भोगा।कितना दुःख झेलकर मरी।” (माधव का कथन)
◆ ठगिनी क्यों नैना झमकावे? ठगिनी” ( माधव एवं घीसू)
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