• प्रकाशन वर्ष :- 1936ई.
• भाग :- 36
• यथार्थपरक उपन्यास
• इसमें भारतीय किसान की जीवन – गाथा अत्यंत हृदयस्पर्शी ढंग से वर्णित है।
• किसान जीवन की समस्याओं,दुःखों और त्रासदियों पर लिखा गया महाकाव्य।
• इसमें गांव और शहर के आपसी द्वंद, भारतीय ग्रामीण जीवन के दुःख, गांवों के बदलते टूटते बिखरते – यथार्थ तथा जमीदारी के जंजाल से आतंकित किसान की पीड़ा का मार्मिक चित्रण।
• “इर्ष्येय महाकाव्यात्मक गरिमा” ( नलिन लोचन शर्मा ने कहा)
• “गोदान को भारतीय ग्रामीण परिवेश की समस्या का महाकाव्य और गीता है। “(डॉ. गंगा प्रसाद विमल का कहा)
• “होरी के बाद जो महत्वपूर्ण चरित्र है वह मेहता का है।” (विजयदेव नारायण साही ने कहा)
• गोदान को प्रेमचंद जी की सर्वश्रेष्ठ कृति के रूप में स्वीकार करते हैं विजयदेव नारायण साही।
• होरी और मेहता को मिला देने पर जो आदमी बनेगा वह प्रेमचंद होंगे।'(रामविलास शर्मा ने कहा)
• गोदान कृषक जीवन का महाकाव्य
• गोदान प्रेमचंद के एकमात्र यथार्थवादी रचना
• गोदान में मुख्य पात्र:- होरी
• गोदान में प्रेमचंद की आंख :- धनिया (धनिया के माध्यम से प्रेमचंद तंत्र एवं व्यवस्था की क्रूर सच्चाईयों को देख पाते हैं।)
• बछड़ा का नाम:- मटरू
• गोदान उपन्यास का अंत मार्मिक है। होरी का जीवन भर संघर्ष करने के बाद भी गाय की लालसा पाले ही मरता है। वह धनिया से कहता है- ” मेरा कहा सुना माफ करना धनिया । अब जाता हूं । गाय की लालसा मन में ही रह गयी अब तो यहॉं के रूपये से क्रिया – करम में जाएंगे ।
• आखिरकार गो पालन की प्रबल इच्छा करने वाले होरी का गोदान होता है।
• उपन्यास का पूरा कथ्य होरी की मृत्यु के बाद गाय को दान देने की बात को लेकर खुल पड़ता है।धनिया बहुत कुछ चाहने पर भी होरी की मृत्यु पर संस्कार के नाम पर गाय दान नहीं कर सकती है।
• धनिया आज जो सुतली बेची थी,उसके बीच आने पैसे लायी और पति के ठंडे हाथ में रखकर सामने खड़े दातादिन से बोली – “महाराज, घर में न गाय,न बछिया, न पैसा । यही पैसे हैं,यही इनका गो- दान है।”(अन्तिम पंक्ति)
• किसानों की दरिद्रता, ऋण -बद्धता, अंधविश्वास जन्य, कभी न तृप्त होने वाली लालसा,अछूत समस्या,.सामाजिक कुप्रथाओं, मजदूर आंदोलन, सरकारी अफसरों के अत्याचार, जमीदार तथा साहूकारों का शोषण और शहरी जीवन की समस्या आदि का समस्याओं चित्रण उपन्यास में हुआ।
• गोदान भारतीय किसान जीवन की महागाथा है जिसमें कर्ज के चक्र में पिसते किसान के माध्यम से प्रेमचन्द ने भारतीय किसान की दुर्दशा का यथार्थ चित्रण किया है।
• इसमें किसानों पर जमीदारों,पंचायत,पुलिस, धर्माधिकारियों,महाजनों के माध्यम से अनेकों अत्याचारों का जीवंत चित्रण है। साथ ही इसमें शहरी वर्ग के खोखलेपन,नैतिकता, स्वार्थ लोलुपता अर्थलोलुपता की भी गाथा है।