चंद्रकांत देवताले का जीवन परिचय[chandrakaant devataale ka jeevan parichay]

चंद्रकांत देवताले का जीवन परिचय

जन्म : – 7 नवंबर 1936ई., बैतूल(मध्य प्रदेश)

 

निधन :- 14 अगस्त 2017 ई., इंदौर(मध्य प्रदेश)

 

समकालीन हिंदी कविता के प्रमुख कवि

 

शिक्षा – दीक्षा :- इंदौर में

 

◆ इनका पहला कविता संग्रह :- ‘हडि्डयों में छिपा ज्वर’ (1973ई. )

 

◆ अन्य प्रमुख काव्य-संग्रह:-

 

1.दीवारों पर ख़ून से (1975 ई.)

 

2. लकड़बग्घा हँस रहा है (1980ई.)

 

3. रोशनी के मैदान की तरफ़ (1982ई.)

 

4. भूखंड तप रहा है (1982 ई.)

 

5. आग हर चीज़ में बताई गई थी(1987 ई.)

 

6.बदला बेहद महँगा सौदा’ (1995 ई.)

 

7.पत्थर की बैंच (1996 ई.)

 

8. उसके सपने(1997 ई.)

 

9. इतनी पत्थर रोशनी(2002 ई.)

 

10. उजाड़ में संग्रहालय (2003 ई.)

 

11. जहाँ थोड़ा सा सूर्योदय होगा (2008 ई.)

 

12. पत्थर फेंक रहा हूँ (2011ई.) 【साहित्य अकादेमी पुरस्कार 2012ई.】

 

◆ उन्होंने अपना शोध-पत्र मुक्तिबोध पर लिखा था।  ‘मुक्तिबोध: कविता और जीवन विवेक’

 

💐 चंद्रकांत देवताले प्रमुख कविता :-

⭐⭐ मैं रास्ते भूलता हूँ और इसीलिए नए रास्ते मिलते हैं: चंद्रकांत देवताले⭐⭐

मैं रास्ते भूलता हूँ
और इसीलिए नए रास्ते मिलते हैं
मैं अपनी नींद से निकल कर प्रवेश करता हूँ
किसी और की नींद में
इस तरह पुनर्जन्म होता रहता है

एक जिंदगी में एक ही बार पैदा होना
और एक ही बार मरना
जिन लोगों को शोभा नहीं देता
मैं उन्हीं में से एक हूँ
फिर भी नक्शे पर जगहों को दिखाने की तरह ही होगा
मेरा जिंदगी के बारे में कुछ कहना
बहुत मुश्किल है बताना
कि प्रेम कहाँ था किन-किन रंगों में
और जहाँ नहीं था प्रेम उस वक्त वहाँ क्या था

पानी, नींद और अँधेरे के भीतर इतनी छायाएँ हैं
और आपस में प्राचीन दरख्तों की जड़ों की तरह
इतनी गुत्थम-गुत्था
कि एक दो को भी निकाल कर
हवा में नहीं दिखा सकता
जिस नदी में गोता लगाता हूँ
बाहर निकलने तक
या तो शहर बदल जाता है
या नदी के पानी का रंग
शाम कभी भी होने लगती है
और उनमें से एक भी दिखाई नहीं देता
जिनके कारण चमकता है
अकेलेपन का पत्थर.! – चंद्रकांत देवताले

💐💐💐💐💐💐💐

⭐⭐तुम पतझड़ के उस पेड़ की तरह सुन्दर हो : चंद्रकांत देवताले⭐⭐

हर कुछ कभी न कभी सुन्दर हो जाता है
हर कुछ कभी न कभी सुन्दर हो जाता है
बसन्त और हमारे बीच अब बेमाप फासला है
तुम पतझड़ के उस पेड़ की तरह सुन्दर हो
जो बिना पछतावे के
पत्तियों को विदा कर चुका है
थकी हुई और पस्त चीजों के बीच
पानी की आवाज जिस विकलता के साथ
जीवन की याद दिलाती है
तुम इसी आवाज और इसी याद की तरह
मुझे उत्तेजित कर देती हो
जैसे कभी- कभी मरने के ठीक पहले या मरने के तुरन्त बाद
कोई अन्तिम प्रेम के लिए तैयार खड़ा हो जाता है
मैं इस उजाड़ में इसी तरह खड़ा हूँ
मेरे शब्द मेरा साथ नहीं दे पा रहे
और तुम सूखे पेड़ की तरह सुन्दर
मेरे इस जनम का अंतिम प्रेम हो।

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