चन्द्रगुप्त नाटक (chandragupta natak)

       💐💐 चन्द्रगुप्त (नाटक) 💐💐

◆ प्रकाशन :-  1931ई.

◆ रचियता :- जयशंकर प्रसाद

◆  अकं –  चार अंक में

◆  चारों अंकों  में  कुल दृश्य  :- 44 दृश्य(क्रमशः 11,10,9,14)

◆ कुल पात्र :- 35( 24 पुरुष और 11स्त्री पात्र)

◆  इतिहास की तीन घटनाएँ :-  अलक्षेद्र का आक्रमण, नंदकुल की पराजय और सिल्यूकस का पराभव।

◆ नाटक का आधार : मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त का इतिहास

◆  नाटक का विषय :-

★ चन्द्रगुप्त मौर्य के समय भारत परिस्थितियां का चित्रण

★ विदेशी आक्रमण का चित्रण ( सिकन्दर और सिल्यूकस का आक्रमण)

★ आंतरिक कूटनीतियों का  चित्रण

★  विदेशियों से भारत का संघर्ष और उस
संघर्ष में भारत की विजय की थीम उठायी गयी
है।

◆ पात्र :-
★ पुरुष पात्र :-

1. चाणक्य (विष्णुगुप्त) – मौर्य साम्राज्य का निर्माता 
2. चंद्रगुप्त (मौर्य सम्राट्)
3. नंद (मगध राजा)
4. राक्षस (मगध का अमात्य)
5. वररुचि (कात्यायन) – मगध का अमात्य
6. शकटार  (मगध का मंत्री)
7. आंभीक (तक्षशिला का राजकुमार)
8. सिंहरण
9. पर्वेतेश्वर (पंजाब का राजा)
10. सिकंदर (ग्रीक विजेता)
11. फिलिप्स
12. मौर्य सेनापति
13. एनीसा क्रोटीज (सिकंदर का सहचर)
14. देवबल, नागदत्त, गणमुख्य (मालव गणतंत्र के पदाधिकारी)
15. साइबर्टियस (मेगास्थनीज यवन दूत)
16. गांधार नरेश  (आभीक का पिता)
17. सिल्यूकस (सिकंदर का सेनापति)
18. दाण्ड्यायन (एक तपस्वी)

★ स्त्री पात्र

1. अलका (तक्षशिला की राजकुमारी)
2. सुवासिनी (शकटार की कन्या,नन्द की नर्तकी,चाणक्य की पूर्व परिचिता,राक्षस की प्रणयिनी)
3. कल्याणी (मगध राजकुमारी)
4. नीला (कल्याणी की सहेली)
5. लीला (कल्याणी की सहेली)
6. मालविका (सिंधु देश की कुमारी)
7. कार्नेलिया (सिल्यूकस की कन्या)
8. मौर्य पत्नी (चंद्रगुप्त की माता)
9. एलिस (कार्नेलिया की सहेली)

◆  महत्त्वपूर्ण कथन :-

(1.)  “मैं उसे जानने कीचेष्टा कर रहा हूँ। आर्यावर्त्त का भविष्य लिखने के लिए कुचक्र और प्रतारणा की लेखनी और मसि प्रस्तुत हो रही है। उत्तरापथ के खण्ड राज्य द्वेष से जर्जर है। शीघ्र भयानक विस्फोट होगा।” (सिंहरण का कथन चाणक्य के प्रति)

(2.) “त्याग और क्षमा, तप और विद्या, तेज और सम्मान के लिए हैं लोहे और सोने के सामने सिर झुकाने के लिए हम लोग ब्राह्मण नहीं बने हैं। हमारी दी हुई विभूति से हमीं को अपमानित किया जाये, ऐसा नहीं हो सकता। अब केवल परिणति से काम न चलेगा। अर्थशास्त्र और दण्ड नीति की आवश्यकता है।” (चाणक्य का कथन वररुचि के प्रति)

(3.)”मेरा देश है मेरे पहाड़ हैं, नदियाँ हैं और मेरे जंगल हैं। इस भूमि के एक-एक परमाणु मेरे हैं और मेरे शरीर के एक-एक क्षुद्र अंश उन्हीं परमाणुओं के बने है। फिर मैं वहाँ जाऊँगी यवन।” (अलका का कथन सिल्यूकस के प्रति)

(4.) “तुम मालव हो और यह मागध, यहीं तुम्हारे मान का अवसान है न? परन्तु आत्मसम्मान इतने ही से संतुष्ट नहीं होगा। मालव और मागध को भूलकर जब तुम आर्यावर्त्त का नाम, लोगे, तभी वह मिलेगा। क्या तुम नहीं देखते हो कि आगामी दिवसों में आर्यावर्त्त के सब स्वतंत्र राष्ट्र एक के अनन्तर दूसरे विदेशी विजेता से पददलित होंगे?” (चाणक्य का कथन चंद्रगुप्त के प्रति)

 

(5.) “वह स्त्री जीवन का सत्य है। जो कहती है कि जो मैं नहीं जानतीं वह दूसरे को धोखा देती है, अपने को भी प्रवंचित करती है। धधकते हुए रमणी-वक्ष पर हाथ रखकर उसी कम्पन में स्वर मिलाकर कामदेव गाता है और राजकुमारी वही काम-संगीत की तान सौंदर्य की रंगीन लहर वन कर, युवतियों के सुख में लज्जा और स्वास्थ्य की लाली बढाया करती है।” ( सुवासिनी का कथन )

(6.) “रे पद्दलित ब्राह्मणत्त्व ? देख, शूद्र ने निगड़बद्ध किया, क्षत्रिय निर्वासित करता है, तब जल – एक बार अपनी ज्वाला से जल। उसकी चिनगारी से तेरे पोषक वैश्व सेवक शूद्र और रक्षक क्षत्रिय उत्पन्न हों । जाता हूँ पौख।” (चाणक्य का स्वगत कथन)

(7.)”फूल हँसते आते हैं, मकरंद गिराकर मुरझा जाते हैं, आँसू से धरणी को भिगोकर चले जाते हैं। एक स्निग्ध समीर का झोंका आता है, विश्वास फेंककर चला जाता है। क्या पृथ्वीतल रोने ही के लिए है? नहीं, सबके लिए एक ही नियम तो नहीं। कोई रोने के लिए है तो कोई हँसने के लिए।” (मालविका का स्वगत चिंतन)

(8.) “जाओ प्रियतम ! सुखी जीवन बिताने के लिए, और मैं रहती हूँ चिरदुखी जीवन का अंत करने के लिए जीवन एक प्रश्न है, और मरण है उसका अटल उत्तर ।” (मालविका का स्वगत चिंतन)

(9.) “महत्त्वाकांक्षा का मोती निष्ठुरता की सीपी में रहता है। चलो अपना काम करो विवाद करना तुम्हारा काम नहीं। अब तुम स्वच्छन्द होकर दक्षिणपथ जाने की आयोजना करो।” (चाणक्य का कथन, चंद्रगुप्त के प्रति)

(10.) “उसकी चिंता नहीं। पीछे अंधकार में बढ़ते है और मेरी नीतिलता भी उसी भाँति विपत्तितम में लहलती होगी। हाँ, केवल शौर्य से काम नहीं चलेगा। एक बात समझ लो, चाणक्य सिद्धि देखता है, साधन चाहे कैसे ही हों। बोलो, तुम लोग प्रस्तुत हो ।” (चाणक्य सिंहरण से )

(11.) “राज्य किसी का नहीं है। वह अनुशासन का है- भाई, तक्षशिला तुम्हारी नहीं और हमारी भी नहीं है। तक्षशिला आयावर्त का एक भू-भाग है, वह आर्यवर्त का होकर रहे, इसके लिए मर मिटो।”(अलका का कथन)

 

(12.) “यवन सेनापति ! आय कृतघ्न नहीं होते। आपको सुरक्षित स्थान पर पहुंचा देना ही मेरा. कार्य था।” ( चन्द्रगुप्त का कथन )

(13.) “तुम वीर हो सिकन्दर ? भारतीय सदैव उत्तम गुणों की पूजा करते हैं।” (चाणक्य सिकन्दर से कहते हैं)

(14.) प्रसाद जी ने विदेशी पात्रों के मुख से भी भारतीय गौरव का कथन कराया है। कार्नेलिया का ‘अरूण यह मधुमय देश हमारा’ शीर्षक गीत अत्यंत मार्मिक है।

(15.) “अरूण यह मधुमय देश हमारा।
जहां पहुंच जजान क्षितिज को.मिलतख एक सहारा।
सरस तामरस गर्भ विभा पर – नाच रही तरूशिखा मनहोर।
छिटक जीवन हरियाली पर मंगल कुंकुम सारा।
लघु सुरधनु से पंख पसारे शीतल मलय समीर सहारे ।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किये समझ नीड़ निज प्यारा।
बरसाती आँखों के बादल – बनते जहाँ भरे करूणा जल।
लहरें टकराती अनन्त की – पाकर जहाँ किनारा।
हेम – कुम्भ ले उषा सवेरे – भरती ढलकाती सुख मेरे।
मंदिर ऊँघते रहते जब-जग कर रजनी भर तारा।”

√ प्रस्तुत पंक्तियों  ‘चन्द्रगुप्त के द्वितीय अंक
   के प्रथम दृश्य से

√ इनमें सेनापति सिल्यूकस  की पुत्री
    कार्नेलिया ने गाया है। वह भारतीय संस्कृति
    एवं दर्शन से प्रभावित है तथा चन्द्रगुप्त पर
     आसक्त देते हुए कहती है ।

√ नाटककार ने इन पंक्तियों में अर्थ गरिमा,
  आवगत गव्यता, कल्पना की रमणीयता एवं
   सौंदर्य का मार्मिक वर्णन किया।

 

◆ नाटक का सारांश :-

★  नाटक का प्रारंभ तक्षशिला के गुरुकुल में युवकों के पारस्परिक वार्तालाप से होता है।

◆ ‘चन्द्रगुप्त’ नाटक सारांश :-

● नाटककार प्रसाद ने 325 ई. पूर्व के भारत की राजनीति को आधार बनाकर कथानक खड़ा किया है।

● यूनान का सम्राट सिंकदर भारत पर आक्रमण करता है। भारत की उत्तरी सीमा पर पहला राज्य गांधार का होता है। गांधार का राजकुमार आम्भीक धन के लोभ से सिकंदर के साथ मिल जाता है। नाटक में इस घटना की सूचना सिंहरण, चाणक्य और आम्भीक के वार्तालाप से मिलती है।

● सिंहरण मालव राज्य का महाबलीधिकृत होता है। उसने चन्द्रगुप्त के साथ ही तक्षशीला के गुरुकुल के स्नातक की उपाधी प्राप्त की होती है।

● चाणक्य उस गुरुकुल का आचार्य होता है। चाणक्य अपने गुरुकुल के स्नातकों को लेकर मगध के राजा के पास जाता है। वहाँ बौद्ध धर्म समर्थक राजा नंद के साथ विवाद बढ़ जाने के कारण चाणक्य को भरी सभा में अपमानित होना पड़ता है।

● चन्द्रगुप्त को भी वहाँ से भागना पड़ता है। चाणक्य को देश की चिंता होती है। वह एक ओर नंद वंश का नाश करने की प्रतिज्ञा किये होता है और दूसरी तरफ उसका लक्ष्य होता है आर्यावर्त की रक्षा नंद की कैद में उसे मगध का आमात्य फुसलाने के लिए आता है। लेकिन चाणक्य उसे मुँह तोड़ जवाब देता है कि वह मगध के लिए दूत का कार्य नहीं कर सकता चन्द्रगुप्त चाणक्य की मगध की कैद से छुड़ता है। बाहर आकर चाणक्य देश की शक्ति संगठित करने के कार्य में लग जाता है।

● उधर पर्वतेश्वर को सिकंदर के आक्रमण का सामना करना होता है।

● पर्वतेश्वर ने मगध के राजा को शुद्र कहकर अपमानित किया था। इसलिए मगध का राजा नंद उसकी सहायता नहीं करता।

● चाणक्य जानता है कि अकेला पर्वतेश्वर सिंकदर का सामना नहीं कर सकता। इसलिए वह पर्वतेश्वर के पास जाता है कि वह चन्द्रगुप्त के नेतृत्व में मालव और मगध की सेना को साथ लेकर सिकंदर के विरूद्ध लड़े। लेकिन पर्वतेश्वर उसकी बात नहीं मानता और उसे अपमानित करके अपने राज्य से निकाल देता है।

● उधर सिंहरण भी विदेशी आक्रमण की ओर से सचेत रहता है।

● मगध का राजा नंद विलासिता में डूबा रहता है। मगध का आमत्य राक्षस अपनी प्रेयसी के आँचल को ही क्षितिज मानकर असके तले सोया रहना चाहता है।

● दाण्डयानपन के तपोवन में अलका, चन्द्रगुप्त, चाणक्य, सिकंदर, सिल्यूकस आदि का एक साथ मेल होता है।

● सिल्यूकस ने मुर्छित चन्द्रगुप्त को सिंह से बचाया होता है। तपोवन में दाण्डयापन सिकंदर के सामने चन्द्रगुप्त के सम्राट होने की भविष्यवाणी करता है।

● चन्द्रगुप्त सिकंदर के निमन्त्रण पर कुछ समय के लिए यवन सेना के शिविर में रहता है। सिल्यूकस की पुत्री कार्नेलिया उससे प्रभावित होती हैं।

● सिकंदर पर व्यंग्यात्मक चोट करने के कारण चन्द्रगुपत को वहाँ से भी भागना पड़ता है।

●  उधर चाणक्य की सलाह से सिंहरण चन्द्रगुप्त और नटों का रूप धारण करके पर्वतेश्वर की सेना के शिविर में जाते हैं।

● मगध की राजकुमारी कल्याणी भी पुरूष देश में पर्वतेश्वर का सिकंदर के साथ युद्ध होता है। प्रकृति उसका साथ नहीं देती। सिंहरण उसकी वक्त पर सहायता करता है। फिर भी पर्वतेश्वर की पराजय होती है।

● सिकंदर पर्वतेश्वर की वीरता से प्रभावित होकर उसके साथ मैत्री कर लेता है।

● सिंहरण और अलका को पर्वतेश्वर के बन्दीगृह में स्थान मिलता है।

● सिकंदर की नीयत मगध पर आक्रमण करने की भी होती है। चाणक्य, चन्द्रगुप्त और सिंहरण उसे रोकने की योजना बनाते हैं।

● मालय गणराज्य के सैनिक चन्द्रगुप्त को अपना सेनापति स्वीकार कर लेते हैं। अलका पर्वतेश्वर को लोभ देती है कि वह

● उसके साथ विवाह कर लेगी और बदले में वह सिंहरण को मुक्त करा लेती है। अलका पर्वतेश्वर को बाध्य करती है कि वह सिकंदर के रण निमंत्रण पर न जाये।

● इसी बीच मालविका व चन्द्रगुप्त की बीच प्रणय पनपता है।

● सिकंदर मगध पर आक्रमण करने की योजना बदल देता है। भारत से लौटते समय उसे मालव गणराज्य से लड़ना पड़ता है।

● चन्द्रगुप्त सिंहरण आदि सामूहिक रूप से सिकंदर का मुकाबला करते हैं।

● युद्ध में सिकंदर घायल होता है। सिंहरण सिकंदर को प्राणशिक्षा देता है और चन्द्रगुप्त कृतज्ञतावश सिल्यूकस को छोड़ता है। सिकंदर इन सबसे मैत्री करके लौट जाता है।

● इस बीच चाणक्य राक्षस को अपनी चाल में फंसा लेता है। इसके परिणामस्वरूप मगध का राजा नंद राक्षस के विरूद्ध हो जाता है।

● राक्षस के मगध पहुँचाने ही उसको सुहासिनी के साथ ही बंदी बना लिया जाता है। बाद में शकटकार, सेनापति मौर्य, राक्षस, सुवासिनी आदि सभी नंद की कैद से भाग निकलते हैं।

● चन्द्रगुप्त मगध के सैनिकों को पराजित करता हुआ नद की राजसभा में आता है। प्रजा के सामने उसके अत्याचारों की कहानी दोहराई जाती है।
● शकटकार नंद की हत्या कर देता है चन्द्रगुप्त मगध का सम्राट बनता है।

●  सिंहरण और अलका का विवाह हो जाता है।

● पर्वतेश्वर इसे अपमान समझकर मरना चाहता है। किन्तु चाणक्य उसे बचा लेता है। चाणक्य अपनी कूट नीति से पर्वतेश्वर को चन्द्रगुप्त का अनुगत बना देता है

● उधर नन्द की हत्या के बाद उसकी पुत्री कल्याणी अस्थिर हो जाती है।

● पर्वतेश्वर उसे बलपूर्वक अपनी बनाना चाहता है। किंतु कल्याणी उसे मार देती है और स्वयं भी आत्महत्या कर लेती है।

● दूसरी तरफ मालविका भी चन्द्रगुप्त का बचाने के लिए अपने प्राण दे देती है।

●  चन्द्रगुप्त का अब एक विरोधी रहता है। आम्भीक वह भी चाणक्य, अलका और चन्द्रगुप्त के प्रभाव से ही सही मार्ग पर आ जाता है।

● चाणक्य से बदला लेकने के लिए राक्षस सिल्यूकस से मिल जाता है।

● सुवासिनी कैदी के रूप में कार्नेलिया के पास पहुँचा दी जाती है।

● सिल्यूकस फिर से भारत पर आक्रमण करता है। दोनों में युद्ध होता है।

● कार्नेलिया को चन्द्रगुप्त के साथ उसके पिता का युद्ध अच्छा नहीं लगता। सही अवसर पर सिंहरण आकर चन्द्रगुप्त की सहायता करता है। सिल्यूकस पराजित होता है।

● चाणक्य सिल्यूकस की पुत्री कार्नेलिया का विवाह चन्द्रगुप्त के साथ करवा देता है और स्वयं सन्यास गृहण कर लेता है।

◆ नाटक की गीत योजना :-

★ नाटककार प्रसाद मूलतः कवि थे। उनके कविमन की भावुकता एवं तरलता उनकी किसी भी साहित्यिक रचना की प्रसाद दिए बिना नहीं रही हैं। यही कारण है कि उनका गद्य भी काव्यमय हो गया है।

★ नाटकों में तो गीतों का प्रयोग संस्कृत साहित्य में भी होता था। हिन्दी नाटकों में गीतों की प्रवृत्ति संस्कृत से ही आई है। पहले तो नाटक में गीतों का उद्देश्य दर्शकों को प्रभावित करना व उनका मनोरंजन करना होता था। किंतु बाद में गीत मनोविज्ञान परक होने लगे। गीतों का उद्देश्य पात्रों का चरित्र विश्लेषण व उनके आंतरिक भावों की अभिव्यक्ति हो गया।

★ प्रसाद के नाटकों में गीत निश्चय ही मनोविज्ञान परक हैं। उनके प्रारम्भिक नाटकों में तो गीत अपेक्षाकृत कम रहे है किंतु बाद के नाटकों में गीत बढ़ते गए।

★ ‘चन्द्रगुप्त’ नाटक में 13 गीत हैं- पहले अंक में दो, दूसरे में तीन, तीसरे में एक और चौथे में छः गीत हैं।

★ सभी गीत भाव-भाषा की दृष्टि से उत्कृष्ठ हैं। परिस्थितयों की दृष्टि से इस नाटक के गीतों को पांच भागों में बांटा जा सकता है

★ नाटक में कुछ गीत ऐसे हैं जो किसी एक से अधिक व्यक्तियों के आग्रह पर गाये गए हैं, यथा प्रथम अंक में सुवासिनी नंद के उद्यान में कई लोगों के समक्ष गाती है।

“तुम कनक किरण के अन्तराल में

लुक-छिप कर चलते हो क्यों ?

नत मस्तक गर्व वहन करते

यौवन के घन, रस कन ठरते।”

इसी अंक में राक्षस भी गीत गाता है। जिसके श्रोता मगध के कई नागरिक भी होते हैं ऐसे गीतों की संख्या इस नाटक में छः है। अन्य गीत मालविका व सुवासिनी गाती है- तीन गीत मालविका चन्द्रगुप्त के आग्रह पर गाती है। और एक गीत सुवासिनी कार्नेलिया के आग्रह पर गाती है।

★ एकांत गीत :- ऐसे गीत नाटक के पात्रों ने केवल एकांत में गाए हैं अपने ही मन की प्रेरणा से व स्वयं की ही तुष्टि के लिए ऐसे चार गीतहैं। जिन्हें कार्नेलिया, अलका, कल्याणी व मालविका गाती है। इन गीतों में गाने वाले पात्रों की मानसिक स्थिति व्यक्त हुई है द्वितीय अंक में कार्नेलिया का गाया गीत

“अरुण यह मधुमय देश हमारा
जहां पहुंच जजान क्षितिज को मिलता एक सहारा ।
सरस तामरस गर्भ विभा पर नाच रही तरूशिखा मनोहर
छिटका जीवन हरियाली पर मंगल कुकुंम सारा लघु सुरधनु से पंख पसारे शीतल मलय समीर सहारे ।
उड़ते खग जिस ओर मुंह किये समझ नीड निज प्यारा।”

★नेपथ्य गीत :- इस कोटि का केवल एक गीत है। ऐसे गीत का उद्देश्य भावों को उत्तेजित करना है। ‘कैसी कड़ी रूप की ज्वाला’ गीता इसी कोटि का है।

★  प्रयाण गीत :- इस प्रकार का भी केवल एक गीत है। नाटक में चौथे अंक में अलका इस गीत को गाती हैं। इसका लक्ष्य जन मानस में राष्ट्रीय भावना जागृत करना है।

“हिमाद्रि तुंग श्रृंगं से

प्रबुद्ध शुद्ध भारती

स्वयं प्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती

अमर्त्य वीरपुत्र हो, दृढ प्रतिज्ञ सोच लो,

प्रशस्त पुण्य पथं है – बढ़े चलों, बढ़े चलों।”

★ एक अन्य गीत अलका द्वारा पर्ववेश्वर के समक्ष गाया जाता है जो एक तरह से एकात गीत ही है जिस का लक्ष्य परिस्थित व भावना के रंग को गहरा करना है।

★ विषय की दृष्टि से चन्दगुप्त नाटक के गीतों को दो भागों में बांटा जा सकता है- सौन्दर्य प्रेम सम्बंधी तथा राष्ट्र सम्बन्धी

★ सौन्दर्य प्रेम सम्बंधी लगभग ग्यारह गीत है।

★ राष्ट्र सम्बन्धी दो गीत हैं।

√ “अरुण यह मधुमय देश हमारा”

 

चन्द्रगुप्त नाटक

√ “हिमाद्रि तुंग श्रृंगं से
     प्रबुद्ध शुद्ध भारती

 

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