💐💐 चन्द्रदेव से मेरी बातें 💐💐
◆ कहानीकार :- राजेन्द्र बाला घोष (बंग महिला)
◆ प्रकाशन :- 1904 ई. में, सरस्वती पत्रिका में
◆ शैली :- मैं शैली में लिखी गई [पत्रात्मक शैली में ]
◆ पात्र :- स्वयं लेखिका
◆ कहानी का विषय :-
1. जाति गत पक्षपात का पर व्यंग्य।
2. बेरोज़गारी की समस्याओं का चित्रण।
3. समाज में नारी की बदतर स्थिति का चित्रण।
4. कलकत्ता की खासियत।
5. एकता का सूत्र चप्पल।
6. पदोन्नति के लिए सिफ़ारिस और चाटुकारिता का चित्रण।
7. समाज में फैली ग़रीबी एवं महामारी पर व्यंग्य ।
8. भ्रष्टचार का चित्रण।
9. तत्कालीन सरकार के न्याय व्यवस्था एवं पेंशन पर व्यंग्य – रंगभेद एवं पक्षपात का चित्रण।
10. सरकारी मिशन और कमीशन के उपयोगिता पर सवाल।
11. पुरातन परम्परा और प्रकृति से छेड़छाड़ पर व्यंग्य ।
12. अंग्रेजों की मूर्तियों की तुलना भगवान से करने पर शांति-विरोध ।
13. स्वार्थी राजाओं का सरकार के सामने नतमस्तक होने का चित्रण ।
14. प्लेग महामारी से त्रस्त जनता और अंग्रेजी डॉक्टरों पर व्यंग्य ।
15. तत्कालीन समय के सामाजिक, राजनैतिक
आर्थिक समस्याओं का चित्रण।
◆ कहानी का सारांश :-
★ वह चन्द्रदेव को इस भूतल (पृथ्वी) पर आने के लिए आमंत्रित करती है।
★ आमंत्रित करते हुए कहती है कि आप तो कितने सालों युगों से एक ही जगह पर एक सुयोग्य कार्यदक्ष की भांति निष्ठा से काम कर रहे हैं।
★ आपके विभाग में कोई ट्रांसफर नहीं होता है क्या? या ऐसा कोई आपके यहाँ नियम नहीं है क्या? ऐसा सवाल लेखिका चन्द्रदेव से कर रही हैं।
★ आपकी सरकार आपको पेंशन तो देती है की नहीं?
★ लेखिका कहती है आपके जैसा कर्तव्यनिष्ठ होकर हमारे यहाँ न्यायाधीश या सरकार अगर ऐसा काम करते तो अब तक उन्हें अनेकों पदोन्नति मिल गई होती और अब तक वे कितने जगह जाकर घूमकर आ जाते।
★ हमारे यहाँ के सरकार का लाभ लेकर देश में जंगल, पर्वत जाकर घूमकर आ जाते हैं। ऐसी सुविधा आपके पास है कि नहीं? वृद्धावस्था में आपको पेंशन काम आ सकती है।
★ लेखिका ने हमारे देश की सरकार व्यवस्था और यहाँ के काम करने वाले सरकारी कर्मचारियों पर व्यंग्य किया है।
★ यह सब सवाल करते हुए लेखिका अचानक चन्द्रदेव से क्षमा माँगते हुए कहती है, मुझे क्षमा करे!
★ आपको तो इन सभी चीजों की जरूरत ही नहीं है, क्योंकि आप तो अमर है। आपको अमरता का वरदान मिला हुआ है।
★ आपको मृत्यु का स्वर्ग-नरक भय ही नहीं है। जैसे देवता लोग अपने जाती के कारण पक्षपात सरकार भी है, वैसे ही भारत में भी लोग पक्षपात करते है।
★ अंग्रेज तरह पक्षपात कर रही है। इस बात में आपको कोई आश्चर्य नहीं लगेगा।
★ दूसरी बात कहना हो तो आपको अगर अंग्रेज जाति की सेवा करना आपको स्वीकार हो तो, एक निवेदन कर दीजिए ।
★ आधुनिक भारत के प्रभु है, लार्ड कर्जन को भेज दीजिए जिससे आपको नम्रता पूर्वक आह्वान करना है।
★ लेखिका कहती है कि हमें विश्वास है, यहाँ के स्थायी विधाता डॉ. कर्जन बन जायेगें।
★ जो अत्यंत सरल स्वभाव के महात्मा है। यहाँ पर लेखिका ने व्यंग्य किया है और उनका एक ही नारा होता है, ‘कमीशन और मिशन।
★ यह दोनों भी कार्य उनको अत्यंत प्रिय है। जैसे किसकी भर्ती करना और किसका कितना कमीशन लेना है।
★ लेखिका कहती है, आधुनिक काल के चलते यहाँ नीति और रीति में पूरी तरह परिवर्तन आ गया है।
★ इस बदलाव में आकाश – पाताल का अंतर भी है। यहाँ आने के बाद आपको पूरा भारत भ्रमण करना है।
★ देश में युवा वर्ग की आलसी मनोवृत्ति पर लेखिका ने व्यंग्य किया है।
★ यहाँ के युवा को किसी ओर से कोई लेना देना नहीं है, वे अपने आप डूबे हुए हैं एक लड़कपन का चश्मा धारण दीन-हिन अनपढ़ जनता से ये काफी दूर रहते हैं।
★ अमावस्या के दिन आपको छुट्टी मिलती होंगी, तो उस दिन आप हमारे यहाँ पर हॉलिडे मनाने के लिए आ जाइए । किन्तु भारत भ्रमण तो एक दिन में नहीं होगा तो आप सिर्फ कलकत्ता में आइए कलकत्ता के कारखानों, कारागीरों, वहां की शिक्षा-दीक्षा व्यवसाय, लोग परलोक सब देख लीजिए।
★ जिस तरह देवताओं का बोझ उनके वाहन उठाते ,किसी का बैल, किसका हंस, मोर आदि होते है। किन्तु यहाँ ऐसा नहीं है, यहाँ तो सिर्फ मनुष्य का बोझ चप्पल उठाती है सबका कार्य वह अकेली करती है।
★ किसी भी जाति क्यों न हो, चाहे वह ब्राह्मण, क्षत्रिय,शूद्र,वैश्य हो सबके पैरों में चप्पल है।
★ चप्पल की कोई जाति नहीं होती है ।
★ लेखिका चन्द्रदेव से यहाँ के बिजली का अध्ययन भी करने के लिए कहती है।
★ यहाँ के उच्चशिक्षा विभूषित युवा सिर्फ देखते रहते है, बाकि वे कोई कार्य नहीं करते है ।
★ युवा वर्ग को देश के लिए कार्य करने को लेखिका कह रही है।
★ किसी की भी हिम्मत नहीं है, वे उस बिजली को स्पर्श कर सके। उसका सुधार कर सके। जिस वजह से ग़रीब को बिजली मिल सके। वह सिर्फ दासी बनकर रह गई है।
★ लेखिका आगे कलकता के ईडन गार्डन की भी बात करती है। जो बहुत ही शुशोभित है।
★ विश्वविद्यालय के श्रेष्ठ पंडितों से भी आप बात कर सकते है। वहाँ पर विद्यावाणी सरस्वती है।
★ लेखिका चन्द्रदेव से यहाँ आकर इसका अवलोकन करने को कहती है ।
★ लेखिका यहाँ आने के लिए सविनय आग्रह करती है। यहाँ आने के बाद चन्द्रदेव को क्या – क्या लाभ मिलेंगे इसके बारे में भी वह कहती हैं।
★ यहाँ के जो पंडित वर्ग है आपकी चेष्टा भी कर सकते हैं।
★ यहाँ बंबई स्वर्गीय महारानी विक्टोरिया रानी की जो प्रतिमूर्ति है जिसका काला छुडाने के प्रो. महाशय गजधर ने कष्ट लिया था।
★ उसको भी आप देख ऐसा लेखिका चन्द्रदेव से कह रही है।
★ यहाँ जो भूमंडल की छाया इधर किस तरह सूर्य नारायण के यहाँ पड़ती है, उसको भी आप देख सकेंगे।
★ स्वामी सूर्य और उनके पुरे साम्राज्य को देख सकेंगे कि किस तरह यहाँ उनके मन्दिर बनाये गए है।
★ यहाँ के राजा-महाराजाओं को भी देख सकेंगे। जो सिर्फ पुतलियों की भाँति है।
★ किसी को भी प्रजा वर्ग से कोई लेना-देना नहीं है।
★ लेखिका ने यहाँ राजा-महाराजों पर व्यंग्य किया है।
★ लेखिका यहाँ इस निबंध के माध्यम से चन्द्रदेव से यहाँ आकर भूतल की स्थिति को देखने और समझने के आमंत्रित करती है।
◆ महत्वपूर्ण बिन्दु :-
★ चंद्रदेव से मेरी बातें कहानी पहले उपालंभात्मक ललित निबंध रूप में 1904 में ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। लेकिन बाद में कई पत्र-पत्रिकाओं में इसे ‘कहानी’ के रूप में प्रस्तुत किया गया।
★ लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय ने अपनी एक किताब’निबन्ध वनीत’ में कहाँ है कि यह एक कहानी न होकर एक निबन्ध है।
★ “चन्द्रदेव से मेरी बाते” कहानी में चन्द्रदेव का स्वामी सूर्य को कहा गया हैं।
★ “चन्द्रदेव से मेरी बातें” कहानी में कोलकाता शहर का प्रभावशाली वर्णन है।
★ ” चन्द्रदेव से मेरी बातें कहानी में समकालीन वायसराय कर्जन के प्रशासन पर करारा व्यंग्य है ।”
(गोपाल राय के अनुसार)
★ पत्रात्मक शैली में लिखी पहली कहानी है, जिस पर ‘शिवशम्भु के चिट्ठे’ (1903) निबंध का प्रभाव देखा जा सकता है।
★ बंग महिला ने इस रचना में राजनीति को केंद्र में रखकर तत्कालीन वायसराय ‘लार्ड कर्जन’ और उनकी व्यवस्था पर व्यंग्य किया है।
★ भवदेव पांडेय अपने पुस्तक ‘नारी मुक्ति का संघर्ष’ में चंद्रदेव से मेरी बातें कहानी को “हिंदी की प्रथम राजनीतिक कहानी” माना है।
★ गिरिजाकुमार घोष ने ‘पार्वतीनंदन’ छद्म नाम से बंगला की अनेक कहानियों का हिंदी अनुवाद किया।
★ गिरिजाकुमार घोष अनुवादित कहानियां :-
√ एक के दो दो(1906 ई.)
√ ‘मेरा पुनर्जन्म'(1907 ई.)