चीफ की दावत कहानी(cheeph ki davat kahani))

       💐 चीफ की दावत कहानी 💐
                【भीष्म साहनी】

◆ प्रकाशन :– 1956ई.

◆ पहला पाठ कहानी संग्रह से

◆ पात्र  :-
● शामनाथ
● शामनाथ की पत्नी
● शामनाथ की माँ
● शामनाथ के चीफ/ बॉस

◆ कहानी का उद्देश्य :- व्यक्ति की मनोगत स्थिति और विकृत चिंतन को उजागर करना ।

◆ चीफ की दावत किसके घर थी? :- मिस्टर शामनाथ के घर

◆ शामनाथ की पत्नी दावत के दिन :-
ड्रेसिंग गाउन पहने,उलझे हुए बालों का जूड़ा बनाए मुँह पर फैली हुई सुर्खी और पाउडर को मले।

◆ दावत की तैयारी पाँच बजे पूरी हुई।
 
◆ मुकम्मल का अर्थ :- सम्पूर्ण

◆  शामनाथ के सामने सहसा एक अड़चन खड़ी हो गई? माँ का क्या होगा ?

◆  मिस्टर शामनाथ, श्रीमती की ओर घूम कर अंग्रेजी में बोले- माँ का क्या होगा?”

◆ श्रीमती बोलीं- इन्हें पिछवाड़े इनकी सहेली के घर भेज दो, रात भर बेशक वहीं रहें। कल आ जाएँ।’

◆ शामनाथ ने कहा – ‘नहीं, मैं नहीं चाहता कि उस बुढ़िया का आना-जाना यहाँ फिर से शुरू हो। पहले ही बड़ी मुश्किल से बंद किया था। माँ से कहें कि जल्दी ही खाना खा के शाम को ही अपनी कोठरी में चली जाएँ। मेहमान कहीं आठ बजे आएँगे इससे पहले ही अपने काम से निबट लें।’
(उस बुढ़िया :- शामनाथ की माँ की सहेली)

◆ शामनाथ कुछ खीज उठे, हाथ झटकते हुए बोले- ‘अच्छी भली यह भाई के पास जा रही थीं। तुमने यूँ ही खुद अच्छा ने के लिए बीच में टाँग अड़ा दी !
यह :- शामनाथ की माँ
भाई :- शामनाथ का मामा
तुमने :- शामनाथ का पत्नी

◆ माँ दीवार के साथ एक चौकी पर बैठी, दुपट्टे में मुँह सिर लपेटे, माला जप रही थीं।

◆  माँ, आज तुम खाना जल्दी खा लेना। मेहमान लोग साढ़े सात बजे आ जाएँगे।

◆ शामनाथ की माँ मांस-मछली बने तो वह नहीं खाती।

◆ शामनाथ ने  माँ दावत के दिन बैठ की व्यवस्था पता था :-
● जब लोग पहले बैठक में बैठे तब तुम बरामदे में बैठना।
● जब लोग बरामदे आ जाएँ, तो तुम गुसलखाने के रास्ते बैठना।

◆ तरतीब का अर्थ :- क्रम , सिलसिला

◆ शामनाथ को चिंता थी कि अगर चीफ का साक्षात माँ से हो गया, तो कहीं लज्जित नहीं होना पडे।

◆  शामनाथ ने माँ को दावत के दिन कौनसे वस्त्र पहने को कहा?:- सफेद कमीज और सफेद सलवार

◆  शामनाथ ने माँ के जेवर किस वजह से बिक गये थे?:- शामनाथ की पढ़ाई में बिक गए।

◆  तअल्लुक का  अर्थ :- संबंध
◆ लँडूरा का अर्थ :- बिना पूँछ का

◆ जो जेवर बिका, तो कुछ बन कर ही आया हूँ, निरा लँडूरा तो नहीं लौट आया। जितना दिया था, उससे दुगना ले लेना ।

◆ मैं न पढ़ी, न लिखी, बेटा, मैं क्या बात करूँगी। तुम कह देना, माँ अनपढ़ है, कुछ जानती समझती नहीं। वह नहीं पूछेगा।

◆ अंग्रेज को दूर से ही देख कर कौन घबरा जाती थी? :- शामनाथ की माँ

◆  शामनाथ का चीफ अमरीकी था।

◆  माँ का जी चाहा कि चुपचाप पिछवाड़े विधवा सहेली के घर चली जाएँ।

◆ एक कामयाब पार्टी वह है, जिसमें ड्रिंक कामयाबी से चल जाएँ।

◆ शामनाथ की स्त्री से तो ऐसे बातें कर रही थीं, जैसे उनकी पुरानी सहेली हों।

◆ शामनाथ की माँ चीफ से कौनसा साथ मिला रही थी? :- बायाँ हाथ क्योंकि दाँये हाथ में माला थी। (चीफ दायाँ हाथ मिलाने के लिए माँ के आगे कर रहा था।)

◆ शामनाथ अंग्रेजी में बोले- मेरी माँ गाँव की रहने वाली हैं। उमर भर गाँव में रही हैं। इसलिए आपसे लजाती है।

◆ साहब इस पर खुश नजर आए। बोले – सच? मुझे गाँव के लोग बहुत पसंद हैं, तब तो तुम्हारी माँ गाँव के गीत और नाच भी जानती होंगी?

◆ माँ धीरे से बोली- मैं क्या गाऊँगी बेटा। मैंने कब गाया है?

◆ शामनाथ की माँ  ने  क्षीण, दुर्बल, लरजती आवाज में एक पुराना विवाह का गीत गाने लगीं-
हरिया नी माए, हरिया नी भैणे
हरिया ते भागी भरिया है!

◆ शामनाथ पंजाब के रहने वाले थे।

◆  साहब बोले- पंजाब के गाँवों की दस्तकारी क्या है?
शामनाथ ने बोले – ओ, बहुत कुछ साहब! मैं आपको एक सेट उन चीजों का भेंट करूँगा। आप उन्हें देख कर खुश होंगे।

◆ साहब ने अंग्रेजी में पूछा- नहीं, मैं दुकानों की चीज नहीं माँगता । पंजाबियों के घरों में क्या है, औरतें खुद क्या बनाती हैं?
शामनाथ  बोले- लड़कियाँ गुड़ियाँ बनाती हैं, और फुलकारियाँ बनाती हैं।

◆ शामनाथ अपनी माँ को चीफ के लिए फुलवारी बनाने के लिए बोलता है।

◆  माँ धीरे से बोली- बेटा, तुम मुझे हरिद्वार भेज दो। मैं कब से कह रही हूँ।

◆ शामनाथ का क्रोध बढ़ने लगा था, बोलते गए तुम मुझे बदनाम करना चाहती हो, ताकि दुनिया कहे कि बेटा माँ को अपने पास नहीं रख सकता।

◆ जब तेरी माँ फुलकारी बनाना शुरू करेंगी, तो मैं देखने आऊँगा कि कैसे बनाती हैं।

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