छायावादी काव्य की प्रवृत्तियां( chhayavadi kavy ki pravatiya)

                  🌺   छायावादी काव्य की प्रवृत्तियां 🌺

1. आत्माभिव्यंजना /आत्माभिव्यक्ति की प्रधानता।

2. मै शैली /उत्तम पुरुष शैली ।

3. मानवीय सौंदर्य का बोध ।

4. प्रकृति के रम्य रूपों की रचना।

5. प्रकृति संबंधित बिम्बों की बहुलता ।

6. स्वच्छंद कल्पना का नवोन्मेष।

7. रहस्य भावना।

8. अज्ञात व असीम के प्रति जिज्ञासा।

9. श्रृंगार भावना ।

10. वेदना की विवृत्ति।

11. मानवतावाद।

12. राष्ट्रीयता की भावना ।

13. दार्शनिक चिंतन।

14. विज्ञान का प्रभावः

15. मुक्तक छंद का प्रयोग भाषा ।

16. साहित्यिक भाषा खड़ीबोली ने काव्यात्मक और कलात्मक रूप है प्राप्त किया ।

17. ललित- लवंगी कोमलकांत पदावली वाली भाषा।

18. भारतीय अलंकारों के साथ-साथ अंग्रेजी साहित्य के मानवीकरण व विश्लेषण विपर्यय अलंकारों का प्रयोग।

19. स्वच्छंदतावादी प्रवृत्ति मिलती है किंतु नैतिक दृष्टि प्रधान है ।

20. सर्ववाद,कर्मवाद, वेदांत,शैवदर्शन आदि भारतीय सिद्धांत को लेकर चलता है।

21. अभिव्यंजना शैली में नवीनता।

22. कवित्व की दृष्टि से अनुभूति की तीव्रता।

23. युग के जन – जीवन की समग्रता की अभिव्यक्ति मिलती है।

23. इसका युग भारत के अस्मिता की खोज का युग है।

24. सूक्ष्म और अभिव्यंजना शिल्प के उत्कर्ष की दृष्टि।

25. यह काव्यपूर्ण एवं सर्वांगीण जीवन के उच्चतम आदर्श को व्यक्त करने का प्रयासः

 

 

🌺आरंभिक काल में छायावाद का विरोध करने वाले पत्र-

* सरस्वती
*सुधा
*विशाल भारत
-प्रभा
Trick – सरसु विप्रो

 

🌺छायावाद के समर्थक पत्र-

* मतवाला
*जागरण
*भारत माता
Trick – मत जा भारत में

 

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