‘झीनी-झीनी बीनी चदरिया’ कबीरदास का पद और अब्दुल बिस्मिल्लाह का बहुचर्चित उपन्यास
🌺’झीनी-झीनी बीनी चदरिया’ कबीरदास का पद और अब्दुल बिस्मिल्लाह का बहुचर्चित उपन्यास🌺
झीनी-झीनी बीनी चदरिया,
काहे कै ताना, काहै कै भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया।
इंगला पिंगला ताना भरनी, सुखमन तार से बीनी चदरिया॥
आठ कँवल दल चरखा डोलै, पाँच तत्त गुन तीनी चदरिया।
साँई को सियत मास दस लागै, ठोक-ठोक कै बीनी चदरिया॥
सो चादर सुर नर मुनि ओढ़ी, ओढ़ी कै मैली कीनी चदरिया।
दास ‘कबीर’ जतन से ओढ़ी, ज्यों की त्यों धरि दीनी चदरिया॥
– कबीरदास
व्याख्या :- • कबीरदास कहते हैं कि जिस चादर का निर्माण किया है वह चादर ‘झीनी झीनी’ है। झीना होना चादर की जीर्णता, पुरानेपन का भी अर्थ देता है और उत्कृष्टता श्रेष्ठता का भी। परंतु आखिरी पंक्ति में कबीरदास ने जिस आत्मविश्वास का परिचय दिया है, वह उत्कृष्टता श्रेष्ठता का वाचक ज्यादा प्रतीत होता है। पुराने का संदर्भ उम्र की प्रौढ़ता से हो सकता।
आगे कबीरदास पूछते हैं कि यह चादर किस ताने बाने से निर्मित हुई है? किस तार या सूत से निर्मित हुई है? कबीरदास कहते हैं कि इंगला पिंगला ताना बाना है और सुषमन तार से शरीर रूपी चादर का निर्माण हुआ है। अष्टचक्र दल चरखा है। जिससे सूत का निर्माण होता है।
पाँच तत्त्व (क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर) और तीन गुणों (सत्, रज, तम) से इस शरीर का निर्माण हुआ है। ईश्वर को शरीर रूपी कपड़े को सिलने में दस महीने लगते हैं। जैसे कुम्हार ठोक ठोक कर घड़े का निर्माण करता है, वैसे ही ईश्वर ठोक ठोक कर इस चादर का निर्माण करता है।
ईश्वर द्वारा निर्मित शरीर रूपी इस चादर को सभी देवता, मनुष्य, ऋषि मुनि ओढ़ते हैं, पहनते हैं। दार्शनिक धरातल पर जीव चूंकि ईश्वर का अंश है। अतः जीवात्मा भी परमात्मा की तरह ही पवित्र और निर्मल है।
परंतु जीव जीवन क्रम में विभिन्न विषय-वासना, माया के अधीन जीवन जीता है। इस कारण वे इस ईश्वर प्रदत्त और ईश्वर अंश जीवात्मा को मैला कर देते हैं। वासनायुक्त कर देते हैं। कबीरदास कहते हैं कि ईश्वर के दास कबीर ने इस शरीर और आत्मा को बहुत संयम और साधना से ओढ़ा है। इस साधना और संयम के कारण ही ईश्वर ने इस शरीर को जैसा पवित्र और निर्मल बनाया था, उसे वैसा ही रखा है।
🌺अब्दुल बिस्मिल्लाह का बहुचर्चित उपन्यास ‘झीनी झीनी बीनी चदरिया’ 🌺
◆ प्रकाशन :- 1986 ई.में
◆ सोवियत लैंड पुरस्कार से पुरस्कृत उपन्यास
◆ इसमें अब्दुल बिस्मिल्लाह ने वाराणसी के साड़ी बुनकरों की जिन्दगी के विविध रूपों की कड़वी सच्चाई को यथार्थपूर्ण ढंग से प्रत्तुत किया है ।
◆ उपन्यास में एक वर्ग बुनकरों का है तो दूसरा पूँजीपतिका ।
◆ बुनकरों में मतीन, अलीमुन, बशीर, लतीफ, रउफ चाचा और मतीन का बेटा इकबाल जो कि नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता है।
◆ उपन्यास का केन्द्रीय पात्र :- मतीन
जो कि एक ओर तो कोठीवालों के शोषण का शिकार है, तो दूसरी ओर पारिवारिक आर्थिक संकट का ।
◆ इस उपन्यास को लिखने से पहले लेखक अब्दुल बिस्मिल्लाह ने दस वर्षों तक बनारस के बुनकरों के बीच रहकर उनके जीवन का अध्ययन किया. यही वजह है कि इस उपन्यास में बुनकरों की हँसी-खुशी, दुख-दर्द, हसरत-उम्मीद, जद्दोजहद और संघर्ष…यानी सब कुछ सच के समक्ष खड़ा हो जाता है ।
◆ बनारस के बुनकरों की व्यथा-कथा कहनेवाला यह उपन्यास न केवल सतत् संघर्ष की प्रेरणा देता है बल्कि यह नसीहत भी देता है कि जो संघर्ष अंजाम तक नहीं पहुँच पाए, तो उसकी युयुत्सा से स्वर को आनेवाली पीढ़ी तक जाने दो. इस प्रक्रिया में लेखक ने शोषण के पूरे तंत्र को बड़ी बारीकी से उकेरा है, बेनकाब किया है।
◆ भ्रष्ट राजनीतिक हथकंडों और बेअसर कल्याणकारी योजनाओं का जैसा खुलासा ‘झीनी झीनी बीनी चदरिया’ की शब्द-योजना में नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति की कलात्मकता में है।
◆ इसके प्रमुख पात्र:- रऊफ चचा, नजबुनिया, नसीबुन बुआ, रेहाना, कमरुन, लतीफ, बशीर और अल्ताफ़ ।
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