ढोला मारु रा दूहा कथा सार(Dhola Maru Ra Duha katha saar)

                                                              🌺ढोला मारु रा दूहा कथा सार🌺

कथा सारः– पूंगल देश में पिंगल नाम का राजा रहता था। उस समय नरवर पर नल का राज्य था। पिंगल के एक कन्या हुई जिसका नाम मारवणी (मारू) था। नल के पुत्र का नाम ढोला था। एक बार पूंगल देश में अकाल पडा जिससे राजा पिंगल कुछ दिनों के लिए पुष्कर में जाकर रहे। इन्हीं दिनों राजा नल भी तीर्थ यात्रा करता हुआ पुष्कर आ जाता है। दोनों में मित्रता हो गई पिंगल ने अपनी लड़की मारवणी का विवाह नल के लड़के के साथ कर दिया। उसी समय ढोला की उम्र तीन वर्ष की और मारवणी की उम्र डेढ वर्ष की थी। शरद ऋतु के आने पर दोनों राजा अपने – अपने देश चले गए।
मारवणी की अवस्था छोटी थी इसलिए वह उस वक्त ढोला के साथ नरवर नही भेजी गई। कई वर्ष बीत गए। ढोला जवान हुआ। पुंगल देश दूर था इसलिए उसके पिता ने दूसरा विवाह मालवे के राजा की लड़की मालवणी से कर दिया और उसे पूर्व विवाह की बात नही बतायी।
इधर मारवणी जब बड़ी हुई तब उसके पिता ने ढोला को बुलाने के लिए कई दूत भेजे। परन्तु सौतिया डाह की वजह से मालवणी ने पूंगल और नरवर के रास्तों पर ऐसा प्रबन्ध कर रखा था कि संदेशवाहक ढोला तक पहुँच ही नही पाते थे। बीच ही में मार दिए जाते थे।
एक बार मारवणी ने ढोला को सपने में देखा। इससे उसकी विरह वेदना बढ़ गई। इसी समय नरवर की ओर घोड़ों का व्यापारी पूंगल आया। उसने ढोला के दूसरे विवाह की बात पूंगल से कही।
यह बात मारवणी के कानों तक भी पहुँची। वह पागल सी हो गई और कुछ ढाढियों को अपना प्रेम संदेश देकर ढोला के पास भेजा। मार्ग में मालवणी के तैनात किए हुए आदमियों को झुलावा देकर किसी तरह ढोला के महलों तक पहुँचा। वहाँ रात भर उन्होंने बड़ी सुरीली और दर्द भरी आवाजों में गा – गाकर मारवणी का प्रेम संदेश सुनाया। दूसरे दिन प्रातःकाल होते ही ढोला ने ढाढियों को बुलावा भेजा और सब हाल मालूम किया। सुनकर उसकी उत्कंठा बढ़ गई और मारवणी से मिलने के लिए वह आतुर हो गया।
एक दिन ढोला घोडे पर सवार होकर मारवणी से मिलने के लिये जाने लगा। मालवणी को इसका पता लगा गया। उसने दौड़कर घोडे की रकाब पकड़ ली।
उस दिन वह वापस लौट आया। परंतु कुछ दिन बाद एक रात को जब मालवणी सोई हुई थी वह चुपके से एक ऊंट लेकर वहां से चल पड़ा।
कुछ दिन बाद ढोला पुंगल पहुंचा ।वहां उसका बड़ा स्वागत – सम्मान हुआ । पांच- सात दिन वह वहां रहा ।फिर मारवणी को लेकर वहां से रवाना हुआ मार्ग में एक पड़ाव पर मारवणी को एक सांप ने काट खाया जिससे उसकी मृत्यु हो गई। ढोला विलाप करने लगा और चिता बनाकर अपनी प्रिय के साथ चलने की को तैयार हो गया इतने में योग- योगिन के वेश में शिव – पार्वती वहां आ गए । उन्होंने मारवणी को पुनर्जीवित कर दिया ।यहां से आगे बढ़ने पर एक घटना और हुई।
उमर नाम के एक व्यक्ति ने मारवणी को छीनने के लिए अपने दल- बल सहित उनका पीछा किया। अपना घोड़ा ढोला के ऊंट के पास लेकर जाकर उसे कहा ” हे ठाकुर ! अलग क्यों चल रहे हो, आओ कसूंबा (पानी पा में घुली हुई अफीम) पिए । फिर साथ – साथ ही चलेंगे।”ढोला उसके कपट – जाल को न समझ सका और ऊंट से उतर गया।
मारवाड़ी ऊंट की मोहरी के नकेल पकड़कर अलग खड़ी हो गई । ढोला और उमर पास ही बैठकर कसूंबा पीने लगे। ऊमर के साथ मारवणी पीहर की एक ढोलिन थी। उसने गा- गाकर ऊमर के षड्यंत्र की सारी बात मारवणी को समझा दी। इस पर उसने अपने ऊंट के छड़ी मारी।ऊंट. हड़बडाया और उछलने लगा । ढोला उसे संभालने के लिए मारवणी के पास आया। इसी समय मारवणी चुपके से सारी बात उसको बता दी।
तब ढोला और मारवाड़ी दोनों ऊंट पर बैठ गए और वहां से निकल भागे । उमर ने उनका पीछा किया परंतु हताश होकर उसे वापस लौटना गया। अंत में ढोला – मारवणी घर पहुंच गए और बड़े आनंद से अपना जीवन व्यतीत करने लगे।

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