त्यागपत्र उपन्यास का सारांश और उद्देश्य(tyagapatr upanyas ka saransh aur uddeshy)

◆ जैनेंद्र का तीसरा उपन्यास

◆ प्रकाशन वर्ष:- 1937 ई.

◆ मुंबई से निकलने वाली हिंदी ग्रंथ रत्नाकर के लिए उसके संपादक प्रेमीजी के अनुरोध पर लिखा गया था ।

◆ 1965 में अभिनंदन समारोह में त्यागपत्र का नाट्य रूपांतर का मंचन भी हुआ था।

◆ आत्मकथात्मक शैली में लिखा हुआ बहुत ही मार्मिक और संवेदनशील उपन्यास।

◆ त्यागपत्र उपन्यास का सारांश ◆ 

• त्यागपत्र में एक भतीजे की स्मृति धारा के रूप में अपनी प्रतित्यका बुआ की जीवनालंब की तलाश की यात्रा के उतार-चढ़ावों का चित्रण मनोवैज्ञानिक स्तर पर रखकर एक नैतिक समस्या के रूप में किया गया है ।

• नारी केंद्रित संवेदनों से अनुप्राणित रचना है।

• नारी संबंधित परंपरागत मर्यादाओं एवं व्यवहारपरक धारणाओं के कसौटी मानने वाली सामाजिक परिवेश में आत्मानुभूत सत्य पर आधारित व्यवहार और स्वतंत्र व्यक्तित्व का आग्रह प्रकट करने वाली नारी का स्वभाविक दुरन्त इस उपन्यास प्रतिपाद्य है।

• मृणाल भाई एवं भाभी की देखरेख में पलने वाली लड़की है।

• मृणाल बड़ी सरल स्वभाव की लड़की है, जिसे लड़कियों की सच्चरित्र चित्रण होने के सामाजिक नियमों का कोई ज्ञान नहीं है।वह अपनी मर्जी के अनुसार जीना पसंद करती है। इसलिए वह अपने स्कूली जीवन के समय में ही अपने वर्ग की शीला के भाई से मिला करते हैं,उसके साथ देर तक बैठा करती है ,देर से घर लौटने लगती है।

• इस प्रकार दोनों में एक प्रकार की रोमानो आकर्षक स्थिति भी बन जाती है। लेकिन मृणाल के भाई और भाभी के लोक लाज के डर से उसे मना करने की चेष्टा करते हैं फिर भी जब वह मानती नही है, तो एक दुहाजू के साथ उसकी शादी करके बला को टाल देते हैं ।

• दुहाजू के साथ मृणाल का जीवन बिल्कुल असन्तोष पूर्ण रहा।

• साध्वी पत्नी के अनुरूप वह अपने पतिदेव को अपने विगत जीवन की सारी बातें बता देती है।

• सहज ही शंकालू पति मृणाल के मुंह से सुनी सच्चाई से बिल्कुल अनाश्रृत होकर रह जाती है ।

• मृणाल अपने असंतोषपूर्ण दाम्पत्य जीवन का दुःख भाई – भाभी मृणाल को यह सुनाती है लेकिन भाई भाई मृणालल को यह कहकर लौटा देते कि पति चरणों में मृत्यु को खोजना ही सच्ची पत्नी का धर्म है।

• मृणाल अपने पति के साथ यातनापूर्ण दाम्पत्य बिताती है कि उसके एक बच्चा पैदा है लेकिन पौष्टिक भोजन के अभाव के कारण वह नादान बच्ची अधिक दिन तक जीवित नहीं रहती है।

• बच्ची की मृत्यु मृणाल के पति के मन में इतना बड़ा आघात लगाता है कि वह मृणाल को छोड़ देता है।

• निराधार मृणाल एक कोयले वाले के साथ रहने लगती है।

• कोयले वाले के साथ मृणाल का जीवन अभावग्रस्त रहता है और उसे मालूम भी है कि कोई न कोई दिन वह कोयले वाला उसे छोड़कर चला जाएगा । फिर भी वह उसके साथ ईमानदार रहकर उसकी सेवा करती है।

• इस बीच में मृणाल का भतीजा प्रमोद उससे मिलने वहां आ जाता है । बुआ की दुर्दशा देखकर वह उसे ले जाना चाहता है।लेकिन वह यह कहकर उसे टाल देती है कि जिसके सहारे में देने को अधर्म से बची, उन्हें को मुझसे कहते हो? मैं नहीं छोड़ सकती। मैं नहीं छोड़ सकती हूं,पर उसके ऊपर क्या बेहया भी बनूं?

• वह भतीजे(प्रमोद) से कहती है कि वह कोयले वाले के बच्चे की मां बनने वाली है।

• कुछ ही दिनों बाद,गर्भवती मृणाल को छोड़कर कोयलेवाला उसका सारा धन हड़पकर गायब हो जाता है। वह किसी धनी परिवार की बच्चों को पढ़ाकर जीविका चलाने लगती है कि एक दिन प्रमोद उस घर पर कन्या देखने आता है और वहां बुआ से मुलाकात हो जाती है। उस समय भी प्रमोद उसे घर ले जाना जाता है लेकिन वह उसके साथ जाने को तैयार नहीं होती। प्रमोद खिन्न होकर वहां से लौट जाता है। प्रमोद से मिलाने मौत के बाद उसकी लाज रखने के विचार से, मृणाल उस घर से चली जाती है।

• अगली बार जब प्रमोद मृणाल से मिलता है तो वह एक गंदी गली में बीमार पड़ी है।

• उस समय अत्यंत व्यथित होकर प्रमोद उसे अस्पताल में दाखिल कराने के लिए आग्रह करता है लेकिन मृणाल उसके साथ जाने को राजी हुए बिना ही कुछ पैसा मांगते ताकि उस गली में उसके सामान अनाथ अन्य नारियों की सहायता के मिले।

• प्रमोद बुआ के कहे अनुसार अपनी प्रमोद यथाशक्ति रकम अपने वकील से मित्र के हाथों सौंप देता है।

• प्रमोद को पता नहीं है कि वह रकम मृणाल तक पहुंची या नहीं । उसके पश्चात लंबे अरसे तक मृणाल की कोई खबर प्रमोद को मिलती नहीं है उसे क्या हुआ प्रमोद को मालूम नहीं था।काफी समय के बाद उसे पता चला है कि मृणाल की मृत्यु हो गई है।

• अपनी बुआ की मृत्यु की खबर उसके दिल पर इतना बड़ा आघात लगती है कि वह पछताने लगता है कि वह बुआ के साथ वह न्याय नहीं कर पाया।

• जिस मन से उसे और जिस विश्वास से बुआ को ने अपने जीवन की विविध संघर्षो का सामना किया और अपने नारीत्व को समाज में प्रतिष्ठित करके समाज को ललकारने का प्रयास किया,उसे और उसके मूल्य को समझने में प्रमोद को लगता है कि वह पिछड़ कर उसकी बड़ी वेदना बनकर उसे सताने लगता है तो अपनी बुआ के अभावपूर्ण किंतु मान पूर्ण जीवन रास्ते को स्वीकार करके सबसे कम जीवनोपयोगी के द्वारा अपने जीवन के आगे बढ़ने का निर्णय कर लेता है।

• उसके मन में साधन संपन्न जीवन के प्रति वितृष्णा सी उत्पन्न हो जाती है अतः बुआ के अभीष्ट के लिए वह यह कहकर कि “औरों के लिए रहना तो शायद नए सिरे से मुझ से सीखा न जाए आदते पक गई है, पर अपने लिए तो उतनी ही स्वल्पता से रहूंगा, जितना अनिवार्य होगा।”

• आधुनिक भारतीय नारी की अस्मिता मनोव्यापारपरक अंन्तर्यात्रा का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण इस उपन्यास में है।

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