💐जन्म 💐
• जन्म:- फागुन सुदी बृहस्पतिवार संवत् 1601 ( सन् 1544ई.)
• जन्म :- 1544 ई.
( डॉ. बडथ्याल, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, आचार्य
परशुराम चतुर्वेदी और नगेंद्र के अनुसार)
• जन्म स्थान:- अहमदाबाद (गुजरात)
💐मृत्यु 💐
• मृत्यु :- जेठ सदी आठ शनिवार संवत् 1660 (सन् 1603 ई.)
• शरीर छोड़ा :- भराने(जयपुर) स्थान पर
💐जाति 💐
◆ धुनिया (सुधाकर द्विवेदी के अनुसार)
◆ ब्राह्मण (क्षितिमोहन सेन के अनुसार)
◆ गुजराती ब्राह्मण (डॉ. बडथ्याल के अनुसार)
◆ धुनिया परिवार,जाति मुसलमान (रज्जब के
अनुसार)
◆ नीची जाति के ( आ. रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार)
◆ दादू मुसलमान थे और उनका नाम दाऊद था।
(प्रोफेसर चंद्रिका प्रसाद त्रिपाठी और क्षितिज
मोहन सेन के अनुसार)
• पैतृक व्यवसाय :- रुई बुनना(नगेंद्र के अनुसार)
💐संतान 💐
• दादू दयाल के दो पुत्रों के नाम :-
गरीब दास एवं मिस्कीनदास
• दादू दयाल के दो पुत्रियों के नाम :-
नाना बाई एवं माता बाई
💐गुरु 💐
• दादू रामानंद के शिष्य परंपरा के छठे शिष्य थे :- रामानंद – कबीर – कमाल – जमाल – विमल – बुढ्ढन – दादू (गार्सा द तासी के अनुसार)
• दादू दयाल के गुरु का नाम :- बुढ्ढन या वृद्धानंद
• दादू दयाल की गुरु वृद्धानंद से प्रथम मुलाकात 11 वर्ष की अवस्था में हुई थी।
💐शिष्य💐
• दादू दयाल के शिष्य के नाम:- रज्जब, जगन्नाथदास, संतदास और जनगोपाल
• दादू दयाल के शिष्यों में सुंदरता सर्वाधिक शास्त्रीय ज्ञान संपन्न महात्मा थे।(विश्वनाथ त्रिपाठी के अनुसार)
• दादू दयाल के 152 मुख्य शिष्य बताए जाते हैं।(विश्वनाथ त्रिपाठी के अनुसार)
• परब्रह्म सम्प्रदाय के प्रमुख 152 शिष्य हुए। जिनमें 100 शिष्य तो विरक्त हो गए और इन्होंने न मठ स्थापित किये, न शिष्य ही बनाये। शेष 52 शिष्यों ने मठ स्थापित किए और शिष्य बनाएं इसलिए ये थॉमाधारी महंत कहलाए थे।
• राघोदास ने भक्तमाल में दादू दयाल के प्रमुख 52 शिष्यों का उल्लेख किया है। जिनमें रज्जब और सुंदर दास सर्वप्रमुख शिष्य थे।
• दादू के शिष्यों में हिंदू और मुसलमान दोनों ही थे।
• प्रमुख हिंदू शिष्य :– जनगोपाल दास, सुंदर दाम जगजीवन दास, क्षेत्रदास, गरीब दास, माधोदास प्रयागदास,बनवारी दास, शंकरदास,मोहन दास के मस्कीनदास,जगन्नाथ, हरिदास, निश्चलदास इत्यादि।
• प्रमुख मुसलमान शिष्य :- काज़ी कदम, शेख फरीद, काजी मोहम्मद, शेख बहावद(दरवेश),बखना, रज्जब इत्यादि।
• दादू के शिष्यों में सुंदरदास,रज्जब, जनगोपाल,
जगन्नाथ,मोहनदास और खेमदास आदि ने कविता
लिखी।
• दादू की शिष्य परंपरा में जगजीवनदास हुए जिन्होंने सतनामी संप्रदाय चलाया।
• दादू दयाल के शिष्य जनगोपाल ने दादू की एक जीवनी ‘जीवनी परची’ के नाम से लिखी।
💐नामकरण💐
• बंगाल के बाउल संतों में प्रसिद्ध दादू – वंदना के एक पद के आधार पर आचार्य क्षितिमोहन सेन ने अनुमान किया कि इनका दाऊद था जो बाद में चलकर दादू हो गया।
• दादू दयाल को उनके दयालुता के कारण दादू दयाल भी कहा जाता है।(नगेन्द्र के अनुसार)
💐भ्रमण💐
• 1573 ई. में सांभर में निवास करने लगे(नगेंद्र के अनुसार)
• संवत् 1619 से 1631के मध्य सांभर में रहे।(सांभर में परब्रह्म संप्रदाय की स्थापना की)
• आमरे मे 14 वर्ष तक रहे। वहां से मारवाड़, बीकानेर आदि स्थानों में घुमते हुए संवत् 1659 में नराना में (जयपुर से 20 कोस दूर ) आकर रहे। (आ. रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार)
• 1584 ई. में कहते हैं कि सम्राट अकबर के ने दादू दयाल को फतेहपुर सीकरी में बुलाकर सत्संग किया था जो 40 दिन तक चलता रहा।(आ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार)
• आमेर,मारवाड़ और बीकानेर आदि स्थानों में घूमते हुए जयपुर आए। वहां के ‘भराने’ नामक स्थान पर इन्होंने 1603 ई. मे शरीर छोड़ा यह स्थान दादूपंथियों का केंद्र है। (विश्व नाथ त्रिपाठी के अनुसार)
• दादू और अकबर की भेंट एक बार फतेहपुर सीकरी (संवत् 1646) में हुई थी। जिसमें अकबर ने दादू से पूछा था कि खुदा की जाति, अंग ,वजूद और रंग क्या है जिसका उत्तर दादू दिया था :-
” इश्क अलह की जाति है इस अलह का अंग है।
इश्क अलह की औजूद है इश्क अलह का रंग है।।”
💐दादू दयाल का सम्प्रदाय💐
• दादू पंथ के प्रवर्तक :- दादूदयाल
• दादू पंथियों की प्रधान पीठ :- भराने
• दादू पंथियों का केंद्र प्रधान राजस्थान में है।
• दादू पंथ की नागा जमात जयपुर में बड़ी भारी संख्या में है।
• सत्संग स्थल :- अलख दरीबा नाम से प्रसिद्ध है।
• 30 वर्ष की अवस्था में दादू ने सांभर के पर ब्रह्म संप्रदाय की स्थापना की।(आ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार)
• दादू दयाल पंथ को कबीर पंथ की राजस्थान शाखा कहा जा सकता है।(नगेन्द्र के अनुसार)
• दादू के 52 शिष्य थे। प्रत्येक शिष्य ने दादू – द्वार की स्थापना की । इस प्रकार इस पंथ के 52 दादू – द्वार (पूजा स्थान) है। दादूपंथी जब गृहस्थाश्रम स्वीकार करते हैं तो वह दादूपंथी न कहलाकर सेवक कहलाते हैं। दादूपंथी नाम के केवल वैरागियां के लिए है।
• दादू ने अपने मत को कभी संप्रदाय पर विशिष्ट का रूप नहीं दिया परंतु इनके शिष्य ने पंथ चलाया ही। इनके जीवन काल में है जो सत्संगी आया करते थे वे प्रायः अपने को ब्रह्म संप्रदाय का सदस्य कहने लगे थे।
• दादू के शिष्य जन गोपाल ने लिखा “दादू को हिंदू और इस्लाम धर्म का कोई आग्रह नही था, न अपने को षड़दर्शन के भीतर ही बांधने की प्रवृत्ति थी।”
• दादूपंथी के अंतर्गत इन वैरागियों ने पांच भेद हैं :-
1. खालसा
2. नागा
3. उत्तरादी
4. विरक्त
5. खाकी
• दादू – द्वार में ‘दादू की बानी’ की पूजा ठीक उसी प्रकार की जाती है जैसे किसी मंदिर में मूर्ति की।
• मध्व संप्रदाय अपना ब्रह्म संप्रदाय मानता है इसीलिए इससे अपना पृथक परिचय देने के लिए दादू पंथियों ने अपने संप्रदाय का नाम परब्रह्म सम्प्रदाय रखा।
💐दादू दयाल के संबंध में कथन💐
• कबीर दास के मार्ग के अनुगामी थे।
• दादू दयाल अकबर के समकालीन थे।
• दादू दयाल तुलसी के समकालीन थे।
• धर्म सुधारक, समाज – सुधारक और रहस्यवादी कवि ।(नगेन्द्र के अनुसार)
• प्रभावशाली कवि (नगेन्द्र के अनुसार)
• राजपूताना के प्रसिद्ध संत (आ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार)
• दादू दयाल ने बराबर इस बात का जोर दिया है कि भक्त होने के लिए नम्र ,शीलवान, अफलाकांशी और वीर होना चाहिए। कायरता उनके निकट साधना की सबसे बड़ी शत्रु है।(आ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार)
• “स्वभाव में से वे मीठे मृदु एवं प्रेमी है अत्यंत बड़ी बात कहते हैं समय भी वे मृदुल दिखाई देते हैं।” (दादूदयाल के बारे आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का कथन)
• “वे साधारण कोटि के अशिक्षित आदमी है।” (दादू दयाल के विषय में, आ.हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा)
• “कबीर के लिए उनका स्वभाव बड़ा उपयोगी सिद्ध हुआ है क्योंकि उन्हे अपने रास्ते में बहुत से झाड़ – झखाड़ साफ करने थे। दादू की मैदान बहुत कुछ साफ मिला था और इसमें उनके मीठे स्वभाव ने आश्चर्यजनक असर पैदा किया यही कारण है कि दादू को कबीर की अपेक्षा से अधिक शिष्य और सम्मानदाता मिले हैं।”( आ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार)
• कबीर का स्वभाव एक तरह से तेज से दृढ़ था और दादू दयाल का स्वभाव नम्रता से मुलाकात।(विश्वनाथ त्रिपाठी के अनुसार)
💐दादू वाणी संबंध प्रकाशित साहित्य💐
• हरडेवाणी(रचनाओं का संग्रह):- संकलन संतदास और जगन्नाथ दास के (दादू दयाल के शिष्य) द्वारा
• अंगबधू :- संकलन रज्जब(दादू दयाल का शिष्य) के द्वारा
• दादू दयाल की वाणी का संपादन :-सुधाकर द्विवेदी ने किया।(प्रकाशन :- नागरी प्रचारिणी सभा ,काशी द्वारा) 【2623 साखियां और 445 पद】
• दादूदयाल ग्रंथावली का संपादन :- आचार्य परशुराम चतुर्वेदी ने किया।(प्रका :- नागरी प्रचारिणी सभा, काशी द्वारा)【2559 साखियां और 446 पद】
• दादू दयाल ने बीस सहस्त्र पदों और साखियों की रचना की थी।(नगेन्द्र के अनुसार)
💐 दादू दयाल की भाषा💐
• भाषा :- राजस्थानी मिश्रित – पश्चिमी हिंदी
• दादू की बानी में अधिकतर कबीर के साखी से मिलते-जुलते दोहों में है।(आ रामचंद्र शुक्ल के अनुसार)
• भाषा मिली – जुली पश्चिमी हिन्दी है जिसमें राजस्थानी का मेल भी है । इन्होंने कुछ पद गुजराती, राजस्थानी एवं पंजाबी में भी गए हैं।
• इनकी रचना में अरबी फारसी के शब्द भी अधिक आए हैं और प्रेमतत्व की व्यंजना अधिक है।
💐दादू दयाल की पंक्तियां💐
1. सब घट माही रमि रहना, बिरला बुझे कोई।
सोई बुझे राम को, जो रामसनेही होइ।
2. तुमसो राता, तुमसो माता,
तुमसो लागा,रंग रे खालिक,
तुमसो खेला, तुमसो मेला,
तुमसो प्रेम – सनेह रे खालिक ।
3. यह मसीत यह देहरा सतगुरु दिया दिखाई,
भीतर सेवा – बंदगी, बाहर काहे जादू।।
4. दोनों भाई हाथ – पग, दोनों भाई कान।
दोनों भाई नैन है,हिन्दू- मुसलमान।।
5. अल्लाह – राम छूटा भ्रम मोरा
हिन्दु – तुरक भेद कुछ नाही देखुं दरसन तोरा।।
6. साधु पुरुष देखी कहै।
गुनी कहै नहि कोय।।
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