?? दुलाईवाली ??
◆ कहानीकार :- राजेन्द्र बाला घोष(बंग महिला)
◆ प्रकाशन-1907 ई.में, सरस्वती पत्रिका में
◆ पात्र :-
1. वंशीधर(इलाहबाद निवासी )
2. जानकी देई (वंशीधर की पत्नी, ग्रहस्थ महिला)
3. सीता (जानकी की बहन,वंशीधर की साली)
4. नवलकिशोर (वंशीधर का ममेरा भाई,हंसमुख व्यक्ति)
5.लाठीवान (ट्रेन में एक यात्री)
6.वंशीधर की सास
7.वंशीधर की साला
8. इक्केवाला
◆ कहानी का विषय :-
• काशी और उसके आस-पास के जन-जीवन व स्त्री-पुरुष के सोच तथा मनोभावों का स्वभाविक चित्रण ।
• विदेशी वस्तुओं के प्रयोग पर व्यंग्य।
◆ महत्वपूर्ण बिन्दु :-
• कहानी की शुरुआत काशी के दशाश्वमेध घाट से शुरू होकर, इलाहाबाद में खत्म होती है।
◆ कहानीका सारांश :-
★ दुलाईवाली’ का अर्थ :- कपड़े का मोटा चादर जिसे नवविवाहिता औरतें घूँघट लेती है।
★ काशी के दशाश्वमेध घाट पर स्नान करके एक मनुष्य बड़ी व्यग्रता के साथ गोदौलिया की तरफ आ रहा था।
★ एक हाथ में :- एक मैली-सी तौलिया में लपेटी हुई भीगी धोती।
★ दुसरे हाथ में :- सुरती की गोलियों की कई डिबियाँ और सुँघनी की एक पुड़िया।
★ उस समय दिन के ग्यारह बजे थे।
★ गोदौलिया की बायीं तरफ जो गली है, उसके भीतर एक और गली में थोड़ी दूर पर एक टूटे-से पुराने मकान में वह जा घुसा।
◆ एक कोठरी में उसने हाथ की चीजें रख दी और, सीता! सीता! कहकर पुकारने लगा।
★ “क्या है?” कहती हुई एक दस बरस की बालिका आ खड़ी हुई।
★ पुरुष ने कहा, “सीता! जरा अपनी बहन को बुला ला।”
★ “अच्छा!”, कहकर सीता गई और कुछ देर में एक नवीना स्त्री आकर उपस्थित हुई।
★ पुरुष ने कहा, “लो, हम लोगों को तो आज ही जाना होगा।”
★ “तुम आज कहती हो! हमें तो अभी जाना है। बात यह है कि आज ही नवलकिशोर कलकत्ते से आ रहे हैं।
★ आगरे से अपनी नई बहू को भी साथ ला रहे हैं।
★ हम सब लोग मुगलसराय से साथ ही इलाहबाद चलेंगे।
★ “हाँ, यह बात है! नवल जो चाहें करावें। क्या एक ही गाड़ी में न जाने से दोस्ती में बट्टा लग जाएगा? अब तो किसी तरह रुकोगे नहीं, जरुर ही उनके साथ जाओगे। पर मेरे तो नाकों दम आ जाएगी।”
★ एक रोज मैं चौक में बैठी पुड़ियाँ काढ़ रही थी, कि इतने में न जाने कहाँ से आकर नवल चिल्लाने लगे, ए बुआ! ए बुआ! देखो तुम्हारी बहू पुड़ियाँ खा रही है।”
★ बंशीधर कोठरी के बाहर चले आए और बोले, “मैं तुम्हारे भैया के पास जाता हूँ। तुम रो-रुलाकर तैयार हो जाना।”
★ इतना सुनते ही जानकी देई की आँखें भर आयीं। और आसाढ़-सावन की झड़ी लग गई।
◆ बंशीधर:-
★ इलाहबाद के रहने वाले
★ बनारस में ससुराल
★ स्त्री को विदा कराने आये हैं।
★ ससुराल में एक साले, साली और सास के सिवा और कोई नहीं है।
★ नवलकिशोर इनके दूर के नाते में ममेरा भाई ◆ दोनों में गहरी मित्रता
★ सीता, बहन के संग जाने के लिए रोने लगी।
★ माँ रोती-धोती लड़की की विदा की सामग्री इकठ्ठा करने लगी।
★ जानकी देई भी रोती-रोती तैयार होने लगी। हीं गयी है।
★ साले राम की तबियत अच्छी नहीं। वे हर घड़ी बिछौने से बातें करते हैं।
★ बंशीधर के अनुसार इक्के की सवारी घर की स्त्रियों के बैठने लायक क्यों नहीं होती? :- क्योंकि ऊँचे पर चढ़ना पड़ता है और पराये पुरुष के संग एक साथ बैठना पड़ता है।
★ एक पालकी गाड़ी किराया:- डेढ़ रूपया
★ बंशीधर नवलकिशोर से कहां मिलने वाला था? :- इलाहबाद में
★ असबाब का अर्थ :- सामान
★ जानकी देई बड़ी विकलता से रोती हुई इक्के पर जा बैठी।
★ “पर इस अस्थिर संसार में स्थिरता कहाँ? यहाँ कुछ भी स्थिर नहीं।” यह कथन संबंध कहां गया है? :-जानकी देई के संबंध में ( इक्का जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया वैसे जानकी की रूलाई भी कम होती गई।)
★ सिकरौल के स्टेशन के पास पहुँचते-पहुँचते जानकी देई ने अपनी आँखे अच्छी तरह पोछ चुकी थी।
★ बंशीधर ने कहां ‘अरे एक बात तो हम भूल ही गए।’ यहां एक बात क्या भुल गये? :- धोती
★ इक्के वाला ने कान बचाकर जानकी जी से पूछा, “क्या हुआ? क्या कोई जरुरी चीज भूल आये?” (जरूरी चीज :- देशी धोती पहना क्योंकि बंशीधर विलायती धोती पहनकर आ गये)
★ नवल कट्टर स्वदेशी थे।
★ “नाहक विलायती चीजें मोल लेकर क्यों रुपये की बर्बादी की जाए। देशी लेने में भी दाम लगेगा सही; पर रहेगा तो देश ही में।”(बंशीधर का कथन)
★ इक्के वाले ने कहा, “इधर से टिकट लेते जाइए पुल के उस पार तो ड्योढ़े दर्जे (उच्चवर्ग) का टिकट मिलता है।”
★ रेल पर बैठकर बंशीधर राजघाट पार करके मुगलसराय पहुंचे।
★ रेल देवी भी अपनी चाल धीमी करती हुई गम्भीरता से आ खड़ी हुई।
★ बंशीधर झट गए और जानकी को लाकर जनानी गाड़ी में बिठाया। वह पूछने लगी, नवल की बहु कहाँ है?” वह नहीं आये, कोई अटकाव हो गया,” कहकर आप बगल वाले कमरे में जा बैठे। टिकट ड्योढ़े का था; पर ड्योढ़े दर्जे का कमरा कलकत्ते से आनेवाले मुसाफिरों से भरा था। इसलिए तीसरे दर्जे में बैठना पड़ा।
★ जिस गाड़ी में बंशीधर बैठे थे उसके सब कमरों में मिलाकर कुल दस-बारह स्त्री-पुरुष थे। समय पर गाड़ी छूटी। नवल की बातें, और न-जाने क्या अगड़-बगड़ सोचते गाड़ी कई स्टेशन पार करके मिर्जापुर पहुँची।”
★ मिर्जापुर में पेटराम की शिकायत शुरू हुई।
पेटाराम का मतलब :- बंशीधर को मिर्जापुर में भुख लग रही थी। उसने बिना खाना खाये ही बनारस छोड़ा था।
★ बंशीधर के कमरे में जो लोग थे सब तीसरे दर्जे के योग्य जान पड़ते थे। अधिक सभ्य तो बंशीधर ही थे।
◆ उस कमरे में तीन-चार प्रौढ़ ग्रामीण स्त्रियाँ भी थीं। एक, जो उसके पास ही थी, कहने लगी, “अरे इनकर मनई तो नाहीं आइलेन। हो देखहो, रोवल कर थईन।”
★ अरे एक के एक करत न बाय तो दुनिया चलत कैसे बाय? (स्त्रियों की वाक्-धारा)
★ पिछले कमरे में केवल एक स्त्री जो फरासीसी छींट की दुलाई ओढ़े अकेली बैठी थी।
★ दुलाई ओढ़े अकेली स्त्री घूंघट के भीतर से एक आंख निकालकर बंशीधर की ओर ताक देती थी।
★ गाड़ी इलाहाबाद के पास पहुंचने को हुई। बंशीधर उस स्त्री को धीरज दिलाकर आकाश-पाताल सोचने लगे।
◆ यदि तार में कोई खबर न आयी होगी तो दूसरी गाड़ी तक स्टेशन पर ही ठहरना पड़ेगा। और जो उससे भी कोई न आया तो क्या करूंगा? जो हो गाड़ी नैनी से छूट गयी।
◆ अशिक्षिता स्त्रियों ने फिर मुंह खोला, क भइया, जो केहु बिना टिक्कस के आवत होय तो ओकर का सजाय होला?
◆ किसी आदमी ने तो यहां तक दौड़ मारी की रात को बंशीधर अशिक्षिता स्त्रियों के जेवर छीनकर रफूचक्कर हो जाएंगे।
◆ उस गाड़ी में एक लाठीवाला भी था, उसने खुल्लिम खुल्ला कहा, का बाबू जी! कुछ हमरो साझा! इसकी बात पर बंशीधर क्रोध से लाल हो गये।
◆ यदि इलाहाबाद उतरता तो बंशीधर से बदला लिये बिना न रहता।
◆ बंशीधर इलाहाबाद में उतरे। एक बुढ़िया को भी वहीं उतरना था। उससे उन्होंने कहा कि उनको भी अपने संग उतार लो। फिर उस बुढ़िया को उस स्त्री के पास बिठाकर आप जानकी को उतारने गये।
◆ जानकी को और उस भद्र महिला को एक ठिकाने बिठाकर आप स्टेशन मास्टर के पास गये।
◆ बंशीधर के जाते ही वह बुढ़िया, जिसे उन्होंने रखवाली के लिए रख छोड़ा था, किसी बहाने से भाग गयी।
◆ टिकट के लिए बखेड़ा होगा। क्योंकि वह स्त्री बिना के टिकट है।
◆ इतने में अपने सामने उस ढुलाईवाली को आते देखा। तू ही उन स्त्रियों को कहीं ले गयी है, इतना कहना था कि दुलाई से मुंह खोलकर नवलकिशोर खिलखिला उठे।
◆ वे लोग तो पालकी गाड़ी में बैठी हैं। तुम भी चलो।
◆ नहीं मैं सब हाल सुन लूंगा तब चलूंगा। हां, यह तो कहे, तुम मिरजापुर में कहां से आ निकले?
मिरजापुर नहीं, मैं तो कलकत्ते से, बल्कि मुगलसराय से, तुम्हारे साथ चला आ रहा हूं।
◆ तुम जब मुगलसराय में मेरे लिए चक्कर लगाते थे तब मैं ड्योढ़े दर्जे में ऊपरवाले बेंच पर लेटे तुम्हारा तमाशा देख रहा था।
◆ फिर मिरजापुर में जब तुम पेट के धंधे में लगे थे, मैं तुम्हारे पास से निकल गया पर तुमने न देखा, मैं तुम्हारी गाड़ी में जा बैठा।
◆ यह सुन बंशीधर प्रसन्न हो गये। दोनों मित्रों में बड़े प्रेम से बातचीत होने लगी। बंशीधर बोले, मेरे ऊपर जो कुछ बीती सो बीती, पर वह बेचारी, जो तुम्हारे-से गुनवान के संग पहली ही बार रेल से आ रही थी, बहुत तंग हुई, उसे तो तुमने नाहक रूलाया। बहुत ही डर गयी थी।
◆ जानकी कह रही थी-अरे तुम क्या जानो, इन लोगों की हंसी ऐसी ही होती है। हंसी में किसी के प्राण भी निकल जाएं तो भी इन्हें दया न आवे। खैर, दोनों मित्र अपनी-अपनी घरवाली को लेकर राजी-खुशी घर पहुंचे और मुझे भी उनकी यह राम-कहानी लिखने से छुट्टी मिली।
* मुझे :- लेखक के लिए
अधिक जानकारी के लिए क्लिक करे।
टेलीग्राम से जुड़ने के लिए क्लिक करे।
फेसबुक पेज से जुड़ने के लिए क्लिक करे।
4 comments
Pingback: राही कहानी(rahi kahani) - Hindi Best Notes.com
Pingback: अमृतसर आ गया कहानी(amrtasar aa gaya kahani) - Hindi Best Notes.com
Pingback: चन्द्रदेव से मेरी बाते कहानी(chandradev se meri bate kahani) - Hindi Best Notes.com
Pingback: कोसी ओर घटवार कहानी(Kosi and Ghatwar kahani) - Hindi Best Notes.com