नरेंद्र कोहली की आत्मकथा – आत्म स्वीकृति (Narendra Kohli ki aatmakatha – aatm sveekrti)

🌺नरेंद्र कोहली की आत्मकथा – आत्म स्वीकृति🌺

 

◆ प्रकाशन :- 1 मई 2014 को

 

◆ नरेंद्र कोहली की आत्मकथा ‘आत्म स्वीकृति उनके जीवन के कई पहलुओं और संघर्षो का खुला चिट्ठा है।

 

◆ पाकिस्तान के स्यालकोट में जन्म, लाहौर से स्कूलिंग, उर्दू माध्यम से पढ़ाई, देश विभाजन के बाद पलायन और डेरा बाबा नानक पहुंचने के पहले रावी पुल की घटनायें काफी रोमांचित करती हैं।

 

◆ ‘आत्म स्वीकृति’ से पहले उनकी तमाम कहानियों में उनके जीवन की सच्ची बातें सामने आती रही हैं।

 

◆ यही कारण है कि उन्होंने इस कृति में उन कहानियों और उनके पात्रों को खुद से जोड़कर पाठकों के सामने रखा है। चाहे वह कहानी ‘अपने पराए’ हो, ‘छवि’ हो, ‘प्रीतिकथा’ हो या फिर पानी का जग, गिलास और केतली’ हो। चाहे वह शख्स संदीप हो या फिर विनीत- इन पात्रों में नरेंद्र कोहली अपना अक्स देखते हैं।

 

◆ ‘आत्म स्वीकृति में अपनी दादी और सौतेली दादी से लेकर अपने पिता और भाइयों की मेहनत और संघर्ष का बारीक बयान नरेंद्र कोहली ने किया है।

 

◆ जमशेदपुर के उर्दू भाषा के स्कूल में पढ़ाई, साइंस विषयों में अच्छे अंक आने के बाद हिन्दी और मनोविज्ञान पढ़ना, विभिन्न भाषण प्रतियोगिताओं में विजेता होना, इस साहित्य गुरु की अनदेखी कहानी कहती है।

 

◆ रांची विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में एमए की पढ़ाई, फिर दिल्ली में संघर्ष, प्रेम और नौकरी से संबंधित घटनाओं को उन्होंने अपनी आत्मकथा में विस्तार दिया है।

◆ जीवन के तमाम उतार-चढ़ावों और लेखकीय और प्राध्यापन संबंधी व्यस्तताओं के बाद भी नरेंद्र कोहली अपने शिक्षकों को नहीं भूले। यही कारण है कि उन्होंने बदउज्जमा ‘मायल’, आर. आर. प्रसाद, राय साहब, लेफ्टिनेंट चंद्रभूषण सिन्हा, डॉ. सत्यदेव ओझा,रमाकांत झा, आर.एम. सिन्हा से लेकर डॉ. नगेंद्र और विजय कुमार मल्होत्रा तक को बखूबी याद किया है।

 

◆ हालांकि उन्होंने अपने प्रेम और उम्र के भटकाव या कहें- उस उम्र में लड़कियों के प्रति आकर्षण को छुपाया नहीं है। यही कारण है कि उनकी इस आत्म स्वीकृति के काफी पन्ने इंद्र, सुनीता, प्रमिला, मल्लिका से लेकर चंदा और पत्नी मधुरिमा के नाम समर्पित हैं।

 

◆ हालांकि वह अपनी इस आत्म स्वीकृति को लेखन, रचनात्मकता और कॉलेजों के अध्ययन-अध्यापन के अलावा रचना प्रक्रिया से जोड़ सकते थे, लेकिन उन्होंने आम पाठकों के पढ़ने के स्वाद को बनाए रखने के लिए इन मसालों का इस्तेमाल किया है।

 

◆ बहरहाल, आत्मकथा लिखना आसान नहीं होता। जीवन के किस सत्य को छुपाया जाये और किस असत्य को लिखा जाए, इसका निर्णय करना और भी कठिन होता है।

 

◆ यही कारण है कि वरिष्ठ साहित्यकार नरेंद्र कोहली लिखते हैं कि अपना सत्य लिखना है, किंतु दूसरों के कपट का उद्घाटन नहीं करना है, क्योंकि उसमें स्वयं को महान बनाने की चेष्टा देखी जा सकती है।

 

◆ वे घटनाएं जो अपने लोगों को आहत करती हैं और वे घटनाएं जो लेखक की आत्मभर्त्सना के रूप में उसे गौरवान्वित करती हैं। इतना ही नहीं, वे इस कृति को लिखने के सफर में किस पीड़ा से गुजरे हैं, उनकी इन बातों से इसका आशय समझा जा सकता है कि अनावृत सत्य बोलना बहुत कठिन होता है, उसकी चपेट में लेखक स्वयं तो आता ही है, वे लोग भी आ जाते हैं जिनके विषय में सत्य बोलने का अधिकार लेखक को नहीं है।

 

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