• एक विचार प्रधान व्यक्तिनिष्ठ निबंध
• इस निबंध में उन्होंने अपनी जिज्ञासु पुत्री के बाल – सुलभ प्रश्न ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं ‘ का उत्तर देने के लिए विचारों का ताना – बाना बुना है।
• जब मनुष्य वनमानुष का था तब उसके अस्त्र नाखून एवं दांत थे। प्रथम स्थान नाखून का था।
• रामचंद्र जी वानरी सेना के पासे पत्थर के ढेले और पेड़ की डाली काम में लेते थे शस्त्र के रूप में।
• देवताओं के राजा तक को मनुष्यों के राजा से इसलिए सहायता लेनी पड़ती थी कि मनुष्यों के राजा के पास लोहे के अस्त्र थे।
• असूरो के पास अनेक विद्याएं थी, पर लोहे के अस्त्र नहीं थे एवं घोड़े भी नही थे।
• आर्यो के पास घोडे और लोहे के अस्त्र दोनों थे।
• मनुष्य वही लाख वर्ष पहले के नखदंतावलंबी जीव हो पशु के साथ एक ही सतह पर विचरने वाले और चरने वाले।
• मनुष्य अपने बच्चों को नाखून काटने के लिए न काटने के लिए डांटता है।
• लाखो वर्ष पूर्व मनुष्य अपने बच्चों को नाखून नष्ट करने पर डांटता रहा होगा।
• मनुष्य अब नाखून इसलिए नही चाहता हझ कि उसके भीतर बर्बर – युग का कोई अवशेष रह जाय, यह उसे असह्य है।
• मनुष्य के नाखून काटने में बर्बरता घटी कहां है वह तो बढ़ती जा रही है।
• हिरोशिमा का हत्याकांड मनुष्य की भयंकर पाशवीवृत्ति के जीवन प्रतीक है।
• हजार साल पहले मनुष्य के नाखून को सुकुमार विनोदों के लिए उपयोग में लाना शुरू किया था।
• दो हजार वर्ष पहले काम भारतवासी नाखूनों को सँवारता था।(वात्स्यायन के कामसूत्र के अनुसार)
• नाखून को अलग-अलग आकृतियों में काट कर सिक्थक(मोम) और अलक्तक(आलता) से यत्न पूर्वक रगड़कर लाल और चिकना बनाया जाता था।
• गौड़ देश के लोग बड़े – बड़े नखो को पसंद करते थे।( दो हजार वर्ष पूर्व )
• दाक्षिणात्य लोग छोटे नखों को पसंद करते थे ( दो हजार वर्ष पूर्व )
• मनुष्य शरीर का अध्ययन करने वाले प्राणी विज्ञानियों का निश्चय मत है।
• शरीर के अपने भीतर एक ऐसा गुणा पैदा कर लिया है कि वे वृत्तियाँ का अनायास ही और शरीर के अनजान में अपने – आप करती है।
★ नाखून का बढ़ना।
★ केश का बढ़ना।
★ दाँत का दुबारा आना।
★ पलकों का गिरना।
• सहजात वृत्तियाँ अनजान की स्मृतियों को कहते हैं।
• अस्त्र बढ़ाने की प्रवत्ति मनुष्यता की विरोधिनी है।
• नाखून बढ़ना मनुष्य की पशुता की निशानी है।
• भारतीय भाषाओं में प्रायः ही अंग्रेजी के इडिपेडेस शब्द का समानार्थक शब्द नहीं व्यवहृत होता है।
• 15 अगस्त को जब अंग्रेजी भाषा के पत्र इंडिपेंडेंट की घोषणा कर करते थे।
• देशी भाषा के पत्र :- स्वाधीनता दिवस की चर्चा कर रहे थे।
• इंडिपेडेन्स का अर्थ है :- अनधीनता या किसी की अधीनता का अभाव ।
• स्वाधीनता :-
★ स्वाधीनता अर्थ :- अपने ही अधीन रहता
★ इसको अंग्रेजी में सेल्फडिपेडेन्स कहते है।
• सहजात वृत्ति :- अनजानी स्मृतियों का नाम
• हमारी परंपरा महिमामयी उत्तराधिकार विपुल और संस्कार उज्ज्वल है ।
• भारतीय चित्त जो आज भी अनधीनता के रूप में न सोचकर स्वाधीनता के रूप में सोचता है। वह हमारे दीर्घकालिक संस्कारों के फल है।
• सब पुराने अच्छे नहीं होते, सब नए खराब ही नही होते। भले लोग दोनों की जाँच कर लेते है जो हितकर होता हैं उसे ग्रहण करते है और मूढ़ लोग दूसरों के इशारे पर भटकते रहते हैं ।(कालिदास के अनुसार)
• यह मनुष्य के स्वयं के उद्भावित बंधन है इसलिए मनुष्य झगड़े – टंटे को अपना आदर्श नही मानता, गुस्से में आकर चढ़-दौड़ने वाले अविवेकी को बुरा समझता है और वचन,मन और शरीर से किए गए असत्याचार को गलत आचरण मानता है।
• महाभारत में इसलिए निर्वेर भाव सत्य और अक्रोध को सब वर्णों का सामान्य धर्म कहा है।इसमें ने निरंतर दानशीलता को गिनाया गया है।
एतदधि त्रितेय श्रेष्ट सर्वभूतेषु भारत।
निर्वेरता महाराज सत्यमक्रोध एवच।।
• ” मनुष्य की मनुष्यता यही है वह सबके दुःख सुख को सहानुभूति के साथ देखता हैं। यह आत्म निर्मित बंधन की मनुष्य को मनुष्य बनाता है ।”(गौतम बुद्ध ने कहा)
• “वस्तुओं की कमी है और मशीन बैठाओ और उत्पादन बढ़ाओ और धन की वृद्धि करो और बाह्य उपकरणों की ताकत बढ़ाओ।(बड़े-बड़े नेता कहते हैं)
• एक बूढा कहता था – ” बाहर नहीं भीतर की ओर देखो। हिंसा को मन से दूर करो, मिथ्या को हटाओ, क्रोध और द्वेष को दूर करो, लोक के लिए कष्ट सहो, आराम की बात मत सोचो, प्रेम की बात सोचो,आत्मतोषण की बात सोचो, काम करने की बात सोचो।”
• उस बूढ़े ने कहा “प्रेम ही बड़ी चीज है क्योंकि वह हमारे भीतर है।”
• उच्छृंखलता पशु की प्रवृत्ति है, स्व का बंधन मनुष्य का स्वभाव है।
• किसने गहराई में बैठकर मनुष्य की वास्तविक चरितार्थता का पता लगता था?
★ बूढ़े व्यक्ति ने
• मनुष्य के नाखून का बढ़ना कब बंद हो जायेगा ?
★ मनुष्य का अनावश्यक अंग उसी प्रकार से झड़ जाएगा, जिस प्रकार उस पूंछ झड़ गई है।उस दिन मनुष्य की पशु भी लुप्त हो जाएगी।
– (प्राणीशास्त्रियों के अनुमान से)
• नाखून का बढ़ना मनुष्य के भीतर की पशुता की निशानी है और उसे नहीं बढ़ने देना मनुष्य की अपनी इच्छा है अपना आदर्श है।
• वृहत्तर जीवन में रोकना मनुष्य का तकाजा है ।
• अपने को सयत रखना, दूसरे के मनोभावों का आदर करना मनुष्य का स्वधर्म है ।
• मनुष्य मारणास्त्रो के संचयन से, उपकरणों के बाह्य से उस वस्तु पा भी सकता है, जिसे उसने बड़े आडंबर के साथ सफलता का नाम दे रखा है।
• मनुष्य की चरितार्थता :-
★ प्रेम में
★ मैत्री में
★ त्याग में
★ अपने को सबके मंगल के लिए निःशेष भाव से देने में
• नाखूनो का बढ़ना मनुष्य की उस अंध सहजात वृत्ति का परिणाम है,जो उसके जीवन में सफलता ले आना चाहती है।
• नाखून बढ़ते है तो बढ़े, मनुष्य उन्हें बनने नहीं देगा। (अंतिम पंक्ति)
• नाखून की चर्चा करते हुए आ.हजारी प्रसाद द्विवेदी ने मनुष्य की बर्बरता और एटम बम की भीषणता पर विचार व्यक्त किये है।
💐 नाखून क्यों बढ़ते हैं?(हजारी प्रसाद द्विवेदी)💐
◆ अल्पज्ञ पिता बड़ा दयनीय जीव होता है।
* पिता :- आ. हजारीप्रसाद द्विवेदी के लिए
◆ मेरी छोटी लड़की ने जब उस दिन पूछ लिया कि आदमी के नाखून क्यों बढ़ते हैं, तो मैं कुछ सोच ही नहीं सका।
* मेरी,मैं :- आ. हजारीप्रसाद द्विवेदी के लिए
◆ कोई नहीं जानता कि ये अभागे नाखून क्यों इस प्रकार बढ़ा करते है।
◆ किस प्रकार नाखून चुपचाप दंड स्वीकार लेगें :- निर्लज्ज अपराधी की भाँति
◆ जब मनुष्य जंगली था, वनमानुष जैसा उसे नाखून की जरूरत थी। उसकी जीवन रक्षा के लिए नाखून बहुत जरूरी थे।
◆ प्राचीन काल में वनमानुष के अस्त्र क्या थे? :- नाखून और दाँत
◆ प्राचीन मनुष्य अपने अंग से बाहर की वस्तुओं का सहारा लेने लगा।
◆ पत्थर के ढेले और पेड़ की डालें काम में लाने लगा (रामचंद्रजी की वानरी सेना के पास ऐसे ही अस्त्र थे)।
◆ प्राचीन मनुष्य ने हड्डियों के भी हथियार बनाए। इन हड्डी के हथियारों में सबसे मजबूत और सबसे ऐतिहासिक था :-
√ देवताओं के राजा का वज्र, जो दधीचि मुनि की हड्डियों से बना था।
◆ जिनके पास लोहे के शस्त्र और अस्त्र थे, वे विजयी हुए देवताओं के राजा तक को मनुष्यों के राजा से इसलिए सहायता लेनी पड़ती थी कि मनुष्यों के राजा के पास लोहे के अस्त्र थे।
◆ असुरों के पास अनेक विद्याएँ थीं, पर लोहे के अस्त्र नहीं थे, शायद घोड़े भी नहीं थे।
◆ आर्यों के पास ये दोनों चीजें थी।
* दोनों चीजें :- लोहे और घोड़े
◆ इतिहास आगे बढ़ा पलीते- वाली बंदूकों ने, कारतूसों ने, तोपों ने, बर्मों ने, बमवर्षक वायुयानों ने इतिहास को किस कीचड़ भरे घाट तक घसीटा है।नख-धर मनुष्य अब एटम बम पर भरोसा करके आगे की ओर चल पड़ा है।
◆ तुम वही लाख वर्ष पहले के नखदंतावलंबी जीव हो पशु के साथ एक ही सतह पर विचरनेवाले और चरनेवाले
◆ मनुष्य आज अपने बच्चों को नाखून न काटने के लिए डॉटता है। किसी दिन कुछ थोड़े लाख वर्ष पूर्व वह अपने बच्चों को नाखून नष्ट करने पर डॉटता रहा होगा।
◆ प्रकृति है कि वह अब भी नाखून को जिलाए जा रही हैं और मनुष्य है कि वह अब भी उसे काटे जा रहा है। वे कंबख्त रोज बढ़ते हैं, क्योंकि वे अंधे हैं, नहीं जानते कि मनुष्य को इससे कोटि-कोटि गुना शक्तिशाली अस्त्र मिल चुका है। मुझे ऐसा लगता है कि मनुष्य अब नाखून को नहीं चाहता। उसके भीतर बर्बर युग का कोई अवशेष रह जाय, यह उसे असहय है। लेकिन यह कैसे कहूँ। नाखून काटने से क्या होता है?
◆ मनुष्य की बर्बरता घटी कहाँ है, वह तो बढ़ती जा रही है। मनुष्य के इतिहास में हिरोशिमा का हत्याकांड बार-बार थोड़े ही हुआ है? यह तो उसका नवीनतम रूप है।
◆ नाखून :- भयंकर पाशवी वृत्ति के जीवन प्रतीक हैं।
◆ मनुष्य की पशुता को जितनी बार भी काट दो वह मरना नहीं जानती।
◆ वात्स्यायन के ‘कामसूत्र’ से पता चलता है कि आज से दो हजार वर्ष पहले का भारतवासी नाखूनों को जमके सँवारता था।
◆ गौड़ देश के लोग उन दिनों बड़े-बड़े नखों को पसंद करते थे।
◆ दाक्षिणात्य लोग छोटे नखों को नखों को पसंद करते थे।
◆ अधोगामिनी वृत्तियों की ओर नीचे खींचनेवाली वस्तुओं को भारतवर्ष ने मनुष्योचित बनाया है।
● अधोगामिनी वृत्तियों की ओर नीचे खींचनेवाली वस्तु :- नाखून
◆ मानव शरीर का अध्ययन करनेवाले प्राणि विज्ञानियों का मत अभ्यासजन्य सहज वृत्तियाँ अनायास ही, और शरीर के अनजान में भी, अपने-आप काम करती है जिनमें :-
● एक – नाखून का बढ़ना
● दूसरा – केश का बढ़ना
● तीसरा – दाँत का दुबारा उगना
● चौथा – पलकों का गिरना
◆ सहजात वृत्तियाँ :- अनजान की स्मृतियाँ को ही कहते हैं।
◆ अगर आदमी अपने शरीर की, मन की और वाक् की अनायास घटनेवाली वृत्तियों के विषय में विचार करे, तो उसे अपनी वास्तविक प्रवृत्ति पहचानने में बहुत सहायता मिले।
◆ नख बढ़ा लेने की जो सहजात वृत्ति :- पशुत्व का प्रमाण है।
◆ नख काटने की जो प्रवृत्ति :- मनुष्यता की निशानी
◆ अस्त्र बढ़ाने की प्रवृत्ति :- मनुष्यता की विरोधिनी
◆ अस्त्र-शस्त्र को बढाना :- पशुता की निशानी
◆ भारतीय भाषाओं में प्रायः ही अँग्रेजी के ‘इंडिपेंडेस’ शब्द का समानार्थक शब्द नहीं व्यवहृत होता।
◆ 15 अगस्त को जब अँग्रेजी भाषा के पत्र ‘इंडिपेंडेन्स’ की घोषणा कर रहे थे, देशी भाषा के पत्र स्वाधीनता दिवस’ की चर्चा कर रहे थे।
◆ ‘इंडिपेंडेन्स’ का अर्थ :- अनधीनता या किसी की अधीनता का अभाव।
◆ ‘स्वाधीनता’ शब्द का अर्थ :- अपने ही अधीन रहना।(सेल्फडिपेंडेन्स)
◆ अंग्रेजी की अनुवर्तिता करने के बाद भी भारतवर्ष ‘इंडिपेंडेन्स’ को अनधीनता क्यों नहीं कह सका?
◆ भारत ने अपनी आजादी के जितने भी नामकरण किए स्वतंत्रता, स्वराज्य, स्वाधीनता सब में ‘स्व’ का बंधन अवश्य रखा।
◆ यह क्या संयोग की बात है या हमारी समूची परंपरा ही अनजान में, उन हमारी भाषा के द्वारा प्रकट होती रही है?
◆ प्राणि-विज्ञानी का मत है :– सहजात वृत्ति – अनजानी स्मृतियों का ही नाम है।
◆ हम कोई नौसिखुआ नहीं है, जो रातों-रात अनजान जंगल में पहुँचाकर अरक्षित छोड़ दिए गए हों।
* नौसिखुआ का अर्थ :- नौसिखिया यानि जिसने कोई काम अभी हाल ही में सीखा हो।
◆ भारतीय चित्त जो आज भी ‘अनधीनता के रूप में न सोचकर ‘स्वाधीनता’ के रूप में सोचता है, वह हमारे दीर्घकालीन संस्कारों का फल है।
◆ मरे बच्चे को गोद में दबाए रहनेवाली ‘बँदरिया’ मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती।
◆ कालिदास ने कहा था कि सब पुराने अच्छे नहीं होते, सब नए खराब ही नहीं होते। भले लोग दोनों की जाँच कर लेते हैं, जो हितकर होता है उसे ग्रहण करते हैं, और मूढ़ लोग दूसरों के इशारे पर भटकते रहते हैं।
◆ सभ्यता की नाना सीढ़ियों पर खड़ी और नाना और मुख करके चलनेवाली इन जातियों के लिए एक सामान्य धर्म खोज निकालना कोई सहज बात नहीं थी।
◆ आहार-निद्रा आदि पशु सुलभ स्वभाव उसके ठीक वैसे ही है, जैसे अन्य प्राणियों के । लेकिन वह फिर भी पशु से भिन्न है। उसमें संयम है, दूसरे के सुख-दुख के प्रति समवेदना है, श्रद्धा है, तप है, त्याग है।
◆ मनुष्य के स्वयं के उद्भावित बंधन हैं। इसीलिए मनुष्य झगड़े को अपना आदर्श नहीं मानता, गुस्से में आकर चढ़ दौड़नेवाले अविवेकी को बुरा समझता है और वचन, मन और शरीर से किए गए असत्याचरण को गलत आचरण मानता है।
* उद्भावित का अर्थ :- कल्पना
◆ यह मनुष्यमात्र का धर्म है महाभारत में इसीलिए निर्वैर भाव सत्य और अक्रोध को सब वर्णों का सामान्य धर्म कहा है-
एतद्धि त्रितयं श्रेष्ठ सर्वभूतेषु भारत
निर्वैरता महाराज सत्यमक्रोध एव च।।
* निर्वैर का अर्थ :- वैर भाव आदि से रहित।
◆ गौतम ने ठीक ही कहा था कि मनुष्य की मनुष्यता यही है कि वह सबके दुख – सुख को सहानुभूति के साथ देखता है। यह आत्म निर्मित बंधन ही मनुष्य को मनुष्य बनाता है अहिंसा, सत्य और अक्रोधमूलक धर्म का मूल उत्स यही है।
◆ अज्ञान सर्वत्र आदमी को पछाड़ता है।
◆ बड़े-बड़े नेता कहते हैं, वस्तुओं की कमी है, और मशीन बैठाओ, और उत्पादन बढाओ, और धन की वृद्धि करो और बाह्य उपकरणों की ताकत बढ़ाओ।
◆ एक बूढ़ा कहता था बाहर नहीं, भीतर की ओर देखो। हिंसा को मन से दूर करो, मिथ्या को हटाओ, क्रोध और द्वेष को दूर करो, लोक के लिए कष्ट सहो आराम की बात मत सोचो, प्रेम की बात सोचो, आत्म तोषण की बात सोचो, काम करने की बात सोचो ।
* एक बूढ़ा :- महात्मा गांधी जी के लिए
◆ बूढ़ा ने कहा प्रेम ही बड़ी चीज है, क्योंकि वह हमारे भीतर है।
◆ उच्छृंखलता :–पशु की प्रवृत्ति
◆ ‘स्व’ का बंधन मनुष्य का स्वभाव है।
◆ बूढ़े ने कितनी गहराई में बैठकर मनुष्य की वास्तविक चरितार्थता का पता लगाया था।
◆ नाखून का बढ़ना मनुष्य के भीतर की पशुता की निशानी है और उसे नहीं बढ़ने देना मनुष्य की अपनी इच्छा है, अपना आदर्श है।
◆ मनुष्य में जो घृणा है, जो अनायास बिना सिखाए आ जाती है, वह पशुत्व का द्योतक है और अपने को संयत रखना, दूसरे के मनोभावों का आदर करना मनुष्य का स्वधर्म है।
◆ बच्चे यह जानें तो अच्छा हो कि अभ्यास और तप से प्राप्त वस्तुएँ मनुष्य की महिमा को सूचित करती हैं।
◆ सफलता और चरितार्थता में अंतर :-
● मनुष्य मारणास्त्रों के संचयन से, बाह्य उपकरणों के बाहुल्य से उस वस्तु को पा भी सकता है, जिसे उसने बड़े आडंबर के साथ सफलता का नाम दे रखा है।(सफलता)
● मनुष्य की चरितार्थता प्रेम में है, मैत्री में है, त्याग में है,अपने को सबके मंगल के लिए निःशेष भाव से दे देने में है। (चरितार्थता)
● नाखुनों का बढना मनुष्य की उस अंध सहजात वृत्ति का परिणाम है. जो उसके जीवन में सफलता ले आना चाहती है।(सफलता)
● नाखुन को काट देना उस स्व-निर्धारित, आत्म-बंधन का फल है, जो उसे चरितार्थता की ओर ले जाती है। (चरितार्थता)
◆ नाखून बढ़ते हैं तो बढ़ें, मनुष्य उन्हें बढ़ने नहीं देगा।