? नागरीदास का परिचय ?
*नागरीदास किशनगढ़ के महाराज राजसिंह के पुत्र और महाराजा मानसिंह के पौत्र।
* जन्म- संवत् 1756
* असली नाम – सांवत सिंह
* कविता में नाम- नागरी, नागर,नागरी दास और नागरिया ।
* पुत्र सरदार सिंह का राज्य अभिषेक हो जाने के पश्चात नागरीदास वापस वृन्दावन चले गये और वहां कृष्ण भक्ति में लीन रहने लगे।
* जब कभी एक – आधा दिन के लिए आते थे तो किशनगढ़ में इनका मन नहीं लगता था अंतिम बार वे कवित्त कहकर वृंदावन की ओर चले गए और आजीवन न आए ।
ज्यो ज्यो इत देखियन सूरख विमुख लोग।
त्यौ त्यौ बृजवासी सुखरासी मन भावै है।
* नागरीदास की मृत्यु- संवत् 1821 भादो सुदी 5 को वृन्दावन में
* किशनगढ़ राज्य की कुंज में, जो नगर कुंज के नाम से प्रसिद्ध है यहां उनकी समाधि स्थल है।
* इनकी समाधि पर यह छप्पय खुदा हुआ है उसकी कुछ पंक्तियां –
सूत का दे युवराज, आप वृंदावन आये।
रूपनगर पति भक्ति, वृन्द बहु लाड लड़ाये।।
* नागरीदास संस्कृत, फारसी आदि भाषाओं के सुज्ञाता और ब्रज भाषा एवं ब्रजभूमि के अनन्य उपासक थेः
* नागरीदास के कुल ग्रंथ – 77 ग्रंथ (जिनका संग्रह नागर समुच्चय में )
* नागरीदास श्रृंगार भक्त एव प्रेमी भाव थे।
* नागरीदास नैसर्गिक कवि थे।
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