नाथ साहित्य या नाथ संप्रदाय(nath sahity ya nath sampraday)

• नाथ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अर्थवेद तथा तैतिरीय ब्राह्मण में मिलता है।

• अर्थवेद तथा तैतिरीय ब्राह्मण में नाथ का अर्थ शरणदाता है।

• नाथ शब्द का अर्थ(आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के द्वारा )

‘ना’का अर्थ -अनादि रूप

‘थ’का अर्थ– स्थापित होना

• नाथ पंथ के चरमोत्कर्ष का समय – 12वीं शताब्दी से 14वीं शताब्दी के अंत तक ( डॉ .रामकुमार वर्मा के अनुसार )

• नाथ संप्रदाय के अन्य नाम:-
1. सिद्ध मार्ग ,योग मार्ग ( तुलसीदास के द्वारा)

2. अवधूत मत या अवधूत संप्रदाय (कबीर दास के द्वारा

• नाथ समुदाय के प्रचलित शब्द है :- सिद्धमत,सिद्ध मार्ग, योग मार्ग, योग संप्रदाय, अवधूत।

• ब्रह्मानंद इस संप्रदाय को नाथ संप्रदाय के नाम से जानते हैं ।

• नाथ संप्रदाय में योग अभ्यास होने के कारण इसे योग संप्रदाय भी कहा जा सकता है।

• इस संप्रदाय के योग मत और योग सम्प्रदाय का नाम तो सार्थक है क्योंकि इनका मुख्य धर्म ही योगाभ्यास है

• अपने मार्ग को यह लोग सिद्धमत या सिद्ध मार्ग इसलिए कहते हैं कि इनके मत से नाथ ही सिद्ध है।

• नाथ संप्रदाय का अत्यन्त प्रमाणित ग्रंथ – सिद्ध सिद्धांत पद्धति

• सिद्ध सिद्धांत पद्धति ग्रंथ को 18वीं शताब्दी के अंतिम भाग में काशी के बलभद्र पंडित ने संक्षिप्त करके सिद्ध- सिद्धांत संग्रह नाम ग्रंथ लिखा था।

• तांत्रिकों के सर्वश्रेष्ठ कौलाचार को अवधूत मार्ग बताया गया है।

नाथोक्ता होने के कारण उसका नाम नाथ सम्प्रदाय पड़ा।

• मानस के प्रारंभ में गोस्वामी जी ने जिन सिद्धों को ‘याम्यां बिना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तस्थस्मीश्वस्म्’ कहकर याद किया है वे नाथ सिद्ध ही है।

• शाक्तमत में चार आचार को महत्व दिया गया है जो इस प्रकार हैं-
1. वैदिक आचार
2. वैष्णव आचार
3. शैवआचार
4. शाक्त आचार (चारों आचारों से श्रेष्ठ है)

• शाक्त आचार चार प्रकार है:-
1. वामाचार
2. दक्षिणाचार
3. सिद्धांताचार
4. कौलाचार( सब से श्रेष्ठ)

• कौलाचार अवधूत मार्गियो का नाथ पंथ है ।

• शाक्य तंत्र नाथ अनुयायी है।

शाक्त तंत्र तीन प्रकार के है-आगम, यामल एवं डामर
• 1. आगमः- सात्विक अधिकारियों को लक्ष्य करके उपदिष्ट।
• 2. यामल:- राजस अधिकारियों के लिए उपदिष्ट।
• 3. डामर : तामस अधिकारियों के लिए उपदिष्ट।

तांत्रिक लोग कपाल क्रिया को ज्यादा महत्व देते थे इसलिए उन्हें कापालिक कहा गया है और उनके मत को कापालिक मत कहा है ।

मत्स्येन्द्रनाथ का संबंध योगिनी कौल मार्ग से था ।

• नाथ संप्रदाय का प्रधान आचार्य आदिनाथ (शिव)

सब नाथ में प्रथम आदिनाथ है जो स्वयं शिव ही है। (हठयोग प्रदीपिका की टीका में ब्रह्मानंद ने कहा)

• नाथ संप्रदाय के प्रथम :- आचार्य मत्स्येन्द्रनाथ

• मत्स्येन्द्रनाथ कौल संप्रदाय के अनुयायी थे।

• मत्स्येन्द्रनाथ कौल परम तपस्वी तथा सिद्ध पुरुष थे इसलिए उन्हें सिद्ध कहते थे।

• मत्स्येन्द्रनाथ के पुत्र मीननाथ और पारसनाथ की गणना जैन संतों में की जाती है ।

• राहुल सांकृत्यायन नाथ संप्रदाय को वज्रयान और सहजयान का विकसित रूप मानते हैं ।

• गोरखनाथ की गणना व्रजयानी बौद्धों के चौरासी सिद्धों में की जाती है ।

• नाथ संप्रदाय का लक्ष्य :-मृत्यु पर विजय प्राप्त करना

• रस सिद्धांत महात्मा :- गोरखनाथ,नवनाथ, दत्तात्रेय, नागार्जुन।

• नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक :- आदिनाथ (शिव)

• आदिनाथ (शिव) का शिष्य:- जालंधर नाथ

• जालंधर नाथ का शिष्य:- कृष्णपाद (कान्हपा)

• जालंधर नाथ के शिष्यों को औघड़ कहा जाता है और इनका संबंध कापालिक साधनों से था।

• आदिनाथ (शिव) का शिष्य:- मत्स्येन्द्रनाथ(प्रथम प्रवर्तक आचार्य)

• मत्स्येन्द्रनाथ का शिष्य :- गोरखनाथ

• मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्यों को कनफटा कहा जाता है।

• कान चीरकर मुद्रा धारण करने वाले नाथ योगियों को कनफटा कहते हैं और जो इस क्रिया को नहीं करते उन्हें औघड़ कहते हैं ।

• मुद्रा जिसे कनफटा योगी कान में पहनते हैं वह दो प्रकार की होती है :- कुंडल और दर्शन
1. कुंडल :- कुंडल को धारण करने से मन पवित्र हो जाता था इसीलिए कुंडल को पवित्री भी कहते हैं।
2. दर्शनः– दर्शन को पहने ने वाले कनफटा योगी को दर्शनी कहा जाता है।

• सिद्धगण नारी – भोग में विश्वास करते थे किंतु नाथ पंथी उसके विरोधी थे।(डॉ नगेंद्र के अनुसार )
• बौद्ध सिद्ध निरीश्वरवादी थे तो नाथ सिद्ध ईश्वरवादी थे।

• नाथपंथी तीन बातों पर जोर देती है – योग मार्ग,गुरु महिमा और पिंड ब्राह्मणवाद ।

• नाथों की संख्याः– 9
• गोरक्ष सिद्धांत के अनुसार –
नागार्जुन ,जड़ भरत ,हरिश्चंद्र ,सत्यनाथ ,गोरखनाथ, चर्पट नाथ ,जालंधरनाथ, मलयार्जुन ,भीमनाथ

• डॉ रामकुमार वर्मा के अनुसार –
आदिनाथ,मत्स्येन्द्रनाथ, गोरखनाथ ,गहिणीनाथ,चर्पट नाथ,चौरंगीनाथ, ज्वालेन्द्रनाथ, भर्तृहरिनाथ ,गोपीचंद

• नाथों के प्रमुख स्थल-
1. शिमला की पहाड़ियां (जिनमें गोरखनाथ और भरतरी के अनुयायी रहते थे)
2. उत्तरी हिमालय
3. अल्मोड़े
4. पंजाब
5. बंगाल

[ ] हठयोगी :- हठ और योग

• हठ का अर्थ- दृढ़ता पूर्वक

• योग का अर्थ – चित्तवृत्तियों का निरोध

• ह का अर्थ है – सूर्य (इड़ा नाडी)

• ट का अर्थ है – चंद्रमा (पिंगला नाड़ी)

• सूर्य को प्राणवायु भी कहते हैं और चंद्रमा को अपानवायु कहते हैं।

• हठयोग इड़ा और पिंगला नाडियों के हठपूर्वक सुषुम्ना मार्ग में प्राण वायु के संचारित करने की क्रिया को हठयोग कहते है।

• हठपूर्वक वायु निरोध को हठयोग तथा साधना करने वाले को हठयोगी कहा जाता है।

• तांत्रिक बौद्धों का योगमार्ग लोक बाह्य और अमांगलिक है जबकि नाथपंथियो के योगमार्ग में हठयोग की प्रमुखता है।

[ ] नाथ संप्रदाय के आचार्य :-

1. मत्स्येन्द्रनाथ :-
• इनका संबंध योगिनी कौलमार्ग से।
• अद्वैत तांत्रिक मत के संस्थापक
प्रवृत्तियों मार्गी के गोरखनाथ ने इन्हें निवृत्ति मार्ग से लौटाया था ।
• इनका संबंध काम रूप में प्रचलित वाममार्गी साधना से था।
• मत्स्येन्द्रनाथ गुरु भाई :- जालंधर नाथ
मत्येन्द्रनाथ नारी साहचर्य के आचार में जा फंसे थे जिससे उनके शिष्य गोरक्षनाथ ने उद्धार किया था।(डॉ नगेंद्र के अनुसार )

2. गोरखनाथ :-
• हठयोग के माननीय आचार्य
• गोरखनाथ भक्त विरोधी थे। अतः गोस्वामी जी कै कहना पड़ा “गोरख जगायो जोग भगति भगायो लोग”
• गोरखनाथी शाखा – इन्हे साधारण कनफटा और दर्शन साधु कहा जाता है। कटफटा नाम का कारण यह है कि ये लोग कान फाड़कर एक प्रकार की मुद्रा धारण करते है। इस मुद्रा के नाम पर इन्हें दरसनी साधु कहते हैं ।
• गोरखनाथी साधु सारे भारतवर्ष में पाए जाते हैं।
• गोरखनाथ शाखा पंजाब, हिमालय के पाद के देश, बंगाल और मुंबई में यह लोग नाथ के जाते थे।
• गोरखनाथी लोग में मुख्यतः 12 शाखाओं में विभक्त है। जिनमें 6 शाखा गोरखनाथ की और 6 शाखा शिवाजी की।

3. चौरंगीनाथ :-
• गोरखनाथ के गुरु भाई
• राजा सालवन के पुत्र
• मत्स्येन्द्रनाथ के शिष्य
• चौरंगीनाथ का दूसरा नाम पूर्ण भगत

4. चरपट नाथ-
• गोरखनाथ के शिष्य
• यह रसेश्वर सिद्ध के रूप में प्रसिद्ध
• यह मूलतः वज्रयानी साधक थे लेकिन गोरखनाथ के प्रभाव के कारण नाथ संप्रदाय में दीक्षित हो गये।

5. गोपीचंद:- बंगाल के पाल वंश के राजा माणिकचन्द के सुपुत्र

6. भर्तृहरि :- गोरख संप्रदाय के अंतर्गत वैराग्य पंथी के प्रवर्तन

7. नागार्जुन :-
• नाथ पंथ के नागार्जुन सिद्ध संप्रदाय के नागार्जुन से भिन्न है।
• पादलिसूरी के शिष्य
• इनका संबंध रसेश्वर संप्रदाय से
• जन्म – दक्षिण भारत में(विर्दभ में)
• ब्राह्मण परिवार
• पिता का नाम – त्रिविक्रम
• माता का नाम – सावित्री
• नागार्जुन ने माध्यमिक संप्रदाय की स्थापना की इस से शून्यवाद भी कहते हैं ।
• नागार्जुन का मुख्य ग्रंथ है – कारिका या माध्यमिक सूत्र( ग्रंथ में 400 कारिकायें)
• विज्ञानवाद का संस्थापक – मैत्रेय नाथ (समय- तीसरी ई. से चौथी शती ई. का ।
• शून्यवाद सबसे प्रबल प्रवर्तक आचार्य नागार्जुन(दूसरी शताब्दी तथा तीसरी शताब्दी के मध्य)
• नागार्जुन का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ – माध्यामिक शास्त्र

• नागार्जुन ने उत्पत्ति,गति, दुख,बंधन, मोक्ष आदि सभी धारणाओं की तर्क सहित परिक्षा कर यह सिद्ध किया है कि सभी में विरोध धर्मो की उपस्थिति है अतः सभी शून्य है।

• माध्यमिक पथ की ओर साधकों को प्रेरित करने के लिए आचार्य नागार्जुन ने शून्यता के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था।

• शून्य सिद्धांत का प्रतिपादन नागार्जुन ने “प्रतीत्य समुत्पाद” के सिद्धांत द्वारा किया।शून्यता वह है जो प्रतीत्य समुत्पाद द्वारा सिद्ध की जा सके । प्रतीत्य समुत्पाद के अर्थ – वह सिद्धांत जो प्रत्येक वस्तु को कारणों,हेतुओ द्वारा उत्पन्न मानता है ।

• नागार्जुन संसार के सभी वस्तुओं को शून्य मानता है। उनकी उत्पत्ति,स्वभाव, धर्म सब कुछ अकथनीय है। अतः वे शून्य है

सिद्ध साहित्य और नाथ साहित्य में अंतर :- 

सिद्ध साहित्य और नाथ साहित्य में समानता :- 

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4 comments

  1. Pradhyumna Balkrishna Dave

    बहुत बहुत धन्यवाद, ऐसी अप्रतीम जानकारी के लिए 🙏

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