निर्मला पुतुल का जीवन परिचय (Nirmala Putul ka jeevan parichay)

      💐 निर्मला पुतुल का जीवन परिचय 💐

◆  जन्म :- 6 मार्च 1972

◆ जन्म स्थान :- झारखंड राज्य के, संताल परगना मे, दुमका जिले के ,दुधनी कुरुवा नामक गाँव में

◆ जन्म एक आदिवासी परिवार में हुआ।

◆ इसका आरंभिक जीवन बहुत संघर्षमय रहा।

◆ घर में पिता और चाचा शिक्षक थे।

◆ घर में शिक्षा का माहौल होने के बावजूद रोटी की समस्या से जूझने के कारण नियमित अध्ययन बाधित होता रहा ।

◆ नर्सिंग में डिप्लोमा किया। ( नर्स बनने पर आर्थिक कष्टो से मुक्ति मिल जाएगी इस विचार से ।)

◆ इग्नू से स्नातक की डिग्री  प्राप्त किया। (नर्सिंग में डिप्लोमा करने के काफी दिन बाद )

◆ निर्मला मुतुल को इन भाषाओं का ज्ञान है : संताली, हिन्दी, भोजपुरी, नागपुरी, अंगिका, बांग्ला ,अंग्रेजी (7 भाषाएं)

◆ भारत की प्राचीनतम आदिवासी भाषा संथाली में रचना करने वाली :- निर्मला पुतुल

◆  आदिवासी विशेषत: विशेषता आदिवासी स्त्रियों की गहनतम पीड़ा को स्वर देने वाली और जीर्ण – शीर्ण  परंपरा का तीव्र विरोध करने वाली :-  निर्मला पुतुल

◆  निर्मला पुतुल की रचनाओं:-

1. नगाड़े की तरफ बसते शब्द (प्रथम काव्य संग्रह)
2.  अपने घर की तलाश में
3. बेघर सपने
4. ईवाक (संताली में प्रकाशन)
5. ओइक सेदरा रे (संताली में प्रकाशन)
6. ओनोड सेदरा रे (संताली में प्रकाशन)
7. नगाड़े की तरह बजते शब्द (मराठी भाषा में अनूदित )
8. फूटेगा एक नया विद्रोह

◆  निर्मला पुतुल के मात्र दो काव्य संग्रह हिन्दी में आए हैं।
★ नगाड़े की तरह बजते शब्द
★ अपने घर की तलाश में

◆ इनकी रचनाओं का हिंदी अनुवाद इन भारतीय भाषा में किया जा चुका है:
अंग्रेजी, मराठी, उड़िया, नागपुरी, पंजाबी, उर्दू कन्नड, राजस्थानी, बंगाली, और गुजराती।

◆ सम्मान :-

1.  साहित्य अकादमी ,नई दिल्ली द्वारा भाषा सम्मान
2. झारखंड सरकार द्वारा राजकीय सम्मान
3. नागरी लिपि परिषद, दिल्ली द्वारा विनोबा भावे सम्मान
4. हिमाचल प्रदेश हिन्दी साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित
5. भारतीय भाषा परिषद कोलकाता द्वारा युवा सम्मान
6.  सेंटर फॉर दलित लिखेचर एंड आर्ट द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय दलित अस्मिता समान

◆ निर्मला पुतुल  की प्रमुख पंक्तियां :-

(1.) अखबर बेचती लड़की
अखबार बेच रही है या खबर बेच रही है
यह मैं नहीं जानती
लेकिन मुझे पता है कि वह
रोटी के लिए अपनी आवाज बेच रही है।

(2.) गजरा बेचने वाली स्त्री
गजरा बेच रही है
वह खुद बदसूरत है
लेकिन दूसरे को सुन्दर बनाने के लिए
सुन्दरता बेच रही है।
गजरा बेचने वाली स्त्री का दिल कोमल है।

(3.)  ऊपर से काली
भीतर से अपने चमकते दाँतों
की तरह शान्त धवल होती हैं वे

(4.) मैं कविता नहीं
शब्दों में ख़ुद को रचते देखती हूँ
अपनी काया से बाहर खड़ी होकर
अपना होना।

(5.) सपनों में भागती
एक स्त्री का पीछा करते
कभी देखा है तुमने उसे
रिश्तों के कुरुक्षेत्र में
अपने आपसे तड़ते?

         “आओ मिलकर बचाएँ”  कविता

अपनी बस्तियों को
नंगी होने से
शहर की आबो – हवा से बचाएँ उसे

बचाएँ डूबने से
पूरी की पूरी बस्ती को
हड़िया में

अपने चेहरे पर
सन्थाल परगना की माटी का रंग
भाषा में झारखंडीपन

ठंडी होती दिनचर्या में
जीवन की गर्माहट
मन का हरापन
भोलापन दिल का
अक्खड़पन, जुझारूपन भी

भीतर की आग
धनुष की डोरी
का नुकीलापन
कुछड़ों की धार
जंगल की ताज़ा हवा
नदिया की निर्मलता
पहाड़ों का मौन
गीतों की धुन
मिट्टी का सोधापन
फसलों की लहलहाहट

नाचने के लिए खुला आँगन
गाने के लिए गीत…
हँसने के लिए थोड़ी-सी खिलखिलाहट
रोने के लिए मुट्ठी भर एकान्त

बच्चों के लिए मैदान
पशुओं के लिए हरी-हरी घास
बूढ़ों के लिए पहाड़ों की शान्ति

और इस अविश्वास-भरे दौर में
थोड़ा-सा विश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोड़े-से सपने

आओ मिलकर बचाएँ
कि इस दौर में भी बचाने को
बहुत कुछ बचा है,
अब भी हमारे पास !

◆ “आओ,मिलकर बचाएं” कविता 【नगाडे  की तरह बजते शब्द काव्य संग्रह से 】

◆ “आओ,मिलकर बचाएं “कविता संथाली भाषा  हिन्दी रूपांतर अशोक सिंह ने किया।

◆ “आओ,मिलकर बचाएं”  कविता समाज में उन चीजों को बचाने की बात करती हैं जिनका होना स्वस्थ सामाजिक  – प्राकृतिक परिवेश के लिए जरूरी है।

◆ प्रकृति के विनाश और विस्थापन के कारण आज आदिवासी समाज में है, जो कविता का मूल स्वर है।

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