पंच बिड़ाल क्या है?[panch bidal kya hai ]

🌺पंच बिड़ाल क्या है?[What is Panch Bidal?]

🌺 बौद्ध शास्त्रों में निरूपित पंच प्रतिबंध(panch pratibandh) :-

1. आलस्य :- आलस्य का तात्पर्य – कार्यों, गतिविधियों या जिम्मेदारियों के प्रति प्रयास या ऊर्जा लगाने से बचने या विरोध करने की प्रवृत्ति से है। इसमें प्रेरणा की कमी, विलंब और उत्पादक कार्यों की तुलना में आलस्य या विश्राम को प्राथमिकता देना शामिल है।

2. हिंसा :- हिंसा का अर्थ होता है :- “विवाद, शारीरिक या मानसिक चोट, या आधिकारिक या अवैध हमला”। इस शब्द का प्रयोग शारीरिक, मानसिक, या सामाजिक रूप से अनुचित या हानिकारक क्रियाओं को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।

3. काम :-

4. चिकित्सा :-

5. मोह :-

● ध्यान देने की बात यह है कि विकारों की यही पाँच संख्या निर्गुण धारा के संतों और हिन्दी के सूफी कवियों ने ली

🌺बौद्ध धर्म में, पंच प्रतिबंध (Pancha Pratiharya) एक महत्वपूर्ण धार्मिक अवधारणा है जो शिष्य को दिए जाते हैं ताकि वह धार्मिक उत्पत्तियों को नियंत्रित कर सके और अधिक साधुवाद की ओर अग्रसर हो सके। इन पंच प्रतिबंधों को भिक्षुसंघ के सदस्यों को पालन करने के लिए कहा जाता है।

🌺पंच प्रतिबंध के पाँच नियम हैं:-

1. मांस भक्षण न करना:- भिक्षु को मांस न खाने का संकल्प लेना चाहिए। मांस भोजन का प्रतिबंध बौद्ध धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

2. मद्य पान न करना:- भिक्षु को शराब, मदिरा, या किसी भी प्रकार के अधिक मात्रा में अश्लील द्रव्य पान का संकल्प लेना चाहिए।

3. अदत्यागी:- यहाँ पर अदत्यागी का अर्थ है अधिक कुप्रज्ञता से विवाह, धन, या सम्बंध को छोड़ देना।

4. स्त्री संग न करना:- भिक्षु को स्त्रीसंग (यानी अव्यवहारिक या अवधूत) से दूर रहने का संकल्प लेना चाहिए।

5. चोरी न करना:- भिक्षु को चोरी या अन्य किसी भी अधिक धन की प्राप्ति का संकल्प लेना चाहिए।

ये पंच प्रतिबंध बौद्ध धर्म में आचार्य द्वारा शिक्षा दी जाती हैं ताकि उनके अनुयायियों को धार्मिक उत्पत्तियों का उचित पालन करने में सहायता मिल सके।

🌺 हिंदू शास्त्रों में विकारों की बँधी संख्या 6 है।

हिंदू धर्म और दर्शन में, विकार का अर्थ “दोष” या “अनुचित भावनाओं” को दर्शाता है। इन विकारों की प्रमुख संख्या के संदर्भ में, आमतौर पर षट्कसंग  कहा जाता है, जिसमें निम्नलिखित छः विकार शामिल होते हैं:

1. काम :- इच्छा, वांछा या लोभ।

2. क्रोध  :- रोष या क्रोध।

3. लोभ  :- लालच या अत्यधिक इच्छा।

4. मोह :- मोह, आसक्ति या अनुराग।

5. मद : – अभिमान या अहंकार।

6. मत्सर :- ईर्ष्या, जलन या द्वेष।

इन विकारों का संग्रह मानव जीवन में अवश्य परिचित है और धार्मिक शास्त्रों में इन्हें परिसंख्यान में देखा जाता है ताकि व्यक्ति उनसे बचें और उच्चतम आदर्शों की ओर अग्रसर हों।

🌺 रहस्यवादियों की सार्वभौम प्रवृत्ति के अनुसार ये सिद्ध लोग अपनी बानियों के सांकेतिक दूसरे अर्थ भी बताया करते थे,

जैसे- काआ तरुवर पंच बिड़ाल

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