पद्मावत का सार(padmavat ka saar)
🌺 पद्मावत का सार 🌺
* सिंहल अति सुंदर द्वीप है। अन्य द्वीपों से उसकी सुंदरता बढ़-चढ़कर है ।
* सिंहल द्वीप का राजा गंधर्वसेन है। उसका प्रताप चारों ओर फैला है। उसके पास असंख्य सेना है ।
* राजा गंधर्वसेन की रानी चंपावती को पदमावती नाम की अपूर्व सुंदरी कन्या उत्पन्न हुई।
* पदमावती ने एक हीरामन नामक तोता पाल रखा था। हीरामन बड़ा बुद्धिमान था।
* युवावस्था प्राप्त होने पर भी राजा गंधर्वसेन पदमावती के विवाह की कोई परवाह नहीं करता था।
* एक दिन पदमावती ने अपने प्रिय शुक से अपनी मनोव्यथा कही। उसने कहा – “प्रिय शुक, मुझको दिन पर मदन सता रहा है, पर मेरे विवाह का कोई आयोजन नहीं करते ।”
* शुक ने उत्तर दिया- “जो भाग्य में लिखा है वही होगा । यदि आप आज्ञा दें तो मैं जाकर देश-विदेश में आपके लिये कोई वर खाजा ।”
* पदमावती और शुक की बातचीत कोई सुन रहा था । उसने जाकर राजा से चुगली कर दी। इस पर राजा ने क्रोध होकर शुक को मार डालने की आज्ञा दी। पदमावती ने बड़ी विनती और युक्ति से उसकी जान बचाई ।
* एक दिन पदमावती अपनी सखियों के साथ मानसरोवर में नहाने गई। इसी बीच शुक के पिंजरे को बिल्लो ने आ घेरा ! वह अवसर पाकर अपनी जान बचाकर वन की ओर उड़ गया। वहाँ वह एक चिड़ीमार के जाल में पड़ गया । वह उसे लेकर चला।
* पदमावती को जब शुक के उड़ जाने का समाचार मिला तब वह अत्यंत दुखी हुई। उसने बडा शोक मनाया । शुक को लेकर शिकारी सिंहल द्वीप की हाट में बेचने चला।
* सिंहल द्वीप चित्तौरगढ़ का एक ब्राह्मण भी कुछ व्यापार करने की अभिलाषा से आया था। उसने उस शुक को मोल लिया और शुक को लेकर घर की ओर चल पड़ा । जब वह चित्तौर पहुँचा तब शुक के गुणों की चर्चा चारों ओर फैलने लगी, फैलते-फैलते राजा के कानों तक जा पहुँची ।
* चित्तौरगढ़ का राजा रतनसेन था। उसने जब शुक के गुणों का वर्णन सुना तब उसने ब्राह्मण को बुलाया और शुक को मुँह माँगे मूल्य पर मोल लिया।
* शुक को राजा रतनसेन ने बड़े प्रेम से अपने महलों में रखा।
* राजा रतनसेन की रानी नागमती बड़ी सुंदरी थी।
* एक दिन नागमती राजा की अनुपस्थिति मे श्रृंगार करके शुक के समीप आई और पूछने लगी- ‘क्यों शुक, मेरे जैसा रूप तुमने कहीं देखा है ?” हीरामन शुक पदमावती का ध्यान करके हँस पड़ा और कहने लगा – “सिंहल की नारियों की क्या बात पूछती हो ? उनकी बराबरी संसार मे कोई नहीं कर सकता ।” यह सुनकर नागमती बड़ी रुष्ट हुई। उसने शुक को मार डालने की आज्ञा दी। धाय शुक को छिपाकर रानी से कहा कि वह मार डाला गया।
* राजा रतनसेन जब आखेट से लौटा तो उसने शुक की खोज की।
* उसने नागमती से कहा – “या तो शुक को ले आया | स्वयं अपनी जान दे ।” नागमती बड़े संकट में पड़ी अंत मे धाय ने शुक ला दिया तब राजा प्रसन्न हुआ।
* शुक के मिलने पर राजा ने उससे सच्ची बात पूछी । उसने पदमावती के रूप-गुण की चर्चा की। वह उस पर मुग्ध हो गया लोगों के लाख समझाने पर भी उसने निश्चय किया कि पदमावती को अवश्य अपनाऊँगा।
* वह योगी होकर,अपने साथियों को ले, शुक को आगे कर, सिंहल द्वीप की ओर चल पड़ा । मार्ग मे अनेक कष्टों को झेलकर वह समुद्र-तट पर पहुँचा और ‘गजपति’ की सहायता से उसने बोहित लेकर समुद्र पार करने का निश्चय किया। चार, खीर, दधि, उदधि, सुरा, किल- किला और मानसरोवर आदि सात समुद्रो को पार करता हुआ।
* वह सिंहल द्वीप में पहुँचा। वहाँ पर महादेव का एक मंदिर था, जहाँ रतनसेन अपने साथियों के साथ बैठकर तप करने लगा। शुक को उसने पदमावती के पास भेज दिया । शुक ने जाते समय राजा से कहा कि वसंत पंचमी को पदमावती यहाँ पूजा करने आयेगी तब आपसे भेंट होगी।
* शुक को बहुत दिनो के बाद देखकर पदमावती बड़ी प्रसन्न हुई। हीरोइन ने अपना सारा हाल कह सुनाया औय रतनसेन के पहुँचने का समाचार भी दिया।
* पदमावती उस पर मुग्ध हो गई। उसने प्रतिज्ञा की कि राजा के गले में जयमाल डालूगी। इसके पश्चात् शुक राजा के पास लौट आया।
* पदमावती वसंत पंचमी के दिन उस महादेव के मंडप में पहुँची और उससे राजा का साक्षात् हुआ पर राजा उसे देखते ही मूर्छित हो गया ।
* रतनसेन के मूर्छित होने पर पदमावती ने उसके वक्षःस्थल पर चंदन से लिख दिया-“जोगी, तू अभी भिक्षा प्राप्त करने योग्य नहीं है, तू ठीक समय पर सो जाता है।” यह लिखकर वह चली गई ।
* पदमावती के चले जाने पर राजा को चेत हुआ। वह बहुत पछताने लगा । उसने प्राण देने का निश्चय किया। यह समाचार सुनकर सब देवता घबरा उठे।
* महादेव और पार्वती ने वेश बदलकर उसकी परीक्षा करने का निश्चय किया | पार्वती ने अप्सरा का रूप धारण किया और राजा से कहने लगी कि मैं ही पदमावती हूँ । राजा को सच्चा प्रेम था। उसने उत्तर दिया कि तू पदमावती नही है । पार्वती को विश्वास हो गया कि उसे सच्चा प्रेम है। उसने महादेव से कहा कि इसकी रक्षा करनी चाहिए । राजा ने महादेव और पार्वती का यथार्थ रूप पहचान लिया और वह उनकी स्तुति करने लगा। महादेव ने प्रसन्न होकर सिद्धिगुटिका उसे दी और सिंहलगढ़ में उसे घुसने की आज्ञा दी ।
* योगियों ने सिंहलगढ़ जा घेरा। राजा के दूत आए और उनका अभिप्राय पूछने लगे । उन्होंने उत्तर दिया कि हमे ‘पदमावती’ चाहिए। इस पर दूत क्रोध होकर चले गए ।
* दूत ने राजा से सब समाचार जा सुनाया। वह बड़ा क्रोध हुआ।
* योगियों ने गढ़ के भीतर प्रवेश किया। वे राजा की आज्ञा से पकड़ लिए गए । रतनसेन को सूली देने की आज्ञा हुई। वह इस पर बड़ा प्रसन्न हुआ। उपस्थित लोगों ने कहा कि अवश्य यह कोई राजकुमार है।
* महादेव और पार्वती रतनसेन की सहायता को आ पहुँचे ।
* महादेव ने ( जो भाट के वेश में थे ) राजा को बहुत समझाया कि यह योगी नहीं राजा है, यह पदमावती के योग्य वर है, इससे अपनी कन्या का विवाह करो। राजा ने न माना।
* इस पर लड़ाई की तैयारी हुई। योगियों की ओर से देवता भी थे । देवताओं की शंखध्वनि सुनकर राजा घबरा गया और उसने महादेव का वास्तविक रूप पहचानकर उनसे क्षमा मांगी और कहने लगा कि “कन्या आपकी है, चाहे जिससे उसका विवाह कीजिए ।”
* इसी बीच हीरामन शुक ने आकर राजा को चित्तौर का सारा समाचार कह सुनाया। गंधर्वसेन रतनसेन के साथ पदमावती का विवाह करने पर सहमत हुआ।
* विवाह शुभ अव- सर शुभ घड़ी में हुआ। रतनसेन अपने साथियों के साथ सिंहल में रहकर सुख लूटने लगा।
* राजा रतनसेन की अनुपस्थिति में रानी नागमती बहुत दुःखी हो रही थी
* रानी नागमती के विरह- विलाप से पशु-पक्षी तक दुःखी होते थे।
* एक दिन, रात को, एक पक्षी ने उसका रोदन सुना। उसके दुःख पर तरस खा कर उसने प्रतिज्ञा की कि मैं तुम्हारा संदेश रतनसेन के पास पहुँचाऊँगा। संदेश लेकर वह सिंहल पहुँचा और एक वृक्ष पर बैठकर सुस्ताने लगा । संयोग से रतनसेन आखेट से थककर उसी वृक्ष के नीचे बैठ गया।
* पक्षी उस वृक्ष पर बैठकर एक दूसरे पक्षी से बातचीत कर रहा था। उसने नागमती का कष्ट कह सुनाया । राजा ने उन दोनों की बात सुनी । वह व्याकुल हो उठा और उसने अपने राज्य को लौटने की ठानी। रतनसेन अपने राज्य को लौटने की तैयारी करने लगा । उसने पदमावती को साथ लिया । गंधर्वसेन ने उसे असंख्य धन दिया। सब ले देकर वह जहाज पर सवार हुआ। समुद्र-तट पर उसे समुद्र भिक्षुक के रूप में मिला। उसने राजा से दान माँगा। राजा ने लोभ-वश उसे कुछ न दिया।
* जहाज पर चढ़कर राजा जब आधे समुद्र में आया तब प्रचंड वायु वेग में उसका जहाज लंका की ओर बह चला। वहाँ विभीषण का एक कंवट मछली मार रहा था। उस राजा को भरमाना चाहा। राजा को अपनी बातों में लाकर वह जहाज को एक भयंकर समुद्र में ले चला । वहाँ पहुँचकर जहाज डूबने लगा। राजा बहुत घबराया । इसी बीच में एक पक्षी आकर उस राक्षस को ले उड़ा। राजा का जहाज फट गया।
* वह एक पटरे पर एक ओर बह चला और रानी पदमावती दूसरी ओर ।
* पदमावती बहते – बहते एक तट पर लगी । पास ही में समुद्र की कन्या लक्ष्मी खेल रही थी। उसने उसे बचाया। वह उसे अपने घर ले गई और आदर से अपने यहाँ रखा ।
* इधर राजा बहते – बहते एक दूसरे निर्जन तट पर जा लगा । वहाँ पहुॅचकर वह बहुत विलाप करने लगा। अन्त में दुःखी होकर वह अपनी हत्या करने पर तैयार हुआ। उसको ऐसा करने के लिये उद्यत होते देख समुद्र, ब्राह्मण का रूप धरकर, उसे रोकने को उपस्थित हुआ और उसे लेकर पदमावती के पास पहुँचा ।
* राजा जिस समय पदमावती के पास पहुँचा उस समय लक्ष्मी उसकी परीक्षा लेने को मार्ग में मिली । उसने चाहा कि राजा को भरमा पर वह सच्चा प्रेमी था।
* अंत में प्रसन्न होकर लक्ष्मी ने उसे पदमावती से मिला दिया। समुद्र की कृपा से राजा को उसके अन्य साथी भी मिले और वह सब को लेकर घर चला ।
* चलते समय समुद्र ने उसे अमृत, हंस, राजलक्ष्मी, शार्दूल और पारस पत्थर उपहार में दिए । सब कुछ लेकर रतनसेन चित्तौर पहुँचा और पदमावती तथा नागमती के साथ सुख से रहने लगा।
* नागमती से नाग सेन और पदमावती से कमलसेन नामक पुत्र हुए।
* रतनसेन की सभा मे राघव चेतन नामक एक पंडित था जिसने यक्षिणी को सिद्ध किया था।
* एक दिन रतनसेन ने पूछा ‘दूज कब है ?’ राघव के मुँह से निकल पड़ा-‘आज ।’ अन्य लोगों ने कहा-आज नहीं हो सकती, कल हैं ।’
* राघव अपनी बात पर अड़ गया। उसने यक्षिणी के प्रभाव से उस दिन दूज दिखा दी।
* अंत में दूसरे दिन वात खुली तो राघव देश से निकाल दिया गया। उसका निकाला जाना सुनकर पदमावती बड़ी चिंतित हुई। उसने उसे बुलावा भेजा और दान देकर प्रसन्न करना चाहा ।
* रानी ने अपने हाथ का एक कंकण उसे दान दिया। इसे लेकर राघव दिल्ली पहुँचा । वहाँ उसने सुल्तान अलाउद्दीन से सारा हाल कहकर पदमावती की सुंदरता का वर्णन किया।
* अलाउद्दीन पदमावती की सुंदरता का समाचार सुनकर उस पर मुग्ध हो गया । उसने चित्तौर पर चढ़ाई करने की ठानी।
* अलाउद्दीन ने सरजा नामक दूत का चित्तौर भेजी। राजा यह सुनकर बड़ा क्रोध हुआ। उसने कहा जीते जी यह हो नहीं सकता । सुल्तान ने अन्त में चित्तौर पर चढ़ाई कर दी।
* आठ वर्ष तक मुसलमान चित्तौर घेरे रहे पर कुछ न हुआ। अंत में सुल्तान ने एक चाल चली । उसने प्रकट में राजा से मित्रता की और चित्तौर दावत खाने गया।
* रतनसेन के यहाँ गोरा-बादल दो वीर थे। वे इस कपट को समझ गए उन्होंने राजा को सावधान किया पर राजा ने एक न मानी ।
* चित्तौर मे कई दिन तक सुल्तान की आवभगत होती रही। एक दिन सुल्तान राजा के साथ शतरंज खेलने लगा । संयोग से पदमावती ऊपर झरोखे पर बैठकर देख रही थी । बादशाह ने उसका प्रतिबिंब दीवार पर लगे हुए दर्पण मे देखा । उसे देखकर वह मुग्ध हो गया-उसे मूर्छा आ गई।
* राघव ने समझाया कि वही पदमावती थी। अंत में बादशाह ने विदा मांगी।राजा उसे पहुँचाने चला । अपने गढ़ से बाहर होते हो राजा सुल्तान के सिपाहियो द्वारा पकड़ लिया गया और बंदी करके दिल्ली भेजा गया। कारागार में उसे अनेक प्रकार के क्लेश दिए जाने लगे । इधर चित्तौर मे हाहाकार मच गया, दोनों रानियॉ सती होने को तैयार हुई। गोरा-बादल, पदमावती के कहने पर, उनकी सहायता करने पर उद्यत हुए।
* सुल्तान के यहाँ दिल्ली में चित्तौर से सोलह सौ पालकियों पर चढ़कर सिपाही पहुंचे। बादशाह से कहा गया कि पदमावती आई है। वह एक बार राजा से मिलना चाहती है।फिर सुल्तान के महल में रहेगी । बादशाह ने इसे मान लिया और राजा से मिलने की आज्ञा दे दी।
* रतनसेन के बंदीगृह में वह पालकी पहुँचाई गई जिसमें एक लोहार बैठा था । उसने राजा की बेड़ी तुरंत काट दी और राजा घोड़े पर सवार होकर भागा। अन्य छिपे हुए सिपा भैया ने उसकी रक्षा की।
* इस प्रकार शाही सेना को मार काटकर लोग रतनसेन को छुड़ा लाए । रतनसेन जब चित्तौर पहुँचा तो उसने देवपाल की नीचता सुनी ।इसने राजा की अनुपस्थिति मे पदमावती को बहकाने के लिये दूती भेजी थी। रतनसेन क्रोध से लाल हो गया और देवपाल से लड़ने को उद्यत हो उठा।
* दोनों राजाओं में लड़ाई हुई । इस द्वंद्व में देवपाल मारा गया। उसकी साँग से रतनसेन मर्मविद्ध घायल हुआ | मरते समय उसने चित्तौर की रक्षा का भार बादल पर सौंपा
* रतनसेन के शव को लेकर उसकी दोनों रानियाँ सती हुई। उनके सती होने के पश्चात शाही सेना चित्तौर पहुँची । सती होने का समाचार बादशाह ने सुना । वह हाथ मलकर रह गया ।
* पदमावत की कथा का आधार पदमावत की कथा का आधार ऐतिहासिक है, पर थोड़े अंशों में।
* भारतीय इतिहास मे अलाउद्दीन और चित्तौर के भीमसिंह की कथा प्रसिद्ध है । कहते हैं कि भीमसिंह की स्त्री पद्मिनी अपूर्व सुंदरी थी। उसकी सुदरता का वर्णन सुनकर अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर चढ़ाई की और भीम सिंह को हराया। उसने संधि करने के उद्देश्य से कहला भेजा कि यदि पद्मिनी का चित्र मुझे दिखा दिया जाय तो मैं दिल्ली लौट जाऊँगा ।
* अलाउद्दीन की यह बात राजा ने स्वीकार कर ली और पद्मिनी की छाया दर्पण में उसे दिखा दी गई।
* अलाउद्दीन उसके रूप पर और भी मुग्ध हो गया और उसने चाल से भीमसिंह को बंदी कर लिया।
* अलाउद्दीन ने चित्तौर में कहला भेजा कि जब तक पद्मिनी न भेजी जायगी तब तक राजा को मुक्त न किया जायगा।
* यह समाचार सुनकर पद्मिनी ने एक ढंग निकाला । उसने अपने मायके से गोरा-बादल नामक दो वीरों को बुला भेजा और उनसे सहायता करने को कहा दोनों ने एक युक्ति सोची। उन्होंने बादशाह को कहला भेजा कि “पद्मिनी तुम्हारे पास रहने को तैयार है ।” उन दोनों ने बहुत से वीरो को सुसज्जित कर पालकी मे बैठाया और सब बादशाह के शिविर में पहुंचे।
* सुल्तान को सूचित किया गया कि पद्मिनी आ रही है, वह पहले अपने पति से भेंट करना चाहती है।
* अलाउद्दीन ने उसकी इच्छा-पूर्ति के लिये आज्ञा दे दी। वेश बदले हुए सब राजपूत भीमसिंह के पास पहुँचे।उन्हें लेकर वे चित्तौर की ओर चले।
* अलाउद्दीन को संदेह हुआ। उसने पीछा किया। भीमसिंह सकुशल चित्तौर पहुँच गया । गोरा-बादल खूब लड़े । गोरा युद्ध में मारा गया और बादशाह अपना मुंह लेकर लौट गया ।
* इस कथा को थोड़े हेर-फेर से अन्य लोगों ने भी लिखा है। आईन अकबरी में भीमसिंह के स्थान पर रतनसिंह नाम मिलता है। इसके अनुसार रतनसिंह की मृत्यु अलाउद्दीन के साथ युद्ध में हुई। पद्मिनी पति के साथ सती हुई। जो भी हो, सीधी-सादी कथा यह जान पड़ती है कि रतनसेन चित्तौर के राजा थे।
* उनकी पत्नी पद्मिनी या पदमावती अपूर्व सुंदरी थी। उसके रूप की चर्चा सुनकर अलाउद्दीन ने उसे पाने की इच्छा से चित्तौर पर चढ़ाई की। युद्ध मे राजा ने उसे कई बार हराया, पर अंत में उसने संधि की और पदमावती को बादशाह ने देखा । उसने धोखे से राजा को बंदी कर लिया। गोरा – बादल सुल्तान को धोखा देकर राजा को छुड़ा ले गए। राजा मारा गया और पदमावती उसके साथ सती हो गई। बादशाह को कुछ न मिला । वह खिसियाकर रह गया।
* इस ऐतिहासिक कथा का प्रचार भारत में बहुत प्रबलता के साथ हुआ। प्राय: सभी प्रान्त में इसका कोई न कोई रूपांतर प्रचलित हुआ।
* उत्तरी भारत, विशेष कर अवध, मे इसके आधार पर एक कहानी प्रचलित हुई जिसका नाम था हीरामन सूर और पद्मिनी रानी की कहानी । अभी तक अशिक्षित जनता में यह किसी न किसी रूप मे पाई जाती है। गाँवो मे प्राय: लोग इसे कहा करते हैं । जान पड़ता है।
* जायसी ने इसी प्रचलित कहानी को लेकर अपना काव्य खड़ा किया है। वे इतिहास के अधिक जानकार थे अत: जो अंश उन्होंने लिया है, ठीक लिया है।
* कथा में बहुत कुछ अंश कवि को अपनी ओर से मिलाना पड़ा है जैसे पद्मिनी को सिंहलराज की कन्या मानना।
* सिंहल में पद्मिनी खियों का होना केवल गोरखपंथी साधु मानते हैं।
* इस विचार के आधार पर जायसी ने पदमावती को सिंहल का माना और उसके पिता का नाम गंधर्वसेन रखा जो केवल कल्पित है।
* सिंहल तक की यात्रा आदि सारी बातें कवि को अपनी कल्पना द्वारा पूर्ण करनी पड़ी हैं।
* यदि वह ऐसा न करता ते उसके काव्य की कथा अपूर्ण रह जाती।
* यह कहना ठीक है कि रतनसेन और पदमावती के संबंध के पूर्व की सारी बातें कवि को केवल कथा की भूमिका बाँधने के लिये लिखनी पड़ी हैं।
* यदि ऐसा न किया जाता तो न तो कवि नायक और नायिका का प्रयत्न’ ही लिख सकता और न उसका काव्य ही पूर्ण होता ।
* प्राचीन पद्धति के अनुसार जायसी अपने काव्य में अली किक वस्तुओं को लाने में भी नहीं हिचके हैं जैसे शुक का मनुष्य की भॉति बातचीत करना, राक्षस का मिलना आदि।
* प्राचीन विश्वास के अनुसार कवि को ऐसा करने में हिचक नहीं हुई।
* कादंबरी में भी इसी प्रकार शुक बातचीत करता है। राक्षस आदि का वर्णन प्राय: भारतीय सभी प्राचीन आख्यायिकाओं में कुछ न कुछ मिलता है।
* इन गिनीत बातों को छोड़कर पदमावत में हम कोई और अलौकिकता तथा अस्वाभाविकता नहीं पाते । पात्र प्रायः सजीव व्यक्तियों की भाँति आचरण करते हुए पाए जाते हैं। उनके आचरण किसी प्रकार अलौकिक या अस्वाभाविक नहीं दिखाई पड़ते ।
https://hindibestnotes.com/--padmavat-ka-saar/ www.hindibestnotes.com पदमावत का सार(padmavat ka saar) 2024-05-28
error: Content is protected !!