पराई प्यास का सफर (paraee pyas ka saphar)
पराई प्यास का सफर (paraee pyas ka saphar)
[ ] कहानीकार – आलमशाह खान
[ ] प्रकाशन वर्ष – 1979 ई.
[ ] प्रमुख पात्र – लखना , बड़का
• लखना 12 वर्ष का था और बीड़ी पीता था।
• शिव विशाल रेस्टोरेंट में ऑर्डर लेता है और सामान टेबलो पर रखता है।
• लखना के पिता चौधरी की पत्नी को लेकर भाग गये।
• लखना की माता नये पिता के घर चली गयी।
• शिव विशाल रेस्टोरेंट में नए पिता ने रखा था वही सोता और वहां ही रहता था।
• लखना के भाई और बहन, मां गाँव में रहते है।
• लखना के खास भाई की मृत्यु हो गयी।
• लखना की बहिन का नाम – टुनिया
• शिव विशाल रेस्टोरेंट या होटल का सेठ लखना या लखने कहकर बुलाता था।
• रेस्टोरेंट में महीने के पन्द्रह रुपया, रोटी – कपड़ा चाय – बीड़ी मिलते थे।
• सौतेले भाई का जन्म हुआ।(नये पिता की संतान)
• लखना की पगार में से पांच रुपए सेठ ने काट लिये क्योंकि कॉलेज के लड़के स्टील के चार चम्मच उठा ले गये थे और एक सूट पर चाय गिर गयी थी।
• लखना नये पिता को ‘बप्पा’ बोलता था।
• साथी(संगी) का नाम – बड़के
• लखना शिव विशाल रेस्टोरेंट में रोज खुरचन चाटता और आँख बचाकर रसगुल्ला खा जाता ।
• नये पिता ने होटल के सेठ से हजार रुपए लिये थे। हजार रुपये लेने के कारण लखना अब होटल में गिरवी रह गया।
• सिनेमा के गेट वाले का नाम :- गफूर
• लखना का कथन – “जिंदगी तो बॉबी की है।”
• लखना की गूदड़ी के सीवन के धागे मरे कीड़ो की भॉति बिखेर पड़े थे धुएले बल्ब की रोशनी में।
• बड़का का कथन – “तू तो लेट लगा गया। उठ कल मैंने सेके थे टिक्कड़…… आज तू थेप । सान आटा …..चल।”
• लखना ने अपनी बहन टुनिया सी लड़की नजर आयी। बगल में किताब – पाढी ले रखी थी। लखना ने उसके बाल सहला दिये । इस कारण टुनिया सी दिखने वाली नन्ही छुकरिया ने लखना को “गंदा ….. हुस ” कहा।
• लखना और बड़का दूसरी होटल में खाना खाने के लिए रात को दस बजे के बाद निकले।(होटल के पीछे बने भट्टी खाने से बाहर निकले।
• लखना और बड़का जिस होटल में खाना खाने गये उसका नाम – सिंधी होटल
• सिंधी होटल में गल्ले पर बैठे आदमी ने लखना और बड़का का टोकते हुये कहा ” अरे, खीसे(जेब) में कुछ है भी या यू ही बस।”
• सिंधी होटल में गल्ले पर बैठे आदमी से लखना ने कहा “क्या टुच्ची बात बोलता है सेठ ! पैसे की कमी नहीं ।”
• लखना ने निकर के खीसे (जेब) से दस रुपये का नोट निकाला और हवा में लहराए दिया और कहा “इस साले को भरोसा नहीं । सिंधी माणुस जो ठहरा। “
• लखना का कथन “आज पेट भरा साला। खुद घड़ो सेको और निगलो,उसमें तो बस पेट अटता है, भूख टलती है,तिरपति नहीं होती! बोल बड़के ठीक ? बोल है ना।”
• बड़के का कथन- ” खुद का तो भूख – प्यास से दम सूखता रहे और हम गहाको(ग्राहकों) को परोसते रहे……क्या खेल है।
• लखना का कथन – “अपन कौन – से अपने बाप की दौलत काट रहे जायेगा तो उस नवे बाप का ही ना।मैं तो काला जाम(जामुन) खाऊँगा।”
• शिव विशाल रेस्टोरेंट में लखना काला जामुन एक दिन में सेठ की आंख बचाकर एक या दो खा जाता था।
• लखना का कथन- ” बड़के, अपने होटल में दसियों मिठाईयां निगली होगी। पर तेरी कसम,एक का स्वाद पता नहीं।”
• लखना ने सिंधी होटल में चार काला जामुन अलग-अलग दो जगह आर्डर किया।
• लखना ने काला जामुन को चम्मच से तराशकर इत्मीनान से मुंह में रखा,तो उसे भान हुआ,जैसे यह मिठाई उसने पहली बार चखी है। उसे दुनिया के रेशमी बालों की भीनी बास और उसके गालों की मिठास याद हो आयी ।
• “एक का खुला नोट नहीं एक लॉटरी का टिकट दे दू ? किस्मत खुल जाएगी ।”(सिंधी होटल के गल्ले पर बैठे आदमी ने लखना से कहा)
• लखना ने भोजन के सिंधी होटल के गल्ले पर बैठे आदमी को दस रुपये दिये। जो इस प्रकार है
भोजन के – 8 रुपये 90पैसे
लाटरी की टिकट – 1रुपये
ऑर्डर लेने वाले लड़के को – 10 पैसे
• लखना सिंधी होटल से भोजन करके 12 बजे अपनी होटल(शिव विशाल रेस्टोरेंट) में पूछें। अपने होटल से गए थे तब 10 बजे से ऊपर समय था । अत : लखना और बड़के को भोजन करने में लगभग 2 घंटे लगे।
• लखना का कथन – “कहीं भी …..लंबी – चौड़ी दुनिया पड़ी है।”
• लखना का कथन बड़के से – “अरे, हमने तो की हिम्मत। दस का नोट उड़ा दिया तुझ पे।”[यहां ‘तुझ’ बड़के के लिए आया है]
• बड़के का कथन – ” सेठ का बच्चा जब से लाल जवान खिलाने लगा है, तब से पानी – पानी लगा रहे हैं।”
• कहानी के अंतिम पंक्ति (लखना की ) “प्यास तो है अब भी हूँ ,पर आर्डर सेठ का था, सो उसे पिला दिया….. मुझे पानी पीने की याद ही नहीं रही रोज ऑर्डर देने वाला ही खाता – पीता है ना। अपन लोग तो बस……।”
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