प्रगतिवादी काव्य की प्रवृत्तियां( pragativadi kavy ki pravatiya)

                                            🌺 प्रगतिवादी काव्य की प्रवृत्तियां 🌺

🌺 जो काव्य मार्क्सवाद दर्शन को सामाजिक चेतना और भाव बोध को अपना लक्ष्य बनाकर चला उसे प्रगतिवाद कहा गया है।

🌺 प्रगतिवादी के अंतर्गत -: यथार्थवाद ,पदार्थवाद एवं समाजवाद शामिल है ।

1. सामाजिक व्यवस्था के प्रति असंतोष ।

2. सामाजिक यथार्थ का चित्रण।

3. साम्यवादी व्यवस्था का यशोगान।

4. विश्व – बंधुत्व का भाव।

5. साम्राज्यवाद, सामंतवाद एवं पूंजीवादी व्यवस्था के प्रति विरोध।

6. शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति क्रांति का आह्वान।

7. युगानुकूल परिवर्तन तथा नव निर्माण की उत्कट लालसा।

8. मानवीय शक्ति पर दृढ़ आस्था ।

9. कला के प्रति नवीन दृष्टिकोण।

10. नारी प्रेम।

11. संप्रदायिकता का विरोध।

12. मुक्तक छंद का प्रयोग –
*मुक्तक छंद का आधार कजरी, लावनी , ठुमरी जैसे लोकगीत।

13. बोध गम्य भाषा –
*जनता की भाषा में जनता की बातें।

14. इसके विकास में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियॉं तो सहायक हुई है साथ ही छायावाद की की वायवी काव्यधारा भी इसमें सहायक सिद्ध हुई।

15. शोषण वर्ग के प्रति घृणा।

16. जन सामान्य के प्रति लोकमंगल की कामना।

17. विद्रोह एवं क्रांति की भावना।

18. ईश्वर के प्रति अनास्था

19. प्राचीन रूढियों एवं मान्यताओं का विरोध।

20. मानवतावादी प्रवृत्ति।

21. मार्क्सवादी दर्शन के आलोक के सामाजिक चेतना ।

 

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