प्रतीकवाद(prateekavad/symbolism)

  🌺 प्रतीकवाद 🌺

★  प्रतीकवाद की स्थापना :- 1885 ई. में (फ्रांस में, अंग्रेजी साहित्य में बोदलेयर के काव्य-धारा का द्वारा )

 

★ प्रतीकवाद के प्रर्वतक :- बोदलेयर

 

★  प्रतीकवाद का प्रारंभ हुआ:- यथार्थवाद एवं प्रकृतवाद के विरोध में

 

★   प्रतीकवादी कवि :- बोदलेयर, क्लोदन, वर्लेन,पीट्स, रिम्बोद,एडगर एलन पो, मलार्मे।

 

★   सर्वप्रथम जोन मोरेआस ने ‘फिगारो’ नामक पत्रिका में (1886 में ) प्रतीकवाद का घोषणापत्र प्रकाशित किया।

 

★ जोन मोरेआस ने घोषणा पत्र यह कहा कि प्रतीकवाद ही एक ऐसा शब्द है जो कला में सर्जनात्मक प्रवृत्ति को भली भांति व्यक्त करता है।

 

प्रतीकवादी कवियों में श्रेष्ठ कवि :- यीट्स

 

★ विशुद्ध प्रतीकवादी कवि:- आयरिश कवि ईट्स। (इनकी ‘दि टू ट्रीज ‘नामक कविता में प्रतीक शैली का श्रेष्ठ उदाहरण)

 

★ अज्ञेय की कविता प्रतीकवादी है।(शिवदान सिंह चौहान के अनुसार)

 

★ प्रतीकवाद में प्रतीक की आध्यात्मिक और  रहस्यात्मक सत्ता है।

 

★ यह प्रतीकवादी आन्दोलन होगेल और शापेनहावर के आदर्शवादी दर्शनों से प्रभावित है।

 

★ प्रतीकवाद का प्रभाव जर्मनी, रूस, इंगलैण्ड और अमेरिका पर भी पड़ा।

 

🌺 महत्वपूर्ण तथ्य🌺

 

★ मिथकीय प्रसंगों में प्रतीक की एक विशिष्ट शैली मिलती है उसे प्रतीकात्मक मुहावरों की शैली कहा जाता है।

 

★ “कविता एक रहस्य है जिसके लिए कुंजी की खोज प्रत्येक पाठक को स्वयं करनी चाहिए।”(मालार्मे के अनुसार)

 

★ आइन्सटाइन ने ‘दि फिल्मसेंस’ में पिकासो के कथन का उद्धरण देकर बताया है कि कुछ चित्रकार सूर्य को पीला बिन्दु मात्र बना डालते हैं, किन्तु दूसरे हैं जो ‘पीले बिन्दु’ को अपनी कला से सूर्य बनाते हैं।

 

★ सर आर्थन एडिंगटन के अनुसार “अणु और तारा के मध्य बिन्दु में मनुष्य के सभी आयमों को प्रतीक में प्रस्तुत करना ही काव्य है।”

 

★ फ्रायड़ प्रतीक को रूढ़ मानते हैं। उनके अनुसार प्रतीकों का स्थिर और सार्वभौम अर्थ होता है।

 

★ अज्ञेय ने बताया है कि ‘कवि प्रतीक द्वारा सत्य को जानता है – सत्य के अथाह सागर में वह प्रतीक-रूपी कंकड फेंक कर उसको थाह का अनुमान करता है। (‘प्रतीक और सत्यान्वेषण’ निबंध से)

 

★ “कलात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में प्रतीक पद्धति का प्रथम निदर्शन मिश्र की प्राचीन चित्रलिपियों में मिलता है। काव्य-क्षेत्र के रूप में प्रतीकों का प्रयोग सर्वप्रथम हिन्दी साहित्य में प्राप्त न होकर वैदिक साहित्य में उपलब्ध होता है।”(डॉ.सरोजनी पाण्डे के अनुसार)

 

★ “ प्रतीक सूफ़ी-साहित्य के राजा हैं । “(चन्द्रबली पाण्डेय के अनुसार)

 

★ डॉ. रामकुमार वर्मा ने साहित्य-क्षेत्र में प्रतीकों का प्रयोग निम्नांकित बातों के लिये माना है:-

 

1. सौन्दर्यात्मिक अनुभूति की अभिव्यक्ति के लिये।

2. किसी भाव को छिपाकर चमत्कार उत्पन्न करने के लिये।

3. दार्शनिक भावधारा की अभिव्यक्ति के लिये।

4.  रहस्यात्मक अनुभूति को परस्पर विरोधी  अभिव्यक्ति के अवसर पर ।

5. कवि-सत्य को आदर्श रूप देने के लिये ।

6. मनोवैज्ञानिक भावना के क्षेत्र विस्तार के लिये।

 

★ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल प्रतीकों  के तीन आधार मानते हैं।
1. वस्तुगत

2. रूढ़िगत

3. जातीय संस्कारगत

 

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