? प्रतीक के उदाहरण?
(1.) कमल तुम्हारा दिन है
और कुमुद यामिनी तुम्हारी है ।
कोई निराश क्यों हो
आती सबको समान बारी है ।
(साकेत , मैथिलीशरण गुप्त , प्राकृतिक प्रतीक)
★ यहाँ पर कमल इस समय सुखी का और कुमुद दुःखी का प्रतीक है।
(2.) दुलहनी गावहु मंगलचार,
हम घरि आए हो राजा राम भरतार॥
तन रत करि मैं मन रत करिहूँ, पंचतत्त बराती।
राम देव मोरैं पाँहुनैं आये मैं जोबन मैं माती॥ ( कबीर , संस्कार सम्बन्धी प्रतीक)
★ यहाँ दुलहनी – आत्मा का, भरतार-परमात्मा का प्रतीक है।
(3.) मैं हूँ भरत तुम शकुन्तला
कहाँ है दुष्यन्त, माँ,
यह है तीर तरकस में
सभी विष बुझे खाली।
( लक्ष्मीकान्त वर्मा, पौराणिक प्रतीक )
★ यहाँ भरत ,शकुन्तला और दुष्यन्त पौराणिक प्रतीक है।
(4.) गगन गरजि बरसै अमी, बादर गहिर गंभीर ।
चहुँ दिसि दमके दामिनी, भोजै दास कबीर ॥
(आध्यात्मिक प्रतीक)
★ यहाँ पर गगन शून्य मंडल का, गरजना अनाहत नाद का, बादल आत्मानुभूति का, दामिनी ज्योति का और भोजना आनन्द का प्रतीक है।
(5.) सत्य है राजा हर्षवर्धन के हाथों से मिला हुआ पान का सुगन्धित एक लघु बीड़ा
( चाहे वह झूठा हो पर उसपर लगा हुआ वर्कदार सोना था । )
हाय बाणभट्ट ! हाय
तुमको भी, तुमको भी, आखिर यही होना था।
(ऐतिहासिक प्रतीक )
★ यहाँ पर हर्षवर्धन वैभवसंपन्न, उच्चवर्गीय शासक का तथा बाणभट्ट कवि का प्रतीक है ।
(6.) नया चाँद आया नया चाँद आया।
नये चाँद ने इस तरह सर उठाया
कि सब कह उठे लो नया चाँद आया ।
नया चाँद छोटा अँधेरा बड़ा है
नया चाँद फिर भी अकेला खड़ा है।
(शास्त्रीय प्रतीक)
★ यहाँ पर नया चाँद साम्यवाद का प्रतीक और अँधेरा पूँजीवाद का प्रतीक है।
(7.) काट अध-उर के बंधन-स्तर
वहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे।
(सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ गीतिका’, सार्वभौम प्रतीक
(8.) आकासे मुखि औंधा कुआं, पाताले पनिहारी।
ताका पाणी को हंसा पीवै, बिरला आदि विचारि।।
(कबीर दास का दोहा, साधनात्मक साम्प्रदायिक प्रतीक )
★ इसमें ‘अकास’ ब्रह्माण्ड का, औंधा कुआं ‘सहस्रदल कमल’ और पनिहारि ‘कुण्डलिनी शक्ति’ का प्रतीक है। ये प्रतीक हठयोग-साधना के प्रतीक हैं।
(9.) अंचल के चंचल क्षुद्र प्रपात !
मचलते हुए निकल आते हो;
उज्जवल! घन-वन-अंधकार के साथ
खेलते हो क्यों? क्या पाते हो ?
( निराला, ‘परिमल’ संग्रह से प्रपात के प्रति कविता से रहस्यात्मक संकेतसूचक प्रतीक)
★ यहाँ प्रपात (झरने) को मानवीय रूप देकर संकेत द्वारा कवि ने प्रच्छन्न रूप से जीव की ओर संकेत किया है। अंचल (पहाड़) परोक्ष सत्ता का प्रतीक है। अन्धकार और घन क्रमशः माया और मायोपाधिक जीव को संकेतित करते हैं।
(10.) देखूँ सबके उर की डाली-
किसने रे क्या क्या चुने फूल
जग के छबि-उपवन से अकूल?
इसमें कलि, किसलय, कुसुम, शूल!
(पन्त , गुजन,परम्परागत प्रतीक)
★ यहाँ प्रयुक्त कलि, किसलय, कुसुम और शूल क्रमशः प्रसन्नता, आनन्द, उल्लास पीड़ा, व्यथा’ नादि के चिर परिचित प्रतीक है।
(11.) “कै विधि हो नैया लागे पार ।
नहि पतवार धार विच भरमत मदमत्त सेवार ॥ झंझा पवन झकोरत जात माच्यो हाहाकार ।
बदरीनारायण नारायण करत कृपा करो पार ॥
(प्रेमघन ,सर्वस्व,रूपकात्मक प्रतीक )
★ यहाँ नैया ‘जीवन’ का प्रतीक है और पतवार ‘साधन एवं भक्ति’ का प्रतीक है।
(12.) उषा का था उर में आवास,
मुकुल का मुख में मृदुल विकास
चाँदनी का स्वभाव में भास
विचारों में बच्चों की सांस ।
(पन्त ,पल्लव, लक्षणामूलक प्रतीक)
★ यहाँ गुण या धर्म का उल्लेख न करके वस्तुओं का ही उल्लेख कर दिया गया हैं जो तुल्य गुण व धर्म के कारण लाक्षणिक प्रतीक का काम करते है। हृदय में उल्लास था, यह न कहकर ऊषा का आवास ही बता दिया गया है। मुख से वाणी के उद्गार निकलते थे, वे रमणीय होते थे, यह न कहकर अधखिली कली का मृदुल विकास ही उसमें दिखाया गया है। कवि की प्रेयसी का स्वभाव अत्यन्त ही स्निग्ध तथा आह्लादक था, यह बताने के लिए उसने चाँदनी की शरण ली। विचारों के भोलेपन के लिए बच्चों की साँस की उपमा गृहीत की गयी है।
इसमें ऊषा, मुकुल, चाँदनी और बच्चों के साँस–ये चार मुख्य प्रतीक हैं, जो क्रमशः हृदय की कोमलता, मुख की कान्ति, स्वभाव की मृदुलता और विचारों की सरलता के बोधक हैं।