प्रतीक/प्रतीकवाद(prateek/prateekavad)

           💐💐 प्रतीक/ प्रतीकवादी 💐💐

◆ प्रतीक  शब्द का अर्थ :-

★  प्रतीक का शाब्दिक अर्थ है अवयव, अंग, पताका, चिन्ह, निशान।

★  प्रतीक का अर्थ है प्रतिष्ठान अथवा एक वस्तु के लिए किसी अन्य वस्तु की स्थापना

प्रतीक शब्द से अभिप्राय अंग्रेजी के सिम्बल (SYMBOL) शब्द से लिया जाता है।

Symbol (सीम्बोल) शब्द  ग्रीक भाषा के Symbolon (सीम्बोलन) शब्द से आया है। जिसका शाब्दिक अर्थ है  :- संयोग

★ प्रतीक शब्द  प्रती+इक से बना है।
‘प्रती’ शब्द का अर्थ है :-  और
‘ईक’ शब्द का अर्थ है :- झुका हुआ
प्रतीक मतलब :-  ओर झुका हुआ

★ संस्कृत साहित्य में प्रतीक का अर्थ:- प्रतीयमान अर्थ की अभिव्यक्ति करने वाले शब्द को प्रतीक कहते हैं। (प्रतीयेते अनेन इति प्रतीकम्)

★ भारतीय साहित्य-शास्त्र में प्रतीक के लिए “उपलक्षण” शब्द आया है।

★  उपलक्षण :- जब कोई नाम या वस्तु इस रूप में व्यवहृत हो कि वह उस गुण में अपने समान अन्य वस्तुओं के गुणों का ज्ञान भी करा दे तो उस शब्द को उपलक्षण कहा जा सकता है ।

★अप्रस्तुत का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रस्तुत का नाम प्रतीक है। प्रतीक के संपर्क से व्यक्ति के मन में तुरंत कोई भावना जाग्रत होती है।

★ प्रतीक-योजना पर संबंधित युग, देश, संस्कृति एवं मान्यताओं का प्रभाव रहता है ।

★ प्रतीक अपने विशेष अर्थ में रूढ़ हो जाता है। 

★ प्रतीक के द्वारा एक से अधिक भावों की अभिव्यक्ति की जाती हैं।

★ अर्थ-प्रेषण की दृष्टि से प्रतीक का सम्बन्ध शब्द-शक्ति की ध्वनि-शैली से हैं ।

         

प्रतीक की परिभाषा :-

“जब कोई वस्तु या कार्य किसी अप्रस्तुत वस्तु, भाव, विचार, क्रियाकलाप, देश, जाति, संस्कृति आदि का प्रतिनिधित्व करता हुआ प्रकट किया जाता है, तब वह प्रतीक कहलाता है।”
(डॉ.भागीरथ मिश्र के अनुसार, काव्यशास्त्र से)

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार “किसी देवता का प्रतीक सामने आने पर जिस प्रकार उसके स्वरुप और उसकी विभूति की भावना मन में आ जाती है उसी प्रकार काव्य में आई हुई कुछ वस्तुएं विशेष मनोधिकारों या भावनाओं को जाग्रत कर देती है। (चिन्तामणि भाग-2 )

★  पन्त के अनुसार  “प्रतीक अव्यक्त को व्यक्त करने का माध्यम है।” (वाणी में)

★ जार्ज हवैले के अनुसार “प्रतीक के स्वरूप में प्रत्येक प्रतीकात्मक एवं सांकेतिक वस्तु का समाहार हो जाता है।”

★ नगेन्द्र के अनुसार  “उपमान जब किसी पदार्थ विशेष के लिए रुढ़ हो जाता है तब प्रतीक बन जाता है। “

प्रतीक की विशेषता :-

1.  प्रतीक वस्तुतः अप्रस्तुत का स्थापन होता है।
2. प्रतीक में आरोप विषय की प्रमुखता रहती है।
3. प्रतीक अन्योक्ति मूलक होता है।
4. प्रतीक मूर्त और अमूर्त दोनों ही हो सकता है।
5.  प्रतीक किसी वस्तु का चित्रांकन नहीं करता अपितु केवल संकेत द्वारा उसकी किसी विशेषता को ध्वनित करता है।
6. कम शब्दों में अधिक भावों की व्यंजना।
7. भाषा की लाक्षणिकता और व्यंजकता का विकास।
8. प्रतीक अंलकारों की भाँति किसी उक्ति को उत्कर्ष तथा सौन्दर्य प्रदान करते हैं।
9.  प्रतीक कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक भावों को गति प्रदान करते हैं।

◆ प्रतीक का वर्गीकरण :-

★  कुछ विद्वानों के द्वारा प्रतीकों को तीन वर्गों में विभक्त किये है :-

1. परम्परागत प्रतीक :- यह रूढ़ होते है ।
2. वैयक्तिक प्रतीक :- किसी विशेष कवि की मानसिकता निहित होती है।
3. प्राकृतिक प्रतीक :- नये युग के अनुरूप निर्मित

★  आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने प्रतीकों को दो भेद :-

1. मनोविकार भावनाओं को जगाने वाले

2. विचारों को जागृत करने वाले

★  डॉ.भागीरथ मिश्र ने  प्रतीक के पाँच भेद किये है :-

(1.) प्राकृतिक प्रतीक

(2.) सांस्कृतिक प्रतीक :- इसके तीन भेद और है :-

🔸संस्कार सम्बन्धी प्रतीक  :- इस प्रतीक  में जन्म, बधाई, उपनयन, विवाह, उत्सव आदि से सम्बन्धित प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है।

🔸  पौराणिक प्रतीक

🔸 आध्यात्मिक प्रतीक

(3.) ऐतिहासिक प्रतीक :- इतिहास के व्यक्ति और घटनाएँ जब किसी विशिष्ट भाव, विचारादि का प्रतिनिधित्व करती हुई वर्णित की जाती हैं।

(4.) जीवनव्यापार सम्बन्धी प्रतीक

(5.)  शास्त्रीय प्रतीक

★ डॉ० सरोजनी पाण्डे ने प्रतीक को सात भागों में  विभाजन किया है :-
(हिन्दी-सूफ़ी-काव्य में प्रतीक – योजना)

1. सार्वभौम प्रतीक :- ऐसे होते हैं जिनके प्रति सभी देशों में, सभी काल एवं युगों में एक धारणा बनी रहती है।

2. देशपरक प्रतीक :- वे प्रतीक आते हैं जो देश-काल, वहाँ की सभ्यता, संस्कृति मान्यताओं एवं जलवायु से बाधित होते हैं।

भारत में गधा ‘मूर्खता एवं मतिमन्दता’ का प्रतीक माना जाता है किन्तु अमेरिका में यह ‘श्रमशीलता एवं कार्यपरता’ का प्रतीक माना गया है।

3. साधनात्मक साम्प्रदायिक प्रतीक :- यह प्रतीक रूढ़ होते हैं।

4.  रहस्यात्मक संकेतसूचक प्रतीक

5.  परम्परागत प्रतीक

6. रूपकात्मक प्रतीक

7. लक्षणामूलक प्रतीक

◆ प्रतीक के उदाहरण :-

(1.)  कमल तुम्हारा दिन है
        और कुमुद यामिनी तुम्हारी है ।
        कोई निराश क्यों हो
        आती सबको समान बारी है ।
    (साकेत , मैथिलीशरण गुप्त , प्राकृतिक प्रतीक)

★ यहाँ पर कमल इस समय सुखी का और कुमुद दुःखी का प्रतीक है।

(2.) दुलहनी गावहु मंगलचार,
हम घरि आए हो राजा राम भरतार॥
तन रत करि मैं मन रत करिहूँ, पंचतत्त बराती।
राम देव मोरैं पाँहुनैं आये मैं जोबन मैं माती॥ ( कबीर , संस्कार सम्बन्धी प्रतीक)

★ यहाँ दुलहनी – आत्मा का, भरतार-परमात्मा का प्रतीक है।

(3.)  मैं हूँ भरत तुम शकुन्तला
        कहाँ है दुष्यन्त, माँ,
        यह है तीर तरकस में
        सभी विष बुझे खाली।
         ( लक्ष्मीकान्त वर्मा, पौराणिक प्रतीक )

★ यहाँ भरत ,शकुन्तला और दुष्यन्त पौराणिक प्रतीक है।

(4.) गगन गरजि बरसै अमी, बादर गहिर गंभीर ।
       चहुँ दिसि दमके दामिनी, भोजै दास कबीर ॥
        (आध्यात्मिक प्रतीक)

★ यहाँ पर गगन शून्य मंडल का, गरजना अनाहत नाद का, बादल आत्मानुभूति का, दामिनी ज्योति का और भोजना आनन्द का प्रतीक है।

(5.) सत्य है राजा हर्षवर्धन के हाथों से मिला हुआ पान का सुगन्धित एक लघु बीड़ा
( चाहे वह झूठा हो पर उसपर लगा हुआ वर्कदार सोना था । )
हाय बाणभट्ट ! हाय
तुमको भी, तुमको भी, आखिर यही होना था।
                     (ऐतिहासिक प्रतीक )

★ यहाँ पर हर्षवर्धन वैभवसंपन्न, उच्चवर्गीय शासक का तथा बाणभट्ट कवि का प्रतीक है ।

(6.) नया चाँद आया नया चाँद आया।
       नये चाँद ने इस तरह सर उठाया
       कि सब कह उठे लो नया चाँद आया ।
      नया चाँद छोटा अँधेरा बड़ा है
      नया चाँद फिर भी अकेला खड़ा है।
                (शास्त्रीय प्रतीक)

★ यहाँ पर नया चाँद साम्यवाद का प्रतीक और अँधेरा पूँजीवाद का प्रतीक है।

(7.) काट अध-उर के बंधन-स्तर
      वहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर
      कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
     जगमग जग कर दे।
(सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ गीतिका’, सार्वभौम प्रतीक

(8.) आकासे मुखि औंधा कुआं, पाताले पनिहारी।
  ताका पाणी को हंसा पीवै, बिरला आदि विचारि।।
(कबीर दास का दोहा, साधनात्मक साम्प्रदायिक प्रतीक )

★ इसमें ‘अकास’ ब्रह्माण्ड का, औंधा कुआं ‘सहस्रदल कमल’ और  पनिहारि ‘कुण्डलिनी शक्ति’ का प्रतीक है। ये प्रतीक हठयोग-साधना के प्रतीक हैं।

(9.) अंचल के चंचल क्षुद्र प्रपात !
      मचलते हुए निकल आते हो;
     उज्जवल! घन-वन-अंधकार के साथ
     खेलते हो क्यों? क्या पाते हो ?
( निराला, ‘परिमल’ संग्रह से प्रपात के प्रति कविता से  रहस्यात्मक संकेतसूचक प्रतीक)

★ यहाँ प्रपात (झरने) को मानवीय रूप देकर संकेत द्वारा कवि ने प्रच्छन्न रूप से जीव की ओर संकेत किया है। अंचल (पहाड़) परोक्ष सत्ता का प्रतीक है। अन्धकार और घन क्रमशः माया और मायोपाधिक जीव को संकेतित करते हैं।

(10.) देखूँ सबके उर की डाली-
        किसने रे क्या क्या चुने फूल
       जग के छबि-उपवन से अकूल?
        इसमें कलि, किसलय, कुसुम, शूल!
(पन्त , गुजन,परम्परागत प्रतीक)

★ यहाँ प्रयुक्त कलि, किसलय, कुसुम और शूल क्रमशः प्रसन्नता, आनन्द, उल्लास पीड़ा, व्यथा’ नादि के चिर परिचित प्रतीक है। 

(11.) “कै विधि हो नैया लागे पार ।
नहि पतवार धार विच भरमत मदमत्त सेवार ॥ झंझा पवन झकोरत जात माच्यो हाहाकार ।
बदरीनारायण नारायण करत कृपा करो पार ॥
(प्रेमघन ,सर्वस्व,रूपकात्मक प्रतीक )

★ यहाँ नैया ‘जीवन’ का प्रतीक है और पतवार ‘साधन एवं भक्ति’ का प्रतीक है।

(12.) उषा का था उर में आवास,
         मुकुल का मुख में मृदुल विकास
         चाँदनी का स्वभाव में भास
         विचारों में बच्चों की सांस ।

(पन्त ,पल्लव, लक्षणामूलक प्रतीक)

★ यहाँ गुण या धर्म का उल्लेख न करके वस्तुओं का ही उल्लेख कर दिया गया हैं जो तुल्य गुण व धर्म के कारण लाक्षणिक प्रतीक का काम करते है।  हृदय  में उल्लास था, यह न कहकर ऊषा का आवास ही बता दिया गया है। मुख से वाणी के उद्गार निकलते थे, वे रमणीय होते थे, यह न कहकर अधखिली कली का मृदुल विकास ही उसमें दिखाया गया है। कवि की प्रेयसी का स्वभाव अत्यन्त ही स्निग्ध तथा आह्लादक था, यह बताने के लिए उसने चाँदनी की शरण ली। विचारों के भोलेपन के लिए बच्चों की साँस की उपमा गृहीत की गयी है।
इसमें ऊषा, मुकुल, चाँदनी और बच्चों के साँस–ये चार मुख्य प्रतीक हैं, जो क्रमशः हृदय की कोमलता, मुख की कान्ति, स्वभाव की मृदुलता और विचारों की सरलता के बोधक हैं।

           💐💐 प्रतीकवाद 💐💐

★  प्रतीकवाद की स्थापना :- 1885 ई. में (फ्रांस में, अंग्रेजी साहित्य में बोदलेयर के काव्य-धारा का द्वारा )

★ प्रतीकवाद के प्रर्वतक :- बोदलेयर

★  प्रतीकवाद का प्रारंभ हुआ:- यथार्थवाद एवं प्रकृतवाद के विरोध में

★   प्रतीकवादी कवि :- बोदलेयर, क्लोदन, वर्लेन,पीट्स, रिम्बोद,एडगर एलन पो, मलार्मे।

★   सर्वप्रथम जोन मोरेआस ने ‘फिगारो’ नामक पत्रिका में (1886 में ) प्रतीकवाद का घोषणापत्र प्रकाशित किया।

★ जोन मोरेआस ने घोषणा पत्र यह कहा कि प्रतीकवाद ही एक ऐसा शब्द है जो कला में सर्जनात्मक प्रवृत्ति को भली भांति व्यक्त करता है।

प्रतीकवादी कवियों में श्रेष्ठ कवि :- यीट्स

★ विशुद्ध प्रतीकवादी कवि:- आयरिश कवि ईट्स। (इनकी ‘दि टू ट्रीज ‘नामक कविता में प्रतीक शैली का श्रेष्ठ उदाहरण)

★ अज्ञेय की कविता प्रतीकवादी है।(शिवदान सिंह चौहान के अनुसार)

★ प्रतीकवाद में प्रतीक की आध्यात्मिक और  रहस्यात्मक सत्ता है।

★ यह प्रतीकवादी आन्दोलन होगेल और शापेनहावर के आदर्शवादी दर्शनों से प्रभावित है।

★ प्रतीकवाद का प्रभाव जर्मनी, रूस, इंगलैण्ड और अमेरिका पर भी पड़ा।

◆ महत्वपूर्ण तथ्य :-

★ मिथकीय प्रसंगों में प्रतीक की एक विशिष्ट शैली मिलती है उसे प्रतीकात्मक मुहावरों की शैली कहा जाता है।

★ “कविता एक रहस्य है जिसके लिए कुंजी की खोज प्रत्येक पाठक को स्वयं करनी चाहिए।”
(मालार्मे के अनुसार)

★ आइन्सटाइन ने ‘दि फिल्मसेंस’ में पिकासो के कथन का उद्धरण देकर बताया है कि कुछ चित्रकार सूर्य को पीला बिन्दु मात्र बना डालते हैं, किन्तु दूसरे हैं जो ‘पीले बिन्दु’ को अपनी कला से सूर्य बनाते हैं।

★ सर आर्थन एडिंगटन के अनुसार “अणु और तारा के मध्य बिन्दु में मनुष्य के सभी आयमों को प्रतीक में प्रस्तुत करना ही काव्य है।”

★ फ्रायड़ प्रतीक को रूढ़ मानते हैं। उनके अनुसार प्रतीकों का स्थिर और सार्वभौम अर्थ होता है।

★ अज्ञेय ने बताया है कि ‘कवि प्रतीक द्वारा सत्य को जानता है – सत्य के अथाह सागर में वह प्रतीक-रूपी कंकड फेंक कर उसको थाह का अनुमान करता है। (‘प्रतीक और सत्यान्वेषण’ निबंध से)

★ “कलात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में प्रतीक पद्धति का प्रथम निदर्शन मिश्र की प्राचीन चित्रलिपियों में मिलता है। काव्य-क्षेत्र के रूप में प्रतीकों का प्रयोग सर्वप्रथम हिन्दी साहित्य में प्राप्त न होकर वैदिक साहित्य में उपलब्ध होता है।”
(डॉ.सरोजनी पाण्डे के अनुसार)

★ “ प्रतीक सूफ़ी-साहित्य के राजा हैं । “
(चन्द्रबली पाण्डेय के अनुसार)

★ डॉ. रामकुमार वर्मा ने साहित्य-क्षेत्र में प्रतीकों का प्रयोग निम्नांकित बातों के लिये माना है:-

1. सौन्दर्यात्मिक अनुभूति की अभिव्यक्ति के लिये।
2. किसी भाव को छिपाकर चमत्कार उत्पन्न करने के लिये।
3. दार्शनिक भावधारा की अभिव्यक्ति के लिये।
4.  रहस्यात्मक अनुभूति को परस्पर विरोधी  अभिव्यक्ति के अवसर पर ।
5. कवि-सत्य को आदर्श रूप देने के लिये ।
6. मनोवैज्ञानिक भावना के क्षेत्र विस्तार के लिये।

★ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल प्रतीकों  के तीन आधार मानते हैं।
1. वस्तुगत
2. रूढ़िगत
3. जातीय संस्कारगत

बिम्ब/बिम्बवाद

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