प्रबंध चिंतामणि का परिचय( Management Chintamani ka parichay)

🌺 प्रबंध चिंतामणि का परिचय 🌺

 

* 1304ई. में संस्कृत भाषा में जैन आचार्य मेरुतुंग द्वारा रचित है।(डॉ . बच्चन सिंह के अनुसार)

* इसमें अनेक ऐतिहासिक कथा प्रबंध है ।

* इसमें बहुत पुराने राजाओं के आख्यान संग्रहीत किये गए है।

* प्रबंध चिंतामणि नामक संस्कृत ग्रंथ भोज प्रबंध के ढंग से बनाया।

* इसमें सिद्धराज जयसिंह कुमार पाल आदि के वृतांत प्रस्तुत किए गए हैं।

* “हिंदू व्यक्तियों की अपेक्षा जैन कवि इतिहास रक्षा के प्रति अधिक सचेत हैं ।”(चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ के अनुसार)

* प्रबंध चिंतामणि में अपभ्रंश के जो दोहे उद्धत किये गये है वे दूसरों के बनाये हुए हैं।इनमें मुंज के दोहों का साहित्यिक महत्व सबसे अधिक है।

* प्रबंध चिंतामणि का हिंदी में अनुवाद 1932ई. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने किया था।

* प्रबंध चिंतामणि ग्रंथ के संस्कृत मूल प्रथम प्रकाशन- गुजरात के शास्त्री रामचंद्र दीनानाथ नामक विद्वान संवत् 1944 में बम्बई से किया था। उन्होंने इसका गुजराती भाषा में अनुवाद भी छपा कर प्रकाशित किया था ।

* मेरुतुंग ने इस ग्रंथ को पूर्ण किया- वि.स. 1361 में काडियावाड़ के बढवान शहर में।

* मेरुतुंग ने प्रबंध चिन्तामणि ग्रंथ की रचना करने दो कारण बताएं-

1. मेरुतुंग कहते है – “बार-बार सुनी जाने के कारण पुरानी कथाएं बुद्धिमानों के मन को वैसा प्रसन्न नहीं कर पाती। इसलिए मैं सपुरुषों को वृतांतों से इस प्रबंध चिंतामणि ग्रंथ की रचना कर रहा हूं ।”

2. मेरुतुंग कहते है – ” बहुश्रुत और गुणवान् ऐसे वृद्धजनों की प्राप्तः दुर्लभ हो रही है और शिष्यों में भी प्रतिभा का वैसा योग न होने से शास्त्र प्रायः नष्ट हो रहे हैं। इस कारण से तथा भाषा बुद्धिमानों को उपकार हो ऐसी इच्छा से सुधा के जैसा, सपुरुषों प्रबंधों का संघटन रूप यह ग्रंथ मैंने बनाया है।”

* सबसे पहले श्री एलेक्जेंडर किन्लॉक फॉर्ब्स को इस ग्रंथ का परिचय हुआ और उन्होंने गुजरात की इतिहास विषय में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘रास माला’ में उसका सर्वप्रथम उपयोग किया।

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