बाणभट्ट की आत्मकथा का उद्देश्य(banbhatt ki aatmakatha ka uddeshy)

• प्रकाशन :- 1946 ई.

• उपन्यासकार :- आ. हजारीप्रसाद द्विवेदी

• संपूर्ण उपन्यास 26 उच्छ्वासों में विभक्त है।

• उपन्यास के आरंभ में लिखा गया है – “अथ बाणभट्ट की आत्मकथा लिख्यते।”

• बाणभट्ट की आत्मकथा सातवीं शताब्दी का समग्र चित्रण प्रस्तुत करता है।

• यह आत्मकथा डायरी शैली में लिखी गई है।

• आत्मकथा में अतीत की स्मृतियां होती है इसमें भी बाणभट्ट अपने अतीत जीवन को स्मृत करता है।

• उपन्यास में पूर्व दीप्ति पद्धति (फ्लैश बैक) का उपयोग किया गया है।

• आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की प्रथम औपन्यासिक कृति है।

• आत्मकथा के रूप में लिखा गया यह हिंदी का पहला ऐतिहासिक उपन्यास है।

• यह हर्षवर्धन के दरबारी बाणभट्ट के जीवन पर आधारित उपन्यास है।

• इस उपन्यास का परिवेश हर्षकालीन समाज है।

• कथा का अधिकांश भाग ‘कादंबरी हर्ष चरित’ से लिया गया है।

• यह आत्मकथा है इसलिए कि सारा वृत्तांत बाण की जुबान से कहा गया है और यह जीवनी भी है क्योंकि यह आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा अंकित की गई है किंतु यह मूलतः उपन्यास है।

• उपन्यास के शास्त्र के लक्षणों के आधार पर इसे रोमांटिक उपन्यास माना जा सकता है।

• बाणभट्ट की आत्मकथा एक क्लासिकल रोमांटिक उपन्यास है अर्थात् अपने बंध चित्रण, वर्णन, शिल्प, शैली में यह क्लासिक है और प्राणगत ऊष्मा में रोमांटिक है।( डॉ. बच्चन सिंह के अनुसार)

• हर्ष कालीन ऐतिहासिक संस्कृति के धरातल पर की है द्विवेदी जी ने सप्तम शताब्दी के पूर्ववर्ती साहित्यिक कृतियों और बाणभट्ट की समस्त रचनाओं की सहायता से इस उपन्यास की सृष्टि की है।

• हर्ष के शासन काल में घटने वाली महत्वपूर्ण घटनाओं में राजश्री का उद्धार और हुयेनत्सांग के सभापतित्व में हुई महती सभा अत्यन्त महत्वपूर्ण है।

• उपसंहार में कैथराइन दीदी (ऑस्ट्रिया निवासी) को क्रोध करते दिखाया गया है कि द्विवेदी जी ने इसे ‘ऑटोबायोग्राफी’ क्यों कहा है। कैथराइन दीदी ने बाणभट्ट की आत्मकथा के कुछ अंश मिले जिनका हिंदी अनुवाद करके उन्होंने व्योमकेश शास्त्री (आ. हजारी प्रसाद द्विवेदी) को दे दिया।

• यह कृति बाणभट्ट के द्वारा लिखी गई है जिसकी पांडुलिपि किसी प्रकार से मिस कैथराइन दीदी को मिल गई थी और उसका अनुवाद भी दीदी नहीं किया है केवल संपादन इसका कार्य आ.हजारी प्रसाद द्विवेदी ने किया है और इस प्रकार यह प्रमाणित का प्रयास किया गया है कि यह कृति उपन्यास न होकर भट्ट कि स्वयं की लिखी गई आत्मकथा है।

• बाणभट्ट और हर्ष कालीन युग को उसके तमाम संदर्भ और सामाजिक राजनीतिक आर्थिक धार्मिक और सांस्कृतिक के साथ सचित्र वर्णन कर दे देता है।

• इस उपन्यास के माध्यम से द्विवेदी जी इतिहास से पाठक को परिचित कराना चाहते हैं।

• बाणभट्ट जैसे प्रकांड पंडित एवं सहृदय कवि के माध्यम से द्विवेदी जी विश्व मानववाद का प्रत्याख्यान करना चाहते हैं।
• उपन्यास का नायक:- बाणभट्ट

• उपन्यास की नायिका :- भट्टिनी

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