💐💐 बिम्ब 💐💐
◆ बिम्ब का अर्थ :-
★ ‘बिम्ब’ शब्द अँग्रेजी के इमेज़ (Image) शब्द के पर्याय के रूप में ग्रहण किया जाता है।
★ संस्कृत में बिम्ब शब्द का अर्थ :- प्रतिच्छवि, प्रतिच्छाया, प्रतिबिम्बित
★ “जिस प्रकार अंग्रेजी के अनेक पारिभाषिक शब्दों के लिए उन्होंने हिन्दी में नए पारिभाषिक शब्द गढ़े थे, उसी प्रकार ”इमेज’ के लिए ‘बिम्ब शब्द की उद्भावना की थी। ( डॉ. केदारनाथ सिंह ने आ. रामचंद्र शुक्ल के लिए कहा)
★ अंग्रेजी के ‘इमेज’ शब्द के लिए हिन्दी में ‘बिम्ब’ का प्रयोग सर्वप्रथम आ. रामचंद्र शुक्ल ने किया।(डॉ. केदारनाथ सिंह के अनुसार)
◆ बिम्ब की परिभाषा :-
(1.) लेविस के अनुसार “काव्य बिम्ब ऐन्द्रिय चित्र है जो रूपात्मक होता है।”
(2.) कैरोलिन के अनुसार “बिम्ब कवि के विचारों का लघु शब्द चित्र है।”
(3.) “काव्य में अर्थ ग्रहण मात्र से काम नहीं चलता, बिम्ब ग्रहण अपेक्षित होता है। ”
(आ.रामचंद्र शुक्ल के अनुसार,रस मीमांसा पुस्तक से)
(4.) “काव्य का काम है कल्पना में बिम्ब अथवा मूर्त भावना उपस्थित करना, बुद्धि के सामने कोई विचार लाना नहीं। “(आ.रामचंद्र शुक्ल के अनुसार,रस मीमांसा पुस्तक से)
(5.) “बिम्ब एक प्रकार का चित्र है जो किसी पदार्थ के साथ विभिन्न इंद्रियों के सन्निकर्ष से प्रमाता के चित्र में उद्बुद्ध हो जाता है। ” (नगेंद्र के अनुसार)
(6.) “कल्पना की सहायता से शब्दार्थ द्वारा निर्मित ऐसे मानस चित्र को बिम्ब कहते हैं जिसमें भावतत्त्व का सम्मिश्रण हो।” (नगेंद्र के अनुसार)
(7.) “वस्तु, भाव या विचार को कल्पना एवं मानसिक क्रिया के माध्यम से इन्द्रियगम्य बनाने वाला व्यापार ही बिम्ब विधान है।” (भागीरथ मिश्र के अनुसार)
(8.) “बिम्ब वह शब्द – चित्र है जो कल्पना के द्वारा ऐन्द्रिय अनुभवों के आधार पर निर्मित होता है।”
(डॉ. केदारनाथ सिंह के अनुसार)
■ इस परिभाषा के अनुसार बिम्ब की विशेषता:-
★ बिम्ब एक प्रकार का शब्दचित्र है
★ बिम्ब का निर्माण कल्पना के द्वारा होता है।
★ बिम्ब के निर्माण के लिए ऐन्द्रिय अनुभव के आधार का होना आवश्यक है।
(6.) डॉ. केदारनाथ सिंह के अनुसार “कवि जब मानव मन के सहज कृत्रिम, गतिशील, जटिल संवेगों का भाषा के जीवन्त माध्यम के द्वारा शाब्दिक पुनर्निर्माण करता है तो उसे समीक्षा की आधुनिक पदावली में बिम्ब-विधान कहते हैं।”
◆ बिम्ब की विशेषता :-
1.काव्य बिम्ब का माध्यम शब्द है।
2. बिम्ब चित्रात्मक होता है।
3. बिम्ब ऐन्द्रिय अनुभव से सम्बद्ध होता है।
4. बिम्ब मानवीय संवेदनाओं से संयुक्त होता है।
5. बिम्ब मूर्त होता है।
6. बिम्ब शब्दार्थ द्वारा निर्मित होता है।
7. बिम्ब के निर्माण के लिए कल्पना की सहायता लेनी पड़ती है।
8. बिम्ब एक प्रकार का शब्दचित्र है।
9. बिम्ब वस्तुओं के आन्तरिक सादृश्य का प्रत्यक्षीकरण है।
10. बिम्ब ऐन्द्रिय माध्यम के द्वारा आध्यात्मिक अथवा तार्किक सत्यों तक पहुँचने का एक मार्ग है।
11. बिम्ब एक अमूर्त विचार अथवा ‘भावना’ की पुनर्रचना है।
12. बिम्ब दो विरोधी संवेदनाओं अथवा अनुभूतियों का आन्तरिक तनाव है ।
◆ बिम्ब और प्रतीक में अंतर:-
★ बिम्ब किसी अप्रस्तुत वस्तु का मानसिक या काल्पनिक रूप होता है जबकि प्रतीकों रूप में सदा ऐसी वस्तुओं का व्यवहार किया जाता है जिनके रूप और प्रवृत्ति से सभी परिचित होते हैं।
★ बिम्ब की शब्दावली एकार्थी होती है जबकि प्रतीक की बहुअर्थी ।
★ बिम्ब का सम्बन्ध भाव और विचार से होता है जबकि प्रतीक देशकाल वातावरण, संस्कृति, परम्परा आदि से जुड़ा होता है।
★ बिम्ब विधान के अन्तर्गत चित्रात्मकता है, किन्तु प्रतीक विधान के लिए चित्रात्मकता अनिवार्य नहीं है ।
★ प्रतीक विधान वर्णनात्मक शैली में उपस्थित किया जा सकता है किन्तु बिम्ब-विधान के लिए चित्रात्मक शैली होनी आश्यक है।
◆ बिम्ब और पौराणिक कल्पना में अन्तर:-
★ बिम्ब का निर्माता एक व्यक्ति होता है जबकि पौराणिक कल्पना का निर्माण सम्पूर्ण जाति अथवा समूह से होता है।
★ बिम्ब एक बार निर्मित होकर स्थिर हो जाता है, जबकि पौराणिक कल्पना के सीमान्त बराबर बदलते रहते हैं ।
★ आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने बिम्ब और पौराणिक कल्पना में अन्तर करते हुए कहा है :- “पुराण मनुष्य की उन कल्पनाओं का जातीय रूप है जो जगत् के व्यापारों को समझने में बुद्धि के कुण्ठित होने पर उद्भूत हुई थीं, और दीर्घ काल तक जातीय चिन्ता के रूप में संचित होकर विश्वास का रूप धारण कर गयी हैं । काव्य की कल्पना, कल्पना ही रहती है। वह सत्य को ग्रहण करने में सहायक होती है । कल्पना ने जहाँ विश्वास का रूप धारण किया वहाँ वह पुराण हो गयी, काव्य नहीं रही। काव्य की कल्पना सदा सत्य को गाढ़ भाव से अनुभव करने का साधन बनी रहती है, स्वयं सत्य को आच्छादित करके प्रमुख स्थान पर अधिकार नहीं कर लेती ।”
(साहित्य का साथी से)
◆ बिम्ब का वर्गीकरण :-
★ डा० नगेंद्र ‘ ने स्थूल रूप से पाँच वर्गों में रखा है:-
1. दृश्य, श्रव्य, स्पृश्य, घ्रातव्य और रस्य, (इंद्रियों से संबंधित)
2. लक्षित और उपलक्षित, ( कवि की कल्पना से संबंधित)
3. सरल और संश्लिष्ट ( घटना ,प्रसंग या वस्तु से संबंधित)
4. खंडित और समाकलित ( घटना ,प्रसंग या वस्तु से संबंधित)
5. वस्तुपरक और स्वच्छंद ( यर्थाथ और कल्पना से संबंधित)
★ सामान्यतः बिम्बों की तीन कोटियाँ निर्धारित की जाती हैं : – (डॉ.केदारनाथ सिंह के अनुसार)
1. आदिम बिम्ब
2. पौराणिक बिम्ब
3. निजन्धरी बिम्ब
√ यह तीनों बिम्ब छायावादी कविता में सरलता से मिल जाते हैं।
√ आदिम बिम्बों की प्रस्तुति का सर्वोत्तम उदाहरण :- कामायनी
√ पौराणिक बिम्ब का श्रेष्ठ उदाहरण :- राम की शक्ति पूजा ,कामायनी ।
√ निजधरी बिम्ब वाली प्रमुख कवितायें:- पंत की कृतियाँ ‘गुंजन’ और ‘पल्लव’ में आदि।
√ पौराणिक कथाओं की भाँति निजन्धरी कथाओं का सम्बन्ध भी लोक-कल्पना से ही है।
√ पौराणिक कथाएँ धर्म और सामाजिक विश्वास के साथ अनिवार्यतः सम्बद्ध होती है, जबकि निजन्धरी कथाओं का सम्बन्ध मानवेतर विश्वासों और रहस्यों से होता है।
√ निजन्धरी के अन्तर्गत परियों की कहानियाँ, नाराशंसी गाथाएँ, भावात्मक शिशु कथाएँ, चमत्कारपूर्ण गल्प, भूत-प्रेत और जादू-मन्तर की कहानियाँ आती हैं।
★ डॉ. केदारनाथ सिंह ने बिम्ब विधान को आठ वर्गों में विभाजित किया है।
1. सज्जात्मक बिम्ब
2. छायात्मक बिम्ब
3. घनात्मक बिम्ब
4. मिश्रित बिम्ब
5. उदात्त बिम्ब
6. नाद बिम्ब
7. अमूर्त बिम्ब
8. प्रतीकात्मक बिम्ब
★ डा. नगेंद्र ने बिम्ब विधान को तीन सोपानों में विभाजित किया है :-
1. अनुभूति का निर्वैयक्तीकरण
2. साधारणीकरण
3. शब्दार्थ के माध्यम से अभिव्यक्ति
★ डा. भगीरथ मिश्र द्वारा किया गया बिम्बों का वर्गीकरण निम्न है :-
(1.) ऐन्द्रिय बिम्ब :- इसके दो भेद :-
🔷 दृश्य बिम्ब
🔷 अन्य संवेद्य बिम्ब
💐 दृश्य बिम्ब :- इसके दो भेद :-
🔺 वस्तु बिम्ब
🔺 व्यापार बिम्ब
🔺वस्तु बिम्ब :- इसके दो भेद :-
⚜️ अलंकृत बिम्ब
⚜️ सहज बिम्ब
🔺 व्यापार बिम्ब :- इसके पांच भेद :-
✅ कृषि
✅ सांस्कृतिक
✅गोचारण
✅ यांत्रिक
✅ दैनिक जीवन
✅ दैनिक जीवन :- इसके तीन भेद :-
♦️मनोरंजन संबंधी
♦️आवश्यकता सम्बन्धी
♦️प्रणय सम्बन्धी
(2.) मानस बिम्ब :- इसके दो भेद :-
💠 भाव बिम्ब
💠 विचार बिम्ब
◆ बिम्ब के प्रमुख कारक (तत्व) :-
1. कल्पना
2. ऐन्द्रिक
3. सार्थक शब्द
4. स्मृति
◆ बिम्ब के कार्य :- (डा० भगीरथ मिश्र के अनुसार)
1. काव्यार्थी को पूर्णतया स्पष्ट करना ।
2. भाव को संप्रेपित एवं उत्तेजित करना।
3. वस्तु या घटना को प्रत्यक्ष कराना।
4. रूप, सौन्दर्य या गुण को हृदयंगम बनाना।
◆ बिम्ब विधान के उदाहरण :-
(1.) बिजली-सा झपट, खींचकर शय्या के नीचे
घुटनों से दाब दिया उसको
पंजों से गला दबोच दिया
आँखों के कटोरे से दोनो साबित गोले
कच्चे आमों की गुठली जैसे उछल गये
खाली गड्ढों से काला लहू उबल पड़ा। ( धर्मवीर भारती की रचना ‘अंधायुग’, दृश्य बिम्ब)
(2.) आह, चूम लूँ जिन चरणों को, चाँप-चाप कर उन्हें नहीं
दुख को इतना, अरे अरुणिमा ऊषा-सी वह उधर वही।
(प्रसाद की रचना लहर से, सज्जात्मक बिम्ब)
(3.) तू खुली एक उच्छ्वास-संग,
विश्वास – स्तब्ध बंध अंग-अंग,
नत नयनों से आलोक उतर
काँपा अघरों पर थर-थर-थर ।
( निराला की रचना अनामिका से, घनात्मक बिम्ब)
(4.) इन्द्रधनु की सुन कर टंकार
उचक चपला के चंचल बाल,
दौड़ते थे गिरि के उस पार
देख उड़ते विशिखों की धार।
( पंत की रचना पल्लव से , मिश्रित बिम्ब)
(5.) अंक में तब नाश को लेने अनन्त विकास आया।
(महादेवी वर्मा की रचना संध्यागीत से,अमूर्त बिम्ब)【 नाश और विकास दोनों शब्द अमूर्त है】
(6.) उषा का था उर में आवास, मुकुल का मुख में मृदुल विकास,
चाँदनी का स्वभाव में भास,विचारों में बच्चों के साँस ।
( पंत की रचना पल्लव से , प्रतीकात्मक बिम्ब)
(7.) कौन आया था न जाने स्वप्न में मुझ को जगाने, याद में उन अंगुलियों के हैं मुझे पर युग बिताने
( महादेवी वर्मा का गीत ‘शलभ मैं शापमय वर हूँ’ से छायात्मक बिम्ब)
(8.) झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर।
राग अमर! अम्बर में भर निज रोर!
झर झर झर निर्झर-गिरि-सर में,
घर, मरु, तरु-मर्मर, सागर में,
सरित-तड़ित-गति-चकित पवन में,
मन में, विजन-गहन-कानन में,
आनन-आनन में, रव घोर-कठोर-
राग अमर! अम्बर में भर निज रोर!
( निराला की रचना बादल राग से, नाद बिम्ब)
(9.) अस्ताचल रवि, जल छल-छल छवि, स्तब्ध विश्वकवि, जीवन उन्मन ।
( निराला की रचना अपरा से, उदात्त बिम्ब)
(10.) अन्धकार के अट्टहास-सी
मुखरित सतत, चिरन्तन सत्य।
( प्रसाद की रचना कामायनी से, उदात्त बिम्ब)
(11.) कल कपोल था जहां बिछलता
कल्पवृक्ष का पीत पराग।
(प्रसाद की रचना कामायनी से,पौराणिक बिम्ब)
(12.) धीरे-धीरे जगत् चल रहा,अपने उस ऋजु पथ में,
धीरे-धीरे खिलते तारे,मृग जुतते विधु-रथ में।
(प्रसाद की रचना कामायनी से,पौराणिक बिम्ब)
(13.) है अमानिया, उगलता गगन धन अन्धकार
खो रहा दिशा का ज्ञान, स्तब्ध है पवनधार
अप्रतिहत गरज रहा पीछे अम्बुधि विशाल
भूघर ज्यों ध्यानमग्न, केवल जलती मशाल ।
( निराला की रचना अनामिका काव्य संग्रह से,राम की शक्ति पूजा कविता से, आदिम बिम्ब)
(14.) राम ने बढ़ाया कर लेने को नीलकमल।
कुछ लगा न हाथ, हुआ सहसा स्थिर मन चंचल,
ध्यान की भूमि से उतरे, खोले पलक विमल।
( निराला की रचना अनामिका काव्य संग्रह से,राम की शक्ति पूजा कविता से, निजन्धरी बिम्ब)
(15.) कुकुरमुत्ते की कहानी
सुनी जब बहार से
नबाब के मुँह में आया पानी
(निराला की रचना कुकुरमुत्ता कविता से, स्वाद बिम्ब)
💐💐 बिम्बवाद 💐💐
★ बिम्ब की चर्चा एडिसन के काल से आरम्भ हो गयी थी।
★ बिम्बसिद्धान्त को शास्त्रीय रूप देने का सर्वप्रथम प्रयास बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशक में हुआ।
★ बिम्बवाद का उदय आधुनिक काल की घटना है।
★ बिम्बवाद आरम्भ हुआ :- इंगलैंड में पतनोन्मुख रोमांटिक कविता की अति अलंकार प्रधानता के विरोध में
★ बिम्बवाद का पहला विरोध रोमांटिक कविता की अतिशय कल्पनाशीलता और भावात्मक स्फीति से था। वे कविता में सूक्ष्म और अमूर्त के स्थान पर ठोस और मूर्त को स्थापित करना चाहते थे ।
★ अंग्रेजी साहित्य के इतिहास में बिम्ब काव्यात्मक आन्दोलन अपने बिम्ब-सम्बन्धी आग्रह के कारण ‘बिम्बवाद’ ( इमेजिज्म ) के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
★ बिम्बवाद का आन्दोलन आंरभ :- 1908ई. में
★ बिम्बवाद के प्रवर्तक – टी. ई. हुल्मे तथा एफ. एस० फ्लिट
★ हिंदी में बिम्बवादी अवधारणा की सर्वप्रथम विस्तृत व्याख्या डॉ. केदारनाथ सिंह ने की।
★ टी. ई. हुल्मे के द्वारा 1908 ई. में प्रथम घोषणा पत्र प्रकाशित हुआ जिस में बिम्ब को कवि-कर्म की चरम उपलब्धि माना गया।
★ बिम्बवादियों की सब से महत्त्वपूर्ण स्थापना यह थी कि काव्य में ‘विशेष’ की ही अभिव्यक्ति होनी चाहिए, सामान्य की नहीं।
★ बिम्ब का सम्बन्ध कवि के प्रत्यक्ष ऐन्द्रिय बोध से है।
★ ऐन्द्रिय बोध का विषय होता है ‘विशेष’- विशेष व्यक्ति, विशेष वस्तु, विशेष स्थान ।
★ टी. ई. हुल्मे के द्वारा 1908 ई. में प्रथम घोषणा पत्र प्रकाशित कविता ‘पतझड़’ है जिसमें पतझड़ के चाँद की उपमा ‘रक्तवर्ण किसान के मुख’ और उसके आस-पास छिटके हुए तारों की उपमा ‘शहर के श्वेत मुख बच्चों’ से दी गयी है।
★ ऐतिहासिक दृष्टि से बिम्बवाद का आरम्भ ‘पतझड़’ (1908 ई., हुल्मे कृत) कविता से माना जाता है ।
★ एडवर्ड स्टोरर के संकलन (1908 ई. )को बिम्बवादी कविताओं का प्रथम प्रतिनिधि संग्रह कहा जा सकता है।
★ एडवर्ड स्टोरर के संकलन में पहली बार एक ऐसी कविता प्रकाशित हुई जिस का शीर्षक था ‘बिम्ब’ ।
★ बिम्ब सम्बन्धी धारणाओं के इतिहास में ‘बिम्ब’ कविता( 1908 ई, एडवर्ड स्टोरर कृत)का कोई विशेष योग नहीं है। इस से केवल काव्य के क्षेत्र में ‘बिम्ब’ शब्द के प्रथम ऐतिहासिक महत्त्व को सूचना मिलती है ।
★ बिम्बवाद के समर्थकों में एजरा पाउंड का नाम महत्त्वपूर्ण है।
★ एफ.एस. फ़्लिट ने ‘बिम्बवाद’ शीर्षक से एक आलोचनात्मक टिप्पणी 1913 ई. प्रकाशित करवायी। जिसकी प्रमुख स्थापनाएँ थीं :-
1. काव्य में वस्तु का प्रत्यक्षग्रहण(मूर्त अभिव्यक्ति अर्थात् बिम्बनिर्माण )।
2. ऐसे शब्दों का सर्वथा त्याग जो काव्य को अर्थवान् बनाने में योगदान।
3. लययोजना में यान्त्रिक पद्धति का त्याग ।
★ एजरा पाउंड ने अपना ऐतिहासिक घोषणापत्र प्रकाशित किया जिसमें विस्तारपूर्वक बिम्बवादी सिद्धान्तों की चर्चा थी। जो इस प्रकार है :-
1. काव्य के रूप अथवा रचना-तन्त्र को सर्वोपरि महत्त्व देना ।
2. नयी संवेदना के अनुकूल नयी लय-पद्धतियों की खोज ।
3. मुक्त छन्द को मानव को मौलिक स्वातन्त्र्य-चेतना के रूप में स्वीकार करने का आग्रह ।
4. विषय के निर्वाचन में पूर्ण स्वतन्त्रता ।
5. ताजे और मूर्त बिम्बों का अन्वेषण तथा अमूर्त शब्दों का पूर्ण बहिष्कार।
6. ऐसी कविताओं का निर्माण करना जो ‘संक्षिप्त’ ‘कठोर’ और ‘स्पष्ट’ हों।
7. काव्यगत केन्द्रणशीलता का सिद्धान्त।
◆ महत्वपूर्ण तथ्य :-
★ अंग्रेजी समीक्षा के अन्तर्गत बिम्बविधान की दृष्टि से काव्य की व्याख्या करने का सर्वप्रथम प्रयास बिम्बवादियों ने किया था।
★ बिम्बविधान को आधार बनाकर काव्य का समग्र अध्ययन करने वाले पहले विद्वान :- अमरीकी विद्वान् हेनरी वेल्स
★ हिंदी में बिम्बवादी अवधारणा की सर्वप्रथम विस्तृत व्याख्या डॉ. केदारनाथ सिंह ने की।
★ सर्वप्रथम स्पष्ट शब्दों में बिम्ब विधान की चर्चा आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने की थी।
★ आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने बिम्ब विधान को ‘चित्र विधान’ माना।
★ सुमित्रानंदन पंत ने बिम्ब के लिए ‘चित्रभाषा’ शब्द का प्रयोग किया है।(‘पल्लव’ की भूमिका में )
★ महादेवी वर्मा ने बिम्ब को ‘भावनाओं का चित्रण’ माना।
★ सी० डे लिविस ने बिम्ब को ‘व्यक्ति निर्मित पुराण’ कहा है।
★ केदारनाथ सिंह ने बिम्ब को काव्य मूल्यांकन के एक महत्त्वपूर्ण मानक के रूप में स्थापित किया।
★ ‘आधुनिक हिन्दी कविता में बिम्ब विधान’ पर सर्वप्रथम विस्तार से और वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करने वाले डॉ. केदारनाथ सिंह है।
★ आधुनिक अर्थ में बिम्ब का प्रयोग पहली बार आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ही किया।
★ “हिंदी आलोचना के क्षेत्र में ‘बिम्ब’ शब्द के प्रथम प्रयोक्ता और व्याख्याता आचार्य रामचंद्र शुक्ल ही है। “(डॉ. केदारनाथ सिंह के अनुसार)
★ “बिना बिम्ब ग्रहण के अर्थ-ग्रहण हो ही नहीं सकता।”
(आ.रामचंद्र शुक्ल के अनुसार,चिन्तामणिः प्रथम भाग,)
★ नगेन्द्र के अनुसार सामान्य बिम्ब से काव्यबिम्ब में यह भेद होता हैं कि :-
1. इसका निर्माण सक्रिय या सर्जनात्मक कल्पना से होता है।
2. इसके मूल में राग की प्रेरणा अनिवार्यतः रहती है।
★ “बिम्ब-स्थापन को काव्य-निर्माण का मुख्य उद्देश्य मानने के लिए बाध्य हुआ है।”(आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, रस-मीमांसा में)
★ अमेरिकी विचारक जोज़ेफ़ाइन माइल्स के अनुसार बिम्बसिद्धान्त का आरम्भ उस समय से मानना चाहिए जब लॉक और ह्यूम जैसे इन्द्रियानुभववादी दार्शनिकों ने तर्क और अनुमान की अपेक्षा वस्तु की प्रत्यक्ष संवेदना को अधिक प्रामाणिक और महत्त्वपूर्ण सिद्ध किया।
★ काव्यात्मक बिम्ब को मनोविश्लेषणात्मक दृष्टि से देखने वाले विद्वान :- श्रीमती स्पंजियन, प्रो. लिविंगस्टन लॉवेस, एडवर्ड ए. आर्मस्ट्रॉगं, रॉबिन स्केल्टन,डॉ.नगेन्द्र, अज्ञेय, और प्रभाकर माचवे ।
★ मॉड बॉडकिन ने युंग के सिद्धान्तों के आधार पर काव्यात्मक बिम्ब विधान को एक सर्वथा नये परिप्रेक्ष्य में रख कर देखने का प्रयास किया है ।
★ कोलरिज की ‘एन्वेंट मैरिनर’ ( प्राचीन सागरिक ) कविता के आधार पर उन्होंने यह सिद्ध किया है कि ‘पुनर्जन्म’ की कल्पना एक ऐसा आदिम-बिम्ब अथवा अभिप्राय है जो प्रत्येक युग की कविता में जलयात्रा अथवा अन्धकार-यात्रा के रूपक के द्वारा व्यक्त होता है ।
★ “बिम्ब जब होगा तब ‘विशेष’ का होगा, ‘सामान्य’ या जाति का नहीं ।”( आचार्य शुक्ल के अनुसार रस मीमांसा में)
★ बिम्ब कविता में अमूर्त्त को मूर्त बनाकर वह उसे स्वच्छ, साफ तथा सम्प्रेषणीय बनाता है।
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