बीसलदेव रासो का परिचय(bisaldaio raso) ka parichay)
• trick :-बीस नर
• रचनाकाल :- संवत् 1212 (आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार)
संवत् 1073 (रामकुमार वर्मा के अनुसार)
1016 ई. (डॉ नगेंद्र के अनुसार)
(संवत् सहस तिहत्तर जांनि, नाल्ह कबीसर सरसीय वाणि।)
• रचनाकार – नरपति नाल्ह(1212 वि.स./1155ई.)
• प्रमुख रस – श्रृंगार रस
• रचना का काव्य रूप – गेह मुक्तक काव्य,वीर गीत(सर्वप्रथम वीर गीत मे लिखी गई थी।)
• नायक-विग्रहराजचतुर्थ(बीसलदेव)(अजमेर के शासक,1158-1163ई.)
• बीसलदेव की रचना – हरिकेली
• नायिका – राजमती(परमारवंशी राजा भोज की कन्या)
• विरह गीत काव्य
• गेय काव्य( नगेंद्र के अनुसार)
• काव्य गेय नहीं था क्योंकि राजस्थान में कभी भी यह गेय नहीं रहा है ।(डॉ. मेनारिया के अनुसार)
• हम्मीर के समय की रचना (गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार)
• विषय:- भोज परमार की पुत्री राजमती और अजमेर के चौहान राजा बीसलदेव तृतीय के विवाह, वियोग एवं पुनर्मिलन की कथा सरस शैली में प्रस्तुत की है।
• 200 चरण
• खंड – 4
• पहला खंड में :- मालवा के भोज परमार की पुत्री राजमति से शाकंभरीश्वर बीसलदेव की विवाह का वर्णन।( 85 छंद )
• दूसरा खंड में :- राजमति से रूढ़कर रत्न ले जाने के लिए बीसलदेव का उड़ीसा जाना वर्णित।(86 छंद)
• तीसरे खंड में :- राजमती का विरह वर्णन।(103 छंद)
• चौथे खंड में:- भोजराज का अपनी पुत्री का मालवा ले जाना वर्णित है और उसी में बीसलदेव के उड़ीसा से लौटने और राजमति के घर ले आने का प्रसंग( 42 छन्द)
• कुल छन्द:- 316 छन्द
• 128 छंदों की एक प्रति का संपादन माता प्रसाद गुप्त ने किया।
• हिन्दी में प्रथम बारहमासा का वर्णन।
• वीर गीत के रूप में सबसे पुरानी पुस्तक -बीसलदेव रासो
• हिंदी के आदिकाल की एक श्रेष्ठ काव्य कृति (नगेंद्र के अनुसार)
• नरपति नाल्ह को जनकवि नहीं मानते हैं।(डॉ. बच्चन सिंह)
• “सामंती जीवन के प्रति गहरी रूचि का सजीव चित्रण बीसलदेव रासो काव्य में मिलता है।”( नगेंद्र के अनुसार)
• “संदेश रासक के समान ही बीसलदेव रासो की भाव भूमि प्रेम की निश्चल अभिव्यक्ति में सरस है।” (नगेंद्र के अनुसार)
• मेघदूत और संदेश शासक की संदेश परंपरा बीसलदेव रासो में मिलती है। (नगेंद्र के अनुसार)
• “बीसलदेव काव्य के वर्णनों में एक संस्कार दृष्टि मिलती है, जो नारी – गरिमा की स्थापना करती है।” (नगेंद्र के अनुसार)
• “बीसलदेव रासो की श्रृंगार – परंपरा का आदिकाल में ही अंत नहीं हो जाता काल में ही अंत नहीं हो जाता। विद्यापति से होती हुई यही परंपरा भक्तिकाल की प्रेमाख्यान काव्यों तक पहुंची, कृष्ण भक्तों को भी प्रभावित किया तथा रीतिकाल में जाकर इसका श्रृंगार काव्य के रूप में चरम विकास हुआ।”( नगेंद्र के अनुसार )
• “नरपति नाल्ह के इस बीसलदेव रासो में जैसा कि होना चाहिए था,न तो उक्त वीर राजा की ऐतिहासिक चढ़ाईयों का वर्णन है,न उसके शौर्य – पराक्रम का। श्रृंगार रस की दृष्टि से विवाह और रूठकर विदेश जाने का( प्रोषितपतिका के वर्णन के लिए ) मनमाना वर्णन है ।अतः इस छोटी सी पुस्तक को बीसलदेव ऐसे वीर का ‘रासों’ कहना खटकता है।”( आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार)
• “बीसलदेव रासो ग्रंथ में श्रृंगार की ही प्रधानता है, वीर रस का किंचित् आभास मात्र है।”(आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार)
• “चारण काल के समय बीसलदेव वीर पूजा अथवा धर्म और राजनीति के नेता गौरव का गीत था।”( डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार)
Bisaldeo Raso https://hindibestnotes.com न तो उक्त वीर राजा की ऐतिहासिक चढ़ाईयों का वर्णन है नरपति नाल्ह नरपति नाल्ह के इस बीसलदेव रासो में जैसा कि होना चाहिए था बीसलदेव रासो(Bisaldeo Raso) का परिचय वीर गीत के रूप में सबसे पुरानी पुस्तक -बीसलदेव रासो सामंती जीवन के प्रति गहरी रूचि का सजीव चित्रण बीसलदेव रासो काव्य में मिलता है हिंदी के आदिकाल की एक श्रेष्ठ काव्य कृति हिन्दी में प्रथम बारहमासा का वर्णन 2021-02-09
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