🌺 भगवत रावत का जीवन परिचय🌺
◆ जन्म : 13 सितम्बर, 1939
◆ जन्म स्थान :- टेहेरका गाँव,टीकमगढ़ (म.प्र.)
◆ निधन :- 25 मई 2012,भोपाल(म.प्र.)
◆ शिक्षा : –
● बी.ए.- बुन्देलखंड कॉलेज, झाँसी (उ.प्र.)
● एम.ए., बी.एड. प्राइमरी स्कूल के अध्यापक के रूप में कार्य करते हुए भोपाल (म.प्र.) से।
◆ सम्पादक :-
● साक्षात्कार पत्रिका (मासिक)
● वसुधा पत्रिका (त्रेमासिक)
◆ प्रमुख कृतियाँ :-
● कविता-संग्रह:–
★ समुद्र के बारे में (1977)
★ दी हुई दुनिया (1981)
★ हुआ कुछ इस तरह (1988)
★ सुनो हिरामन (1992)
★ अथ रूपकुमार कथा (1993)
★ सच पूछो तो (1996)
★ बिथा-कथा (1997)
★ हमने उनके घर देखे (2001)
★ ऐसी कैसी नींद(2004)
★ निर्वाचित कविताएँ (2004)
★ कहते हैं कि दिल्ली की है कुछ आबोहवा और (2007)
★ अम्मा से बातें और अन्य कविताएँ (2008)
★ देश एक राग है(2009)
●आलोचना –
★ कविता का दूसरा पाठ(1993)
★ कविता का दूसरा पाठ और प्रसंग (2006)।
◆ सम्मान :-
● दुष्यन्त कुमार पुरस्कार, मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् (1979)
● वागीश्वरी सम्मान,मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन (1989)
● मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन (2004)
◆ भगवत रावत की पंक्तियाँ :-
● किसी तरह
दिखता भर रहे
थोड़ा-सा आसमान
तो घर का छोटा-सा
कमरा भी
बड़ा हो जाता है
● हमने उनके घर देखे
घर के भीतर घर देखे
घर के भी तलघर देखे
मने उनके डर देखे।
●किसी तरह दिखता भर रहे थोड़ा-सा आसमान,
तो घर का छोटा-सा कमरा भी बड़ा हो जाता है।
● सूरज के ताप में कहीं कोई कमी नहीं
न चन्द्रमा की ठंडक में
लेकिन हवा और पानी में ज़रूर कुछ ऐसा हुआ है
कि दुनिया में
करुणा की कमी पड़ गई है।
● मारने से कोई मर नहीं सकता
मिटाने से कोई मिट नहीं सकता
गिराने से कोई गिर नहीं सकता
●घर के बाहर के सारे दुख
घुस आए घर के अंदर तक
घर के अंदर के सारे दुख
फैल गए घर के बाहर तक
●किसी तरह दिखता भर रहे थोड़ा-सा आसमान,
तो घर का छोटा-सा कमरा भी बड़ा हो जाता है।
● पता नहीं आने वाले लोगों को
दुनिया कैसी चाहिए
कैसी हवा, कैसा पानी चाहिए
पर इतना तो तय है कि
इस समय दुनिया को
ढेर सारी करुणा चाहिए…
● कब तक जिया जा सकता है
केवल कुछ लोगों को
ख़ुश देखने के लिए
सारी उम्र कुछ और लोगों को
ख़ुश करते हुए जबकि
यह तय हो चुका है
कि अपनी शर्तों पर
कोई भी
सिर्फ़ मारा जा सकता है।
● उड़ते चले गए पक्षियों के झुंड खाली करते आकाश खिंची रह गई बस पंखों की रेखाएँ!
● सारी उम्र बच्चों को पढ़ाई भाषा और विदा करते समय उन्हें पास में नहीं था एक ऐसा शब्द जिसे देकर कह सकता कि लो इसे संभाल कर रखना यह संकट के समय काम आयेगा।