भारतेंदु युगीन काल की प्रवृत्तियां( Bharatendu Yugin kal ki pravartiya)
भारतेंदु युग (Bharatendu Yug) भारतीय साहित्य का एक महत्वपूर्ण काल है, जो 1868 से 1893 ईसा पूर्व तक के लगभग अवधि को कवर करता है। इस काल में, भारतीय समाज में विभिन्न प्रकार की परिवर्तनात्मक प्रक्रियाएं हुईं थीं। यहाँ कुछ मुख्य प्रवृत्तियाँ हैं:
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भारतीय पुराणों का पुनर्जागरण: भारतेंदु युग में, भारतीय साहित्यकारों ने भारतीय पुराणों, इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करने के लिए काम किया।
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हिंदी और उर्दू के समानांतर विकास: भारतेंदु युग में, हिंदी और उर्दू के साहित्य के बीच समानांतर विकास हुआ। इस अवधि में, कवियों ने उर्दू और हिंदी की सांस्कृतिक विरासत को एक समृद्ध संगम के रूप में पेश किया।
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धार्मिक प्रेरणा: भारतेंदु युग में, कई साहित्यकारों ने धार्मिक और आध्यात्मिक विचारों को अपनाया और लोकमान्यता में उन्हें प्रचारित किया।
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राष्ट्रीय चेतना का जागरूक होना: भारतेंदु युग में, राष्ट्रीय चेतना का उदय हुआ और साहित्यकारों ने राष्ट्रीय अभिवृद्धि के लिए उत्साह दिखाया।
इन प्रमुख प्रवृत्तियों के साथ, भारतेंदु युग ने भारतीय साहित्य को एक नया दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
?भारतेंदु युगीन काल की प्रवृत्तियां ?
1. राष्ट्रीयता अथवा देशभक्ति।
2. सामाजिक चेतना के अभिव्यक्ति।
3. भक्ति भावना।
4. श्रृंगारिता।
5. हास्य व्यंग्य ।
6. अभिव्यक्ति प्रवृतियां।
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