🌺भारतेंदु हरिश्चन्द्र के मौलिक नाटक🌺
(1) प्रवास (1868 ई.)
(2) वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति (1873 ई)
(3) सत्य हरिश्चंद्र (1875 ई.)
(4) प्रेमजोगिनी (1875 ई.)
(5) विषस्य विषमौवधम् (1876 ई.)
(6) श्रीचन्द्रवली (1876 ई.)
(7) भारत जननी ( 1877 ई.)
(8) भारत दुर्दशा (1880 ई.)
(9) नील देवी (1881 ई.)
(10) अंधेर नगरी (1881 ई.)
(11) सती प्रताप (1883 ई.)
(12) नवमल्लिका (अप्रकाशित)
🌺भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाटकों की विशेषताएं🌺
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सामाजिक और राजनीतिक टिप्पणी: भारतेंदु जी के नाटक अक्सर सामाजिक कुरीतियों, भ्रष्टाचार और राजनीतिक अन्याय पर व्यंग्य करते हैं।
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ब्रजभाषा और खड़ी बोली का मिश्रण: भारतेंदु जी ने अपनी रचनाओं में ब्रजभाषा और खड़ी बोली दोनों का उपयोग किया।
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हास्य और व्यंग्य: भारतेंदु जी के नाटक अक्सर हास्य और व्यंग्य से भरे होते हैं।
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लोककथाओं और पौराणिक कथाओं का उपयोग: भारतेंदु जी ने अपनी रचनाओं में लोककथाओं और पौराणिक कथाओं का अक्सर उपयोग किया।