🌺मलूकदास का व्यक्त्तित्व और कृतित्व कबीरदास जैसा 🌺
🌺 मलूकदास 🌺
● मलूकदास ज्ञानमार्गी सन्त थे
● निर्गुण शाखा के पोषक थे।
● उनका व्यक्त्तित्व और कृतित्व(ज्ञानबोध ग्रन्थ )कबीरदास जैसा था।
● कबीरदास और मलूकदास के इन दोहे से पता चल सकता है :-
◆ कबीर दास का दोहा :-
पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजौं पहार ।
याते ये चक्की भली, पीस खाय संसार।।
अर्थ: कबीरदास जी कहते हैं कि यदि पत्थरों (मूर्तियों) के पूजन मात्र से भगवान की प्राप्ति होती हो तो मैं पहाड़ों का पूजन करूँगा इससे तो घर की चक्की का पूजन अच्छा है जिसका पीसा हुआ आटा सारा संसार खाता है ।
◆ मलूकदास का पद :-
जेते देखे आत्मा, तेते सालिगराम ।
बोलन हारा पूजिए, पत्थर से क्या काम ।।
आतम राम न चीन्हहीं, पूजत फ्रिफरें पषान।
कैसहु मुक्त्ति न होयगी, केतिक सुनौ पुरान।।
मलूकदास के अनुसार प्रभु को पत्थर समझना बेकार एवं मूर्खता है। क्योंकि परमात्मा तो घट-घट में व्याप्त है। इसलिए पुराण, पूजा-पाठ रखने से प्रभु की प्राप्ति नहीं हो सकती।