महादेवी वर्मा का जीवन परिचय (mahadevi varma ka jeevan parichay)

         💐💐 महादेवी वर्मा का जीवन परिचय 💐💐

◆ जन्म :- 26 मार्च,1907 ई. को ,फाल्गुन पूर्णिमा (वसंतोत्सव) के दिन [होली के दिन]

◆ जन्म स्थान :- फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश में )

◆ मृत्यु :- 11 सितम्बर, 1987 ई.(इलाहाबाद में)

◆  दादा का नाम :- बाबू बांके बिहारी

√ दुर्गा के उपासक

√ फारसी और उर्दू जानते थे।

◆  पिता का नाम :- गोविन्द प्रसाद वर्मा

√ शिक्षा – एम.ए., एल.एल.बी.

√ भागलपुर में एक हाई स्कूल के हेडमास्टर
थे।बाद में डेली कालेज में प्राध्यापक के रूप में कार्यरत रहे।

◆ माता का नाम :-  हेमरानी देवी (एक विदूषी, कला-प्रिय एवं धर्मपरायण स्त्री)

◆ महादेवी वर्मा के नाना भी ब्रज भाषा के कवि होने के साथ ही भक्ति भावना के सज्जन व्यक्ति थे।

◆  छोटी बहन का नाम :- श्यामा देवी सक्सेना

◆ पति का नाम :-  स्वरूप नारायण वर्मा (बरेली के, पेशे से डाक्टर थे)

◆ महादेवी माँ-बाप की पहली संतान हैं।

◆ महादेवी वर्मा  के जन्म के संबंध में :-  महादेवी वर्मा परिवार में इनके जन्म से 200 साल पहले किसी कन्या का जन्म नहीं हुआ था। सौभाग्य से इनका जन्म बड़ी प्रतीक्षा और मनौती के बाद हुआ था । दादा ने इसे कुलदेवी दुर्गा का विशेष अनुग्रह माना और आदर  प्रदर्शित करने के लिए नाम रखा- महादेवी।

◆  उपनाम :-

★ आधुनिक युग की मीरा

√ भक्ति काल में जो स्थान कृष्ण भक्त मीरा को प्राप्त है, आधुनिक काल में वह स्थान महादेवी वर्मा को मिला है।

√  मीरा का प्रियतम सगुण, साकार गिरधर गोपाल है जिसके प्रति वे समर्पित रही, तो दूसरी ओर महादेवी के प्रियतम असीम निर्गुण निराकार (ब्रह्म) हैं और उसके प्रति वे समर्पित हैं।

★  हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती (निराला ने कहा )

★ छायावाद की शक्ति

◆  काव्य की प्रथम रचना का प्रारम्भ सात वर्ष की अवस्था में किया – ‘आओ प्यारे तारे आओ, मेरे आँगन में बिछ जाओ ।’ परन्तु इसके बाद की लिखी पूर्ण रचना ब्रजभाषा में समस्यापूर्ति है।

★ सात-आठ वर्ष की आयु में ब्रजभाषा में समस्यापूर्ति की रचना :-

“आगम है दिन नायक को, अरुनाई भरी नभ की गलियान में, सीरी सुमंद बयार बही, मुस्कान, नई बगरी कलियान में, संख धुनी विरुदावलियाँ अब गुंजित हैं खग और अलियान में, वारन के हित कंजकली मुकुताहल जोरि रही अँखियान में।”

★ खड़ी बोली की पूर्ण रचना महादेवी ने आठ वर्ष की अवस्था में लिखी थी, जो ‘दीपक’ पर है ।

“धूलि के जिन लघु कणों में है न आभा प्राण,
तू हमारी ही तरह उनसे हुआ वपुमान !
आग कर देती जिसे पल में जलाकर क्षार,
है बनी उस तूल से वर्ती नई सुकुमार ।
तेल में भी है न आभा का कहीं आभास,
मिल गए सब तब दिया तूने असीम प्रकाश ।”

◆ शिक्षा :-

★  महादेवी की प्रारम्भिक शिक्षा प्रारंभ :- 1912 ई. में इंदौर के एक मिशन स्कूल से

★  1919 ई. में  :- क्रास्थवेट कॉलेज,प्रयाग में अपनी शिक्षा प्रारम्भ की।

★ 1921 ई. में :-   मिडिल स्कूल की परीक्षा में प्रान्त में प्रथम स्थान प्राप्त किया। जिससे इन्हें राजकीय छात्रवृत्ति प्राप्त हुई। इसी दौरान इनकी भेंट महात्मा गांधी से हुई।

★ 1925 ई. में :-  हाईस्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर पुनः छात्रवृत्ति प्राप्त की।

★ 1927 ई. में :- एफ.ए. (इण्टरमीडिऐट) की परीक्षा उत्तीर्ण कर लेखन कार्य में सक्रिय रहीं जिससे इन्हें छात्रवृत्ति प्राप्त होती रही।

★ 1929 ई. में :-   बी.ए. ( अंग्रेजी, दर्शन शास्त्र और संस्कृत) से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया।

★  1932 ई. में  :- एम.ए.की परीक्षा (संस्कृत साहित्य और वेद विद्या में) इलाहाबाद विश्व विद्यालय से उत्तीर्ण की।

◆ वैवाहिक जीवन :-

★ 1916 ई. में दादा ने पौत्री( महादेवी) का विवाह बरेली के नवाबगंज कस्बे के एक कायस्थ परिवार में स्वरूप नारायण वर्मा के साथ करा दिया।

★ विवाह के समय महादेवी की आयु 14 वर्ष थी।

★  विवाह के अनन्तर वे एक बार ससुराल गयीं। किन्तु वहां रो रोकर अस्वस्थ हो गईं। जिससे उन्हें दूसरे ही दिन वापस पितृ – गृह भेज दिया गया।

★  उसके बाद ये तथा इनके पति दोनों अलग-अलग स्थानों पर शिक्षा प्राप्त करते रहे तथा पारस्परिक संपर्क से बचे रहे।

★ बी.ए.उत्तीर्ण करते ही जब इनके गौने का प्रश्न उठा तो इन्होंने पूरी दृढ़ता से वैवाहिक जीवन एवं गार्हस्थ में प्रवेश करना अस्वीकार कर दिया।

◆ रचनाओं :-

★ काव्य संग्रह :-

1.  नीहार (1930 ई.)
2.  रश्मि (1932 ई.)
3.  नीरजा  (1934 ई.)
4. सांध्यगीत (1936 ई.)
5. यामा’ (नीहार, रश्मि, नीरजा और सांध्यगीत का संकलन, 1940 ई.)
6. दीपशिखा (1942 ई. )

7. बंग-दर्शन(बंगाल के अकाल से संबंधित कविताएं, 1944 ई.)
8. सप्तपर्णा  (वैदिक और संस्कृत साहित्य काव्य-अनुवाद,1960 ई.)
9. संविधनी(1964ई.) बाल कविताओं के दो संग्रह छपे हैं :- ठाकुर जी भोले और आज खरीदेंगे हम ज्वाला
10. परिक्रमा (कविता संग्रह,1970 ई.)
11. आत्मिका (कविता संग्रह,1983 ई.)
12.  निलाम्बरा (कविता संग्रह,1983ई.)
13. प्रथम आयाम(प्रारम्भिक कविताएँ) [1984ई.]
14. अग्निरेखा’ ( अन्तिम कविताएँ) मरणोपरांत प्रकाशित) (1990 ई.)

★ रेखाचित्र :-

1. अतीत के चलचित्र (1941ई.)
2. स्मृति की रेखाएँ (1943 ई.)

★ निबंध संग्रह :-

1. श्रृंखला की कड़ियाँ (नारी विषयक सामाजिक निबन्ध,1942 ई.)
2. क्षणदा (ललित निबंध,1956 ई.)
3.  साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध (आलोचनात्मक,1956 ई.)
4. संकल्पिता (ललिता निबंध,1969 ई.)
5. संभाषण (1972 ई.)
6. मेरे प्रिय निबंध (1981 ई.)
7. चिंतन के क्षण (1986 ई.)

★ संस्मरण :-

1. पथ के साथी (1956 ई.)
2. मेरा परिवार (पशु-पक्षियों के संस्मरण,1971ई.)

◆  ‘चाँद’ पत्रिका का सम्पादन [ नवम्बर, 1935 से जुलाई 1938 तक ] किया।

◆ रचनाओं के संबंध महत्वपूर्ण बिन्दु :-

नीहार और रश्मि रचना  :- महादेवी की चेतना प्रतीकात्मक रूप में विभाजित है।

नीहार में एक अस्पष्ट जिज्ञासा है ।

रश्मि में आकर्षण है।

नीरजा में केवल वियोगजन्य पीड़ा है।

★ नीरजा का शाब्दिक अर्थ :-  वेदना के जल से उत्पन्न अनुभूतियां ।

★ दीपशिखा का प्रतीकात्मक अर्थ :-  आत्मा की साधना।

★ प्रथम आयाम में :-  महादेवी के बचपन की कविताएँ

★ अग्निरेखा की कविताएँ ज्वाला को ही पर्व मानती हैं।

★ अतीत के चलचित्र :- महादेवी जी के रेखाचित्रों का प्रथम संग्रह

★ अतीत के चलचित्र में कुल ग्यारह रेखाचित्र संग्रहीत है :- रामा भाभी, बिन्दा,सोबिया,बिट्टो, बालिका माँ,घीसी,अभागी स्त्री,अलोपी,बदलू और लछमा ।

★ स्मृति की रेखाएँ में कुल सात रेखाचित्र संगृहीत हैं: – भक्तिन,चीनी फेरीवाला,जंग बहादुर,मुन्नू, ठकुरी बाबा,बिबिया और गुंगिया।

श्रृंखला की कड़ियाँ :- महादेवी का प्रथम निबंध संग्रह

★  श्रृंखला की कड़ियाँ निबंध संग्रह नारी और समाज से जुड़े समस्याओं पर केन्द्रित है।

★ पथ के साथी संस्करणात्मक रेखाचित्र है।

★ पथ के साथी  में कुल सात जीवनीपरक संस्मरण हैं :- कवीन्द्र रवीन्द्र ,मैथलीशरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, ‘सुभद्राकुमारी चौहान, सुमित्रानंद पंत और सियारामशरण गुप्त’ ।

★ स्मारिका में महादेवी ने महान् राजनेताओं का स्मरण किया है जिनमें :- महात्मा गाँधी, जवाहर लाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद और पुरुषोत्तम दास टंडन।

★ मेरा परिवार में  महादेवी ने पशु-पक्षियों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त की है।

मेरा परिवार में इन पशु-पक्षियों  संस्मरण है  :- नीलकंठ(मोर), गिल्लू, सोना(हिरनी),तुर्मुख’ (खरगोश ),गौरा (गाय), नीलू(कुत्ता),निक्की
(नेवला), रोजी(कुत्ता) और रानी(घोड़ी) ।

◆ पुरस्कार एवं सम्मान :-

1. सेक्सेरिया पुरस्कार (1934 ई.)- नीरजा कविता संग्रह पर मिला।
2. मंगला प्रसाद पारितोषिक (1943 ई.)
3. भारत सरकार द्वारा पद्यभूषण(1956 ई.) की उपाधि से सम्मानित।
4. साहित्य अकादमी में फैलोशिप पाने वाली प्रथम महिला हैं । [1981ई.]
5.  प्रथम भारत – भारती पुरस्कार (1982 ई. ) 
6. ज्ञानपीठ पुरस्कार (1983ई.)
7. भारत सरकार द्वारा पद्मविभूषण(1988ई.) की उपाधि से सम्मानित। (मरणोपरांत)

◆ महादेवी वर्मा के संबंध में कथन :-

★ “सहज भिन्न दो महादेवियाँ एक रूप में मिली मुझे,
बता बहन साहित्य-शारदा या काव्यश्री कहूँ तुझे !”
( मैथिलीशरण गुप्त ने महादेवी के लिए लिखा है )

★ “मेरी प्रयाग-यात्रा केवल संगम स्नान से पूरी नहीं होती, उसको सर्वथा सार्थक बनाने के लिए मुझे सरस्वती(महादेवी ) के दर्शनों के लिए प्रयाग महिला विद्यापीठ जाना पड़ता है। संगम में कुछ फूल-अक्षत भी चढ़ाना पड़ता है, पर सरस्वती के मंदिर में कुछ प्रसाद मिलता है। साहित्यकार संराद हिन्दी के लिए उन्हीं का प्रसाद है।” (मैथिलीशरण गुप्त ने महादेवी के संबंध कहा)

★ “भारतीय स्वाभिमान जितना सच्चा और स्वाभाविक है, उतना ही विवेकपूर्ण और प्रगतिशील भी है। नवीन विचारों को अपनी प्रखर बुद्धि की कसौटी पर कसना, खरे उतरने पर उन्हें प्राचीन भारतीय सांचे मे डालना तथा निर्भीकतापूर्वक अपनाना यह क्षमता मैं महादेवी जी के शक्तिशाली व्यक्तित्व का अनिवार्य गुण मानता हूँ।”(डॉ. कामिल बुल्के का कथन )

★ “महादेवी वर्मा की करुणा व्यक्तिपरक अथवा आत्मगत ही नहीं है। वह बहिर्मुखी एवं समाजपरक भी है, जिसका प्रमाण उनकी अनेक गद्य रचनाएँ, बंगाल के दुर्भिक्ष से संबंधित काव्य संकलन की भूमिका आदि है।”(डॉ.रामविलास शर्मा का कथन)

★ “वे (महादेवी वर्मा) हमें अपने काव्य में स्वर्ग की देवी-सी जान पड़ती हैं, मानो परीक्षार्थ कुछ दिन भूतल पर निवास करने आई हों। अपने जीवन की उच्चता और आनंद का उन्हें पूर्ण आभास है और इस मृत्युलोक के जीवन में भी वही आनंद प्राप्त करती हैं।”(डॉ.भगीरथ मिश्र का कथन)

★ “उनके( महादेवी जी के) जीवन में जो एकाकीपन था वह किसी अभाव की देन था। पीड़ा का साम्राज्य ही उनके काव्य-संसार की सौगात है ।”(डॉ.नगेन्द्र  का कथन)

◆ महादेवी वर्मा के कथन:-

★ “मेरे जीवन ने वही ग्रहण किया जो उसके अनुकूल था । कविता सबसे बड़ा परिग्रह है, क्योंकि वह विश्व-मात्र के प्रति स्नेह की स्वीकृति है।”

★ “यदि हम लोहे के एक सिरे को आग में रख कर दूसरे को पानी में डुबा दें, तो उष्णता और शीतलता अपनी-अपनी सीमा बढ़ा कर लोहे के मध्य भाग में एक संतुलित गर्मी-सर्दी कर देगी पर दोनों सिरों पर आग- पानी अपने मूल रूपों में रहेंगे ही।” [महादेवी वर्मा ने यह कथन मैथिलीशरण गुप्त के व्यक्तित्व  के संबंध में कहा है।]

★ “हिन्दी भाषा के साथ हमारी अस्मिता जुड़ी हुई है। हमारे देश की संस्कृति और हमारी राष्ट्रीय एकता की हिन्दी भाषा संवाहिका है।” (राष्ट्र भाषा हिन्दी के संबंध में महादेवी वर्मा का कथन)

★ ” प्रकृति के बीच जीवन का उद्गीथ छायावाद है।”

★ “क्या हमारा जीवन सबका संकट सहने के लिए है?”
 
★ “वे खिलते पुष्प जिन्हें मुरझाना नहीं आता, और वे दीप जिन्हें बुझना नहीं आता, कितने अद्भुत प्रतीत होते हैं।”

★ “प्रत्येक विज्ञान में क्रियात्मक कला का कुछ अंश अवश्य होता है।”

★ “जीवन में कला का सच, सुन्दरता के माध्यम से व्यक्त किये गये सच से अखंड होता है।”

★ “आज हिन्दू औरतें जिन्दा लाश की तरह हैं।”

 ★ “एक निर्दोष के प्राण बचानेवाला असत्य उसकी अहिंसा का कारण बनने वाले सत्य से श्रेष्ठ होता है।”

★ “विज्ञान एक क्रियात्मक प्रयोग है।”

★ “मैं किसी कर्मकांड में विश्वास नहीं करती। मैं मुक्ति को नहीं, इस धूल को अधिक चाहती हूँ।”
 
7. “प्रत्येक गृहस्वामी अपने गृह का राजा और उसकी पत्नी रानी है। कोई गुप्तचर, चाहे देश के राजा का ही क्यों न हो, यदि उसके निजी वार्ता को सार्वजनिक घटना के रूप में प्रचारित कर दे, तो उसे गुप्तचर का अनाधिकार , दुष्टाचरण ही कहा जाएगा।”
 
★ “यदि अपने आप स्वीकार हो, तो घर की संचालिका का कर्तव्य कम जरुरी नहीं है।”
 

 
◆ महादेवी वर्मा की पंक्तियां :-

( 1.) ठंडे पानी से नहलातीं।
       ठंडा चंदन इन्हें लगातीं,
       इनका भोग हमें दे जातीं।
       फिर भी कभी नहीं बोले हैं,
       माँ के ठाकुर जी भोले हैं।।( छ: – सात वर्ष की अवस्था में भगवान की पूजा करती हुये माँ पर महादेवी वर्मा की तुकबन्दी)

(2.)  बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ!

(3.) फिर विकल हैं प्राण मेरे!

(4.) मैं नीर भरी दु:ख की बदली!
      स्पंदन में चिर निस्पंद बसा;
      क्रंदन में आहत विश्व हँसा,
      नयनों में दीपक-से जलते
     पलकों में निर्झरिणी मचली!(प्रसिद्ध गीत)

(5.)  इन आँखों ने देखी न राह कहीं
       इन्हें धो गया नेह का नीर नहीं,
       करती मिट जाने की साध कभी,
       इन प्राणों को मूक अधीर नहीं।

(6 .) शलभ मैं शापमय वर हूँ!
       किसी का दीप निष्ठुर हूँ!

(7.) यह मंदिर का दीप इसे नीरव जलने दो!

(8.)  सब बुझे दीपक जला लूँ!
       घिर रहा तम आज दीपक-रागिनी अपनी    जगा लूँ!

(9.)  सजल है कितना सवेरा!
       गहन तम में जो कथा इसकी न भूला,
       अश्रु उस नभ के, चढ़ा शिर फूल फूला,
       झूम-झुक-झुक कह रहा ‘हर श्वास तेरा’!

(10.)  प्रिय सुधि भूले री मैं पथ भूली!

(11.)  कोई यह आँसू आज माँग ले जाता!

(12.)  नहीं हलाहल शेष, तरल ज्वाला से अब प्याला भरती हूँ।

(13.)  आज तार मिला चुकी हूँ।

(14.) देव अब वरदान कैसा!
      वेध दो मेरा हृदय माला बनूँ प्रतिकूल क्या है!
   मैं तुम्हें पहचान लूँ इस कूल तो उस कूल क्या है!

(15.)  तुम दुख बन इस पथ से आना!

(16.) मेरी आहें सोती है इन ओठों की ओटों में,
         मेरा सर्वस्व छिपा है इन दीवानी चोटों में।

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