• प्रकाशन :- 1979 ई.
• 9 परिच्छेदों में
• कुल पृष्ठ :- 183
• कुल पात्र:- 35
• राजनीतिक पृष्ठभूमि पर आधारित उपन्यास
• 1976 ई.के चुनाव पद्धतियों पर आधारित उपन्यास
• महाभोज उपन्यास के बीज मन्नू भंडारी की ‘अलगाव'[त्रिशंकु,1978 ई. कहानी संग्रह में] कहानी में विद्यमान है।
• मन्नु भंडारी ने महाभोज उपन्यास का नाटक रूपांतरित(1983ई.) भी किया।
• महाभोज उपन्यास का मंचन सबसे पहले बदायूं में हुआ।
• उपन्यास में बिसू नामक हरिजन युवक की हत्या हो जाती है। वह हत्या किस प्रकार होती है और उसे छिपाने के लिए कौन-कौन से राजनीतिक षड्यंत्र रचे जाते हैं इसका लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है।
• उपन्यास के प्रारंभ में बिसेसर की लाश का उल्लेख करता है कि लावारिस लाश नहीं थी क्योंकि बिसेसर मां-बाप जीवित थे।
• उपन्यास में गरीब, खेतिहार, मजदूर ,गांव की निवासी जनता की निर्मम शोषण का चित्रण किया गया।
• उपन्यास के माध्यम से चुनाव के बीच मानवीय त्रासदी करुणा और पीढ़ी की नियति की सच्चाई को अभिव्यंजित करने का सशक्त प्रयास लेखिका ने किया है।
• उपन्यास में आपातकाल के बाद कांग्रेस की पराजय और जनता पार्टी के शासनकाल के पृष्ठभूमि प्रस्तुत की गई है।
• आम चुनाव के से कुछ ही दिन पहले एक देहात के बिसेसर नामक युवक की हत्या हो जाती है और उस हत्या के बाद से लेकर उस के हत्या के आत्महत्या की घोषित होने तक इतना कुछ गुजर जाता है कि जिसे पढ़कर पाठक दंग रह जाता है। एक हत्या का आत्महत्या में रूप में घोषित होना जिसे सफेद झूठ का प्रमाण है उस सफेद झूठ को सत्य सिद्ध करके काली- कलूटी राजनीति इस उपन्यास में अंकित है।
• महाभोज उपन्यास का क्षेत्र गांव :- पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सरोहा गांव
• महाभोज की मूल समस्या:- राजनीतिक विकृति
• असत्य और अन्याय के विरोध करने वाले क्रांतिवीरों को इस उपन्यास में ‘दिनेश’ नाम से संबोधित किया है।
• प्रमुख पात्र :- बिसू, दा साहब, सुकुल बाबू ,त्रिलोचन रावत, बिंदा, हीरा, सक्सेना,जोरावर,महेश शर्मा,सक्सेना और सिन्हा
◆ प्रमुख पात्रों का परिचय :-
★ बिसू :-
• पूरा नाम :- बिसेसर
• हीरा नामक किसान का सबसे बड़ा बेटा
• हरिजन युवक
• शिक्षित युवक (बी.ए पास)
• गरीबों का हमदर्द
• सरल, स्नेही और भावुक व्यक्ति
• न्यायप्रिय, स्वाभिमानी और निर्भीक व्यक्ति
• इनके जीवन का लक्ष्य था :- शोषित, पीड़ित, दमित एवं वंचितों को न्याय दिलाना ।
• इसकी हत्या हो जाती है।
• बिसेसर मां-बाप जीवित थे।
• बिसेसर को मारने में जोरावर का हाथ है।(लखन ने कहा)
• बिसू की मृत्यु के समाचार को सनसनी खेज के रूप में प्रकाशित करने वाला पत्र :- मशाल पत्र
★ दा साहब :-
• प्रभावशाली व्यक्ति
• वर्तमान में मुख्यमंत्री पद पर आसीन।
• गृह मंत्रालय का प्रभार
• दा साहब की मीटींग :- 11 तारीख
• दा साहब के व्यक्तित्व का चित्रण और उनके कमरे का वर्णन।(दूसरे परिच्छेद में)
• ‘मशाल’ नामक समाचार पत्र को अपने पक्ष में खबर चलाने के लिए खरीद लेते हैं।
★ मुख्यमंत्री सुकुल बाबू :-
• विरोधी पक्ष के नेता
• सत्ता प्रतिपक्ष
• सरोह गाँव की विधानसभा सीट के प्रत्याशी
• यह दस साल से मुख्यमंत्री रह चुके है।
• सरोहा गांव में डेढ़ महीने बाद एक सीट के लिए विधानसभा में चुनाव थे । इस सीट पर भूतपूर्व मुख्यमंत्री सुकुल बाबू के खड़े हो रहे थे।
• सुकूल ने ‘मशाल’ नामक समाचार पत्र के संबंध में संकेत किया है कि उल्टा सीधा जो भी मर्जी सेआये छाप देता है और इसने आगजनी के संबंध में कैसे-कैसे संपादित पर यह तस्वीर भी छापी और वह अगले अंक में बिसू की मृत्यु के संबंध में सनसनी खेज समाचार प्रकाशित करेगा ।
• सुकुल बाबू की मीटींग :- 9 तारीख
• सुकूल बाबू के निवास स्थान का उल्लेख(तीसरी परिच्छेद में)
★ त्रिलोचन सिंह :-
• त्रिलोचन सिंह रावत को ही जनता नाम से लोचन भैया जानते हैं।
• सत्ताधारी पार्टी के असंतुष्ट विधायकों के मुखिया
• विधानसभा की सदस्य (जब सुकुल बाबू के मुख्यमंत्री थे)
• मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री (दा साहब के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में)
• राजनीति के कीचड़ में लोचन बाबू कमल के फूल की तरह
★ बिन्दा :-
• पूरा नाम :- बिंदेश्वरी प्रसाद
• बिसू का मित्र
• उग्र स्वभाव वाला
• निर्भीक व्यक्ति
• एक उत्साह एवं एक जागरूक पात्र
• बिन्दा शहर का रहने वाला एक शिक्षित युवक और वह शहर में ही नौकरी करता है।
• उसका विवाह सरोहा गांव में रहने वाली रुकमा से होता है।
• बिसू की हत्या के अपराध में निर्दोष बिन्दा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
★ लखन सिह :-
• दसवीं पास करके बाद ही दा साहब के साथ रहकर उनकी सेवा करना शुरू कर दिया।
• दा साहब के संरक्षण में पला हुआ।
• सरोहा गाँव की सीट से सत्ताधारी पार्टी का प्रत्याशी
• दा साहब का विश्वासपात्र
• दा साहब ने सरोहा चुनाव क्षेत्र से खड़ा किया पर उनके दल के बहुत से व्यक्तियों ने इस बात का विरोध किया।
• लखन ने कहा कि सरोहा में बिसेसर नाम के आदमी को मारने में जोरावर का हाथ है।
• लखन को दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण बात बिसू की मौत में लग रही थी।
★ जोरावर :-
• सरोहा गांव का प्रभावशाली नेता और जमीदार
• राज्य सुरक्षा में पलने वाला गुंडा और हत्यारा
• सरोहा गांव पर जोरावर सिंह का दबदबा था।
• दा साहब का सहयोगी
• बिसेसर को मारने में जोरावर का हाथ है।(लखन ने कहा)
★ दत्ता बाबू :-
• मशाल समाचार पत्र के संपादक
• समाचार पत्रों की स्वाधीनता के कट्टर समर्थक थे।
★ महेश शर्मा :-
• यह बुद्धिजीवी पात्र है
• ”क्लास स्ट्रगल और कास्ट स्ट्रगल क्या होता है?” इस बात को खोज करने गांव पहुंचता है।
★ रूकमा :-
• सरोहा गांव में रहने वाली
• बिन्दा की पत्नी
• मातृ हीना( रूकमा के मां नही थी)
• पिता की इकलौती बेटी
• सच्चरित्र ग्रामीण महिला
★ हीरा
• बिसू के पिता
★ सदाशिव अत्रे :-
• सत्ताधारी पार्टी के अध्यक्ष
★ सक्सेना :-
• पुलिस अधिकारी (एस.पी.)
• ईमानदार के कारण इनका ट्रांसफर होता रहता है।
• बिसू की मौत की तहकीकात की ज़िम्मेदारी इनको मिली थी।लेकिन ईमानदारी के कारण केस की ज़िम्मेदारी इनसे छीन ली गयी थी।
★ सिन्हा :-
• पुलिस अधिकारी (डी.आई.जी.)
• सक्सेना से बिसू की मौत का केस छीन लेने बाद बिसू के मौत के केस की ज़िम्मेदारी इन्हें दी गयी।
• इन्होंने बिन्दा को अपराधी साबित करते हुए केस को रफा-दफा कर दिया।
• आई.जी. बन जाने की खुशी में सिन्हा साहब ने पार्टी का आयोजन किया।
◆ प्रमुख पात्रों के महत्वपूर्ण कथन :-
★ सुकूल बाबू के कथन :-
• “गांठ बांध लीजिए कि यह सरकार आप लोगों के लिए कुछ नहीं करने जा रही। उसे लगाव आप से नहीं अपनी कुर्सियां से है।”
• “मुझे दा साहब से न्याय मांगना है।बातें और आश्वासन नहीं नौ – नौ आदमियों को मारने वाला मुजरिम चाहिए। बिसू को मारने वाला हत्यारा चाहिए।”
• “अब बचे हुए सारे वोट अपने पक्ष में करने पड़ेंगे तब बात बनेगी। पर इन नीची जात वालों का कुछ भरोसा नहीं।”
• “इन ग़रीब लोगों का क्या है,पैसा जेब में पड़ते ही आधा दुःख-दर्द तो दूर हो जाता है इनका।”
★ दा साहब के कथन :-
• “मामले की पूरी खोजबीन कर पता लगाने का काम पुलिस का है ऐसी घटनाएं घटी और पुलिस ठीक-ठाक पता न लगा पाए तो मतलब क्या हुआ पुलिस का इसमें तो बेहतर है कि आप और हम इस्तीफा देकर बैठ जाए।”
• “आवेश राजनीति का दुश्मन है, राजनीति में विवेक चाहिए। विवेक और धीरज पद पर बैठोगे तो पद की जिम्मेदारी स्वयं सब सिखा देगी। लखन अभी भी शांत नहीं हुआ और उसने कहा कि कहा रखा है पद वद। वह भूल जाइए अब सब। विरोधी दल के नेता इस घटना को ऐसी बनाएंगे कि हम सब टापते ही रह जाएंगे। यह बिसू की नहीं समझ लीजिए एक तरह से मेरी हत्या हुई है मेरी।”( द साहब ने लखन से कहा)
• “जिस दिन अपने लोगों का विश्वास खो दूंगा…. उस दिन कुर्सी पर नहीं बैठूंगा। सब के लिए विश्वास ही टिकी हुई है मेरी कुर्सी । सबके सद्वभाव पर ही भरी पर ही जिंदा हूं मैं ।”
• ” अपनी आकांक्षाओं को भोडी लगाम दो लखन,वरना मेरे साथ चलना मुश्किल होगा।”
• “मेरे लिए राजनीति धर्म नीति कम नही। इस राह पर मेरे साथ चलना है तो गीता का उपदेश गांठ बांध लो।निष्टा से अपना.कर्त्तव्य किये जाओ, फल पर दृष्टि ही मत रखो।”(दा साहब ने लखन से कहा)
• “क़ानून हाथ में लेते ही आदमी बेताज का बादशाह हो जाते है।”
• “आदमी जब अपनी सीमा और सामर्थ्य को भूलकर कामना करने लगे तो समझ लो,पतन की दिशा में उसका क़दम बढ़ गया।”
• “राजनीति मेरे लिए स्वार्थनीति नहीं है और चाहता हूँ कि मेरे साथ काम करने वाले लोग भी इस बात को समझ ले।”
• “जिसके अकाउंट में कुछ हो ही नहीं, वही खुले हाथ से बाँट सकता है इस प्रकार के ब्लैक चेक।”( दा साहब ने विधायक राव और चौधरी से कहा)
★ लखन का कथन : –
• ” आदमी का दु:ख जिस दिन पैसे से दूर होने लगेगा तो इंसानियत उठ जाएगी इस दुनिया में”
• ” वह तो सजा पायेगा अपने जुर्म की, पर उससे भी बड़ी सजा तो हम पाएंगे वह भी बिना कोई जुर्म किए।”
• ” माथे पर कलंक और आत्मा पर बोझ सो अलग”
• “जानते तो हैं, लोचन भैया कितने दिनों से अपनी खिचड़ी अलग पका रहे हैं, देखिए हम इस घटना से कैसे उफान आता है उनकी खिचड़ी में जोड़-तोड़ करके अविश्वास का प्रस्ताव ले आए तो आपको भी लेने देने पड़ जाएंगे।”(लखन का कथन)
• ” ठीक है सब के विश्वास पर आप अपनी कुर्सी जमाइए।”(लखन का कथन)
★ बिंदा के कथन :-
• “एक व्यक्ति की मौत राजनीति के अखाड़े में खेलने वालों के लिए मानो गिद्धों के महाभोज का जुगड़ भर गयी। इन राजनीतिक के डाला, मुझे भी मार डालो लेकिन देखना बिसू की इच्छा कोई नहीं मार सकता।”
• “और जो ज़िंदा हैं,वे अब जी नहीं सकते अपने इस देश में।मार दिए जाते हैं,कुत्ते की मौत।”
• “बेगुनाहों को पकड़ने का भी और गुनहगारों को छोड़ने का भी। यही तो न्याय है आप लोगों का।”
★ अन्य कथन :-
• “जो सड़क रोज एक गज बनती है और दो गज खुदती है उसके पूरे होने पर क्या आप सचमुच विश्वास करते हैं? आप धर्म में रहना चाहते हैं,जरूर रहे पर अब यह दोहरी जिंदगी जीना मेरे बस का नही।” (लोचन का कथन)
• सुकुल बाबू 9 तारीख को सरोहा में भाषण देने के आ रहे है।(यह बात दा साहब को लोचन ने बतलायी।)
• “इन हरिजनों के बाप-दादे हमारे बाप-दादों के सामने सिर झुकाकर रहते थे।झुके-झुके पीठ कमान की तरह टेढ़ी हो जाती थी।और ये ससुरे सीना तानकर आँख में आँख गाड़कर बात करते हैं।”(ज़ोरावर का कथन)
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