?? महाभोज नाटक ??
◆ सर्वप्रथम उपन्यास के रूप 1979 ई. में
प्रकाशित हुआ।
◆ फिर महाभोज उपन्यास को नाटक के रूप में 1983 ई. में प्रकाशित किया गया।
◆ महाभोज नाटक का कथानक 1977 ई. में घटित बिहार के पटना जिले का बेलछी नरसंहार है।
◆ कुल दृश्य :- 11 दृश्य ( अंक नही है, दृश्यों में विभाजित है।)
◆ “उपन्यास के रूप में ‘महाभोज’ न चरित्र प्रधान उपन्यास है, न समस्या प्रधान। ”(मन्नू भंडारी का कथन )
◆ ‘महाभोज’ आज के राजनैतिक माहौल को उजागर करने वाला स्थिति प्रधान उपन्यास है।”(मन्नू भंडारी का कथन )
◆ “यह उपन्यास स्थिति प्रधान भी है और यथास्थिति के विरुद्ध विद्रोह भी।(मन्नू भंडारी का कथन )
◆ हिंदी साहित्य जगत में यह पहली अपने आप में अलग कृति है। जिसे उपन्यास और नाटक दोनों विधाओं में प्रकाशित किया गया।
◆ “महाभोज नाटक में राजनैतिक अवमूल्यन का नग्र स्वरुप दिखाया गया है।”(डॉ. रामचन्द्र तिवारी का कथन)
★ ” महाभोज की तकलीफ एवं संघर्ष सुपरिचित स्थिति से दिल दहला देने वाला, लेकिन मात्र एक कलात्मक साक्षात्कार भर है, जबकि देश की संघर्षरत जनता के लिए साहस और प्रति रोध का हथियार भी”(मन्नू भंडारी का कथन )
★ ” मन्नुभंडारी के ‘महाभोज’ का नाट्य रूपांतर बेहद जनप्रिय हुआ। “(डॉ. नगेन्द्र का कथन)
◆ नाटक के पात्र :-
★ पुरुष पात्र :-
1. दा साहब (मुख्यमंत्री)
2. सुकुल बाबू (भूतपूर्व मुख्यमंत्री, विरोधी पार्टी के नेता)
3. अप्पा साहब (सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष)
4. पांडेजी (दा साहब के निजी सचिव)
5. लखन (दा साहब का विश्वास पात्र, सरोहा चुनाव के लिए प्रत्याशी)
6. सक्सेना (एस. पी.)
7. सिन्हा (डी.आई. जी.)
8. दत्ता बाबू(‘मशाल’ साप्ताहिक के सम्पादक)
9. भवानी (‘मशाल’ का सहायक-सम्पादक)
10. नरोत्तम (प्रेस रिपोर्टर )
11. महेश(रिसर्च स्कॉलर एवं सूत्रधार)
12. रत्ती (दा साहब का पी. ए.)
13. मोहनसिंह (पुलिस कॉन्स्टेबल)
14. बिसू (हरिजनों का हमदर्द, जो मार दिया गया है।)
15. हीरा (बिसू का बाप)
16. बिन्दा (बिसू का अभिन्न मित्र)
17. जोरावर(सरोहा का जमींदार नुमा नव-धनाढ्य किसान)
18. काशी (सुकुल बाबू का विश्वसनीय कार्यकर्ता)
19. थानेदार (सरोहा का थानेदार,जोरावर का चमचा)
20. लठैत (जोरावर का आदमी)
21. जोगेसर साहू (सरोहा का बनिया)
◆ स्त्री पात्र :-
1. जमना बहन :- दा साहब की पत्नी
2. रुक्मा (बिन्दा की पत्नी)
3. लड़की (जोरावर की लड़की)
◆ नाटक की प्रथम प्रस्तुति :-
★ राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रंग-मंडल द्वारा
★ मार्च-अप्रैल, 1982 ई. में
★ श्रीमती अमाल अलाना के निर्देशन में
★ मंच-सज्जा श्री निसार अलाना के द्वारा
★ “व्यापक पृष्ठभूमि और चरित्रों की भीड़ वाले इस कथानक को केवल दो ढाई घंटे की सीमित अवधि में समेटकर नाटक के रूप में प्रस्तुत करने के लिए उपन्यास को बेहद निर्ममता से काटना, बदलना या नये ढंग से लिखना मेरी मजबूरी थी।” (मन्नू भंडारी का कथन )
★ “इस प्रयास में मुझे बराबर सहयोग मिला नाटक की निर्देशिका श्रीमती अमाल अलाना और प्रेम मटियानी से उनके साथ निरन्तर विचार विमर्श करके जो आलेख तैयार किया, रिहर्सल के दौरान उसमें भी अनेक सम्पादन संशोधन करने पड़े।” (मन्नू भंडारी का कथन )
★ “मंच के लिए आलेख के अंतिम रूप तक आने में अमाल अलाना और प्रेम मटियानी के सक्रिय सहयोग के अतिरिक्त विजय कश्यप और डॉ० शैल कुमारी का योगदान भी उल्लेखनीय है।” (मन्नू भंडारी का कथन )
★ बी. बी. सी लन्दन ने 55 मिनटों वाले ‘महाभोज’ के नाट्य रूपान्तर को प्रस्तुत किया।
◆ नाटक का विषय :-
( 1.) राजनीतिक स्वार्थ में नैतिक पतन का चित्रण।
(2.) सत्य और ईमानदार लोगों को कानूनी दांव-पेच में फंसाना।
(3.) लोकतंत्रीय व्यवस्था के दुरुपयोग का चित्रण।
(4.) चाटुकारिता, पद-लोलुपता और भ्रष्टाचार का चित्रण।
(5.) गरीब-दलितों के आवाज को दबाने का प्रयास।
(6.) राजनीति में गांधी और धर्म के सिद्धांतों का दुरुपयोग।
(7.) प्रजातंत्र के चौथे स्तंभकारों (पत्रकारों) का स्वार्थवश बिकाऊ होना।
(8. )गुनाहगारों को बचाने और बेगुनाहों को फंसाने का खेल।
◆ नाटक की दृश्य योजना :-
★ पहला दृश्य :- गांव का मैदान
★ दुसरा दृश्य :- गांव का मैदान
★ तीसरा दृश्य :- मुख्यमंत्री दा साहब’ की कोठी
★ चौथा दृश्य :- गांव का मैदान
★ पांचवाँ दृश्य :- दा साहब का कमरा
★ छठवां दृश्य :- मशाल का दफ्तर
★ सातवां दृश्य :- सरोहा गाँव का पंचायत
★ आठवां दृश्य :- सरोहा गाँव का थाना
★ नौवां दृश्य :- सरोहा गाँव का रेस्ट हाउस
★ दसवां दृश्य :- दा साहब की बैठक
★ ग्यारहवां दृश्य :- गांव में जोरावर सिंह का चौपाल
◆ नाटक के महत्वपूर्ण कथन :-
(1.)”मार-पीट या चोट का तो कौनो निशानी नहीं। खुदै कुछ खा-खुआकर सो गया होगा ससुरा ।”(थानेदार का कथन)
(2.)”मरे और सोयें आदमी में अन्तर ही कितना होता है भला? बस, एक सांस की डोर, वह टूटी और आदमी गया।” सूत्रधार (महेश) का कथन
(3.) “आवेश राजनीति का दुश्मन है। राजनीति में विवेक और धीरज चाहिए।”( दा साहब का कथन)
(4.) “अखबारों को तो स्वतंत्र होना ही चाहिए। वे ही हमारे कामों के असली दर्पण होते हैं।”(दा साहब का कथन)
(5.) “जुर्म का जवाब जुर्म नहीं होता,बिंदा ! जब तक हमारीव्यवस्था में जाति-भेद है और अमीर-गरीब की खाई है।”(महेश बिंदा से कहा)
(6.) “इस जर्जर सामाजिक ढांचे को बदलने के लिए समाज के हर वर्ग का योगदान जरूरी है। अकेली सरकार कुछ नहीं कर सकती।”(दा साहब दत्ता बाबू से कहा)
(7.) “आप लोगों के लिए अखबार का मतलब है सिर्फ धंधा।” (नरोत्तम का कथन)
(8.) “प्रजातंत्र प्रदर्शन पर पाबंदी लगाई जाए यह अनुचित है।” (दा साहब ने पांडे जी से कहा)
(9.) “जिस दिन गांव की हालत सुधरेगी उस दिन बापू का सपना पूरा होगा।”( दा साहब ने अपनी पत्नी से कहा)
(10.)”जातिवाद का जैसा घिनौना रूप आजादी के बाद देखने को मिला है।” (नरोत्तम क्रोध में कहा)
(11.)”आर्थिक सहायता से गरीबी पर जरूर मरहम लगाया जा सकता है, पर प्रियजनों के बिछूने के दुस पर नही आदमी का दुस जिस दिन पैसे से दूर होने लगेगा, इंसानियत उठ जायेगी दुनिया से।”(दा साहब का कथन)
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(12.)”जहाँ हक दिलवाये वही रो रही है सरकार। आये दिन हड़तालें,जलूस,तोडफ़ोड़ ….
एक दिन देखोगे कि हक ही-हक रह जायेंगे इनके पास और कोई काम-धाम नही “
(जोरावर ने दा साहब से कहता है)
(13.) “चार पैसे हाथ मे हो जाने से ही जात ऊँची हो जायेगी उनको ? हमारे साथ हुक्का पानी पीने लगेंगे ?” (जोरावर ने दा साहब से कहता है)
◆ नाटक का सारांश :-
★ महाभोज नाटक में सरोहा गाँव का जिक्र है जहाँ यह घटना घटित होती है। जो कि उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग में स्थित है।
★ प्रथम दृश्य में :-
√ गाँव का माहौल है जहाँ बिसेसर की माँ बिसेसर की लाश के समीप रोती है।
√ गाँव में बिसेसर की लाश का पुलिया पर मिलने से सनसनी का माहौल व्याप्त है।
√ गाँव में सबको यह यकीन था कि बिसू की हत्या हुई है आगजनी वाली घटना के कारण।
★ दुसरे दृश्य में :-
√ नरोत्तम गाँव से सीधे रिपोर्ट लेकर भवानी को सब हाल सुनाता है।
√ बिसेसर एक हरिजनों का नेता था।
√ गाँव में चुनावी सरगर्मी में ऐसा होना कोई आम बात नहीं है।
√ आगजनी वाली घटना में किसी के कानों पर जू तक नहीं रेंगा था। किन्तु इस घटना में सब कुछ मुस्तैदी से हो रहा है।
√ पूर्व मंत्री सुकुल बाबू का चुनाव में खम ठोककर खड़ा होना।
√ आगजनी की घटना में नौ लोगों के जल कर मर जाने के बाद भी मामला ठंडा पड़ गया था जबकि विधानसभा तक बात उठी थी।
√ नरोत्तम है जो सही मायनों में पत्रकारिता करने की कोशिश कर रहा वहीं भवानी है जो ऊपरी आमदनी किस माध्यम से हो वैसी पत्रकारिता करना चाहता है।
√ नाटक में समसामयिक परिस्थितियों को यथावत जिक्र है जो कि आज के परिपेक्ष्य में भी प्रासंगिक है।
★ तीसरे दृश्य में :-
√ दा साहब के घर और घरेलु दफ़्तर का दृश्य है।
√ जहाँ लखन अख़बार में छपी बिसू की हत्या के बात से हैरान है।
√ हरिजनों के सारे वोट विपक्षी पार्टी सुकुल बाबू को जाएगी इस बात से आतंकित है।
√ चुनावी दाव-पेच और वोट कैसे लालच देकर लिया जाय इसकी योजना बनाई जाती है।
★ चौथे दृश्य में :-
√ बिसेसर की मौत से आक्रोशित बिंदा उसके मौत का बदला लेने को तैयार रहता है।
√ महेश और रुकमा उसे इस पचड़े में न पड़ने की सलाह देते है।
√ वहां सुकुल बाबू गाँव में जनसभा करते है
√ जनसभा का अंत सुकुल बाबू और दा साहब के लोगों के बीच मारपीट में समाप्त होती है।
★ पांचवे में दृश्य :-
√ राजनीति में किस प्रकार प्रलोभन देकर रैलियों में भीड़ इकट्ठी की जाती हैं इसमें यह तरकीब सुकुल बाबू अपनाते है।
√ इस रैली से दा साहब के पार्टी के लोग आगामी चुनाव के मद्देनजर थोड़े चिंतित हो जाते है।
√ दा साहब के पार्टी लोग उनसे बेहद नाराज़ थे क्योंकि लखन को सुकुल बाबू के विपक्ष में खड़े कर रहे थे।
√ दा साहब मामले की पुन: रिपोर्ट बनाने सक्सेना को कहते है।
√ पार्टी के सभी लोग अप्पा साहब को पार्टी का साथ देने के लिए कहते है।
★ छठवें दृश्य में :-
√ मशाल का दफ़्तर जहाँ महेश और बिंदा नरोत्तम के कहने पर आगजनी की सबूत लेकर जाते है।
√ दत्ता बाबू द्वारा ढंग से और मामले की गंभीरता को न समझते हुए बेहद लापरवाही के साथ पेश आते है।
√ नरोत्तम का इस बात से आग बबूला होकर मशाल छोड़ने की बात करता है।
★ सातवें दृश्य में :-
√ गाँव में दा साहब के जन संबोधन की तैयारी जोरों से की जा रही है जिसमे जोरावर पूरी व्यवस्था का जायज़ा खुद बारीकी से ले रहा है।
लेकिन सारे किए पर दा साहब आकर पानी फेर देते हैं वह सीधे बिसू के पिता से मिलने चले जाते है और जोरावर को पूछते तक नहीं।
इस बात से जोरावर खुद को बहुत तिरस्कृत महसूस करता है।
इसी बीच काशी जो के सुकुल बाबु विरोधी पार्टी का सदस्य इस मौके का फायदा उठाता है और जोरावर को भड़का कर चुनाव में खड़े होने की राय देता है।
★ आठवें दृश्य में:-
√ एस.पी. सक्सेना बिसू की मौत की पुनः तहकीकात करने गाँव आता है। पूरे गाँव में खलबली मची हुई है।
√ सक्सेना एक-एक कर के सब की गवाही लेता है।
√ बिंदा ने साफ-साफ जोरावर का नाम बताया और आगजनी के पीछे भी उसी का हाथ होने के कारण वो बिसू के जान का दुश्मन था।
√ आगजनी के सबूत बिसू ने इकट्ठे किये हुए थे जिसमें जोरावर की संलिप्तता थी।
√ पोस्टमार्टम के रिपोर्ट में भी ज़हर से मौत की बात पता चली थी।
★ नौवें दृश्य में :-
√ अचानक सक्सेना के रेस्ट हाउस पर रात को महेश आता है।
√ बिंदा की गवाही के कारण उसकी पिटाई की बात बताता हैं और जिन लड़कों ने बिसू को जहर दी थी उनके बारे में बताता है।
√ दोनों के नाम और के उन दोनों को पकड़ लीजिए वही एकमात्र सबूत हैं नहीं तो बिंदा ही उसे मार डालेगा।
√ दोनों लड़के टिटहरी गाँव के है बिंदा भी वहीं गया है।
★ दसवे दृश्य में :-
√ सक्सेना के रिपोर्ट में जोरावर को साफ-साफ हत्यारा घोषित किया।
√ जोरावर के चुनाव में खड़े होने से होने वाले नुकसान से दा साहब हैरान हो जाते है।
√ जोरावर को सक्सेना की रिपोर्ट से धमकाते है और वह चुनाव में खड़े होने के फैसले को बदल देता है।
√ दा साहब इस मामले में बिंदा को बिसू का हत्यारा बत
√ साहब इस मामले में बिंदा को बिसू का हत्यारा बताते हैं कि रुकमा के साथ संबंध को बिंदा बर्दाश्त नहीं कर पाया। चोरी छुपे उसने यह कार्य को अंजाम दिया।
√ दा साहब ने डी. आई.जी. को कहा कि सक्सेना को सस्पेंड करो और बिंदा को गिरफ्तार ।
★ ग्यारहवें दृश्य में :-
√ जोरावर के घर पर जश्न का माहौल है जहाँ उसके बिसू के हत्या के मामले से साफ़ बाहर निकल जाने की खुशी में नाचने वाली को बुलाया गया है।
√ दूसरी तरफ़ सिन्हा आई.जी. में प्रोमोशन और शादी की पच्चीसवीं सालगिरह की जश्न मना रहे।
√ थाने में बिंदा को मार-मार के बिसू के खून का इकरार करवाने में लगे है।
√ महाभोज नाटक में कभी दृश्य दा साहब के घर का दिखाया जाता है कभी थाने में पिटता बिंदा का।
√ एक तरफ़ दा साहब बिंदा को फँसा कर दुनिया के सुख और आराम फरमा रहे वहीं बेकसूर बिंदा दर्द से कराह रहा।
√ फिर पुनः जोरावर के घर का दृश्य, सिन्हा का पार्टी का दृश्य और दा साहब के खाने पीने का दृश्य आता है ये सभी महाभोज चलते रहते है।
√ फिर थाने का दृश्य आता है बिंदा कराह रहा होता है महेश वहाँ जाकर भी कुछ नहीं कर पाता और नाटक समाप्त हो।
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